शनिवार, 28 फ़रवरी 2015

सुर-५९ : "राष्ट्रीय विज्ञान दिवस... करें न इसे विस्मृत...!!!"


गर,
होता न
‘ज्ञान’ और
उसे परखने वाला
सिद्धांत से भरा ‘विज्ञान’
तो न होती नई खोजों की पहचान

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मित्रों...,

‘भारत’ देश में सदियों से अनगिनत चीजों का अविष्कार और खोजें हुई हैं लेकिन कुछ तो लापरवाही और कुछ उसकी महत्ता से अनभिज्ञता की वजह से लोगों ने अपने मूल्यवान शोध को न तो ‘पेंटेंट’ कराया न ही उसके प्रति वो जागरूकता रही अतः वो तो बस, उसका उपयोग कर उसे लोगों में प्रचारित करते जिसके कारण बहुत से अभुतपूर्व अनमोल साधन जिन्हें की बड़ी मेहनत से खोजा गया था वो किसी और ने अपने नाम से सुरक्षित करा लिये और हम देखते ही रह गये इसी कारण सन १९८६ में राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद’ तथा ‘विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय’ ने ये निर्णय लिया कि लोगों को ‘विज्ञान’ विषय की महत्वपूर्ण सार्थक बातों की न सिर्फ़ जानकारी हो बल्कि वो इसके महत्व को समझे और इसके प्रति उनका नजरिया बदले जिससे वो जागरूक होकर खुद को इस क्षेत्र से जोड़कर सही तरह से अपने काम को दिशा दे सके जिससे कि उनकी खोजों का वास्तविक मूल्यांकन हो और उसके जाँच-पड़ताल एवं अथक कोशिशों का उसे ज़ायज हक मिल सके इस तरह २८ फरवरी को ‘राष्ट्रीय विज्ञान दिवस’ के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया ताकि साल दर साल सभी इस दिन अपनी वैज्ञानिक गतिविधयों का आकलन कर उसे सबके सामने प्रस्तुत कर सके और इसे प्रोत्साहन देने के लिये शोधार्थी को सभी आवश्यक सुविधायें व आर्थिक मदद भी दे जाने लगी जिससे कि उसके काम में कोई अड़चन न आये बस, तब से आज के दिन सभी विद्यालयों, महाविद्यालयों, वैज्ञानिक संस्थानों और प्रशिक्षण शालाओं में विज्ञान से सम्बंधित विभिन्न प्रतियोगितायें, सेमीनार, संगोष्ठी और प्रदर्शनी का आयोजन किया जाता जहाँ पर सभी विद्यार्थी अपने-अपने बनाये गये चार्ट, मॉडल्स व बनाई गई वस्तुओं को सबके सामने प्रदर्शित करता

सरकार ने इस दिवस को मनाने के लिये ‘२८ फरवरी’ का ही दिन इसलिये निश्चित किया कि सन १९२८ में आज ही के दिन हमारे देश के गौरव और महान वैज्ञानिक ‘प्रोफ़ेसर चंद्रशेखर रमन’ ने ‘रमन प्रभाव’ की खोज की थी जिसके लिये उन्हें और इस देश को भौतिकी का प्रथम ‘नोबल प्राइज’ भी हासिल हुआ चूँकि उन्होंने इसी दिन इसकी खोज की थी इसलिये उनकी स्मृति में आज का दिन ‘राष्ट्रीय विज्ञान दिवस’ के रूप में जाना जाने लगा तब से आज तक निरंतर आज के दिन सभी खोजकर्ताओं को उनकी विशेष ख़ास उपलब्धि के लिये किसी सर्वोच्च उपाधि से सम्मानित किया जाता और साथ ही पुरस्कारों की घोषणा कर उन सभी के उत्साह को भी बढ़ाया जाता जिन्होंने कि दिन-रात की लगातार मेहनत और समर्पण से किसी नयी वस्तु को इज़ाद कर देश और समाज के स्तर को बढ़ाने और लोगों का जीवन सुखी बनाने के लिये अपने अनमोल समय के अलावा वो सामान भी दिया जिससे कि वो आगे बढ़ सके । इसके अलावा ‘विज्ञान’ में हो रहे नये-नये अविष्कारों और खोजों के प्रति लोगों को ज्ञानवर्धन करने के लिए हमारे देश में साइंस सिटीभी स्थापित की गयी है और फिलहाल हमारे यहाँ लगभग चार ‘सांइस सिटी’ हैं जो कि इन चार महानगरों ‘कोलकाता’, लखनऊ’, अहमदाबाद’ और ‘कपूरथला’ में है इन ‘साइंस सिटी’ में विज्ञान के क्षेत्र में नित होने वाली नवीनतम प्रगति और वैज्ञानिकों द्वारा की जाने वाली क्रियाकलापों का प्रदर्शन किया जाता हैं है और यहां पर ‘विज्ञान’ से जुड़ी 3डी फिल्में भी दिखायी जाती हैं और साथ-साथ ही देश के अन्य क्षेत्रों जैसे कि ‘गुवाहटी’ और ‘कोट्टयाम’ में भी इसका निर्माण किया जा रहा है

