शनिवार, 30 जून 2018

सुर-२०१८-१८० : #लघुकथा_कैंडल_मार्च




अरे, गीतिका’ तुम तो तैयार ही नहीं मजे से सो रही हो  

तैयार... किस बात के लिये ? उसने आश्चर्य से पूछा

ओफ्फो, क्या तुम्हें पता नहीं कि हमें कैंडल मार्च पर चलना हैं व्हाट्स एप्प पर मैसेज भी किया था देखा नहीं क्या ?

अच्छा तू उसके बारे में कह रही लेकिन, अभी तक उपर से तो कोई निर्देश आये नहीं और न ही कोई फंड ही आया फिर कैसे करेंगे ?

तेरे कहने का मतलब कि. तू इंतजार करेगी और जब तुझे कोई कहे तभी तू निकलेगी मगर, ये कहने वाला कौन हैं पहले ये तो पता चले?

तू तो ऐसे बन रही जैसे तुझे कुछ पता ही नहीं कि हम कैंडल मार्च कब करते ?

इसमें पता होने वाली कौन-सी बात एकदम सिंपल हैं कि जब हमें ऐसा कोई भी मसला मिले जिसमें किसी पीड़ित के लिये न्याय मांगना हो तब करते

फिर तो तू बड़ी भोली हैं या मुझे बना रही हैं... यदि ऐसा होता तो हम सडकों पर ही रहते यार, ऐसा नहीं हैं तू राजनीति के क्षेत्र में नई-नई आई हैं न धीरे-धीरे सब सीख जायेगी

उसकी बात सुनकर ‘शेफाली’ सोचने लगी वाकई वो भोली हैं जो अब तक यही समझती थी कि, खुद को फेमिनिस्ट कहने वाली ये आधुनिक व स्वतंत्र ख्याल महिलायें जनता के हित में ऐसे कदम उठाती इसलिये तो उसने एक नारी संगठन को ज्वाइन कर लिया था लेकिन, ये सेलेक्टिव होते हैं ये आज पता चला शायद, इसलिये ही इन समस्याओं का कोई हल नहीं निकलता ये जानकर उसने तुरंत उसे छोड़कर स्वतंत्र रूप से आवाज़ उठाने का निश्चय किया जैसा कि वो पहले करती थी भले देर लगेगी लेकिन, सफलता मिलेगी जरुर और अकेले ही कैंडल लेकर वो गाने लगी ‘हम होंगे कामयाब... एक दिन...’         

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
३० जून २०१८


शुक्रवार, 29 जून 2018

सुर-२०१८-१७९ : #तिलिस्म_की_रहस्मयी_दुनिया_जिसने_गढ़ी #वो_हैं_अद्भुत_प्रतिभाशाली_बाबू_देवकीनंदन_खत्री



‘चंद्रकांता’ और ‘भूतनाथ’ हिंदी साहित्य के दो ऐसे प्रभावशाली किरदार और ऐसे दो उल्लेखनीय उपन्यास जिनके बिना साहित्य जगत सूना हैं क्योंकि, इसने तो वो कीर्तिमान गढ़े  और वो मिसाल कायम की जिसे उसके बाद फिर कोई दोहरा न सका यहाँ तक कि इनके सृजन के बाद से तो उपन्यास की दुनिया में रहस्यमयी व तिलस्मी जैसी एक नवीनतम श्रेणी का आरंभ हुआ वो भी उस दौर में जबकि, ऐसा सोच पाना भी नामुमकिन था एक लेखक ने कल्पना के उस अद्भुत संसार को शब्दों के माध्यम से पन्नों पर उतार दिया जिसे हम स्वपन में देखा करते या जिसके बारे में किस्से या कहानियों में सुना करते थे लेखन भी ऐसा कि उसने पाठकों को इस तरह दीवाना बना दिया कि रचनाकार अगला अंक लिख भी नहीं पाता और प्रेस के बाहर पढ़ने वालों की लाइन लग जाया करती थी

