शुक्रवार, 31 मार्च 2017

सुर-२०१७-९० : सिने जगत की अभिनय सम्राज्ञी : ‘मीना कुमारी’!!!

साथियों... नमस्कार...

हिंदी सिनेमा का ये सौभाग्य रहा कि प्रारंभ में भले ही संभ्रात परिवार वालों ने उसे हेय दृष्टि से देखा या औरतों ने उसमें काम करना नापसंद किया लेकिन, जब भी किसी ने किसी भी वजह से इसको अपनाया चाहे वो ख़ुशी से हो या मजबूरी से तो फिर अपने अभिनय के दम पर जीवित रखने वाले इन अदाकारों ने अपनी तरफ से कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी यहाँ तक कि जब अपनी आर्थिक परिस्थतियो की वजह से अच्छे परिवार की लड़कियों ने इसमें कदम रखा तो उन्होंने इसे महज़ रोजी-रोटी कमाने का जरिया नहीं समझा बल्कि अपने वास्तविक अनुभवों के निचोड़ से उस समय की काल्पनिक कहानियों में भी ऐसा वास्तविक अभिनय किया कि जब जरूरत पड़ी तो बिना ग्लिसरीन लगाये भी उनके नेत्र छलक पड़े कि उन्होंने इसे निरा नाटक नहीं समझा बल्कि अपने काम को पूजा की तरह समझा और जो भी किरदार निभाने को मिले साधना की भांति उसमें गहरे तक डूबकर अपनी तरफ से शत-प्रतिशत दिया तभी तो उस दौर की फिल्मों व कलाकारों को भूलना मुमकिन नहीं...

जो कि किसी तरह के एक्टिंग स्कूल में प्रशिक्षित न होने के बावजूद भी अपने सहज-सरल भावों से देखने वालों के दिल जीत लेते थे जबकि आज के ट्रेंड स्टार्स सब तरह की सुविधाओं के बाद भी वो प्रभाव छोड़ने में कामयाब नहीं रह पाते जिनके लिये हम आज भी पुराने कलाकारों को याद करते हैं कि उनकी अपनी विशेषतायें, उनके अपने अलहदा अंदाज़ व हाव-भाव जिनसे उनकी अपनी अलग पहचान बनी और आज तो सब एक जैसे ही नजर आते किसी के भी पास अपना कोई ख़ास स्टाइल या संवाद अदायगी नहीं जिसके लिये हम आज भी सोहराब मोदी, पृथ्वीराज कपूर, दिलीप कुमार, राज कपूर, देव आनंद, बलराज साहनी, राज कुमार, राजेंद्र कुमार, राजेश खन्ना, शत्रुध्न सिन्हा, निरूपा रॉय, कामिनी कौशल, नलिनी जयवंत, नादिरा, निम्मी, गीताबाली, नर्गिस, मधुबाला, मीना कुमारी, नूतन, माला सिन्हा, साधना, मुमताज़ का स्मरण करते हैं उनके डायलॉग दोहराते तो उनकी भाव-भंगिमाओं की भी नकल करते हैं कि किस तरह उन्होंने अपनी अदाओं से इन्हें यादगार बना दिया...

इसकी वजह शायद, इन सबका धरातल से जुड़ाव व अपने काम के प्रति गंभीरता थी जबकि आज तो एक फिल्म से कलाकार के भाव और कद आसमान छूने लगते वो भी तब जब फ़िल्में पहले की तरह न तो सिल्वर, गोल्डन, डायमंड या प्लेटिनम जुबली मनाती और एक वो भी समय था कि फ़िल्में व गाने सालों-साल तक गूंजते रहते थे और आज तलक भी उनकी मिठास हमें सुकून का अहसास देती और वो पुरानी फ़िल्में तो किसी पुरानी दवा की तरह हमारी परेशानियों पर मरहम का काम करती इसलिये जब भी उस सुनहरे दौर के किसी भी कलाकार की कोई तिथि आती तो अपने आप ही जेहन में उसकी सूरत व उसके काम की झलक रील की तरह चलने लगती ये दर्शाता कि कोई भी काम हो जिसे पूरी शिद्दत से किया जाता तो उसके अमिट निशान उस कलाकार के जाने के बाद भी उसका नामो-निशान मिटने नहीं देते बल्कि उनके जरिये वो उसे युगों-युगों तक जीवित रखते...

