गुरुवार, 30 नवंबर 2017

सुर-२०१७-३४१ : आई ‘मोक्षदा एकादशी’... लाई अपने साथ ‘गीता जयंती’...!!!


हम सब अपने जीवन में कोई न कोई ‘धर्मयुद्ध’ लड़ रहे हैं और यहां ‘धर्म’ का मतलब महज़ मज़हब नहीं बल्कि अपनी मानसिक या आत्मिक मान्यताओं से हैं जिसे कभी हम स्वतः ही स्वीकार करते तो कभी-कभी अपने आस-पास के माहौल या पारिवारिक वातावरण से आत्मसात करते ऐसा मुमकिन ही नहीं कि किसी भी व्यक्ति के पास उसका अपना निज कोई अनुभव या धारणा न हो क्योंकि मानव मस्तिष्क सहज ही अपने चारों तरफ से कुछ न कुछ ग्रहण करता रहता जिसमें किताबी ज्ञान भी शामिल रहता पर, वास्तविक व्यावहारिकताओं से दो-चार होकर हमें जो आंतरिक अनुभूति होती वही हमारा 'धर्म' बनता  जिसमें हमारे अपने निज उसूल, नियम, कायदे और संकल्प दर्ज होते जिसके अनुसार हमारी मंज़िल व जीवन यात्रा का निर्धारण होता पर, जरुरी नहीं कि जो भी हमने तय किया या सोचा हूबहू वही हमारे साथ हो तो ऐसी जटिल या बदली हुई परिस्थितियों का सामना हम किस प्रकार से करे जो नीति अनुसार ही हो जिससे हमारे द्वारा कोई अधर्म या गलत कार्य भूले से भी न होने पाये

ऐसी द्वंदात्मम अवस्थाओं से हर किसी का पाला पड़ता तब ऐसे तनावपूर्ण अवसरों में अपने आप व प्रतिकूलताओं से सामंजस्य किस प्रकार बिठाया जाये और सही निर्णय लिया जाये इन सबका एक ही जवाब हैं 'श्रीमद्भगवदगीता' यह एक ऐसा विरला अनुपम ग्रंथ जिसे किसी धर्म विशेष से न जोड़कर केवल मानवीय मन की जटिलाओं के समाधान और अपने सभी प्रश्नों के उत्तर पाने का एकमात्र विकल्प समझे तो किसी को इसके इस पक्ष से इंकार नहीं होगा शायद, यही वजह कि कानूनी कार्यवाही या अदालतों में इसकी सौगंध दिलाई जाती कि यह मानव मन मे समस्त संशयों का निराकरण कर उसे अपनी सभी मुश्किलों से निपटने का ऐसा उजला समाधान देता जिसके तेजोमय विराट स्वरूप में पहाड़ जैसी परेशानी भी तुच्छ दिखाई देती । ‘भगवान श्रीकृष्ण’ को यदि ईश्वर या अवतार न मानकर यदि केवल एक आत्म रूप में और कुरुक्षेत्र में हथियार उठाकर भी युद्ध लड़ने की बजाय त्रैलोक्य का राज्य व सारी सुख-सुविधाओं को त्याग पलायन को खड़े ‘अर्जुन’ को यदि मानव मन के प्रतीक रूप में देखे तो सब कुछ साफ हो जाता और हम ये जान पाते कि ये तो हमारी सभी कठिनाइयों को मिटाने वाला एक अचूक औषध हैं ।