एक पल को ही सोचे यदि ये ‘विज्ञान’ और ‘वैज्ञानिक’ न होते तो वो सब कुछ भी न होता जिनके माध्यम से आज हम दिन-ब-दिन सफ़लता के सौपान चढ़ते जा रहे हैं और तकनीक के मामले में दूसरे देशों के साथ कदम से कदम मिलाकर चलाने का प्रयास कर रहे हैं फिर भी ये कहने में थोडा भी हिचक का अनुभव नहीं होता कि इतना कुछ होते हुये भी अब भी लोगों में इसको लेकर उस दर्जे का उत्साह नहीं हैं जितना कि होना चाहिये तथा हम लोग अभी भी उस श्रेणी का अविष्कार नहीं कर पा रहे हैं जैसा कि हम सबको करना चाहिये ऐसे में ये जरूरी हैं कि हम लोग इस दिन का प्रचार करें और उन सभी को जो कि इसमें अपना कैरियर बनाना चाहते हैं इसकी जानकारी दे प्रेरित करें जिससे कि वो भी इसके बारे में जान सके और यदि उनकी रूचि हैं तो वो समर्थन पाकर आगे बढ़ सके... तो आज इस ‘राष्ट्रिय वैज्ञानिक दिवस’ में देश के सभी वैज्ञानिकों और खोजकर्ताओं को बधाई जिन्होंने अपनी खोजों से हम सबके जीवन को सुख-सुविधा पूर्ण बनाकर हमें ये नेमतें बख्शी हैं... ये विज्ञान का चमत्कार हैं कि आज हम सब आपस में इतने दूर-दूर और एक-दुसरे से अनजान होते हुये भी जुड़े हुये हैं... ऐसे में ‘विज्ञान’ को सलाम जिसने दिये वैज्ञानिक अपार... जिनसे हुआ मुश्किलों का पुल पार... बधाई सबको फिर एक बार... :) :) :) !!!     
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२८ फरवरी २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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शुक्रवार, 27 फ़रवरी 2015

सुर-५८ : "जिये और मरे आज़ाद... चन्द्रशेखर आज़ाद...!!!"

नाम वही
जो पूरा करें अर्थ
काम वही
जो न हो कभी व्यर्थ 
धाम वही
जो बनाये जीवन सार्थक
तब ही तो बलिदान न होता निरर्थक ॥
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मित्रों...,

एक चौदह साल का बालक जो कहने को तो कमउम्र और किशोर समझा जाता हैं लेकिन जब देश की हवाओं में गुलामी की गंध हो लोग बिना जंजीरों के भी खुद को हर पल बंधन में महसूस करते हो और अपने मन से न तो जी सकते हो न ही कुछ कर सकते हो तो ऐसे हालातों में कभी-कभी मूक बेबस जानवर भी हिंसक हो जाता या प्रतिकार को तड़फ उठता फिर बात जब जीते-जागते सामर्थ्यवान और सोचने-समझने की क्षमता रखने वाले इंसान की हो वो यदि चुप रह जाये तो उसे लड़ने से पहले ही हार मानकर बैठ जाने वाला मजबूरियों से समझौता करने वाला कायर के सिवा और क्या कहा जायेगा लेकिन परतंत्रता के उस दम तोड देने वाले सख्त नाक़ाबिल-ए-बर्दाश्त और जीने के लिये हर तरह से प्रतिकूल वातावरण में क्या छोटा क्या बड़ा हर कोई फिरंगियों को अपनी जमीन से बेदखल कर देने को तत्पर हो उठा । इसलिये जब १९२० में महात्मा गांधीजीने असहयोग आंदोलनछेड़ा तो ये कमसिन चंद्रशेखरभी उसमें शामिल हो गया क्योंकि उसके अंदर का लहू भी उबल रहा था जो किसी भी हाल में ख़ुद को और अपने भाई-बहनों को स्वतंत्र कराना चाहता था इसलिये उसने भी अपने आपको इस लड़ाई का हिस्सा बनने में देर न लगाई और इस आंदोलन में सक्रिय भागीदारी करने लगे फिर वही हुआ जो होना था एक दिन अंग्रेजों ने उन्हें धरना देते पकड़ लिया और कर दिया अदालत में हाज़िर फिर शुरू हुआ सवाल-जवाब का दौर मजिस्ट्रेट ने उस बहादुर लड़के से जब पूछा कि---

