बुधवार, 31 जनवरी 2018

सुर-२०१८-३१ : #मिर्ज़ा_गालिब_की_शायरी_की_आत्मा_सुरैया



संगीत उनकी आत्मा में बसा हुआ था इसलिये तो बचपन से ही पार्श्व गायिका बनने का सपना उसकी आँखों में समा गया था मगर, किस्मत में तो इससे ज्यादा ही कुछ लिखा था तो १५ जून १०२९ को ‘गुजरावाला’ में जन्मी ‘सुरैया जमाल शेख़’ जब १९४१ में बारह साल की अबोध उम्र में स्कूल की छुट्टियों के दौरान मोहन स्टूडियो जाकर फिल्म ‘ताजमहल’ की शूटिंग देख रही थी तभी डायरेक्टर ‘नानूभाई वकील’ की नजर उन पर पड़ी बस, तब ही उन्होंने ‘सुरैया’ ‘मुमताज महल’ का बचपन रोल दे दिया जिसने अभिनय के रूप में उनके सामने एकदम नई दुनिया का द्वार खोल दिया पर, अभी तो एक गायिकी को भी मुकाम पाना था तो ‘आल इंडिया रेडियो’ के एक कार्यक्रम के दौरान संगीत सम्राट ‘नौशाद’ ने जब उनकी खनकती कानों में रस घोलती मधुर आवाज़ सुनी तो ‘शारदा’ फिल्म में उनसे गाना गंवाया और इस तरह ‘गायिकी’ का सिलसिला शुरू हुआ याने कि एक साथ अभियन और गायन दोनों के ही क्षेत्र के दरवाजे एक साथ उनके लिये खुल गये थे

उसी समय भारत के विभाजन की दुखद घड़ी आई जिसमें उस दौर की सबसे कामयाब और प्रभावशाली गले की मल्लिका ‘नूरजहाँ’ ने ‘पाकिस्तान’ की राह चुनी तो फिर उनके सिवाय कोई दूसरी ऐसी अभिनेत्री नहीं थी जो गाने में भी उतनी ही जोरदार हो जितने की नायाब उनके नाज़ो-अंदाज और चेहरे की भाव-भंगिमायें होती थी जिसके प्रति उनके प्रसंशकों की दीवानगी का आलम ये था कि फिल्म में उनका होना ही काफी होता था और फिल्म सुपरहिट की श्रेणी में दर्ज हो जाती थी यही वजह थी कि उस वक़्त वे हिंदी सिने जगत की सबसे अधिक पारिश्रमिक लेने वाली अभिनेत्री होने का दर्जा प्राप्त कर सकी और उनके कंठ के सुरीलेपन का अंदाजा तो इसी से लगाया जा सकता हैं कि उस समय देश के पहले प्रधानमंत्री ‘पंडित जवाहर लाल नेहरु’ भी उनकी आवाज़ सुनकर इस कदर प्रभावित हुये कि १९५४ में आई ‘मिर्ज़ा ग़ालिब’ में उनकी गाई गजलों के लिये उन्होंने कहा कि, “सुरैया ने मिर्ज़ा ग़ालिब की लिखी शायरी को अपनी अनूठी गायिकी व अपनी मखमली आवाज़ से अमर कर दिया हैं”

आह को चाहिये एक उम्र असर होने तक
कौन जीता हैं तेरी ज़ुल्फ़ के सर होने तक

एक आह, एक पीड़ा उनके भीतर भरी हुई थी अपने अधूरे प्रेम की जिसने उनके गीतों में दर्द की ऐसी लहर भर दी कि सुनने वाला उसे महसूस कर सकता हैं और इस गज़ल में भी वो वेदना झलकती हैं... जिसे अपने सीने में लेकर वो आज ही के दिन इस दुनिया से रुखसत तो कर गयी लेकिन, अपनी तमाम फिल्मों के रूप में अपनी यादें हमारे पास ही छोड़ गयी जिनके माध्यम से हम उन्हें न केवल देख सकते बल्कि सुन भी सकते और ‘सुरैया’ के अफ़साने फिर से दोहरा सकते जो आज भी फिजाओं में गूंज रहे हैं ।      

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

३१ जनवरी २०१८

मंगलवार, 30 जनवरी 2018

सुर-२०१८-३० : #मजबूरी_का_नाम_महात्मा_गाँधी



१५ अगस्त १९४७, देश आज़ाद हुआ लेकिन, उसके पहले ही वो दो हिस्सों में बंटा जिससे अखंड भारत का एक और खंड उससे जुदा हो गया इस तरह ‘आज़ादी’ तो आई जिसका इंतजार बरसों से देश कर हर एक वासी कर रहा था लेकिन, अपने साथ वो विभाजन का असहनीय दर्द ही नहीं एक ऐसा नासूर भी अपने साथ लाई जो आने साली सदियों को अपनी त्रासदी के दंश से लगातार चुभने वाला था ये तो वो जख्म जो कभी भर नहीं सकता बल्कि, उसे तो हर बार ऐसे ही दिनों में उसको फिर से ताज़ा होकर अपनी चुभन का तीव्र अहसास कराना होता हैं कि ‘देश’ किसी की जागीर नहीं और न ही किसी की बपौती कि बच्चे आपस में लड़े तो उसे अपनी संतानों को बाँट दे फिर भी ‘भारत’ में वो सब हुआ और चंद लोगों ने फैसला लेकर देश के टुकड़े-टुकड़े कर दिये बिना ये सोचे कि भविष्य में उसका अंजाम क्या होगा ? उन्होंने तो बस, एक आग लगा दी जो कभी बुझने वाली नहीं हैं