इसके प्रत्येक श्लोक में ऐसे गहन-गुढ़ शब्दार्थ छिपे हुए जिनकी व्याख्या करना या जिनको समझ पाना किसी एक के वश की बात नहीं कि हर किसी को अपने भीतर उलझनों भरी भूलभुलैया से उपजी परिस्थितियों की तरह ही उसकी पंक्तियों में सिर्फ वही नजर आता जो वो देखना या ढूंढना चाहता तो उसके आगे उसे फिर कुछ और न नजर आता तभी तो हर किसी की टीका-टिप्पणी भी एक-दूसरे से एकदम अलग दिखाई देती कि हर व्यक्ति की सोच, उसका नजरिया भिन्न होता ऐसे में जितना इसका चिंतन-मनन और मंथन किया जाता इतने इसके भिन्न-भिन्न अर्थ निकलते रहते और यदि हम अन्य दूसरी किताबों की जगह सिर्फ इसे ही अपने जीवन मे मुख्य स्थान दे तो कोई संदेह नहीं कि संदेहरहित जीवन व्यतीत करें । मार्गशीर्ष महीने की ‘मोक्षदा एकादशी’ को ‘गीता जयंती’ मनाई जाती जो ये संदेश देती कि महीनों में जिसे ‘कृष्ण’ ने अपना ही मासिक स्वरूप घोषित किया उसी के शुक्ल पक्ष में उन्होंने अर्जुन की प्रश्नावली का शमन कर उसे मोक्ष दिया और हम सब भी ऐसा कर सकते जरूरत केवल अपने संशय रूपी अर्जुन को गीता रूपी जवाबों का पान करना हैं । इसी के साथ सभी को गीता जयंती की शुभकामनाएं...  :) :) :)  !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

३० नवंबर २०१७

बुधवार, 29 नवंबर 2017

सुर-२०१७-३४० : घर-घर आया भूरा कुम्हड़ा... बनने लगे बड़ी और बिजौड़ा...!!!


'भूरा' या 'सफेद कद्दू' या 'पेठा' या 'कुष्मांड' चाहे जिस नाम से इसे पुकारो लेकिन, हर जगह पाया जाता पर, आता केवल सर्दियों के मौसम में जबकि इसे बारिश में बोया जाता हैं । आजकल हमारे यहां चारों तरफ हाट में यही दिखाई दे रहा क्योंकि शिशिर का ये मौसम भले ही इसमें दिन छोटे होते लेकिन इतने अधिक ऊर्जावान कि बहुत-से वार्षिक कामों को ठिठुरने के बावजूद भी इन दिनों अंजाम दिया जाता हैं । इसमें सबसे पहले नंबर पर आता हैं 'बुनाई' और जब ऊन के गोलों को हाथ में लेकर पतली-पतली उंगलियां तेजी से सलाइयों पर चलती तो पता न चलता कब कितनी नई-नई स्वेटर बुन जाती लेकिन, मशीनों व तकनीक की वजह अब ये कला लुप्तप्राय और न के बराबर ही देखने में आती कि अब तो लोगों को कम दाम में बढ़िया से बढ़िया डिज़ाइन के गर्म कपड़े बड़ी आसानी से मार्किट में मिल जाते तो फिर कोई इतना वक़्त क्यों बर्बाद करे आखिर इस खाली समय में मोबाइल जो चलाना हैं । इस कम्बख्त मोबाइल ने स्त्रियों को भी इस तरह के कामों से छुट्टी पाने का मौका ही नहीं वजह भी मुहैया करा दिया कि जिन कामों में मेहनत व समय लगता उनके सस्ते विकल्प बाजार में मौजूद तो ऐसे में कौन इसमें खपना चाहेगा अन्यथा पहले तो सर्दियों की आमद होने से पूर्व ही महिलाएं स्वेटर की नई डिज़ाइन और ऊन तय कर तैयार रहती उसे बनाने के लिए पर, अब तो ढूंढे से ही किसी घर में ऊन या सलाई मिले ।