इसने हिंदी भाषा का इतना विशाल पाठक वर्ग तैयार किया कि एक इतिहास ही रच दिया और उनके इस योगदान के लिये हिंदी साहित्य सदैव उनका ऋणी रहेगा जिन्होंने शब्दों से ऐसा मायाजाल बुना कि जैसे-जैसे उनका पठन किया जाता दृश्य आँखों के सामने साकार हो जाता और वो पात्र हमारे सामने जीवंत होकर चलते-फिरते दिखाई देता किसी रहस्यमयी कहानी का ऐसा सजीव शब्द चित्रण आसान नहीं होता लेकिन जिस पर माँ सरस्वती की कृपा हो उसके लिये कुछ भी नामुमकिन नहीं होता ऐसे थे अपरिमित प्रतिभा के धनी लेखक ‘देवकीनंदन खत्री’ जिनका रचनाकर्म इस कदर प्रभावी था कि उसने महज एक कालखंड या एक पीढ़ी नहीं बल्कि, आने वाली सदियों और पीढ़ियों को अपना मुरीद बना लिया तभी तो हर जनरेशन के पास अपनी अलग ‘चंद्रकांता’ हैं आगे भी जब-जब पीढ़ी का परिवर्तन होगा तो उनके अनुसार इसका कोई अलग वर्शन तैयार किया जायेगा जो केवल किताब को नहीं बल्कि, कलमकार को भी हर युग में उसकी रचना के साथ जीवित रखेगा

उन्होंने तिलिस्म का ऐसा मायावी जगत खड़ा किया कि उससे बाहर निकल पाना किसी भी किताब प्रेमी के लिये संभव नहीं वो तो जब भी इस पुस्तक को उठाता इसके भूलभुलैया जैसे कल्पनालोक में खो जाता जहाँ कब कौन-सा पात्र किस रूप में उसके सामने आकर खड़ा होगा पढ़े होने के बाद भी उसे आभास तक नहीं होता इसलिये हर बार उसे नयेपन का अहसास होता यही वजह कि ‘देवकी बाबू’ और उनकी कृति ‘चंद्रकांता’ आज तलक भी बिक्री का रिकॉर्ड कायम रखे हुये हैं उनके द्वारा उसके सातों भागों में दिलचस्पी का ऐसा माहौल बनाया गया हैं कि जितने हम पृष्ठ पलटते जाते उतनी ही रोचकता बढ़ती जाती और कभी-कभी तो रोमांच चरम पर पहुँच जाता सांस गले में अटक जाती कि जाने आगे क्या हो और ऐसे ही जाने कितने ही सस्पेंस उसमें समाये हुये जिसने पाठकों की उसके प्रति रूचि को आज तक भी बनाये रखा हैं यहाँ तक कि अनेक लेखकों ने तो उनका अनुकरण करने का प्रयास किया पर, कोई भी उनके कद और उनके सोच के उस उच्च स्तर को न पा सका

उनका तो जन्म ही शायद, इस असंभव कार्य को अंजाम देने के लिये हुआ था तो उन्होंने अपनी इस अविस्मरणीय नॉवेल के जरिये वो कारनामा कर दिखाया और फंतासी की एक अलहदा कैटेगरी की शुरुआत की जिसमें नये-नये शब्दों का प्रयोग भी जमकर किया और जासूसी जिसे ‘अय्यारी’ का नाम दिया जैसे एक विलक्षण व रोमांचकारी कृत्य से हम सबको परिचित करवाया जिसने साहित्य के क्षेत्र में तूफान मचा दिया यहीं नहीं ‘सिनेमा’ जैसी विधा जिसे हमने बहुत बाद में जाना उसके बारे में उन्होंने पहले ही अपनी किताब में वर्णन कर दिया और ये साबित कर दिया कि जो कुछ भी सोचा जाता उसको हक़ीकत में भी बदला जा सकता हैं अपनी कहानियों व उपन्यासों के जरिये उन्होंने इसी तरह की न जाने कितनी खोजों और कितने अविष्कारों के लिये ठोस आधारिशिला तैयार की जो लेखक की दूरदर्शिता के साथ-साथ उसके अन्वेषक दृष्टिकोण को भी दर्शाता हैं            

