सोमवार, 31 जुलाई 2017

सुर-२०१७-२११ : सावन का चतुर्थ सोमवार... शिव परिवार के सदस्य चार...!!!


यूँ तो ये समस्त संसार ही शिव का परिवार हैं जिसका ध्यान वे एक जिम्मेदार पालक जी भांति ही करते हैं उस पर भी यदि हम उनके खुद के परिवार की बार करे तो वो भी छोटा-मोटा नहीं क्योंकि उसमें सभी को स्थान दिया गया स्वयं शिव के ही शीश पर गंगा और चंद्रमा विराजमान रहते हैं तो गले में विषधर का निवास होता हैं और वाहन के रूप में नंदी सदैव उनके समीप रहते हैं याने कि वे कभी अकेले नहीं होते उसके बाद यदि ‘कैलाश’ पर नजर डाले तो वहां प्रकृति की हर एक शय नजर आती कि जिसे देखो वही उनके निकट रहने का प्रलोभन त्याग नहीं पाता तो नन्हीं चींटी हो या विशालकाय दानव या फिर जंगली जानवर सब वहां मिल-जुलकर रहते जबकि सबका स्वभाव एक-दूसरे के विपरीत लेकिन वहां सब मिलकर साथ रहते चाहे सांप या मोर हो या चूहा या नेवला या फिर शेर उनमें आपस में कोई बैर नजर नहीं आता बल्कि परस्पर सामंजस्य बनाकर वे साथ रहते यही वजह कि उनसे हमको भी विविधता में भी एकता का संदेश मिलता कि भले प्राणियों की प्रवृति एक-दूसरे से मिलती नहीं लेकिन जब वे किसी परिवार के सदस्य बन जाते तो फिर उनके बीच किसी तरह का वैमनस्य नहीं होना चाहिये और यदि किसी कारणवश ऐसी स्थिति आ भी जाये तो आपस में लड़ने-झगड़ने की बजाय सुलह का मार्ग निकालना चाहिये ताकि परिवार की एकता भंग न हो शायद, यही कारण कि शिवजी की फॅमिली को आदर्श माना जाता...

ये तो खैर उनके संपूर्ण परिजनों का विवरण हुआ जो उनके साथ कैलाश पर्वत पर रहते परंतु इसके अतिरिक्त भी उनका अपना एक व्यक्तिगत परिवार हैं जिसमें वे, आदिशक्ति पार्वती और उनके दो पुत्र गणेश व कार्तिकेय रहते और इस तरह से वे भी हम दो हमारे दो के उस सिद्धांत का आदिकाल से ही पालन कर रहे जिसे आज हम इस आधुनिक काल में अपना रहे जो दर्शाता कि परिवार में सबके लिये स्थान होना चाहिये उसके बाद भी अपना एक अलग कोना होना चाहिये जिसमें आपका अपना अस्तित्व अपनी पूर्णता के साथ नजर आये तो ये छोटा सा नजर आने वाला परिवार वास्तव में शिव के व्यक्तित्व का ही विस्तार हैं जहाँ वे हमें चार अलग-अलग रूपों में नजर आते हैं उसके अलावा उनका अपना भी एक पृथक अस्तित्व हैं जिसमें सारा ब्रम्हांड समाया हुआ हैं और यही विराट रूप उनका वो स्वरुप हैं जिसमें हम भी शामिल हैं तो उनसे जन्म लेकर हम अंतत उनमें ही विलीन हो जाते इसलिये इस जगत को शिवमय कहा जाता हैं और हर जगह, हर घर में किसी न किसी रूप में चाहे वो जगदंबा माँ हो या विनायक गणेश या फिर सदानंद कार्तिकेय असल में वे ही स्थापित दिखाई देते हैं और इस तरह चार सदस्यों का उनका ये परिवार कम्पलीट फॅमिली कहलाता जिसमें धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का इस तरह सम्मिश्रण होता कि उनमें एक अद्भुत संतुलन नजर आता जिससे वो धरती थमी रहती तो आज सावन के चतुर्थ सोमवार पर शिव परिवार के चार सदस्यों की महिमा का ही गुणगान... जय-जय भोलेनाथ... :) :) :) !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

३१ जुलाई २०१७

रविवार, 30 जुलाई 2017

सुर-२०१७-२१० : श्रीरामचरित मानस के रचयिता की स्मृति मनाते आज हम ‘तुलसी जयंती’...!!!