इन्हीं दिनों 'बुनाई' के बाद नंबर आता सलाना खाद्य सामग्री 'बनाई' का जिसमें बड़ी, पापड़, अचार, मुरब्बे, चटनी, बिजोडें आदि बनाने में सब जुट जाते कि ऐसा मौसम कोई दूसरा नहीं जब ये कठिन लगने वाले काम इतनी आसानी से सम्पन्न हो सके जैसे ही मार्किट में 'भूरा कुम्हड़ा' आता सबको ये लगता कि 'पूस' का महीना लगने और बदली होने से पहले ही वो बड़ी-बिजौडे बना ले नहीं तो फिर अगले बरस तक इंतजार करना पड़ेगा तो बस, खरीद लाते एक बड़ा सा भूरा और शुरू होती कवायद उससे बड़ा, बड़ी, बिजौडे बनाने की गांव में ये काफी रोचक होती कि कभी-भी या किसी भी तरह से इसे बनाना संभव नहीं होता बकायदा मुहूर्त निकालकर शादी-ब्याह की तरह ही इसका विधिवत पूजन कर शुभारंभ किया जाता ताकि इनको किसी की नजर न लगे, ये बदली से बचे रहे और एकदम सही तरह से बन जाये तो बड़ी ताम-झाम के साथ इसका बीड़ा उठाया जाता । पहले कुम्हड़े को किसा जाता पर, साथ में हिदायत कि उसका रस या पानी सर में न लग जाये नहीं तो बाल सफेद हो जाएंगे और स्वच्छता का भी ध्यान रहे नहीं तो बड़ी खराब हो जायेगी ऐसी कई सावधानियों से गुज़रकर पहला पड़ाव पार होता जब कद्दू पूरा किस जाता ।

इसमें ये भी ध्यान रखना पड़ता कि उसका पानी व बीजे बचाकर रख लिए जाए कि उनकी ‘बिजौडों’ में जरूरत पड़ती तो इतना कर रात से भींगी उड़द की दाल को पीसकर एक टोटके के तौर पर, पहले उसके बड़े तले जाते जो बादलों को आने से रोकते ऐसी मान्यता हैं । अब कद्दू, मसाले, दाल मिलकर बड़ी बनाई जाती फिर थोड़ा-सा मिश्रण बचाकर उसमें तिल व बीज मिलाकर चूड़ी से गोल-गोल बिजौडे डाले जाते तो इस तरह एक साथ बड़ी-बिजौडे बन जाते जिन्हें दो-तीन दिन अच्छी तरह कड़ी धूप में सुखाकर साल भर के लिए रख लिया जाता । फिर जब मर्जी हो बिजौडों को तलकर तो बड़ी को सब्जी बनाकर खाया जाता जो फिलहाल सभी जगह बदस्तूर जारी पता नहीं शहरों में ये दूसरी जगह में ये किया जाता या नहीं लेकिन, हमारे इधर तो अभी सभी महिलाएं बड़ी तेजी से इसी काम में लगी हुई हैं ताकि पूस आने से पहले वो इससे निपट जाये हालांकि इसका भी एक तोड़ खोज लिया गया कि यदि किसी के यहां ‘बड़ी’ बन रही हो और उसे छू दिया जाए तो फिर वो ‘पूस’ में भी अपने यहां इसे बना सकता हैं भले वैज्ञानिक दृष्टिकोण से इन बातों के कोई मायने न निकले लेकिन, भूरे कुम्हड़े के साथ यहां इस तरफ की लोक मान्यताएं प्रचलित तो सभी इस आचार सहिंता का पालन करते हुए ही बड़ी-बिजौडे बनाते हैं यदि कोई इनका उल्लंघन करता तो बदले मौसम या उसकी बड़ी खराब होने के रूप में उसे इसका परिणाम भी भुगतना पड़ता हैं ।

भारत देश की यही विविधताएं उसे रोचक व आकर्षण का केंद्र बनाती हैं । जितने लोग, जितने प्रान्त उतने ही मत-मतान्तर फिर भी सबमें एका और आपस में स्नेह ही उन्हें जोड़े रखता फिर चाहे वो सबके अपने-अपने तीज-त्यौहार हो या अपनी-अपनी परंपराएं सब मिलकर उन्हें मनाते जो विश्व पटल पर भारत को अनेकता में एकता का प्रतिरूप दर्शाती हैं ।

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

२९ नवंबर २०१७

मंगलवार, 28 नवंबर 2017

सुर-२०१७-३३९ : इतना ही बहुत हैं...!!!