जब-जब भी २ अक्टूबर या ३० जनवरी आती या फिर गांधीजी का नाम बुझी वो आग फिर सुलग उठती जिसकी लपटें सामने वाले को भी झुलसाने लगती कि बहुत-से लोग एक बनी-बनाई परिपाटी के अनुसार ये घोषित कर देते कि आज के जो हालात हैं या देश का जो विभाजन हुआ उसकी वजह ‘गांधीजी’ हैं वो चाहते तो इसे रोक सकते थे । इसी पूर्वाग्रह के चलते स्थिति अक्सर, ऐसी बन जाती कि वो अपने विचार बुरी तरह से थोपने लगते और जो इतिहास के जानकार नहीं या जिनको इतना ज्ञान नहीं वो इनकी बातों में आकर इस बात का इतना धुंआधार प्रचार करते कि उसके आस-पास आने वाले भी फिर वही सब दोहराने लगते और फिर जैसा कि हम सब जानते कि एक झूठ भी सौ बार बोला जाये तो फिर वो सच बन जाता तो आज यही सच माना जाता कि देश के दो हिस्से करने के पीछे ‘गांधीजी’ का हाथ हैं । किसी से भी इस बारे में बात करो उसकी सुई यही आकर अटक जाती जबकि, बिना दिमाग लगाये भी यदि उस वक़्त के हालातों को समझे तो ये दिखाई देता कि गद्दी की ललक दो लोगों में जमकर थी एक भारत के प्रथम प्रधानमंत्री ‘जवाहर लाल नेहरु’ तो दूसरे पाकिस्तान के प्रथम शासक ‘मोहम्मद अली जिन्ना’ और दोनों के ही शब्दकोश में ‘सब्र’ या ‘धैर्य’ नाम का शब्द लापता था तो इंतजार करना उनके वश में नहीं था उन्हें तो तुरंत और एक-साथ ही देश के बागडोर अपने हाथ में लेने की जिद थी जीसे अक्सर, बच्चे अड़ जाते किसी चीज़ को पाने बिल्कुल वैसी ही हालत उन दोनों की थी कि हर हाल में मनचाही वस्तु चाहिये ही चाहिये चाहे कुछ भी हो जाये

इन दोनों जिद्दी बच्चों के बीच ‘गाँधी जी’ एक बेबस पिता या बोले तो एकदम लाचार, असहाय पालक की भांति खड़े थे जिसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें क्योंकि ये बात वो भी जानते थे कि जिस देश को आज़ाद कराने की खातिर उन्होंने अपना सारा जीवन समर्पित कर दिया वो स्वतंत्र होकर उनके ही गले की फ़ांस बन गया दोनों को उन्होंने बेहद समझाया पर कोई भी सुनने या मानने को तैयार न था उन्होंने बहुत समझाया कि उनमें से कोई एक फ़िलहाल ‘प्रधानमंत्री’ का पद लेकर देश चलाये और दूसरा बाद में ये जिम्मेदारी संभाले पर, नहीं के सिवाय कुछ भी सुनने नहीं मिला तो ऐसे में एक ही विकल्प शेष था कि आधा-आधा उनको देकर इस उलझन से बाहर निकला जाये तो अंततः उनकी महत्वाकांक्षाओं के आगे सर झुकाते हुये उन्होंने ये निर्णय लिया दूसरे शब्दों में बोले तो अपनी बलि देकर उन्होंने ये कदम उठाया जिसका खामियाज़ा भी उन्हें भुगतना पड़ा आज भी इस देश का भ्रमित युवा असलियत को जाने बिना उनके त्याग, समर्पण, बलिदान, जीवन संघर्ष को समझे बिना उन पर उँगलियाँ उठाता यहाँ तक कि वो शख्स जिसने कभी देश के लिये कुछ न किया वो भी बड़ी शान से उनको गरियाता क्योंकि, ‘गांधी’ बनना मुश्किल हैं उनके जैसा संयमपूर्ण जीवन बिताना, अपना आप देश के नाम कर देना, सत्याग्रह के दम पर दुश्मन को झुकाना , सत्य-अहिंसा का पालन करना और अनुशासित व व्यवस्थित दिनचर्या में जीना किसी के भी वश की बात नहीं पर, ऊँगली उठाना बेहद आसान तो वही करते लोग और शायद, यही सब कारण जिसकी वजह से ये कहावत बनी ‘मजबूरी का नाम महात्मा गाँधी’ कि बहुत ही दुखी मन से वो बंटवारे के भागी और साक्षी बने थे

३० जनवरी १९४८ को अपराधबोध के इस भाव से उबारकर ‘नाथूराम गोडसे’ ने एक तरह से उन पर उपकार ही किया और ‘हे राम’ के उच्चारण ने उनको तार लिया... उसी मुक्ति के दिवस पर उनको मन से नमन... कि उन्होंने दिया हमें खुशियों भरा चमन... ☺ ☺ ☺ !!!    