पांच सौ साल पहले इस भारत भूमि पर ही एक ऐसी अ-सामान्य हस्ती ने जनम लिया जिसे अपनी कुछ पैदाइशी शारीरिक विसंगतियों की वजह से अपने माता-पिता का साथ तो मिला नहीं साथ ही समाज से भी स्नेह की जगह दुत्कार और प्रताड़ना मिली फिर भी इतने कष्टों व असहनीय अवस्थाओं को सहन करते हुये उसने किसी तरह अपने बाल्यकाल को व्यतीत किया और ईश्वर कृपा से गुरु प्राप्त हुये तो नामकरण व शिक्षा-दीक्षा का प्रबंध हुआ जिसमें उनकी असाधारण मेधा शक्ति ने बड़ा योगदान दिया कि उन्होंने अपनी बुद्धिमता व विलक्षण प्रतिभा से अपने संपर्क में आने वाले योगी-ज्ञानियों को प्रभावित किया जिसकी वजह से उन्हें वेदों-पुराणों का ज्ञान प्राप्त हुआ और जब युवावस्था में पहुंचे तो ‘रत्नावली’ नाम की कन्या से विवाह हुआ जो उनके जीवनकाल का सबसे महत्वपूर्ण सोपान साबित हुआ जिसके लिये उनका जनम हुआ था वो उद्देश्य उन्हें अपनी पत्नी की वजह से ही ज्ञात हुआ और उनकी प्रेरणा ही थी कि वो ‘रामबोला’ या ‘तुलसीराम’ जो अपने जन्म से अनभिज्ञ महज़ परिस्थितिवश साधारण जीवन जिया जा रहा था एकाएक ही जैसे उसके भीतर सुप्त ज्ञान दीपक जला उठा जिसने उनके अंतर को इस तरह से रोशन किया कि उसके प्रकाश से उसने समस्त जगत को आलोकित कर दिया और श्रीराम के जीवन का इस तरह से सरलीकरण प्रस्तुत किया कि एक बार पुनः राम को घर-घर में स्थापित कर दिया इसके अतिरिक्त ‘हनुमान चालीसा’ ने तो मानो चमत्कार कर दिया कि इस लघु ग्रंथ को हर किसी ने अपने बचपन से ही इस तरह से कंठस्थ कर लिया कि शायद ही कोई ऐसा हो जिसे ये याद न हो कि एक तो इसका प्रवाह दूसरा इसके स्मरण मात्र से रगों में होने वाले साहस का संचार इसकी अपार लोकप्रियता की नींव हैं जिसके कारण सभी इसे पसंद करते तो आज ऐसे महानतम कृतित्व के रचनाकार एक महान कवि, भक्त शिरोमणि और समाज-सुधारक तुलसीदास को उनकी जयंती पर शत-शत नमन... :) !!!
     
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

३० जुलाई २०१७

शनिवार, 29 जुलाई 2017

सुर-२०१७-२०९ : काव्यकथा : मैं ‘चाँद’ तुम ‘बादल’... होते अगर...!!!


हल्की-हल्की बूंदाबांदी हो रही थी जिसने ‘शायना’ के अंतर में ‘आरुष’ की सोई हुई याद को एक बार फिर से जगा दिया उफ़, ये बारिश भी न ठूंठ को भी हरिया देती और ये तो फिर भी प्रिय की मुरझाई छवि हैं जिसे खिलने के लिये महज़ अनुराग के छिड़काव की जरूरत कि दोनों के बीच अलग-अलग शहरों में रहने की वजह से एकाएक जो दूरी आ गयी थी उसने कहीं न कहीं दिलों में भी फ़ासला पैदा कर दिया था कि अपने-अपने जॉब में उनकी व्यस्तता इतनी अधिक थी जिससे वे एक-दुसरे के लिये वक़्त केवल वीकेंड में ही निकाल पाते थे तो उनको आपस में जोड़ने वाले स्नेह का रसायन वो असर नहीं कर पा रहा जो करीब होकर उन्होंने महसूस किया था ऐसे में जब उसने ‘चाँद’ और ‘बादल’ को अठखेलियाँ करते देखा तो मन के किसी कोने एक ख्याल तैरने लगा...
              