मिलते नहीं
दरिया के किनारे
पर, सदा चलते
साथ-साथ
एक दूजे के सहारे
हर राह, हर पड़ाव पर
इस आस में कि
कहीं तो आयेगी कोई
संकरी गली
जहां बढ़ाकर हाथ
छू लेंगे परस्पर
ये भी न हुआ तो
कोई गम नहीं
नजदीकी का अहसास ही
कोई कम तो नहीं
जब मिलन न लिखा हो
तकदीर के पन्नों पर
तो इतना आसरा ही बहुत हैं
दुनिया में जीने के लिये
कि इक सुकून तो
दिल को मिलता
आस-पास रहने का
आमने-सामने होने का
कम से कम
इतना ही हो जाये तो
हर एक तूफान को हंसकर
पार किया जा सकता हैं
सच...!!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

२८ नवंबर २०१७

सोमवार, 27 नवंबर 2017

सुर-२०१७-३३८ : ‘अग्निपथ’ पर आजीवन चलते रहे... ‘हरिवंश राय बच्चन’ साहित्य रचते रहे...!!!


मिट्टी का तन, मस्ती का मन
क्षण भर जीवन मेरा परिचय...

हर जीवन की तलाश अपने आप को जानना और पहचानना हैं और जो इस भेद को जान लेते हैं फिर उनके लिये सब कुछ बेहद सहज-सरल हो जाता उन्हें मृत्यु का भय भी नहीं सताता हैं वो तो बस, अपनी धून में रहते हैं और जिस कार्य के लिये उन्हें इस धरा पर भेजा गया सतत उसमें में ही लपट रहते यही रहस्य जब ‘हरिवंश राय बच्चन’ ने जान लिया तो फिर सारा जीवन लेखन कार्य को ही समर्पित कर दिया और लेखन भी ऐसा कि जिसने इतिहास ही रच दिया कीर्तिमान तो ऐसे गढ़े कि हिंदी साहित्य जगत में ‘हालावाद’ के नाम से काव्य का एक सर्वथा नवीन व अलहदा विधान ही रच दिया जिसके वे संस्थापक ही नहीं बल्कि एकमात्र साधक भी सिद्ध हुये कि उनकी तरह कोई दूसरा उस तरह से सृजन नहीं कर पाया तभी तो आज भी ‘मधुशाला’ के नाम पर सिर्फ़ उनका ही नाम जेहन में आता हैं

यूँ तो ये उनका द्वितीय काव्य संग्रह था लेकिन, इसने साहित्य जगत में ऐसा तहलका मचाया कि इसकी अनूठी रचना के कारण इसे ही उनका प्रथम संकलन माना गया और जिस तरह से उनके द्वारा इसका पाठ किया जाता था वो भी महफ़िल में तो सुनने वाले झूम जाते थे और कई कवियों ने इस तरह से लिखने का प्रयास भी किया लेकिन, जो माधुर्य व प्रभाव ‘बच्चन साहब’ ने पैदा किया वो किसी के लिये भी उत्पन्न कर पाना संभव नहीं हुआ क्योंकि उनका जन्म इसी कार्य के लिये हुआ था तभी तो वो ये चमत्कार कर सके जिसके असर को हम आज इतने सालों बाद भी उसी तरह महसूस करते हैं और जब इसे पढ़ते तो पाते कि हर पद में इतना गहन, गंभीर भाव छिपा हुआ हैं जिसकी व्याख्या करो तो हर बार नये-नये अर्थ सामने आते कि ये कोई साधारण रचना नहीं बल्कि ‘महाकाव्य’ हैं और जब कलम में सरस्वती विराजमान हो और ईश्वर की कृपा तभी ऐसा कोई विरला ग्रंथ आकार लेता हैं

वे केवल ‘पद्य’ ही नहीं ‘गद्य’ लेखन में भी उतने ही कुशल थे और उनकी आत्मकथा जो चार भागों में लिखी गयी हिंदी साहित्य जगत की अनुपम कृति मानी जाती हैं और जिस तरह से इसमें उन्होंने अपने जीवन की हर सच्चाई को हूबहू व्यक्त किया उसने पाठकों का दिल एक बार फिर से जीत लिया पर, वे अपनी सर्वश्रेष्ठ रचना अपने ज्येष्ठ पुत्र ‘अमिताभ बच्चन’ को मानते थे जिन्हें हम सब ‘बिग-बी’ या सदी का महानायक के रूप में जानते हैं लेकिन, यूँ देखा जाए तो असली बिग-बी तो वही हैं जिन्होंने हिंदी फ़िल्मी दुनिया को ऐसा कोहिनूर दिया जिसकी चमक से आज भी फिल्म इंडस्ट्री जगमगा रही हैं याने कि उन्होंने हर तरह से इस दुनिया को सिर्फ दिया हैं चाहे वो लेखन के जरिये हो या अपने पुत्र के माध्यम से और आज भी ये परंपरा निरंतर उनके खानदान के द्वारा बखूबी निभाई जा रही ये और बात कि साहित्य के क्षेत्र में उनके बाद उनके परिवार से कोई सामने न आया पर, उनके पुत्र ने अभिनय के माध्यम से इस कमी को दूर करने का प्रयास किया और कुछ रचनात्मक लेखन भी किया पर, उस स्तर के नहीं जिसके लिये उनके बाबूजी जाने जाते थे