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

३० जनवरी २०१८

सोमवार, 29 जनवरी 2018

सुर-२०१८-२९ : #मुगलों_का_जवाब_महाराणा_प्रताप



इतिहास में ‘अकबर महान’ तो पढ़ाया जाता लेकिन, इस ‘महान अकबर’ को धूल चटाने वाले महावीर ‘महाराणा प्रताप’ का उल्लेख केवल ‘हल्दीघाटी’ के युद्ध में उनके समक्ष लड़ने वाले एक योद्धा के रूप में ही किया जाता उन पर पूरा एक अध्याय नहीं शामिल किया जाता जबकि, मुगलों ने तो न केवल भारत देश पर कब्जा करने के लिये आतंक का सम्राज्य कायम किया बल्कि हिंदू राजाओं-महाराजाओं की स्त्रियों पर भी हमेशा बुरी नजर रखी जिसके कारण इतिहास में रक्तरंजित पन्नों का समावेश हुआ और कुछ पन्ने तो जौहर की आग से जल भी गये मुगलों के आगमन के पूर्व इस शब्द से कोई परिचित न था लेकिन, जिस तरह गंदी नजरों से मुगलों ने हिंदू स्त्रियों को देखा और उन्हें अपने हरम की जीनत बनाने के लिये चढ़ाइयाँ की उसने उन असहाय औरतों के सामने अपनी आबरू और सम्मान कायम करने के लिये आत्मदाह या जौहर के सिवाय कोई दूसरा विकल्प न छोड़ा जिल्लत की जिंदगी से वो मौत भी साहस से बड़ा कदम नहीं था क्योंकि यदि वे जीवित हाथ लगती तो जो भी उनके साथ होता वो निसंदेह जौहर से भी दर्दनाक होता कि उन्हें मुगलों की संतति को न चाहते हुये भी जन्म देना पड़ता और अपनी स्त्रीत्व, मातृत्व को प्रतिदिन लज्जित होते देखना पड़ता इस तरह मुगलों ने इस देश को ऐसी कुप्रथाओं से भी नवाजा जिसे आज हेय की दृष्टि से देखा जाता पर, जब मुगल शासकों की क्रूरता के किस्से पढ़ते तो लगता निसंदेह अग्निदाह उसके सामने बेहद ही सहज कदम था जिसकी वजह से आज हम अपनी उन वीरांगनाओं के प्रति गर्व से सर झुकाते हैं     

इन मुगलों को अगर किसी ने बराबर की टक्कर दी तो वो थे ‘हिंदू राजपूत’ जिनके शौर्य, बल और अपरिमित साहस के आगे ये थर-थर कांपते थे बल्कि, अकबर की तो वो हालत थी कि ‘महाराणा प्रताप’ की वीरता के कारण वे स्वप्न में भी डर जाया करते थे और हर हाल में उनको जीतना चाहते थे जिसके लिये उन्होंने हर तरह के प्रयत्न किये फिर भी वो जिस तरह से उनका सर झुकाना चाहते थे वो अरमान उनका कभी पूरा न हुआ और आखिरकार उन्होंने भी ये माना कि ‘महाराणा प्रताप’ जैसा दुश्मन और रणवीर उन्होंने दूसरा नहीं देखा जिसको अपने अधीन करना ही उनके जीवन का लक्ष्य था इसलिये जब उनकी मृत्यु हुई तो उन्हें भी दुःख हुआ कि वो कभी-भी उनके हौंसलों को तोड़ नहीं पाये और जिस तरह से अपनी बहादुरी की वजह से उन्होंने अपने शत्रु के दिल में अपनी जगह बनाई उसी तरह उन्होंने अपने सद्व्यवहार से भी उसको प्रभावित किया जहाँ मुग़ल शासक उनकी स्त्रियों को जीतना चाहते थे वहीँ हिंदू शासक न केवल जंग, बल्कि अपने शत्रु का दिल जीतना और उनकी स्त्रियों का सम्मान करना भी बखूबी जानते थे कि हिंदू संस्कृति में स्त्री को महज़ भोग्या नहीं देवी का दर्जा भी दिया गया हैं तो सभी नारियों में वे उस छवि को देखते इसका उदाहरण ‘महाराणा प्रताप’ के साथ हुई एक घटना से भी मिलता हैं ये बात तब की है जब महाराणा प्रताप हल्दी घाटी का युद्द हार चुके थे परंतु हिम्मत नहीं तो पुनः शक्ति एकत्र कर मुगलों से अपने हारे किले वापस जीत रहे थे उसी दौरान एक युद्ध के बाद ‘महाराणा प्रताप’ के बेटे ‘अमर सिंह’ ने मुगल खेमे की कुछ महिलाएं बंधक बना ली जिनमें मुगल सेनापति ‘रहीम’ की पत्नी भी थी लेकिन, जब उन्होंने अपने पिता के सामने मुगल सेनापति की पत्नी को पेश किया तो पहले तो प्रताप ने अपने बेटे को डांट लगाई फिर उससे उन्हें ससम्मान वापस छोड़कर आने को  कहा ।