रहस्य और रोमांच के ऐसे बहुमुखी प्रतिभाशाली साहित्यकार का आज उनके जन्मदिवस पर पुण्य स्मरण और ये शब्दांजलि... ☺ ☺ ☺ !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२९ जून २०१८

गुरुवार, 28 जून 2018

सुर-२०१८-१७८ : #अनपढ़_होकर_भी_लिख_गये_ग्रंथ #बिना_सन्यास_के_कबीर_कहलाये_संत




‘कबीर’ सिर्फ एक नाम नहीं जीवन दर्शन हैं जिसकी प्रासंगिकता सदियों तक बनी रहेगी क्योंकि, धरती पर जीवन सतत चलता रहता भले ही उसमें बाहरी रूप से परिवर्तन आ जाता लेकिन, आंतरिक भावनाएं यथावत रहती ऐसे में कदम-कदम पर ही नहीं हर एक बात में कबीर की याद आती उनकी कोई पंक्ति अपने आप ही जुबान पर चली आती कि उन्होंने तो एक आम आदमी की तरह सारा जीवन भांति-भांति के लोगों के बीच व्यतीत किया ऐसे में उनके पास अनुभवों का वृहद खजाना एकत्रित हो गया जिसे उन्होंने बड़ी सरलता से गेयता में व्यक्त कर दिया जिससे कि उसे दोहराना या उसका स्मरण करना आसान रहे तो ये उनकी आदत बन गयी कि वे अपने आस-पास जो भी देखते उसे शब्दों में बाँध देते जिससे सुनने वाला अपने भीतर उतार लेता और लोगों ने तो उनके इन पदों को इस तरह से आत्मसात किया कि बिना किसी संकलन या किताब में दर्ज हुये बिना भी केवल मुंह जुबानी पीढ़ी दर पीढ़ी चलता रहा और आज भी गाँव में आपको ऐसे अनेक लोग मिल जायेंगे जिन्हें अक्षर ज्ञान नहीं अनपढ़ हैं पर, उन्हें कबीर की सखियाँ शब्दशः याद हैं जिसकी वजह इनकी सहजता-सरलता और आम बोलचाल की भाषा में कहा जाना हैं

‘कबीर’ व्यक्तिगत तौर पर जुलाहे का काम करते थे और उनकी इस खूबी की वजह से उन्होंने अपने इस काम में ही अनगिनत जीवन रहस्यों को सुलझा लिया और सतत कर्मरत रहते हुये उन गूढ़ सूत्रों को खड़ी बोली में ही व्यक्त करना शुरू कर दिया जिसने न जाने कितने इंसानों का जीवन बदल दिया और उन्होंने अपनी इस खूबी से हर एक कुरीति और कुव्यवस्था पर शाब्दिक प्रहार किया जिसने उस दौर की सामन्तवादी सामाजिक व्यवस्था को बदलने पर मजबूर कर दिया एक साधारण इंसान ने अपनी हृदयस्पर्शी शैली से आमजन के मर्म को छुआ उसके दुःख, उसकी तकलीफ, उसकी पीड़ा को शब्द व अपनी आवाज़ दी जिसके लिये उन्होंने कोई विशेष प्रयास नहीं किये बल्कि, अपनी दृष्टि को इतना सूक्ष्म बना लिया कि किसी एक्सरे मशीन की तरह वो सामने वाले के अंतर को बेध उसमें छिपी व्यथा को समझ सके तो उनके इस अलहदा दृष्टिकोण ने ही उनको जुलाहा होते हुये भी अन्य मानवों से अलग-थलग खड़ा कर एक ऐसा विशिष्ट स्थान दे दिया जहाँ तक पहुंचना सबके वश की बात नहीं उस पर कर्मयोगी की तरह कपड़ा बुनते-बुनते संत के समान ऐसी उच्चतम अवस्था पा लेना विलक्षणता का प्रतीक हैं जो आत्मबोध के बिना संभव नहीं हैं
     