तुम्हारा नाम क्या हैं ?
तो निडरता भरा जवाब आया आज़ाद।         

उसके बाद पिता के नाम को जानना चाहा तो
एक और बेखौफ़ उत्तर स्वाधीन

अंत में जब घर का पता तलब किया गया तो
सर उठाकर बोले जेल

एक बच्चे के इस हौसले भरे प्रतिउत्तर से उसके अंदर के जोश और हिम्मत का अंदाज़ा आसानी से लगता हैं कि किस कदर वो ब्रिटिश शासकों के पिंजरे में कैद अपनी भारतमाताको स्वतंत्र कर खुली फिजाओं में तिरंगा फहराते देखना चाहता था इसलिये अपना नाम ही आज़ादरख लिया था और फिर जब तक जिंदा रहे इस नाम की लाज रखी और जब वक़्त आया दुश्मनों ने चारों और से घेर लिया तब भी खुद को जीते-जी उनके हवाले करने की बजाय अपनी पिस्टल की अंतिम गोली को खुद के सीने में उतार लिया लेकिन उनकी गिरफ़्त में नहीं आये इस तरह जो नाम  उन्होंने स्वयं ही चुना था उसे अपनी जान देकर भी निरर्थक न होने दिया । तभी तो इतने बरस बाद भी हम उनकी इस शहादत को विस्मृत नहीं कर पाये क्योंकि जब कोई अफ़साना स्याही की जगह लहू से लिखा जाता हैं तो वो फिर किसी भी तरह नहीं मिटता चाहे काल बदल जाये या दुनिया या फिर इतिहास वो उसी तरह सुर्ख रहता और सदियों तक आने वाली पीढ़ियों को शहीदों की दास्तां कहता जिसने उसे जाने के बाद भी अमर कर दिया ।

पंडित चंदशेखर आज़ादका व्यक्तित्व व कृतित्व हर एक नवजवान के लिए प्रेरक और संदेशप्रद हैं जिसे पढ़कर और सुनकर वो खुद के लिये भी इस तरह जीवन का लक्ष्य निर्धारित कर आगे बढ़ सकते हैं... उनका छोटी-सी जीवन गाथा में इतने सारे उत्साहवर्धक जोश से भरे प्रसंग हैं कि कोई भी उसे पढ़कर अपने अंदर भी उस ऊर्जा को अनुभव कर सकता हैं  तो फिर आज २७ फरवरी उनके पुण्यदिवस पर उनको शत-शत नमन... कोटि-कोटि प्रणाम जिन्होंने हम लोगों को स्वतंत्र जमीन-आसमान देने के लिये अपने आपको पुर्णतः समर्पित कर दिया... वंदे मातरम्... इंकलाब जिंदाबाद... का नारा बोल-बोलकर इस धरा को अपने कर्मों से गर्वित किया... नमन... :) :) :) !!!
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२७ फरवरी २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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गुरुवार, 26 फ़रवरी 2015

सुर-५७ : "देश की धरोहर... वीर सावरकर...!!!"

ये धरा
ने भूलेगी
अपने सपूतों का
समर्पण और बलिदान
जिन्होंने वतन की खातिर
कर दिया अपना तन-मन प्राणदान
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मित्रों...,