ऐसे उच्चे चरित्र के स्वामी थे महाराणा प्रताप जिनकी भुजाओं में अपार बल था तो हृदय में उतनी ही कोमलता थी जो महिलाओं का अपमान नहीं सह सकते थे और दूसरी मुग़ल थे जो हिंदुओं की स्त्रियों को देखते ही उसे पाने को तड़फ उठते थे और हर हद पार करने को तैयार रहते थे चाहे फिर उनकी वजह से उन महिलाओं को मृत्यु को ही क्यों न गले लगाना पड़े उनके लिये स्त्री को जितना ही असली विजय कि वे तो उनकी कोख़ में ही अपना झंडा गाड़ना चाहते थे यही वजह कि उसने आगमन के बाद हिंदू स्त्रियों की दशा में बेहद परिवर्तन आया जिसने उनको चारदीवारी में ही सीमित कर दिया कि इनसे लड़कर भी उनकी अस्मत की सुरक्षा की कोई गांरटी नहीं थी होती भी कैसे कि उसी की खातिर तो वो जबरन लड़ते थे पर, महाराणा प्रताप ने उनकी महिलाओं के साथ ऐसा घृणित कार्य न कर जिस तरह उनको ससम्मान वापस भेजा उसने पराजय के बाद भी उनके सर को ऊंचा उठाये रखा हैं इसने ये साबित किया कि सभ्यता, संस्कृति, संस्कार तो यहाँ पैदाइश के साथ ही घूटी में पिलाया जाता हैं जिसे रगों से निकाल पाना मुमकिन नहीं ये तो लहू के साथ ही बाहर निकलता... जय मेवाड़, जय महाराणा प्रताप... गूंजे सदा उनका नाम... रखे ऊंचा भारत का मान... ☺ ☺ ☺ !!!          

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

२९ जनवरी २०१८

रविवार, 28 जनवरी 2018

सुर-२०१८-२८ : #डाटा_प्राइवेसी_डे_सुरक्षित_खुद_को_करें



मैसेज – ०१ : आपको 31 मार्च 2018 तक रोजाना फ्री 10 जीबी डेटा 5-10 एमबीपीएस की स्पीड से मिलेगा, इसके अलावा अनलिमिटेड कॉलिंग/एसएमएस भी मिलेगी। इतना ही नहीं इन सारी चीजों के लिए आपको कोई पैसा भी नहीं देना है, ये सब फ्री है। बस आपको इस मेसेज के साथ दिए गए लिंक पर जाकर एक ऐप इंस्टॉल करनी होगी।

मैसेज – ०२ वॉट्सऐप नें अपनी पैरेंट कंपनी फेसबुक पर यूजर्स के फोन नंबर सहित कुछ डेटा शेयर करना शुरू कर दिया है। दोनों कंपनियों का कहना है कि नई पॉलिसी से आपके दोस्‍तो को सर्च करने में मदद मिलेगी और साथ ही फेसबुक के एडस् और प्रॉडक्‍ट एक्सपेरिएन्सेस इम्‍प्रूव होगा। लेकिन साथ में आपके फोन नंबर किसी थर्ड पार्टी बिजनेस को जाने कि संभावना काफी बढ़ जाएगी जिससे आपको बैंकों और मोबाइल कंपनीयोंके उनके प्रॉडक्‍ट ऑफर के लिए फोन आना शुरू हो जाएंगे। इसके साथ ही फ्रॉड कॉल कि संख्‍या भी बढ़ सकती है। अगर आपको अपना वॉट्सऐप डेटा फेसबुक पर शेयर होने से रोकना है, तो आपको पोस्‍ट में दी गयी इस लिंक पर जाना चाहिए।

मैसेज - ०३ : नीचे दी गयी लिकं से आप पता लगा सकते हैं कि आपकी प्रोफाइल पिक बार बार कौन चेक कर रहा है

मैसेज – ०४ : आपको जानकर ख़ुशी होगी कि आपने $5000 की लॉटरी जीती है और पैसे लेने के लिए अपना बैंक डिटेल भेज दें।

मैसेज – ०५ : वॉट्सएप अब बिना इंटरनेट के भी यूज किया जा सकेगा। वॉट्सएप पर एक नया फीचर शामिल किया गया है। इसके लिए आपको मैसेज के साथ अटैच लिंक पर क्लिक कर प्रोसेस को फॉलो करना होगा।

मैसेज – ०६ : पी.एम. मोदी की नई योजना के अंतर्गत कौशल विकास मंत्रालय द्वारा जारी लिंक पर क्लिक करके रजिस्टर कराने पर अपने बैंक से निकासी लिमिट और जमा लिमिट को बढ़ा सकते हैं

मैसेज – ०७ : अक्षय कुमार और केंद्र सरकार ने सेना को बेहतर बनाने और शहीद सैनिकों की मदद के लिए एक बैंक अकाउंट खोला है, जिसमें आप एक रुपये से लेकर अपनी मर्जी से कितनी भी रकम डाल सकते हैं इस अकाउंट की पूर्ण जानकारी नीचे दी गयी हैं

मैसेज – ०८ : इस लिंक पर क्लिक कर 500-1000 रुपये का रिचार्ज कराए और बदले में दोगुना बैलेंस प्राप्त करें

मैसेज – ०९ : एल.आई.सी. द्वारा आपको ये सुचना दी जाती हैं कि जल्द से जल्द अपनी पालिसी को आधार से लिंक करें अन्यथा आपकी पालिसी लेप्स हो सकती हैं इसके लिये नीचे दी गयी लिंक पर जाकर सभी डिटेल्स दे कृपया

मैसेज – १० : ये पांच साल की मासूम ‘रिया’ हैं जिसकी बाई आँख में रॉड लग गयी हैं और इसके माता पिता के पास इसके इलाज के लिए पैसा नहीं हैं तो कृपया इनकी मदद करें और केवल दिए गये अकाउंट में केवल १०० रु की न्यूनतम राशि की मदद करें तो इसकी जान बच सकती हैं जिसका पुण्य आपको प्राप्त होगा