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काश,

चाँद और बादल
सदा साथ रहते जिस तरह
संग हो मेरा-तुम्हारा भी
कभी तुम लो आगोश में इस तरह
कि अस्तित्व मेरा घुल जाये
अंतर में तुम्हारे कुछ यूँ
कि भेद न रह जाये हमारे बीच
तो कभी पूर्णाकार हो जाऊं ऐसे कि
कुछ भी न नजर आये मेरे सिवा
और देखकर मेरी पूर्णता
मुस्कुरा दो तुम कुछ इस तरह
अपनी प्रेयसी के नूरानी चेहरे के पीछे
छिपे राज को जानकर गदगद होता
प्रियतम का अंतस जिस तरह
कभी हम दोनों खेले आँख मिचौली
तुम मुझे और मैं तुमको
तारों के झुरमुट में ढूंढते रहे रात भर
और थककर तुम्हारे साये तले
सो जाऊं भूलकर सारी थकन ऐसे
पालक की गोद में सर रख
बेफिक्र सोता कोई बालक जैसे
जब हो तेज बारिश तो
गरज कर डांटना तुम काले बादल को
जब चमके तेज बिजली और
मैं डर कर लगूं तुम्हारे सीने से तो
प्यार से लगा गले देना सांत्वना
यूँ दिन-रात पल-पल हम
बांटे एक दूसरे की ख़ुशी हो या ग़म ।।
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उसने तुरंत ‘आरुष’ के पास जाने के लिये ऑनलाइन बुकिंग की और ये निश्चय किया कि अब वो वहीँ जॉब सर्च कर लेगी लेकिन, यूँ दूर रहकर समय और जीवन के इन अनमोल पलों को यूँ केवल आजीविका की खातिर होम नहीं करेंगे माना, रोटी, कपड़ा, मकान जीवन की सबसे बड़ी जरूरत लेकिन इनको कमाने के चक्कर में जो खो रहे वो अधिक कीमती तो क्यों न जो ज्यादा मूल्यवान उसे बचाया जाये बस, इस सोच ने उसके इरादों को पुख्ता किया और उसने विडियो कॉल करके उसे अपना फ़ैसला सुनाया कि तस्वीर से दिल मानता नहीं, बातों से काम चलता नहीं... जब मिलन की तमन्ना अंगडाई ले तो आगोश के अहसास को कल्पना से बहलाना आसान नहीं इसलिये अब नो इमेजिनेशन, ओनली मीटिंग इज़ सोल्यूशन... और इस बात ने ‘आरुष’ के चेहरे पर ख़ुशी की जो रंगत बिखेरी उसका रिफ्लेक्शन उसने अपने मुख पर भी महसूस किया और आँख बंद कर उस ट्रेन का इंतजार करने लगी जो उसके शहर की पटरियों को ले जाकर ‘आरुष’ के शहर की पटरियों से जोड़ देगी... J !!!       

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२९ जुलाई २०१७


शुक्रवार, 28 जुलाई 2017

सुर-२०१७-२०८ : जिससे हमारी साँसें चलती... कुछ और नहीं वो तो हैं ‘प्रकृति’...!!!