वे निरक्षर थे पर, लोगों के चेहरे पढ़ने में उनको महारत हासिल थी यही नहीं उनको लेखन नहीं आता था पर, उनके कहे शब्दों से बन गयी मोटी-मोटी पोथीयां और न ही कोई धार्मिक ग्रंथ पढ़ा या सन्यास ही ग्रहण किया पर जीवन का गूढ़ ज्ञान उन्हें संत का दर्जा दिला गया आज ‘कबीर जयंती’ पर महान दार्शनिक और समाज सुधारक को शत-शत नमन... ☺ ☺ ☺ !!!
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२८ जून २०१८

बुधवार, 27 जून 2018

सुर-२०१८-१७७ : #बारिश_तो_बस_बहाना_हैं #दुखों_का_नहीं_कहीं_ठिकाना_हैं




टिप... टिप...
आसमां से टपक रही बूंदें
भींग रही धरती
भींग रही सारी कायनात
तन भी सराबोर हो गया मगर,
मन सूखा ही रहा
कोई भी बूंद न तर कर सकी
न भीतर उतर सकी
छतरी में छिपाकर गीली ऑंखें
अंतर को गीला कर लिया
यूँ हमने बारिश में खुद को पिया
बिन पिया...
यूँ जल रहा एकाकी जिया
जैसे मंदिर में टिमटिमाता कोई दिया
अपनी ही आग में जलता
बरसाती हवा से और ज्यादा भड़कता
जब तक जां लड़ता और फिर
भभककर बुझ जाता  
सावन-भादो का नहीं ये तो हैं
इक अंतहीन सिलसिला
जन्मों-जन्मों तक न मिटा
इक इंतजार अनंत
सदियों से भटकती अतृप्त आत्मा का
जिसका परमात्मा खो चुका

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२७ जून २०१८

मंगलवार, 26 जून 2018

सुर-२०१८-१७६ : #नशा_निरोधक_दिवस_नहीं_मनाना #नशे_का_हमको_नामो_निशाना_हैं_मिटाना




‘नशा’
कोई भी हो
होता बुरा ही हैं
फिर भी, न जाने क्यूँ ?
इंसान करता इसे
सबकी वजह अलग-अलग होती
कोई ख़ुशी में तो
कोई गम में इसे अपनाता
हर कोई कभी न कभी
इसका सहारा लेता
ये जानते-बुझते भी कि
होता नहीं अच्छा नशा कोई भी
खुलेआम बाज़ारों में बिकता ये हर जगह
हैं अगर जानलेवा तो फिर
क्यों नहीं इसकी बिक्री पर रोक लगती ?
क्यों नहीं इसे बनाना गलत हैं ?
क्या इसकी कमाई इतनी ज्यादा जरुरी हैं
कि, किसी की जान की कीमत पर
इसे खरीदा-बेचा जाये ?
सबसे अनमोल शय होती जिंदगी
पर, उसे बेचकर चंद
नशा रूपी मौत खरीदते हैं
आप अपने ही हाथों अपना गला घोटते हैं
क्यों नहीं ये बात समझते हैं कि,
जीवन एक बार ही मिलता
क्यों इसे नशे में गाफ़िल होकर खोना
चलो कुछ ऐसा करें कि,   
‘नशा निरोधक दिवस’ की जरूरत ही न पड़े
नशे को सदा के लिये ‘न’ कहे