वैसे तो इस देश को आज़ाद हुये अधिक समय नहीं हुआ फिर भी आज की पीढ़ी बहुत ही जल्द इस देश को स्वतंत्र कराने वाले अनगिनत क्रांतिकारियों की शहादत को भूलने लगी उसने तो खुली हवा में आँख खोली और बंधनमुक्त जीवन का वरदान पाया इसलिये उसे तो अब याद भी नहीं कि कभी ये भारतमाता गुलामी की जंजीरों में जकड़ी थी और इस देश पर फिरंगियों का शासन था ऐसे समय में हर एक देशवासी ने अपनी मातृभूमि को दुश्मनों के चंगुल से छुड़ाने के लिये हरसंभव प्रयास किया जिसके लिये उसने दिन-रात, समय-असमय, सुख-दुःख किसी की भी परवाह नहीं की और हंसते-हंसते अपने आपको अपने देश के लिये निछावर कर दिया जिनमें से कुछ लोगों को तो सब याद करते हैं उनके नाम स्वर्णाक्षरों में इतिहास में अंकित हो गये और अनेक ऐसे भी हुयें जिनकी दास्तान भी लोग भूल गये लेकिन ये भारतमाता तो अपनी किसी भी संतान को भूल नहीं सकती और जब-जब किसी शहीद की पुण्यतिथि आती उसकी आँखें नम हो जाती और वो चुपचाप उसकी स्मृति में श्रद्धांजलि अर्पित करती हम सब जिसे भी इस पावन धरा पर जनम लेने का सुअवसर मिला हैं उनके इस ऋण से तो कभी उऋण नहीं हो सकते लेकिन उनको याद कर उनकी कुरबानी की उस अमर गाथा को दोहराकर उनके प्रति अपने मन की भावनाओं का प्रदर्शन तो कर सकते हैं ये नवजवान पीढ़ी जो उनको बिसराती जा रही उन्हें ये अफ़साना सुनाकर कम से कम उन वीर लोगों से परिचित तो करवाया ही जा सकता हैं ताकि वे भी अपने देश के क्रांतिकारियों के नाम, उनकी कहानियां और उनके त्याग को जान पाये जो काल के गाल में समा गये पर इस मिटटी के कण-कण में अपने लहू से अपनी वीरता की अमिट कथा लिख गये

आज ऐसे ही एक लाल ‘विनायक दामोदर सावरकर’ जिन्हें कि हम सब ‘वीर सवारकर’ के नाम से जानते थे का बलिदान दिवस हैं जो सिर्फ़ एक सच्चे देशभक्त ही नहीं बल्कि बड़े विचारक दार्शनिक स्पष्ट वक्ता होने के साथ-साथ समाज-सुधारक भी थे जो इस देश की सभी गलत परम्पराओं और कुरीतियों को भी जड़ से मिटाना चाहते थे जिससे कि लोग आपस में लड़ने-मरने की जगह अपने आपको इस धरा को स्वतंत्र कराने के लिये अपना सर्वस्व अर्पण कर दे जाती-पति भेदभाव से ऊपर उठकर ख़ुद को और दूसरे को भी सिर्फ़ एक मानव समझ उसके साथ भाईचारे का व्यवहार करें वे २८ मई १८८३ को नासिक के भगूर गाँव में पैदा हुये थे और खुद को एक ‘हिंदू’ मानते थे तथा ‘हिंदुत्व’ के पक्षधर थे इसलिये उन्होंने आजीवन ‘हिंदू’ जाति, ‘हिंदी’ भाषा और अपने देश ‘हिंदुस्तान’ के लिए कार्य किया जिसकी वजह से वह ‘अखिल भारत हिंदू महासभा’ के लगभग ६ बार ‘राष्ट्रीय अध्यक्ष’ चुने गये कहते हैं कि उन्होंने अपने देश को स्वतंत्र करने के लिये १९४० में पूना में अभिनव भारतीनाम के एक ‘क्रांतिकारी संगठन’ बनाया साथ ही आज़ादी को हासिल करने और उसके लिये अनवरत काम करने हेतु उन्होंने ‘मित्र मेला' के नाम से एक गुप्त संगठन का भी निर्माण किया । इस तरह उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन ही अपने देश की खातिर समर्पित कर दिया और अपने उग्रवादी विचारों एवं ओजपूर्ण भाषण शैली से देश के जन-जन को जागरूक करने का कार्य करते रहे ये उनके सतत संघर्ष का ही परिणाम था कि लोग उनकी बात को न सिर्फ समझे बल्कि ओनके साथ खड़े भी हुये और उनके संगठन में भी शामिल होते गये । उनका कहना था कि--- ‘हे मातृभूमि ! तेरे चरणों में पहले ही मैं अपना मन अर्पित कर चुका हूँ । देश सेवा में ईश्वर सेवा है, यह मानकर मैंने तेरी सेवा के माध्यम से भगवान की सेवा की हैं” ।
   