ऐसी ही एक हरदिल अजीज अदाकारा थी ‘महजबीन’ उर्फ़ ‘मीना कुमारी’ जिसके सौंदर्य ही नहीं बल्कि हर किरदार ने अपने चाहने वालों के दिलों-दिमाग पर इस तरह से कब्जा जमाया हैं कि जब भी दर्द या गम की बात हो तो ‘ट्रेजेडी क्वीन’ के रूप में उनकी ही तस्वीर मस्तिष्क में उभरने लगती जिन्होंने केवल दर्द को ही नहीं हर एक भाव, हर एक रस और हर एक अहसास को अभिव्यक्ति दी लेकिन जन्म से ही प्रकृति द्वारा अंतर में पीड़ा का कोई बीज इस तरह से रोपा गया था कि दिन-प्रतिदिन उसकी शाखायें निकलती जाती और एक दिन तो वो इतना विशाल वृक्ष बन गया जिसकी छाया ने उनकी मुकम्मल शख्सियत को अपनी कैद में भर लिया तो फिर कोई भी चरित्र हो या रोल उसमें कहीं न कहीं उस दर्द की छाप पड़ ही जाती यहाँ तक कि उनकी आवाज़ में भी वेदना की वो लहर लहू की तरह समा गयी थी कि उसे सुनकर ही मन द्रवित हो जाता और उसकी गूँज सिनेमा हाल से बाहर आकर भी कानों में सुनाई देती रहती यहाँ तक कि जिसने उनको महसूस किया वो आज भी उसे अपने भीतर सुन सकते हैं कि वो महज़ कोई आवाज़ नहीं दर्द का साज़ हैं.... 

अपने अंतर की वो बेख़ुदी उस पर इस कदर तारी थी कि जब उन्होंने उसे शब्दों में व्यक्त किया तो उनकी कलम से निकलकर अल्फाज़ भी गम की शायरी या नज़्म बन गये यदि हम इसे यूँ कहे कि वे पीड़ा का मानवीय अवतार थी तो ये अतिश्योक्ति न होगी बल्कि उनकी दिव्य सुंदरता, कोमलता और संजीदगी को देखकर तो हमने ये जाना कि दर्द इतना खुबसूरत भी होता हैं जो अपने भीतर गम को छिपाकर उपर से मुस्कुराता रहता हैं और जब इसे शान करना संभव नहीं होता तो उसे भूलने के लिये नशे का सहारा भी लेता हैं फिर इस तरह से उसमें डूब जाता कि अपना वजूद ही मिटा देता हैं कुछ ऐसा ही तो किया उन्होंने अपने जीवन के साथ कि जब हर तरफ से उन्हें सिवाय धोखे या बेवफाई के कुछ भी हासिल न हुआ तो फिर ऐसे में उन्होंने मदहोशी का रास्ता अपनाया कि हर तकलीफ को भूलकर यूँ गाफ़िल हो इस जहाँ से कि फिर किसी भी तरह की बड़ी से बड़ी तकलीफ़ का भी उन्हें कोई अहसास न हो कि पहले ही अंदर इतनी वेदना भरी कि अब थोड़े-से भी दर्द के लिये जगह शेष नहीं तो गम के प्यालों को छोड़कर नशे को तरजीह देने लगी जिसका नतीज़ा ये निकला कि उन्हें असमय ही इस दुनिया से रुखसती करनी पड़ी...