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२६ जून २०१८

सोमवार, 25 जून 2018

सुर-२०१८-१७५ : #मुश्किलों_से_न_कभी_हारी #दृढ_निश्चय_की_धनी_सुचेता_कृपलानी




बात बहुत ज्यादा पुरानी नहीं हैं केवल १०८ वर्ष पहले की हैं जब आज ही के दिन २५ जून १९०८ को इस देश की हरियाणा की भूमि में अम्बाला शहर में भारत देश की पहली महिला मुख्यमंत्री का गौरव हासिल करने वाली ‘सुचेता मजूमदार’ का जन्म एक बंगाली परिवार में हुआ और बचपन से ही अपनी कुशाग्र बुद्धिमत्ता के कारण ही उनको दिल्ली के इंद्रप्रस्थ और सेंत स्टीफन जैसी उल्लेखनीय संस्थाओं में पढ़ने का मौका मिला जिसे उन्होंने हाथ से न जाने दिया वो भी उस कालखंड में जबकि महिलाओं के लिये शिक्षा आसमान के चाँद की तरह दुर्लभ थी लेकिन, वो तो जन्मी ही मिसाल कायम करने के लिये तो फिर ऐसी बातों से उन्हें क्या फर्क पड़ता कि उस वक़्त समाज व उनकी मातृभूमि में स्त्रियों के लिये किस तरह की विशेष रवायतों का प्रचलन हैं

उन्होंने तो जो ठान लिया वो कर के ही रही जिसमें उनके डॉक्टर पिता एस.एन. मजूमदार की भूमिका को भी नकारा नहीं जा सकता जिन्होंने अपनी बिटिया को उस दौर में इस तरह की उच्च शिक्षा के लिये शारीरिक व् मानसिक संबल प्रदान किया जिसका नतीजा कि उनके भीतर की छिपी प्रतिभाओं को उभरने का पूर्ण अवसर प्राप्त हुआ और वे बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में इतिहास की प्राध्यापिका बनी जहाँ उनका परिचय अपने ही जैसे आदर्शवादी, प्रभावशाली व बुद्धिमान ‘जे. बी, कृपलानी’ से हुआ जो कालांतर में उनके पति भी बने और उनका ये मिलन भारतीय राजनीती का स्वर्णिम अध्याय हैं जहाँ ये दोनों आत्मिक रूप से एक होकर भी शारीरिक रूप से दो भिन्न राजनैतिक दलों के समर्थक के रूप में एक-दूसरे के प्रतिद्वंदी भी रहे मगर, इसका प्रभाव इनके व्यक्तिगत जीवन पर नहीं पड़ा क्योंकि, दोनों ही जेहनी तौर पर इस कदर परिपक्व थे कि इन बातों को आपसी रिश्तों में खटास की वजह बनाकर अनमोल समय व्यर्थ गंवाने के पक्ष में न थे

इसलिये तमाम बाहरी दलगत विरोधों के बावजूद भी भीतरी तौर पर वे एक ही छत के नीचे आजीवन रहे और अपने रिश्ते को प्रेरणा की तरह प्रस्तुत किया जबकि, उनके बीच उम्र का एक लंबा अंतराल भी था और उनके विवाह को महात्मा गाँधी जैसी महानतम हस्ती व अपने परिजनों का भी विरोध झेलना पड़ा था पर, दोनों के इस्पात जैसे मजबूत इरादों को कोई भी प्रतिरोध कभी तोड़ न सका वो खुद अपने आप में एक मिसाल हैं और ये दर्शाता हैं कि यदि दो सही व सशक्त शख्सियत यदि रेखाओं की तरह एक-दूसरे को काटे नहीं वरन रेल की पटरियों की भांति सामानांतर साथ-साथ चलती रहे तो उनकी सकारात्मक ऊर्जा का लाभ परस्पर दोनों को ही प्राप्त होता हैं और वे अपने लक्ष्य को प्राप्त कर उदाहरण बनते हैं