मेरे सांस लेने से
जी उठती प्रकृति और
उसके सांस छोड़ने से
मुझे जीवन मिलता

प्रकृति और हम एक-दूसरे के पूरक हैं फिर भी जहाँ प्रकृति हमारे बिन जी सकती वहीं हम उसके बिना एक सांस भी नहीं ले सकते क्योंकि हम केवल सांस लेने ही नहीं बल्कि भोजन, पानी, कपड़े, आवास, फर्नीचर, अनाज, फल, वनस्पति आदि समस्त जरूरतों के लिये उस पर पूरी तरह से निर्भर करते हैं उसके बाद भी हमारा प्रकृति के प्रति रवैया कुछ ऐसा हैं जैसे हमें उसकी नहीं उसे हमारी आवश्यकता हैं हम दोनों का जीवन केवल सह-अस्तित्व में ही संभव जहाँ हम मिलकर एक-दूजे की हिफ़ाज़त ही नहीं सरंक्षण भी करे कि सिर्फ़ हमें ही नहीं बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी वो सब कुछ मिल सके जिसके वो हक़दार क्योंकि जिस तरह से हम उसके अनवरत दोहन में लगे उससे तो यही प्रतीत हो रहा कि आने वाले समय में कुदरत की अनमोल नेमतें दुर्लभ हो जायेगी या केवल तस्वीरों में ही शेष रह जायेंगी यदि हमने अब भी सचेत होकर उनको सुरक्षित करने के विशेष प्रयास नहीं किये वैसे भी अनेक प्रजतियां तो विलुप्त हो ही चुकी लेकिन जो बची-खुची उनके लिये हमें सावधान होकर ऐसे कदम उठाने चाहिये कि जीव, जंतु, पशु-पक्षी, नदी-तालाब, झरने सभी कुछ हम बचा सके अन्यथा एक दिन पछताने पर भी इन्हें दुबारा प्राप्त न कर सकेंगे  

˜˜˜...........
निहारते थे हम
जल में अपना अक्स
आईना नहीं था
आज भी...
प्रकृति का तो वही दर्पण
जिसमें झलकता
उसका नैसर्गिक प्रतिबिंब
पशु-पक्षी भी तो देखते
झाँककर उसमें अपनी छवि
करते किलोल मिलकर
पर, धीरे-धीरे स्वार्थी मानव ने
कर दिया कुदरत का हनन
न रहे नदी, तालाब, झरने और
न ही बचे जंगली जानवर
कितना गैर-जिम्मेदार कि अब भी
एक पल करता नहीं मनन
कि सह-अस्तित्व में ही रहेगा कायम
उसका अपना भी जीवन
जो नष्ट होती प्राकृतिक संपदा संग
खतरे के निशाने की तरफ
हर पल बढ़ता जा रहा
वो दिन दूर नहीं जब इंसान स्वयं ही
सृष्टि के विनाश की वजह बनेगा
दुनिया की नाव को खुद ही ले डूबेगा
तब न फिर कोई 'नोहा'
ब्रम्हांड की प्रत्येक प्रजाति का सरंक्षण कर
पुनर्निर्माण में सहयोगी बन सकेगा ।।
.....................................................˜˜˜   

हर धर्म में जल-प्रलय ही नहीं उसके बाद पुनः जीवन प्रारंभ होने की कहानी का विस्तृत वर्णन हैं जिसमें अद्भुत समानता हैं कि समस्त पृथ्वी को जलमग्न कर के समाप्त करने के पूर्व ईश्वर ने एक व्यक्ति को चुना और ये आदेश दिया कि वो सभी तरह के प्राणियों व वनस्पति की एक जोड़ी  सुरक्षित रख ले ताकि फिर से नई दुनिया बसाई जा सके लेकिन हमने तो अनगिनत प्रजातियाँ को लगभग खत्म कर दिया ऐसे में ये प्रश्न उठता कि किस तरह से समस्त तरह के जीवों को पुनर्जीवित किया जा सकेगा ? क्या ये पृथ्वी का अंतिम काल हैं जिसके बाद नये सिरे से ही रचना होगी या अभी भी हमारे हाथ में कुछ संभावनायें बाकी हैं जिसके दम पर हम कुछ आशा कर सकते हैं  

जिस तरह से प्रकृति की तरफ से संकेत मिल रहे वो तो यही जता रहे कि हमारे अत्याचारों से तंग आकर अब उसने प्रतिरोध लेना शुरू कर दिया हैं इसलिये आये दिन उसके द्वारा होने वाली आपदाओं के बारे में हम सुन रहे हैं और उसके अलावा जिस तरह से संपूर्ण वायुमंडल में परिवर्तन का प्रभाव दिखाई दे रहा हैं वो भी अपने आप में बहुत कुछ कह रहा हैं कि अब भी वक़्त हैं संभल जाओ अन्यथा एक दिन पछताने के लिये भी कुछ न बचेगा क्योंकि अब तो मौसम भी पहले से न रहे बल्कि अब तो पूर्वानुमान भी गलत साबित हो रहे कि हम ज्ञान-विज्ञान के जिस घमंड में ये समझ रहे थे कि हमने सब कुछ जान लिया, सब कुछ हमारे नियंत्रण में उसकी पोल खुल चुकी कि जब भी कोई प्राकृतिक घटना होती तो हम अवाक रह जाते तब अपनी गलती का अहसास भी होता लेकिन कहीं न कहीं फिर वही कुम्भकर्णी नींद सो जाते और इस तरह ये क्रम चलता ही रहता तो जो भी हम भुगत रहे या आगे देखेंगे सब हमारे अपने ही कर्मों का फल होगा...