उनकी ये कहानी भी किसी फिल्म की तरह नजर आती असलियत में वो जिसकी नायिका की भूमिका निभा रही थी और अफ़सोस कि उसका अंत भी दुखद ही रहा जब वो कम उम्र में इस हंसती-खेलती दुनिया को आज ही के दिन अलविदा कहकर चली गयी आज उनकी पुण्यतिथि पर हम उनको याद करते हैं तो कभी वो सामने छोटी बहु की तरह नजर आती हैं तो कभी पाकीज़ा की तरह नाचती दिखाई देती हैं तो कभी परिणीता बन शर्माती हैं और कभी चित्रलेखा की तरह गाती हैं... “संसार से भागे फिरते हो, भगवान को तुम क्या पाओगे...” याने कि जितनी भूमिकायें उतने ही उसके विविध रूप आँखों में तैर जाते हैं... अब यही उनकी अंतिम निशानियाँ हैं, जिनके सहारे उनकी यादें दोहरानी हैं... स्मृति दिवस पर यही शब्दांजलि... उन महान अदाकारा के प्रति... :) :) :) !!!
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

३१ मार्च २०१७

गुरुवार, 30 मार्च 2017

सुर-२०१७-८९ : पूर्वानुमान भी रोक नहीं पाता... जो होना होता होकर ही रहता...!!!

साथियों... नमस्कार...

जब भी कुछ होता तो लोग कहते कि यदि उन्हें पहले से जरा भी भनक होती तो वे इसे रोक लेते होने न देते परंतु बहुत सी ऐसी घटनायें या अनहोनी होती जो ये साबित करती कि चाहे पहले से पता हो या न हो होनी होकर ही रहती...
 
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सब कहते
जब राजमहल से
निकले राजकुमार सिद्धार्थ
सोती यशोधरा को छोड़
तो बन गयी बैरन कायनात भी
न हुई कदमों की आहट
न ही कपड़ों की सरसराहट
न ही मन में ही हल्की भी छटपटाहट
फिर किस तरह जान पाती
अर्धांगिनी उनका गमन
गर, होता जरा-सा भी अहसास
तो जिस तरह सीता चल दी
छोड़कर महलों का सुख वैभव
अपने प्रियतम के पीछे
क्या वो भी न चली जाती
पर, ऐसा होता तो क्या होता ???
.....
न पाते सिद्धार्थ
जीवन रहस्यों का मर्म
न मिलता उन्हें परम तत्व
न बन पाते वो 'गौतम बुद्ध'
न ही बनता 'बौद्ध धर्म'
कि माया और तपस्या साथ-साथ
न रह सकते कभी
शायद, जानकर ये रहस्य ही
परम धाम को जाते हुये बुद्ध ने
दी थी सख़्त चेतावनी कि
स्त्रियों का प्रवेश वर्जित रखना सदा
वरना, गर हजार वर्ष
चलने वाला होगा ये मत तो
सिर्फ पांच सौ बरस ही चल पायेगा
फिर भी न माना किसी ने
तो हुआ वही जिसका संदेह था ।
.....
वो आहट जिसे
सुन न सकी थी सोती यशोधरा
तो गंवा बैठी जीवन धन
उसे योग निंद्रा में सुन लिया था
ध्यानमग्न बुद्ध ने तो भी
न बच सका साधना से बनाया धर्म
कि आहट हो या न हो
होनी को नहीं सकता कोई भी रोक
भले ही खुद को समझाने
कहते रहे हमेशा कि यदि सुनी होती
जरा सी भी आहट तो
जो कुछ भी हुआ उसे होने न देते ।।
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कभी-कभी तो हम सब कुछ जानते हुये भी उस संभावित खतरे को टाल नहीं पाते कि बहुत कुछ पहले से तय होता जिस पर हमारा जरा भी अख्तियार नहीं होता और हम उसे बेबस से देखने के सिवाय कुछ भी नहीं कर पाते... यही वो पल जो बताते की हम उस परम शक्ति के अधीन, नियति के हाथों की कठपुतली... :) :) :) !!!
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

३० मार्च २०१७

बुधवार, 29 मार्च 2017

सुर-२०१७-८८ : चैत्र प्रतिपदा संग आये... नववर्ष और नवरात्र...!!!