ये तो महज़ कुछ नमूने हैं जो बेहद प्रचलित तो इनका ही प्रयोग किया गया ये बताने के लिये कि सभी के इनबॉक्स में आये दिन इस तरह के संदेश आते रहते और जो इनकी हकीकत से वाकिफ़ नहीं अक्सर इनके चक्कर में पड़ जाते फिर एक गलत क्लिक से लेने की जगह देने पड़ जाते हैं क्योंकि ये सब आपकी जानकारियों और आपके डाटा को हासिल करने का हैकर्स का तरीका हैं

जिस तरह मछली पकड़ने के लिये लोग दाना डालकर उसके फसने का इंतजार करते उसी तरह से इंटरनेट पर भी कुछ लोग यही काम करते जिसके लिये वे अक्सर सोशल मीडिया या मैसेज एप्प का सहारा लेते कि यहाँ उसे अनेक लोग एक साथ मिल जाते जिनमें से कुछ तो बड़ी आसानी से उनके फैलाए जाल में फंस जाते हैं आज के दिन ‘डाटा प्राइवेसी डे’ इसलिये मनाया जाता कि लोगों को सचेत किया जा सके कि वो इन लुभावने संदेशों में न फंसे इनकी सच्चाई का पता लगाये बिना ही इनसे अपनी कोई भी गोपनीय जानकारी साँझा न करें अन्यथा आपकी व्यक्तिगत इनफार्मेशन के जरिये ये किसी अपराध को  भी अंजाम दे सकते हैं इसके अतिरिक्त इस तरह एक मेसेज से आपके बैंक अकाउंट से पैसा भी निकाला जा सकता हैं तो आपकी नासमझी का लाभ उठाकर आपको उल्लू भी बनाया जा सकता हैं या किसी क्राइम में भी फंसाया जा सकता हैं

इस तरह के मैसेज की सच्चाई जानने का एक तरीका तो यही हैं कि संबंधित विभाग से संपर्क किया जाये और दूसरा कि दी गयी लिंक पर https और ऑफिसियल एड्रेस की जाँच की जाये और यदि ये गलत लगे तो इसे क्लिक न करें क्योंकि ये आपकी जानकारी को गलत हाथों में दे सकता हैं । इसके अतिरिक्त सुरक्षित तरीके से इंटरनेट का प्रयोग करें किसी भी फर्जी व्यक्ति या संदेश पर तुरंत प्रतिक्रिया न दे जब तक कि आप उससे परिचित न हो क्योंकि आजकल कई तरीकों से शिकार किया जाता जिसका सबसे आसान माध्यम तो इंटरनेट ही हैं जहाँ घर पर बैठे-बैठे ही किसी को भी निशाना बनाया जा सकता हैं ।  

सतर्क और सुरक्षित इंटरनेट संचालन की हिदायतों सहित सभी को ‘इंटरनेशनल डाटा प्राइवेसी डे’ की बहुत सारी शुभकामनायें... ☺ ☺ ☺ !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

२८ जनवरी २०१८

शनिवार, 27 जनवरी 2018

सुर-२०१८-२७ : #भारत_भूषण_जैसा_अभिनेता_नाज़_करता_जिस_पर_हिंदी_सिनेमा



६० के दशक में जब दिलीप कुमार, राज कपूर और देव आनंद की तिकड़ी हिंदी फ़िल्मी दुनिया के रजत परदे और सिने प्रेमियों के दिलों पर राज कर रही थी तब अपनी शिष्ट छवि, मधुर मुस्कान और मनमोहक व्यक्तित्व से ‘भारत भूषण’ ने नायक का एक अलग ही अध्याय लिख डाला जिसमें उन्होंने ऐतिहासिक और धार्मिक चरित्रों को अपने सहज-सरल अभिनय से इस तरह जीवंत किया कि कल्पना और हक़ीकत में कोई फर्क ही न रहा इस तरह से उनका नाम हर उस पात्र के लिये मुफ़ीद समझा गया जिसे किताब के पन्नों से सिल्वर स्क्रीन पर उतारा जाना हो उन्होंने ये काम इतनी विश्वसनीयता से किया कि उनके द्वारा अभिनीत किरदारों को देखकर कहीं से भी ये नहीं लगता कि ये कोई अभिनय हैं

बैजू-बावरा से शुरू हुआ ये सिलसिला भक्त कबीर (1942), श्री चैतन्य महाप्रभु (1954), मिर्जा गालिब (1954), रानी रूपमती (1957), सोहनी महीवाल (1958), सम्राट्चंद्रगुप्त (1958), कवि कालिदास (1959), संगीत सम्राट तानसेन (1962), नवाब सिराजुद्दौला (1967) आदि फिल्मों के माध्यम से अनवरत चलता रहा जिसमें उन्हें अपने साथ उस दौर की सभी नामचीन अभिनेत्रियों सुरैया, मधुबाला, मीना कुमारी,  माला सिन्हा, गीता बाली, निम्मी, निरूपा रॉय आदि का भी साथ मिला तो फिर उन्होंने अपना जो मुकाम बनाया उसमें स्थायित्व भी आ गया कि उनके साथ काम करना नायिकाओं के लिये भी गौरव की बात होती थी तो ‘भारत भूषण’ के साथ उनकी जोड़ियाँ किरदार का अहम् हिस्सा साबित हुई जिसने उनकी उन महत्वपूर्ण भूमिकाओं को पूर्णता और उनको गरिमा प्रदान की जिससे पर्दा चमक उठा ।