पिता-पुत्र के यूँ तो अनगिनत किस्से प्रचलित हैं लेकिन, जिसका यहाँ जिक्र किया जा रहा वो आज के वर्तमान परिवेश में बेहद प्रासंगिक और सार्थक हैं क्योंकि आज भी जीवन में संघर्ष और बेरोजगारी की समस्या पूर्ववत हैं तो कभी इसी तरह के हालातों से घबराकर पुत्र ‘अमिताभ’ ने अपने ‘बाबूजी’ से किंचित गुस्से और अवसाद से गस्त होकर कह दिया कि ‘आपने मुझे पैदा क्यों किया?’ जिसका जवाब उन्होंने उसी वक़्त न देकर एक कविता के रूप में लिखकर उनके सिरहाने रख दिया और इसे पढ़े तो लगता इस तरह की परिस्थिति से लगभग सभी गुजरते तब एक पिता किस तरह सोचता होगा वो इस कविता में दर्शाया गया हैं...

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#क्यों_पैदा_किया_था_?

ज़िन्दगी और ज़माने की
कशमकश से घबराकर
मेरे बेटे मुझसे पूछते हैं कि
हमें पैदा क्यों किया था?
और मेरे पास इसके सिवाय
कोई जवाब नहीं है कि
मेरे बाप ने मुझसे बिना पूछे
मुझे क्यों पैदा किया था?

और मेरे बाप को उनके
बाप ने बिना पूछे उन्हें और
उनके बाबा को बिना पूछे उनके
बाप ने उन्हें क्यों पैदा किया था?

ज़िन्दगी और ज़माने की
कशमकश पहले भी थी,
आज भी है शायद ज्यादा
कल भी होगी, शायद और ज्यादा

तुम ही नई लीक रखना,
अपने बेटों से पूछकर
उन्हें पैदा करना ।        
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हिंदी साहित्य के महान रचनाकार और भावपूर्ण सहृदय पिता को आज उनके जन्मदिवस पर यही शब्दांजलि... :) :) :) !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

२७ नवंबर २०१७

रविवार, 26 नवंबर 2017

सुर-२०१७-३३७ : २६/११ एक ऐसी तारीख... दर्ज जिसमें उजाले संग कालिख़...!!!


"हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की और एकता अखंडता सुनिश्चित करनेवाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्प हो कर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर, 1949 ई० "मिति मार्ग शीर्ष शुक्ल सप्तमी, संवत दो हज़ार छह विक्रमी) को एतद संविधान को अंगीकृत, अधिनियिमत और आत्मार्पित करते हैं"

--- ‘संविधान की प्रस्तावना’