साथियों... नमस्कार...

चैत्र महीने के आगाज़ के साथ ही प्रकृति में भी अनेक शुभ परिवर्तन दृष्टिगोचर होने लगते हैं क्योंकि ये समय ऋतू बदलाव का भी होता हैं ऐसे में हम भी इनके साथ सामंजस्य बिठा सके इसलिये इस माह के शुक्ल पक्ष की प्रथमा तिथि के साथ माँ आदिशक्ति के नौ दिवसीय महापर्व की शुरुआत हो जाती हैं तो हम व्रत, उपवास, हवन, पूजन के माध्यम से संतुलन बनाते हुए खुद को इस बदलाव के साथ जोड़ लेते हैं और ये केवल माँ दुर्गा की पूजा का ही अवसर नहीं बल्कि इसके साथ ही हिंदुओ का नूतन वर्ष भी आरंभ होता हैं और आज तो इस तरह के आयोजन की महत्ता इसलिए भी बढ़ जाती हैं क्योंकि हमारी नई पीढ़ी सब तरह के डेज की तो आदि हो गयी लेकिन अपनी ही जड़ों से दूर हो रही ऐसे में उसको अपनी परम्पराओं और सभ्यता का भी कुछ ज्ञान हो साथ ही हमारे दिन-महीने भी पता हो तो हमें पूर्ण हर्षोल्लास से इसका आयोजन करना चाहिये और अपने नौनिहालों को इसके आध्यात्मिक, सामाजिक महत्व के बारे में भी जानकारी देनी चाहिये... इसी उम्मीद के साथ कि हम केवल इसे परंपरानुसार मनाये ही नहीं बल्कि अपनी अगली पीढ़ी को भी इससे जोड़ते हुये उसे इसके संबंध में हर तरह की कथा सहित महत्वपूर्ण तथ्यपरक जानकरियां भी प्रदान करें... सबको नववर्ष व नवरात्र की मंगलमयी शुभकामनायें... :) :) :) !!!
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

२९ मार्च २०१७

मंगलवार, 28 मार्च 2017

सुर-२०१७-८७ : लघुकथा : "सच की परतें" !!!

साथियों... नमस्कार...


न्यूज़ चैनल पर खबर आ रही थी कि प्रशासन की अवमानना करने के आरोप में सब इंस्पेक्टर दीपक कुमार को निलंबित कर दिया गया तो उसे सुनकर उसकी पत्नी और बच्चों का कहना था कि उसे झूठे आरोप में फंसाया गया तो अधिकारियों की सोच थी कि उन्होंने ऐसा कर अपने ऑफिसर्स को खुश कर दिया तो नेताजी खुश थे कि उन्होंने अपने खिलाफ़ बोलने वाले को अच्छा सबक सिखाया उधर जेल में बैठे उस अपराधी को सुकून था कि उसने यहाँ आकर अपने बच्चों की जान बचा ली जिनकी जान को खतरा था।
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

२८ मार्च २०१७

सोमवार, 27 मार्च 2017

सुर-२०१७-८६ : 'विश्व रंगमंच दिवस' का पैग़ाम... एक सलाम हर किरदार के नाम...!!!

साथियों... नमस्कार...