˜˜˜.....    
बदलते तो
पहले भी थे
'मौसम'
पर...
.....
अब जिस तरह से
हो गया चलन
कि एक ही दिन में
आ जाते सब एक साथ
ऐसा न ढाया था कभी प्रकृति ने
'सितम'
.....
गर,
समझो हकीकत तो
ये सब  हैं
इंसान के ही अपने
'करम' !!
.............˜˜˜
आज ‘विश्व प्रकृति सरंक्षण दिवस’ से ही यदि हम सब उसे बचाने के प्रयास में जुट जाये तो भी वो कयामत जो निकट भविष्य में आने वाली होगी उसे लंबे वक़्त के लिये टाल सकते हैं और इसी उद्देश्य के लिये इसे मनाने का निर्णय लिया गया तो इसके पीछे की वजह को समझते हुये हम कुम्भकर्णी निंद्रा से जागे और प्रकृति को नहीं बल्कि खुद को बचाये क्योंकि हम रहे न रहे वो तो रहेगी लेकिन उसके बिना हमारा वजूद न बचेगा तो अपने जीवन के लिये, अपने स्वार्थ के लिये ही सही हम उसके सरंक्षण में लग जाये और साथ ही दूसरों को भी इसके लिये जागरूक करे... इस ‘दिवस’ को एक दिन की बजाय रोज मनाये... :) :) :) !!!     
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

२९ जुलाई २०१७

गुरुवार, 27 जुलाई 2017

सुर-२०१७-२०७ : युवाओं के प्रेरणास्त्रोत बने जिनके विचार... वे थे मिसाईल मेन ‘डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम’...!!!


 
“हम सभी के पास एक समान प्रतिभा नहीं होती, लेकिन हम सभी के पास अपनी प्रतिभा को विकसित करने समान अवसर होते हैं”

ऐसे प्रेरक विचारों के धनी देश के प्रतिभाशाली वैज्ञानिक से लेकर ग्याहरवें राष्ट्रपति के पद तक पहुंचने वाले ‘डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम’ की कहानी किसी रोचक उपन्यास से कम नहीं जिसका नायक तमाम तकलीफों और संघर्षों के बाद भी हालात के आगे झुकता नहीं बल्कि कुछ इस तरह से अपनी बौद्धिक व मानसिक क्षमताओं का उपयोग करता हैं कि एक दिन अपनी विलक्षण योग्यता से ‘अग्नि’ जैसी मिसाईल का निर्माण कर देता वो भी तब जबकि ऐसा सोचना भी संभव नहीं लेकिन इस देश की मिटटी में समय-समय पर ऐसे रत्न रूपी मानव हुये जिन्होंने अपने अभूतपूर्व कर्मों से अपने साधारण व्यक्तित्व को असाधारण में तब्दील कर दिया जिनके जीवन-चरित्र को पढ़कर युवाओं को उनसे प्रेरणा प्राप्त हुई ऐसा की कारनामा कर दिखाया ‘रामेश्वरम’ में एक निर्धन नाविक के घर जन्म लेने वाले बालक ‘कलाम’ ने भी जिन्होंने बेहद विपरीत परिस्थितियों का सामना किया लेकिन किसी भी परिस्थिति में अपने मनोबल को टूटने नहीं दिया और न ही अपने स्वप्नों को बिखरने दिया जो उन्होंने पांचवी क्लास में देखा और ये तय किया कि वे एक दिन उड़ान में हु ओबा कैरियर बनायेंगे तो अपने इस लक्ष्य को पाने के लिये वे लगातार अध्ययन में जुटे रहे जिसमें उनके शिक्षक उनके मार्गदर्शक साबित हुये अपने जीवन के इन विषम हालातों, व्यवहारिक ज्ञान एवं संघर्षों ने ही उनको ये सिखाया कि...