‘२६-११-१९४९ :’
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एक ऐसा ऐतिहासिक और अभूतपूर्व दिवस जिसने भारत देश के नागरिकों को ‘संविधान’ की अनुपम सौगात दी जो एक ऐसा दस्तावेज जिसमें देश की गणतांत्रिक व्यवस्था और उसे सुचारू रूप से संचालित करने हेतु समस्त नियमों का समावेश किया गया हैं इस तरह इसने इस देश में रहने वाले समस्त देशवासियों को अपने अधिकारों से ही संपन्न नहीं किया बल्कि कर्तव्यों की जिम्मेदारी भरी पोटली भी थमाई ये और बात कि लोगों को अधिकारों की स्वतंत्रता ही अधिक भाई पर, जिनको अपने वतन से प्रेम और जो इसके विकास हेतु योगदान देना चाहते वे अधिकार व कर्तव्य के मध्य संतुलन साधकर जीवन में अपने लक्ष्य का निर्धारण करते हैं देश की आज़ादी के बाद इसकी आवश्यकता महसूस की हई ताकि इतने विशाल भूखंड को सुचारू रूप से संगठित कर उसका सुनियोजित तरीके से संचालन किया जा सके तो ऐसे में ‘डॉ भीमराव अम्बेडकर’ को इस कार्य हेतु नियुक्त्त प्रारूप समिति का अध्यक्ष बनाकर ये दायित्व सौंपा गया तो उन्होंने अपने दल के सदस्यों के साथ मिलकर २ साल, ११ महीने और १८ दिन में इसे पूर्ण रूप से तैयार किया और आज ही के दिन उसे स्वीकृति प्रदान की गयी तथा २५ जनवरी १९५० से यह व्यवहार में लाया गया यही वजह कि आज के दिन को ‘राष्ट्रीय संविधान दिवस’ के रूप में मनाया जाता हैं ये तो आज की दिनांक का एक उजियारा पक्ष हैं जो हमें अपने संविधान के प्रति अपने मनोभावों को प्रकट करने का अवसर प्रदान करता हैं लेकिन इसी के साथ एक ऐसी घटना का भी जुड़ाव हो गया जो संविधान की आत्मा को झकझोरती और मानवीयता को दहलाने वाली हैं

‘२६-११-२००८ :’
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‘आतंकवाद’ सिर्फ हमारे देश ही नहीं बल्कि समस्त विश्व के लिये खतरे की घंटी और इंसानियत के नाम पर काला धब्बा हैं जिसकी वजह से निर्दोष, मासूम लोग असमय ही अपनी जिंदगी से हाथ धो बैठते पर, उसके बाद भी इसकी खून की प्यास नहीं बुझती बल्कि और बढ़ती जाती जिसका नतीजा कि आये दिन ऐसी घटनाएं कहीं न कहीं होती ही रहती और मानवीयता कोने में बैठकर आंसू बहाती हैं कुछ ऐसा ही हुआ उस रात भी जब कुछ आतंकवादियों ने एकाएक रात को मुंबई को अपने कब्जे में ले लिया इस घटना के तीन बड़े मोर्चे थे मुंबई का ताज होटल, ओबेरॉय ट्राइडेंट होटल और नरीमन हाउस और जब हमला हुआ तो ताज में 450 और ओबेरॉय में 380 मेहमान मौजूद थे लेकिन, किसी को कोई नुक्सान नहीं हुआ क्योंकि सुरक्षा बल ने बड़ी सक्रियता के साथ मोर्चा संभाला था हालांकि स्थिति को पूरी तरह नियंत्रण में लेने में ३ दिन का समय लगा लग गया जिसमें कई बेकुसूर लोगों के साथ-साथ हमारे वीर जवानों की जान भी गयी लेकिन, उसके बावजूद भी उन्होंने सभी आतंकियों को मार गिराया तो ‘अजमल कसाब’ को जीवित गिरफतार कर लिया इस तरह ये तारीख इतिहास में कालिख की तरह दर्ज हो गयी । भले ही इस घटना के कारण हमें अपने वीर जवानों की आहुति देनी पड़ी लेकिन, इसके साथ ही इसने एक बार फिर संविधान की ताकत को मजबूत किया कि यहाँ के लोग मुश्किल हालातों में एक साथ मिलकर उसका सामना करते क्योंकि इस घटना का दौरान केंद्र भले एक स्थान था लेकिन, संपूर्ण देश एक साथ खड़ा होकर उनके लिये दुआ मांग रहा था ।

इस दिन को यादगार बनाने के लिये देश के कर्मठ, समर्पित देशभक्तों के द्वारा जो प्रयास किये गये उसमें कुछ गद्दारों ने जरुर कालिमा पोती फिर भी ‘राष्ट्रीय संविधान दिवस’ हमारे लिये गौरव की बात तो सबको बधाई... :) :) :) !!!      

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

२६ नवंबर २०१७