इससे हमें पता चलता हैं कि एकाग्रता और पूरी लगन से जब कोई अपने कर्म को सेवा मान लेता हैं और उसे पूजा मानकर करता हैं तो उसके लक्ष्य भी उससे दूर नहीं रहते क्योंकि कर्म ही पूजा हैं और जो ह्रदय से देश को ही अपना धर्म मान ले उसके पास लोग स्वतः ही खिंचे चले आते हैं... उनका विश्वास था कि सामजिक और सार्वजानिक हित को ध्यान में रखकर यदि कुछ किया जाता हैं तो फिर उसका सुपरिणाम पूरी जनता को मिलता हैं इसलिये वो सबको एक समान मान उन्हें साथ लेकर चले... और देश की आज़ादी के समय वे इसके विभाजन के पक्ष में भी नहीं थे लेकिन उसे रोक न सके परंतु आज भी उनके विचार हम सबके लिये प्रेरणा का अनुपम स्त्रोत हैं अनेक ग्रंथ जो उन्होंने लिखे उनमें सही इतिहास वर्णित किया हैं... आज ही के दिन २६ फ़रवरी, १९६६ को मुंबई में वे इस देश को अलविदा कर चले गये और आज उनकी बलिदान दिवस पर हम सब उनको याद कर कोटि-कोटि नमन करते हैं... :) :) :) !!!
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२६ फरवरी २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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बुधवार, 25 फ़रवरी 2015

सुर-५६ : "उम्मीदों का सितारा टूटता नहीं... तोड़ा जाता हैं...!!!"

ऐसा
न कोई
जिसको कोई
आस नहीं
जिसकी कोई
प्यास नहीं ।
.....
मगर...
करें पूरी
उसकी चाहत
ऐसा कोई चिराग़
किसी के भी पास नहीं ॥
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मित्रों...,

हर इंसान के जीवन में एक या अनेक ख्वाहिशें होती हैं लेकिन जब तक उन्हें पूरा करने का प्रयास न किया जाये वो स्वतः ही किसी भी वरदान या मंत्र से फलीभूत नहीं होती लेकिन फिर भी इस दुनिया में अनगिनत लोग ऐसे हैं जो सिर्फ तमन्ना को दिल में पालकर बैठे रहते हैं पर उसे किस तरह से साकार किया जाये ये कम ही जानते इसलिये तो हर किसी की मनोकामना पूरी होती नहीं हैं क्योंकि इनमें कई ऐसे भी होते हैं जो अपने आपको और अपनी मुरादों को 'तकदीर' या 'भाग्य' या 'हाथों की लकीरें' या जो भी कहें उसके सुपुर्द कर चैन से बैठे रहते कि गर, किस्मत में होगा तो सब कुछ चलकर आ जायेगा वरना कोशिश करने से भी हासिल न होगा उनकी आस्था इतनी गहरी होती कि फिर कोई कितना भी समझाये या बताये वो हाथ नहीं हिलाते और कुछ ऐसे भी होते जो किसी नज़ूमी की शरण में चले जाते या फिर कामना पूरा करने वाले गंडे-ताबीज़ को अपने तन पर धारण कर लेते और ये मानते कि इनकी वजह से उनको अपना मनचाहा वर मिल जायेगा तो चंद लोग आँख गड़ाकर आसमां को निहारते रहते कि वहां से कोई सितारा टूटे और वो आँख मूंदकर मन ही मन उससे अपनी इच्छापूर्ति के लिये कहें जिससे कि उसकी अधूरी या दबी हुई तमन्ना या जो भी उसने माँगा हैं वो अपने ही आप पूरी होकर उसकी झोली में गिर जाये ।