‘मन तड़फत हरी दर्शन को आज...’ हो या ‘ओ दुनिया के रखवाले सुन दर्द भरे मेरे नाले...’ या फिर ‘सुर न सजे क्या गाऊं मैं, सुर केबिना जीवन सूना...’ या ‘जिंदगी भर नहीं भूलेगी वो बरसात की रात...’ या ‘दिल-ऐ-नादां तुझे हुआ क्या हैं...’ या ‘तू गंगा की मौज मैं जमुना की धरा...’ या ‘फिर वही शाम, वही गम, वही तन्हाई हैं...’ या ‘तेरी आँख के आंसू पी जाऊं ऐसी मेरी तकदीर कहाँ...’ या ‘आ लौट के आजा मेरे मीत, तुझे मेरे गीत बुलाते हैं...’ या फिर ‘ना तो कारवां की तलाश हैं...’ या ‘दो घड़ी वो जो पास आ बैठे...’ इन गीत, गजल और कव्वालियों में उन्होंने जिस तरह से अपने भावों को प्रदर्शित किया उतने भर से उनके अभिनय की रेंज का अहसास किया जा सकता हैं कि किस तरह से वो भीतर छिपी भावनाओं को अपने भोले-भाले चेहरे से दर्शा पाने में सक्षम थे  

फ़िल्मी दुनिया में उन्होंने एक लम्बी पारी खेली और उनके द्वारा अभिनीत अधिकांश फ़िल्में सुपर-हिट थी उसके बावजूद भी उनका अंत समय बेहद दर्दनाक था क्योंकि, आज के कलाकारों की तरह उन्होंने अपनी कमाई को सही तरीके से सही जगह निवेश नहीं किया और न ही भविष्य के प्रति उनके पास कोई योजनायें ही थी तो आखिरी वक़्त में वे आर्थिक तंगी का शिकार हुए और आज ही के दिन 27 जनवरी 1992 को 72 वर्ष की उम्र में अपनी यादों का अनमोल खज़ाना पीछे छोड़कर इस दुनिया से रुखसत हो गये आज उनकी पुण्यतिथि पर उनको यही शब्दांजलि... L L L !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

२७ जनवरी २०१८

शुक्रवार, 26 जनवरी 2018

सुर-२०१८-२६ : #अपना_गणतंत्र_गूंजे_जहाँ_विदेशी_मंत्र



गणतंत्र बना ये देश हमारा
मिला उसे संविधान न्यारा
जश्न मनाये मिलकर हम सब
आज खुशियों भरा दिन आया...

26 जनवरी 1930 को स्वतंत्रता सेनानी और क्रांतिकारियों ने यह शपथ ली थी कि जब तक भारत स्वतंत्र नहीं हो जाता तब तक यह आंदोलन इसी तरह चलता रहेगा जिसके बाद 15 अगस्त 1947 को भारत देश को आजादी मिली और 26 जनवरी 1950 को भारत देश को लोकतान्त्रिक गणराज्य देश के रूप में घोषित किया गया तब से हर साल हम 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के रूप में मनाते आ रहे हैं ।

इस गणतंत्र दिवस पर इतिहास ने खुद को दोहराया कि भारत ने 26 जनवरी 1950 को अपना पहला गणतंत्र दिवस मनाया था और उस समय दक्षिण पूर्व एशिया के दिग्गज नेता और इंडोनेशिया के पहले राष्ट्रपति सुकर्णो मुख्य अतिथि थे और आज आजादी के 68 साल बाद भारत ने एक बार फिर इंडोनेशिया के राष्ट्रपति जोको विदोदो को गणतंत्र दिवस पर आमंत्रित किया और हम सब उन ऐतिहासिक पलों के साक्षी भी बने ।

राष्ट्रीय पर्वों को स्कूल में मनाकर बच्चों के मन में देशभक्ति का बीज रोपा जाता और धीरे-धीरे जब वे बड़े होते तो इसका महत्व समझते कि तिरंगा व भारतमाता हमारे राष्ट्रीय प्रतीक जिनका सम्मान और रक्षा करना हमारा कर्तव्य हैं । कभी जो पर्व महज़ एक रस्म के तौर पर निभाया जाता वही वक़्त आने पर अपने देशवासियों को उनके फर्ज का अहसास भी करता हैं । हम सब अधिकारों कर प्रति तो सदैव सजग रहते लेकिन, ये भूल जाते कि संविधान ने हमें मौलिक अधिकारों के साथ कर्तव्यों का भी कॉम्बो पैक दिया हैं ।

‘गणतंत्र दिवस’ और ‘स्वतंत्रता दिवस’ हमें यही याद दिलाने आते कि मौका आने पर हम अपने वतन के लिये भी तत्परता के साथ हाज़िर हो अपनी देशभक्ति का परिचय दे केवल मन में उस भाव को रखने से उसका प्रदर्शन नहीं होगा और न तिरंगे को सलाम करने या वंदे मातरम कहने से तो देशभक्ति के जज्बे को संजोकर रखे और मुश्किल हालातों में साहस के साथ उज़ागर करें न कि ३६४ दिन विदेशी भाषा, विदेशी खान-पान, विदेश पहनावे और विदेशी मन्त्रों का उच्चारण करें और अपनी सभ्यता-संस्कृति को ही भूल जाये