“बारिश की दौरान सारे पक्षी आश्रय की तलाश करते है लेकिन बाज़ बादलों के ऊपर उडकर बारिश को ही अवॉयड कर देते है, समस्याए कॉमन है, लेकिन आपका एटीट्यूड इनमे डिफरेंस पैदा करता है”

कभी बज को भरी बरसात में उपर आसमान में उड़ते देख उनके मन में ये ख्याल आया होगा जिसे उन्होंने यूँ शब्दों में ढालकर हमको बताया कि हमारी सोच व नजरिया ही हमें मुश्किलों को अलग तरह से देखने व उनसे निबटने का हौंसला देता हैं कभी जिन हालातों में कोई दम तोड़ देता हैं वहीं कभी उन्हीं कठिन हालातों में कोई जीवन को यूँ साध लेता हैं कि फिर कोई भी परिस्थिति उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाती तो ऐसा ही उनके साथ हुआ उनके जीवन में जितनी कठिनाइयाँ आई वे उतने ही मजबूत होते गये और उन्होंने अपने लक्ष्य को पाने की मन में दृढ प्रतिज्ञा भी कर ली तब उनके जेहन में ये विचार कुलबुला रहा था...

“शिखर तक पहुँचने के लिए ताकत चाहिए होती है, चाहे वो माउन्ट एवरेस्ट का शिखर हो या कोई दूसरा लक्ष्य”

ये ताकत बाहुबल की नहीं बल्कि मानसिक दृढ़ता की होती जो उनके पास असीमित थी तभी तो वे ऐसा असंभव लगने वाले कार्यों को भी आसानी से अंजाम दे सके जिनके बारे में सोचना भी दुष्कर लगता क्योंकि उनके भीतर आत्मबल की वो ताकत थी जो उन्हें संबल देती थी कि एक दिन वो अपने देश के लिये कुछ कर दिखायेंगे पर, इस तरह कि देश के प्रथम नागरिक का दर्जा प्राप्त होगा उन्होंने भी नहीं सोचा होगा लेकिन पूर्ण ईमानदारी, लगन व मेहनत से अपने हर काम को अंजाम देना हैं ये तय कर लिया था तो फिर सब कुछ अपने आप आसान होता गया जिसके पीछे कहीं न कहीं ये विचार ही उनका प्रेरणास्त्रोत बना होगा...

“इंसान को कठिनाइयों की आवश्यकता होती है, क्योंकि सफलता का आनंद उठाने कि लिए ये ज़रूरी हैं जब हम कठिनाइयों का सामना करते हैं तो हम अपने भीतर छिपे साहस के असीमित भण्डार को खोज पाते हैं जब हम असफल होते हैं, तभी हमें यह अहसास हो पाता हैं कि संसाधन हमारे पास हमेशा होते हैं, हमें केवल उन्हें खोजने और आगे बढ़ने की आवश्यकता होती हैं”   

हर कठिनाई को पार कर के वे उस ऊँचाई पर पहुंचे जहाँ उनका कद आदमकद बन गया और देश का बच्चा-बच्चा उनका मुरीद बन गया और आज हर किसी की जुबान पर उनका नाम सुनाई देता हैं उनके विचारों से लोगों की सुबह होती जिनमें बसी सकारात्मकता उनको भी आगे बढ़ने, कुछ कर गुजरने की प्रेरणा देती हैं वो भी उन हालातों में जबकि देश में ‘धर्म’ के नाम पर भी राजनीति चल रही ऐसे में उनका ये वाक्य हम सबके लिये बहुत बड़ा मार्गदर्शक साबित हो सकता हैं कि वे धर्म के विषय में इस तरह की सोच रखते थे...  