यदि ईश्वर कि यही भी यही मंशा होती तो वो हम सभी को इतनी सारी कर्मेन्द्रियाँ और ज्ञानेन्द्रियाँ नहीं बल्कि सिर्फ़ तारों से भरा आकाश देता और हम जब चाहे तब किसी भी टूटते तारे को देख जो भी इच्छा करते वो पूर्ण हो जाती लेकिन ऐसा नहीं हैं जो साफ़ ज़ाहिर करता हैं कि वे चाहते हैं कि हम भले ही इन सबको अपने जीवन की छोटी-छोटी आशाओं का प्रतीक माने लेकिन ये न भूले कि जब तक हम कर्म न करेंगे हमें फल न मिलेगा और जब-जब वो धरा पर आये यही संदेश देकर गये कि हर मानव का धर्म केवल कर्महैं और उससे ही उसके जीवन में मिलने वाले कर्मफलों का निर्धारण होता हैं । इसलिये जितनी जल्द जो भी इस मर्म को जान लेता वो फिर सिर्फ सपने नहीं देखता बल्कि उन्हें पूरा करने का हौंसला भी रखता इसलिये तो सफ़लता सबके पास नहीं आती न ही सबको मिलती क्योंकि उसका मंत्र 'कर्म' हैं न कि हाथ पर हाथ धरकर बैठना या किसी मनोकामना पूर्ति मंत्र का जाप करना तो सबको अपने जीवन का ध्येय जान लेने पर उस पाने के लिये हर जतन करना चाहिये और किसी भी भय या विध्न से घबराने की जगह साहस व हौंसले से हर कठिनाई का सामना करना चाहिये फिर देखें कि किस तरह से कोशिश करने वालों की हार नहीं होतीया हम होंगे काम्याबजैसी प्रेरक पंक्तियाँ सार्थक होती दिखाई देती... जो यही बताती कि उम्मीदों का सितारा टूटता नहीं बल्कि तोड़ा जाता हैं... तो आप भी इंतजार ही न करते रहो बल्कि अपने आशा के उस तारे को हाथ बढ़कर खुद तोड़ लो हिम्मत और लगन से... बस... हो जायेगी पूरी हर चाह... :) :) :) !!!      
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२५ फरवरी २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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मंगलवार, 24 फ़रवरी 2015

सुर-५५ : "तलत महमूद की आवाज़... जैसे बजता हो कोई साज़...!!!"

ख़ुदा
सबको ही 
बख्शता नहीं
ख़ास नेमतें अपनी ।
.....
कुछ ही होते
जिन्हें बनता सबसे हट के
और... वही समझते अंतरपीड़ा सबकी ॥
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मित्रों...,

हैं सबसे मधुर वो गीत जिन्हें, हम दर्द के सुर में गाते हैं...
जब हद से गुज़र जाती है खुशी, आँसू भी छलकते आते हैं...

कभी सुना हैं शाम ढले इस नगमे को यदि हाँ तो तभी समझ पायेंगे आप उस हस्ती को जिसका आज जन्मदिन हैं और जिसने अपनी विशेष गायिकी से हर किसी को अपना मुरीद बनाया और हर गीत, गजल या नज़्म जो भी उसने एक बार गाया उसे फिर सुनने वाला नहीं भूल पाया क्योंकि उसकी उस अलग हट के वाली आवाज़ में थी कुछ ऐसी कशिश कि जो भी एक बार उसे सुनता बस, आँख बंद कर उसके सुर-ताल के उतर-चढ़ाव के स्वर समंदर में इस तरह से डूबता-उबरता कि फिर स्वर भले ही बंद हो जाये लेकिन उसके अंदर अहसासों का ज्वर जो उमड़ता तो फिर आसानी से न थमता बल्कि कभी-कभी तो अंतस के जज्बातों का लावा आँखों के रास्ते से बाहर निकल आता और सुनने वाला खुद को बड़ा हल्का पुरसुकून महसूस करता तभी तो शायद, संगीत को भी दर्द-ए-दिल का मरहम कहा गया हैं और इस तरह दूसरे के रंजो-गम को अपनी मौशिकी से बहा ले जाने वाला भी तो किसी हकीम से कम नहीं जो बिना किसी कडवी दवा या आराम या किसी टीके को लगाये ही आपकी पीड़ा को कम कर देता आपको लगता जैसे उसने आपके अनकहे-अनसुने जज्बों को अपनी आवाज़ दे दी हो इसका अंदाज़ा केवल उसी को हो सकता हैं जिसको संगीत से प्यार हैं जिसने संगीत के सुरों को धडकन की ताल पर धक-धक करते सुना हो जिसके हर काम में हर बात में बल्कि कहूँ कि रग-रग में वो इस तरह से बस गया हो कि हर काम के साथ उसका होना जरूरी महसूस होता हो कभी अपनी पसंद की मद्धम स्वर लहरियों के साथ कोई काम कर के देखें कोई भी सृजन चाहे फिर वो लेखन हो या चित्रकला या फिर खाना बनाना ही उसका परिणाम देखकर आप स्वयं चकित रह जायेंगे कि ये जो भी आपने रचा वो अद्भुत हैं बशर्तें वो संगीत कानफोडू या आपके मन को व्यथित करने वाला नहीं बल्कि राहत देने वाला हो तभी आप इस अनुभूति को पा सकेंगे और उसकी अनुपस्थित को पाकर कुछ अनमना-सा पायेंगे अपने आप को क्योंकि जब कोई भी शय जो आपको सुकूं देती हो यदि आपके आस-पास न हो तो भले ही आप ये न जान पाये लेकिन आपकी रूह इसे भांप लेती हैं और उसकी बेचैनी आपके मिज़ाज को अपने आप ही चिडचिडा बना देती हैं ।