हमेशा पाश्चात्य रंग में रंगे रहना और उसका गुणगान करना केवल एक दिन के लिये तिरंगे के रंग में रंग जाना ही देशभक्ति नहीं बल्कि दिल से हिन्दुस्तानी होने का मतलब कि अपनी जड़ों से जुड़े रहना अपने गौरवशाली इतिहास को न भूलना... यही भावना मन में सबके बनी रहे इसी कामना के साथ सबको गणतंत्र दिवस की शुभकामना... ☺ ☺ ☺ !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

२६ जनवरी २०१८

गुरुवार, 25 जनवरी 2018

सुर-२०१८-२५ : #इच्छामृत्यु_के वरदान_की_तिथि_भीष्माष्टमी


संसार में जो कुछ भी हम देखते-सुनते हैं वो सब कुछ पूर्व में ही वर्णित ‘महाभारत’ का ही कोई न कोई हिस्सा हैं क्योंकि, ये माना जाता हैं कि ऐसा कुछ भी मुमकिन नहीं जो ‘महाभारत’ में लिखा न हो या जो कुछ भी इस दुनिया में होता वो सब कुछ ‘महाभारत’ में कहीं न कहीं अवश्य मिलेगा याने कि जो महाभारत में हैं वही सामने आता और जो ‘महाभारत’ में नहीं वो कहीं नहीं कहने का तात्पर्य केवल इतना कि कोई भी अप्रत्याशित या नामुमकिन जो हम सोच सकते वो कहीं न कहीं इसके किसी प्रसंग में घटित हो चुका हैं कि इतनी विविधताओं से भरा और इतना बड़ा कोई दूसरा ग्रंथ नहीं जिसे समझ पाना जिसमें लिखी हुई कथाओं का मर्म समझ पाना सबके वश की बात नहीं कि आस्था को तर्क से सिद्ध कर पाना संभव नहीं इसलिये ऐसा प्रचारित कर दिया गया कि जो इसे अपने घर में रखेगा उनके घर ‘महाभारत’ हो जायेगा तो हर कोई न तो इसे अपने घर में स्थान देता और न ही पढ़ने का ही प्रयास करता फिर भी इसकी कहानियां इतनी अधिक प्रचलित कि हर कोई इसके पात्रों और उनके जीवन की मुख्य घटनाओं से बखूबी परिचित तो किसी का भी नाम लेना पर उससे संबंधित मुख्य बातें उसके जेहन में तैर जाती जिसमें बहुत बड़ा योगदान धारावाहिक का भी हैं जिसने बड़ी कुशलता और सावधानी से बेहतरीन कलाकारों के चयन और चुस्त-दुरुस्त पटकथा व प्रभावशाली संवादों के माध्यम से इसे एक बार फिर घर-घर में लोकप्रिय बना दिया जिसकी वजह से इसे पुनः समाज में मान्यता और एक पुख्ता मुकाम हासिल हुआ तो लोगों में उन चरित्रों के बारे में अधिक जानने की जिज्ञासा भी बढ़ी तो इसके कई संस्करण भी सामने आये और आज भी ये लोगों के लिये सबसे अधिक रोचक हैं

‘महाभारत’ का नाम लेते ही यूँ तो सबसे पहले श्रीकृष्ण की छवि ही मन में उभरती लेकिन, उसके बाद जो पात्र ख्यालों में आता वो निसंदेह ‘भीष्म पितामह’ का ही हैं जिनका जीवन जन्म से अपने निर्वाण तक इतनी अधिक अप्रत्याशित घटनाओं से भरा हुआ हैं कि पढ़ने वाला भौचक होकर उसे पढ़ता ही रह जाता हैं । अपने पूर्वजन्म में वे एक ‘वसु’ होते हैं लेकिन, एकाएक शापग्रस्त होने के कारण वे पतित पावन ‘गंगा’ के पुत्र के रूप में ‘देवव्रत’ बनकर जनम लेते हैं और अपने पिता ‘शांतनु’ से एक बेहद अनोखी मुलाकात के बाद वे उनके साथ ही रहने लगते हैं । फिर किस तरह से अचानक अपने पिता की मनोकामना पूर्ति के लिये वे एक कठोर प्रतिज्ञा लेते जो उनको ‘भीष्म’ के नवीन नाम व इच्छामृत्यु के वरदान से उनके एक नये अवतार का कारण बनती हैं । उसके बाद तो लगातार एक-एक कर के आश्चर्ययुक्त घटनाओं का अनंत सिलसिला शुरू होता हैं जिसके केंद्र में ‘भीष्म’ ही रहते हैं जो ‘अम्बा’ के स्वयंवर से उसको ले आने की वजह से अपने गुरु से भी लड़ जाते हैं और इस तरह वे जान-बूझकर ‘अंबा’ के रूप में भविष्य में ‘शिखंडी’ बनकर आने वाली अपनी मौत को खुद ही चुनते हैं । यहाँ तक कि द्रोपदी के चीर-हरण में मौन रहकर वो ‘महाभारत’ की आधारशिला भी स्वयं ही रखते हैं क्योंकि इसके बिना वो महासमर संभव भी नहीं होता और जो वे उस वक़्त हाथ उठाते तो कथा अपने सही अंजाम तक न पहुंच पाती कि बहुत कुछ जो उसके बाद होता वो ज्यादा जरूरी था । बहुत-से लोग अपनी स्थूल बुद्धि से इन सूक्ष्म प्रसंगों व इन विशेष कहानियों के गूढ़ अर्थ को समझ नहीं पाते तो इन पर प्रश्नचिन्ह लगाते या इनके निष्पाप व निष्कलंक किरदारों के पवित्र चरित्र पर ऊँगली उठाते हैं पर, जिन्होंने इनके पीछे छिपी उस मूल भावना को समझ लिया वो सवाल नहीं करते ।