“किसी भी धर्म में किसी धर्म को बनाए रखने और बढाने के लिए दूसरों को मारना नहीं बताया गया”

हम सब ये जानते फिर भी करते नहीं ऐसा बल्कि भीड़ में शामिल होकर हमारे अंदर की इंसानियत न जाने किस कोने में दुबक जाती कि हम बेहद मामूली-सी बातों पर भी किसी की जान लेने को अमादा हो जाते यदि वो किसी धर्म विशेष से जुडी हो जबकि किसी की जान लेने से बड़ी अमानवीयता दूसरी नहीं फिर भी हम ऐसा करते तो अब हम सबको उनके प्रति अपनी आदरांजली प्रकट करने के लिये ये संकल्प लेना होगा कि जिन्होंने हर धर्म से परे खुद को जिस तरह केवल एक ‘इंसान’ के रूप में स्थापित किया हमें भी करना होगा और अपने देश को भ्रष्टाचारमुक्त बनाने के लिए उनके इस अनमोल वचन को अपनाना होगा...   

“गर, किसी देश को भ्रष्टाचारमुक्त और सुन्दर-मन वाले लोगों का देश बनाना है तो, मेरा दृढ़तापूर्वक मानना है कि समाज के तीन प्रमुख सदस्य ये कर सकते हैं- पिता, माता और गुरु”

मतलब ऐसा पिता, माता या गुरु बनना होगा जो किसी भी रूप में न तो स्वयं भ्रष्टाचार करे न ही इस तरह की शिक्षा दे कि जिससे हम भी वैसे बने तो इस तरह मूल रूप से उस विकराल समस्या का निदान हो सकेगा जो फ़िलहाल असंभव प्रतीत हो रही... इसी शब्दांजलि के साथ कलाम साहब को सलाम... :) :) :) !!!  
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

२७ जुलाई २०१७

बुधवार, 26 जुलाई 2017

सुर-२०१७-२०६ : कारगिल विजय दिवस की कहानी... १८ साल बाद भी नहीं लगती पुरानी...!!!


कश्मीर भारत-पाकिस्तान के बीच एक ऐसा मसला जिसका कोई निदान नहीं तो विवाद के साथ-साथ यहाँ आये दिन युद्ध की स्थिति बनती रहती लेकिन जिस तरह से १९९९ के मई महीने में पाकिस्तानी सैनिकों व पाक समर्थित आतंकवादियों ने भारतीय सीमा का उल्लंघन करते हुये न केवल उसके भीतर प्रवेश किया बल्कि कई महत्वपूर्ण चोटियों पर कब्जा भी कर लिया और भारत को लेह-लद्दाख से जोड़ने वाली सड़क पर भी नियंत्रण हासिल कर सियाचिन-ग्लेशियर पर भारत की स्थिति को कमजोर बनाकर उसकी राष्ट्रीय अस्मिता के लिए खतरा पैदा करना उनका उद्देश्य था तो उन्होंने हमारे ही देश में घुसकर हमारी ही जमीन पर हमको ललकारा तो फिर हमारे सैनिक भला किस तरह चुप रहने वाले थे उन्होंने उन विपरीत परिस्थितियों में भी जबकि दुश्मन उनसे अधिक ऊंचाई पर था तब भी अपने मनोबल व साहस को बनाये रखते हुए उनसे न केवल लगभग दो महीने तक संघर्ष किया बल्कि उनको उनकी औकात भी याद दिला दी कि यदि वे दोस्त बनकर धोखे से पीठ पर चाकू घोंपने वाली अपनी आदत से बाज नहीं आते तो फिर हम क्यों उनको धूल चटाने की अपनी आदत से बाज आये तो वही हुआ २६ जुलाई १९९९ को इस जंग की समाप्ति के साथ हमारे सैनिकों ने वापस अपनी जगह पर अपना अधिकार प्राप्त किया जिसमें हमारे कई जवानों को अपनी प्राणों तक की क़ुरबानी देनी पड़ी लेकिन उसके बावजूद भी वे पीछे न हटे बल्कि उनको ही पीछे हटा दिया तो आज उन्हीं हमारे शहीदों को नमन और श्रद्धांजलि की उनकी वजह से ही हम अपने घरों में सुरक्षित बने रहते तो ऐसे में हमारा भी फर्ज कि हम उनका स्मरण कर उनके प्रति अपना सम्मान प्रकट करे... !!!
            
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

२६ जुलाई २०१७