रात ने क्या-क्या ख्वाब दिखाये...
रंग भरे सौ जाल बिछाये...
आँखें खुली तो सपनें टूटे रह गये गम के काले साये...

तलत महमूदजिस शख्सियत का नाम था उसे खुद नहीं पता था कि उसे रब ने किस कदर अलहदा खुबसूरत गले से नवाज़ा हैं उसे तो नायक बनने की तमन्ना थी लेकिन ये तो उसके गाये गीत-गजलों का असर था कि जब उन्होंने ट्रेजेडी किंग दिलीप कुमारके लिये गाने गाये तो पर्दे पर अभिनय करते दिलीप साहब को देखकर कोई ये नहीं कह सकता था कि ये उनकी आवाज़ नहीं हैं इस तरह एक समय ऐसा आया कि वो रुपहले पर्दे पर दिलीप साहबकी आवाज़ का पर्याय बन गये और उनके लिये कई नगमें गाये जो सभी एक-एक कर सुपरहिट होते गये क्योंकि जो ख़ुद अदाकारी का सम्राट था जब उसने इस स्वर को साधा तो कुछ नायाब गीत रचे गये---

●...शाम-ए-गम की कसम आज ग़मगीन हैं हम
.....आ भी जा... आ भी जा..... आज मेरे सनम... 
●...ऐ मेरे दिल कहीं और चल
.....गम की दुनिया से दिल भर गया...
.....ढूंढ ले अब कोई घर नया...
●...कहाँ हो... कहाँ... मेरे जीवन सहारे
.....तुझे दिल पुकारे...
●...एक मैं हूँ एक मेरी बेकसी की शाम हैं
.....अब तो तुझ बिन जिंदगी भी मुझ पे एक इल्ज़ाम है...
●...मिलते ही आँखें दिल हुआ दीवाना किसी का
.....अफ़साना मेरा बन गया, अफ़साना किसी का...   
●...ये हवा ये रात ये चांदनी तेरी एक अदा पे निसार हैं
.....मुझे क्यों न हो तेरी आरजू तेरी जुस्तजू में बहार हैं...
●...ऐ दिल मुझे ऐसी जगह ले चल जहाँ कोई न हो
.....अपना-पराया मेहरबां नामेहरबाँ कोई न हो...
●...कोई नहीं मेरा इस दुनिया में आशियाँ बर्बाद हैं
.....आंसू भरी मुझे किस्मत मिली हैं जिंदगी नाशाद हैं... 
●...जब-जब फूल खिले तुझे याद किया हमने
.....देख अकेला हमें हमें घेर लिया गम ने...

इस जोड़ी ने रजत-पटल को अपनी अदाकारी और गायिकी से इस तरह लुभाया कि इसके बाद हर एक अभिनेता ने उस आवाज़ को अपने लिये गंवाने की इच्छा ज़ाहिर की और फिर तो उन्होंने लगभग सभी बड़े सितारे देव आनंद, राज कपूर, सुनील दत्त आदि के लिए भी लाजवाब गीत गाये और जब भी किसी के लिये पार्श्व गायन किया तो रजत-पर्दे पर उसे देखकर किसी को भी नहीं लगा कि ये उस अदाकार की अपनी वास्तविक आवाज़ नहीं हैं इतनी विविधता और स्वर-साधना थी उनकी कि हर किसी के साथ तालमेल बिठा लेते और कोई भी लफ्ज़ या सुर कभी भी बेसुरा नहीं होता तभी तो संगीत-सम्राट नौशाद ने उनके लिये कहा कि--- "तलत महमूद के बारे में मेरी राय बहुत ऊँची है । उनकी गायिकी का अंदाज अलग है, जब वह अपनी मखमली आवाज़ से अनोखे अंदाज में ग़ज़ल गाते हैं, तो ग़ज़ल की असली मिठास का अहसास होता है । उनकी भाषा पर अच्छी पकड़ है और उन्हें पता है कि किस शब्द पर ज़ोर देना हैऔर  तलत के होंठो से निकले किसी शब्द को समझने में कठिनाई नहीं होती ।"