अब तो तकनीकी विकास के कारण वास्तविक जगत के साथ-साथ आभासी-दुनिया भी जुड़ गयी या दूसरे शब्दों में कहे तो दुनिया तो अभी भी एक ही हैं लेकिन उसके भीतर कई छोटे-छोटे जहाँ समाये हुये हैं जिनमें रहने वालों की भूमिका अपने आस-पास के परिवेश के अनुसार बदलती रहती हैं और जब से इसमें आभासी संसार भी जुड़ गया तो मानो उनके अपने दायरे का ही विस्तार नहीं हुआ बल्कि उनके किरदार भी बढ़ गये जिससे कि पहले तो केवल घर-बाहर ही अलग-अलग मुखौटे लगाने पड़ते थे लेकिन अब तो इस जगह भी अपने आपको स्थापित करने हर किसी ने अपना एक नया चरित्र स्वयं ही गढ़ लिया जो कि उसकी असली शख्सियत से एकदम अलग हैं एक तरह से देखें तो उसने इस जगह पर खुद को उस तरह से स्थापित किया जैसा वो होना चाहता था परंतु किसी कारणवश हो नहीं पाया तो उसने अपने मन की दबी भावनाओं को ज़ाहिर करने इस माध्यम को उस मंच की तरह इस्तेमाल किया जिस पर वो कभी खुलकर अपने हुनर को दर्शा नहीं पाया तो इस तरह यहाँ वो कवि / लेखक / चित्रकार / गायक / कलाकार या जो भी वो चाहता था बन गया जिसका उसकी हकीकी ज़िंदगी से भी वास्ता हो सकता हैं या फिर वो रूप उसने केवल इस जगह के लिये ही अपनाया हो ये भी संभावना हैं...

खैर, जो भी हो ये तो तय हैं कि आज के इस प्रतिस्पर्धा भरे युग में आदमी के ऊपर अपने आपको तरह-तरह से प्रस्तुत करने का एक अदृश्य दबाब हैं जिसके कारण वो एक हस्ती होकर भी एक ही दिन में अनेक भेष बदलता और हर जगह अपने रोल में सौ प्रतिशत देने की कोशिश करता जिससे कि कोई उसे नजरअंदाज न कर सके तो इस तरह उसने अपनी बहुमुखी प्रतिभा के अनुसार बहुरूप धारण कर लिये हैं जिनके अनुसार वो स्वयं को ढालता रहता और इस चक्कर में कभी-कभी वो अपनी अंदरूनी सुंदरता को भी विस्मृत कर देता क्योंकि बाहरी चमक-दमक, भ्रामक टिप्पणियां और तथाकथित सेलिब्रिटी होने का भाव उसमें एक झूठा अभिमान भी पैदा कर देता जिसे बरक़रार रखने का प्रेशर फिर उसको स्थायी रूप से मुखौटा लगाने मजबूर कर देता ऐसे में जरुरी कि हम जमीनी सच्चाई से भी रूबरू हो ताकि जब कभी पर्दा उठे तो खुद को आईने में देखकर पहचान सके क्योंकि अपनी असली पहचान को किसी कोने में रखकर हम रोज इतनी सारी भूमिकायें निभाते कि फिर उसे भूल जाते तो आज इस 'विश्व रंगमंच दिवस' पर हम इस आभासी रंगमंच के भी सभी किरदारों को सलाम करें और उन्हें अपनी सफल अदाकारी के लिए बधाइयां दे... पर, साथ ही सबको ये सलाह भी दे कि वो अपने उस किरदार को पूर्ण ईमानदारी से अदा करें जो ईश्वर ने उन्हें दिया... इसके अतिरिक्त वे सभी अदाकार जो रंगमंच पर काल्पनिक पात्रों को जीवित करते उन सबको भी बहुत-बहुत बधाई... आखिर दिन तो उन्ही का हैं लेकिन हम सब विधाता के बनाये रंगमंच के साथी कलाकार तो सबको इस दिवस की अनेकानेक शुभकामनायें…  :) :) :) !!!  
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

२७ मार्च २०१७

रविवार, 26 मार्च 2017

सुर-२०१७-८५ : 'प्यार बनाम आतंकवाद' !!!

साथियों... नमस्कार...