‘भीष्म पितामह’ ने लगभग १५० बरस लम्बा जीवन जिया जिसमें उन्होंने एक साथ अनेक जिंदगियों को जिया और ५८ दिनों तक तीरों की शैया पर दर्द सहते हुये अपने इच्छा मृत्यु के वरदान को फलीभूत करने के लिए आज के दिन का इंतजार किया जिसे भीष्म अष्टमी के रूप में मनाया जाता हैं और उनकी आत्मा की शांति के लिये व्रत कर तर्पण किया जाता हैं ।

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

२५ जनवरी २०१८

बुधवार, 24 जनवरी 2018

सुर-२०१८-२४ : #अचला_रथ_सप्तमी_नर्मदा_जयंती



सभी प्राणियों को पाप से मुक्त कराने के लिये देवताओं की विनती पर अमरकंटक की सुरम्य वादियों और प्राकृतिक परिवेश में भगवान शिव जी की भृकुटी से एक बूंद के रूप में उनकी पुत्री जीवनदायिनी 'नर्मदा' का जन्म हुआ और माघ महीने के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि से उन्होंने नदी के रूप में बहना शुरू किया तो तब से आज के दिन 'नर्मदा जयंती' मनाई जाती हैं । दक्षिण की गंगा कहलाई जाने वाली ‘नर्मदा’ के जल की पवित्रता की एक वजह उसमें पाये जाने शंकर रूपी पत्थर भी हैं और निर्मल पावन 'नर्मदा' अपने निकट रहने वालों को ही नहीं अपने आस-पास के सभी क्षेत्रों को पुण्य जल का दान देकर उनके जीवन की रक्षा करती और उन्हें हर तरह के पापों से मुक्त करती हैं आज के समय में लेकिन मानव ने अपने बुरे आचरण से उसको ही इतना मलिन और गंदा बना दिया कि उसके साथ-साथ खुद के अस्तित्व पर ही प्रश्नचिन्ह लगा दिया ऐसे में इन दिन का महत्व और भी अधिक बढ़ जाता हैं

जिसकी वजह से हमारा जीवन चलता हम उसका ही जीवन ले लेते ये जानते हुए भी कि न तो हम किसी को जीवन दे सकते और न ही जल का ही सृजन कर सकते हम तो केवल जीवन लेना ही जानते हैं पर, अपनी प्राकृतिक संपदाओं का हनन कर हम अपने साथ-साथ अपने आने वाली पीढ़ियों का भी भविष्य बर्बाद कर रहे हैं ऐसे में ये दिवस हमें अहसास कराते कि जिस तरह प्रदूषण व हमारी हरकतों से ये नदियां सिमट कर मिट रही इनकी दुर्दशा हो रही एक दिन हम भी विलुप्ति की कगार पर खड़े होंगे तब कोई न हमें बचा पायेगा अतः हम आज भी संभल जाये तो स्थिति काफी हद तक सुधर सकती हैं । हमारे पूर्वजों ने नदियों-पहाड़ों और पेड़-पौधों ही नहीं सृष्टि की हर एक वस्तु को ईश्वर व धर्म से इसलिये जोड़ा कि धर्मभीरु बनकर ही सही हम इनकी सुरक्षा के प्रति सचेत रहे परंतु हम तो इतने बड़े ज्ञानी और बौद्धिकवादी बन गये कि भगवान को नहीं मानते तब कुदरत की इन शय को किस तरह से पूजेंगे इनकी रक्षा करेंगे हमारे पूर्वज बिना पढ़े-लिखे ही इतने समझदार थे कि उन्होंने 20 सदी तक पीढ़ियों को सुरक्षित रखा पर, 21 वी सदी इतनी इंटेलिजेंट कि अपने पूर्वजों और उनकी बातों को दकियानूस, अंधविश्वास बताकर अपनी समाप्ति के लिये खुद गहरी खाई तैयार कर रही हैं ।

आज ही के दिन भगवान सूर्यदेव सात घोड़ों के रथ पर सवार होकर इस लोक में प्रकट हुए थे तो आज के दिन अचला सप्तमी, रथ सप्तमी और भानु सप्तमी भी मनाई जाती और इस व्रत का महत्व इतना अधिक हैं कि जो लोग साल भर सूरज की पूजा नहीं कर पाते यदि वो आज एक दिन ही पूजन व् व्रत करते तो इसके प्रभाव से उन्हें साल भर की जाने वाली पूजा का फल एक दिन में ही मिल जाता हैं आज के दिन प्रातःकाल उठकर सूर्य किरणों के निकलते ही स्नान करने से ये माना जाता हैं कि पुराने से पुराना रोग भी ठीक हो जाता हैं जिसे चिकित्सा विज्ञान ने भी मान्यता दी हैं कि सूर्य किरणों में तो आरोग्यता का वरदान छिपा हैं और जो शक्ति इसके माध्यम से हमारे शरीर को प्राप्त होती वो किसी भी दूसरे कृत्रिम साधन से उपलब्ध नहीं हो सकती हैं

सभी को नर्मदा जयंती, अचला सप्तमी की शुभकामनायें... ये आपके जीवन में सौभाग्य और निरोगता का वरदान लाये... ☺ ☺ ☺ !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

२४ जनवरी २०१८