फ़िल्मी संगीत का खज़ाना उनकी दिलकश आवाज़ के बेहतरीन नगीनों से भरा पड़ा हैं जिसे सुनकर उनकी गायिकी के इस अलग अंदाज़ को समझा जा सकता हैं---

●...मोहोब्बत ही ना जो समझे
.....वो जालिम प्यार क्या जाने
●...आंसू समझ के क्यूँ मुझे आँख से तुमने गिरा दिया
.....मोती किसी के प्यार का मिटटी में क्यों मिला दिया...
●...जलते हैं जिसके लिये तेरी आँखों के दिये
.....ढूंढ लाया हूँ वही गीत मैं तेरे लिये...
●...अहा रिमझिम के ये प्यारे-प्यारे गीत लिये
.....आई शाम सुहानी देखो प्रीत लिये....
●... इतना ना मुझसे तू प्यार बढ़ा के मैं एक बादल आवारा
..... कैसे किसी का सहारा बनूं के मैं खुद बेघर बंजारा...
●...जाएँ तो जाएँ कहाँ समझेगा कौन यहाँ
.....दर्द भरे दिल की जुबाँ....
●...सब कुछ लुटा के होश में आये तो क्या किया
.....दिन में अगर चराग जलाये तो क्या किया ?
●...मेरा करार ले जा मुझे बेकरार कर जा
.....दम भर तो प्यार कर जा...
●...हमसे आया न गया तुमसे बुलाया न गया
.....फासला प्यार में दोनों से मिटाया न गया...
●...प्यार पर बस तो नहीं हैं मेरा लेकिन फिर भी
.....तू बता दे के तुझे प्यार करूं या न करूं...
●...ज़िंदगी देने वाले सुन तेरी दुनिया से जी भर गया
.....मैं यहाँ जीते-जी मर गया...
●...अंधे जहान के अंधे रास्ते जाये तो जाये कहाँ
.....दुनिया तो दुनिया तू भी पराया हम यहाँ न वहां...
●...दिले नादाँ तुझे हुआ क्या है
.....आख़िर इस दर्द की दवा क्या हैं ?
●...फिर वही शाम वही गम वही तनहाई है
.....दिल को समझाने तेरी याद चली आई हैं...
देख ली तेरी खुदाई, बस मेरा दिल भर गया
●...मैं दिल हूँ एक अरमान भरा
●...मेरी याद में तुम ना आंसू बहाना
●...तस्वीर बनाता हूँ... तस्वीर नहीं बनती...
●...ऐ गमे दिल क्या करूं... ऐ वहशते दिल क्या करूं...
●...तू आये न आये तेरी ख़ुशी हम आस लगाये बैठे हैं...
●...बेचैन नजर बेताब जिगर ये दिल हैं किसी का दीवाना

सच... इतने प्यारे-प्यारे और मदहोश कर देने वाले एक-से बढ़कर एक गीत हैं कि अपने आप याद आते जा रहे और किसी को भी छोड़ने का मन नहीं कर रहा क्योंकि यही तो अब उनकी धरोहर रह गई हैं हमारे पास जो उनकी याद को भूलने न देगी । उन्होंने आजीवन अपनी उत्कृष्ट गायिकी से गज़ल जैसी विधा को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया बतौर उनके कथनानुसार- "ग़ज़ल प्रेम का गीत होती है, हम उसे बाज़ारू क्यों बना रहे हैं, इसकी पवित्रता को नष्ट नहीं किया जाना चाहिए। तभी तो उस दौर में उन्हें विदेश जाकर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करने का सुअवसर भी मिला और इस अथक साधना के लिये उन्हें पद्मभूषणजैसी उपाधि से भी सम्मानित किया गया... तो आज उनके जन्मदिवस पर उनके सभी प्रशंसकों की और से ये शब्दांजली और शुकराना उस रब का जिसने हमें ये मखमली दिल के दर्द को मिटाने वाली आवाज़ की नेमत बख्शी... :) :) :) !!!
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२४ फरवरी २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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