हर चीज़ की
एक हद होती हैं
फिर ये नामुराद 'प्यार'
क्यों ???
बेहद होता हैं...
आतंकवादी कहीं का...
तोड़ के सीमा
अपने दिल की दूसरे की
दहलीज़ पर जाकर
क्यों आक्रमण करता हैं ???
क्यों ???
उसके मन आँगन में
बेचैनी की बारूद
यादों की बंदूक दागता हैं
और,
जब इस दुश्मन से
हो जाता प्यार
तो फिर उजाड़कर
दिल का चमन
छीनकर दौलत ए सुकूँ
क्यों वापस चला जाता हैं ??
लगता,
अब इसे भी
आतंकवादी घोषित
करना ही पड़ेगा
पर,
इससे होगा क्या ???
वो तो
पहले भी आज़ाद था
आगे भी यूँ ही उन्मुक्त उड़ेगा ।।
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

२६ मार्च २०१७

शनिवार, 25 मार्च 2017

सुर-२०१७-८३ : कलम के सच्चे सिपाही... ‘गणेश शंकर विद्यार्थी’ !!!

साथियों... नमस्कार...


गुलामी के दिनों में हर किसी ने अपनी तरह से देश के प्रति अपना फर्ज़ निभाया किसी ने अस्त्र-शस्त्र उठाकर जंगे मैदान में मोर्चा लिया तो किसी ने अपनी कलम को ही अपना हथियार बना लिया और इस तरह हर किसी ने अपने वतन को आज़ाद कराने की खातिर फिरंगी सरकार से मुकाबला किया ताकि वे अपनी मातृभूमि को परतंत्रता की जंजीरों से मुक्त करा सके और भारत माता के प्रति अपना फर्ज़ निभा स्वदेश के प्रति अपने ऋण से मुक्त हो सके ऐसे ही ‘गणेश शंकर विद्यार्थी’ ने अपने क्रांतिकारी विचारों से लोगों के मन में स्वदेश प्रेम की भावना जागृत कर उनको देश के दुश्मनों से लड़ाई करने के लिये तैयार किया जिससे कि सब मिलकर जल्द से जल्द अपने तिरंगे को लहराता देख सके इसके लिये उन्होंने ‘महाराणा प्रताप’ से प्रेरणा प्राप्त कर ‘प्रताप’ नाम से एक अख़बार प्रारंभ किया जिसके माध्यम से उन्होंने जन-जन में ऐसे ओजपूर्ण उत्साहवर्धक लेख प्रकाशित किये कि उन्हें पढ़कर देश के नवजवानों के रक्त में उबाल आ जाये और वे उनको गुलाम बनाने वाले विदेशियों को हिंदुस्तान की सरजमीन से खदेड़ यहाँ पर पुनः अपना शासन स्थापित कर सके और इस काम में वे सफ़ल भी रहे लेकिन जब २३ मार्च १९३१ को भगत सिंह. राजगुरु एवं सुखदेव को एकाएक फांसी दे दी गयी तो वे कलम छोड़ मैदान में कूद पड़े और आज ही के दिन २५ मार्च १९३१ को देश पर कुर्बान हो गये तो आज उनकी शहादत पर हम सब देशवासी उनको मन से नमन करते हुये अपने श्रद्धा सुमन समर्पित करते हैं... :) :) :) !!!       

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

२५ मार्च २०१७ 

शुक्रवार, 24 मार्च 2017

सुर-२०१७-८२ : लघुकथा : ‘अ-साधारण से साधारण बनने का भय’

साथियों... नमस्कार...


पप्पू - मम्मी ये तो अब प्रूव हो गया कि मैं अपने खानदानी पेशे को आगे बढ़ा पाने में सक्षम नहीं इसलिये मुझे इसे त्याग कुछ और करने की सोचना चाहिये ।
मम्मी - बेटा, तू चाहे कुछ भी कर या कहीं भी चला जा पर, तुझे इससे अधिक आसान काम दूसरा न मिलेगा और सबसे बड़ी बात अपने इस पारिवारिक कार्य में किसी सेलिब्रिटी की तरह जो मान-सम्मान मिलता वो भी न किसी और काम में मिलेगा तो इस काम को नहीं विचार को त्याग और इसी धंधे से लगे रहे ।
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नरसिंहपुर (म.प्र.)

२४ मार्च २०१७

गुरुवार, 23 मार्च 2017

सुर-२०१७-८१ : भगतसिंह, राजगुरु, सुखदेव... बने जंग-ए-आज़ादी के तीन शेर... !!!

साथियों... नमस्कार...


२३ मार्च १९३१ की सुबह हर उस हिंदुस्तानी के हृदय को टीस पहुंचाती हैं जिसे अपनी मातृभूमि और अपने देश के शाहीदों की कुर्बानी का जरा-सा भी अहसास हैं कि किस तरह गुलामी की त्रासदी से आकंठ डूबा हर एक भारतीय उससे निजात पाने अपनी जान की कीमत पर भी फिरंगियों से टक्कर लेने तैयार था वो भी उम्र के उस मोड़ पर जबकि जीवन प्यारा लगता हैं लेकिन जब सांसें बंधक हो और आज़ाद पर भी पहरा हो तो फिर बचपन हो या जवानी कुछ भी मन को नहीं भाता कुछ ऐसा ही महसूस होता था उस दौर के नौजवानों को भी जो अपने ही घर में परतंत्रता की बेड़ियों में खुद को असहाय महसूस कर रहे थे तो फिर उन सलाखों से खुद को स्वतंत्र कराने उन सबने मिलकर युवा शक्ति और ऊर्जा को एक ही लक्ष्य की दिशा में लगा दिया जिसमें समझौता किसी भी स्थिति में स्वीकार न था...

ऐसा नहीं कि उस वक़्त केवल यही तीन युवा सक्रिय थे और केवल इन्हें ही अपने देश से अधिक प्रेम था बस, इनके भीतर का जज्बा इन्हें हर तरह का खतरा उठाने प्रेरित करता था जिसके कारण इन लोगों ने वो कारनामें कर दिखाये जो इनसे पहले कोई दूसरा न कर सका वो भी अपने अंजाम को जानते हुए भी कि यदि पकड़े गये तो फांसी के फंदे से कोई भी न बचा पायेगा इन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ अपना मोर्चा जारी रखा और गिरफ्त में आने पर भी किसी तरह का भय इन्हें अपने पथ से डिगा न सका बल्कि इनके हौसलों को देखकर उल्टे अंग्रेजी सरकार को इनसे खतरा महसूस हो रहा था तो उन्होंने निर्धारित तिथि से पूर्व ही इन तीनों शेरों को फांसी पर लटका दिया जो इनके प्रति उनके खौफ़ को दर्शाता हैं कि ब्रिटिश शासन को ये समझ आ गया था कि यदि इन्हें छोड़ दिया गया तो उन्हें समय से पूर्व ही भारत को आज़ाद करना पड़ेगा वैसे वो ये जान ही चुके थे कि हिंदुस्तानियों को अब अधिक दिनों तक कैद में रखना मुश्किल होगा लेकिन जब तक वे इस फरमान को रोक सकते थे उन्होंने वो प्रयास किया तभी तो १९३१ की इस काली सुबह के बाद १५ अगस्त १९४७ की आधी रात में आज़ादी का सूरज उगा जिसकी किरणों में अनगिनत बलिदानियों के रक्त की लालिमा समाई थी...

इन तीन शेरों ने युवावस्था में अपने साहस से जिस तरह अंग्रेजों का मुकाबला किया और हंसते-हंसते मौत को गले लगाया उस हृदय विदारक दृश्य ने हर किसी को ग़मगीन कर दिया और उसी बलिदान का परिणाम कि हम आज न सिर्फ स्वतंत्र हैं बल्कि उनकी शहादत को भी भूल नहीं पाये जो आज के युवाओं के लिये प्रेरणादायक और झकझोर करने वाली हैं कि जिस आयु में वे अपने समय व ऊर्जा को फ़िज़ूल गंवाते उस अवस्था में ये तीनों अपनी भूमिका अदा कर दुनिया से रुखसत कर गए... शहीद दिवस पर भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव को मन से नमन और ये शब्दांजली... कोटि-कोटि प्रणाम... :) :) :) !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

२३ मार्च २०१७