अपने मजबूत इरादों व इच्छाशक्ति के दम पर उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में भी जबर्दस्त भूमिका निभाई और ‘भारत छोडो आंदोलन’ में सक्रियता के साथ अपनी जिम्मेदारी का पालन किया और सभी पुरुषों के जेल जाने पर उन्होंने खुद को भूमिगत कर १९४० में कांग्रेस की महिला शाखा ‘आल इंडिया महिला कांग्रेस’ की नींव रखी और महिलाओं की फ़ौज बनाकर उन्हें आत्मरक्षा के गुर भी सिखाये जो उनकी बहादुरी को दर्शाता हैं और जब देश आज़ाद हुआ तो संसद में वंदे मातरम गाने का कीर्तिमान भी उन्हीं के नाम दर्ज हैं उनकी इन सब उपलब्धियों ने ही उन्हें भारत की प्रथम महिला मुख्यमंत्री बनने का गौरव दिया और हमें अपनी इस पुत्री पर गर्व करने का उनका प्रेरणादायी जीवन सदैव हम सबके लिये पथ प्रदर्शक रहेगा... आज उनके जन्मदिवस पर उनको शत-शत नमन... ☺ ☺ ☺ !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२५ जून २०१८

रविवार, 24 जून 2018

सुर-२०१८-१७४ : #मुगलों_की_शामत_बनी #गोंडवाना_की_रानी_दुर्गावती




दुर्गाष्टमी को जन्मी
रणचंडी दुर्गा का अवतार बनी
माता-पिता की लाड़ली ‘दुर्गावती’ कहलाई
अद्भुत तेज और सौंदर्य की धनी
शौर्य और पराक्रम की भी उनमें नहीं थी कमी
विपरीत परिस्थितियों आती रही
किसी से भी मगर, ‘दुर्गावती’ नहीं डरी
संभाल बागड़ोर शासन की
बुद्धिमता से राज्य की नई पहचान गढ़ी
दिया प्रजा को संबल ऐसा
देता कुशल कुम्हार घड़े को जैसा
पालक सम पालन किया
नहीं कोई कष्ट कभी उनको दिया
देखकर उनकी अपार संपदा
अप्रतिम सौंदर्य और कार्य-कुशलता
मुगलों की डोल गई नीयत   
करते रहे आक्रमण बार-बार लगातार
मगर, न हिम्मत उसने हारी
शत्रु पर हर बार पड़ती रही वो भारी
समझा जिसने अबला नारी
उसकी गई मति मारी
अपनी हिम्मत और वीरता से उसने
अंतिम साँस तक लड़ाई लड़ी
घायल होकर भी न दुश्मन के हाथ लगी
मार कटार खुद को मर गई
लेकिन, न बहादुरी पर आंच आने दी
नाम अपना सार्थक कर गई
‘रानी दुर्गावती’ मरकर भी अमर हो गई

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२४ जून २०१८

सुर-२०१८-१७३ : #लघुकथा_फेमिना_का_बेटा



 मम्मा, प्लीज आज तो बता दो कि मेरे पापा कौन हैं ?

क्यों ऐसी क्या जरूरत आ पड़ी कि आज बताना ही पड़ेगा ?

आप समझती क्यों नहीं मम्मा मेरे सब दोस्त के पापा हैं और उनसे मिलने भी आते बस, मेरे ही नहीं और मैं जब भी ये सवाल पूछता आप हमसे मना कर देती हो आखिर उसकी ही वजह बता दो प्लीज कुछ तो बता दो आखिर मेरे पापा थे भी या नहीं प्लीज, प्लीज, बता दो न सब मेरी हंसी उड़ाते हैं मुंह लटकाते हुये नन्हा रितिक बोला

उसकी बातों से वो सोच में पड़ गयी तो उसने धमकी भरे लहजे में कहा, यदि आज अपने नहीं बताया तो मैं आपसे बात नहीं करूंगा

उसकी इस जिद से ‘मायरा’ परेशान हो चुकी थी पर, जिस सवाल का जवाब खुद उसे नहीं पता वो ‘रितिक’ को कैसे बता दे क्योंकि, उसे याद ही नहीं बस, इतना पता कि जब वो उसकी कोख़ में आया उसके पहले उसका अपने पति से जबरन संबंध बनाने के कारण झगड़ा चल रहा था जिसकी टेंशन में उसने उस रात कुछ ज्यादा ही पी ली थी और फिर क्या हुआ उसे कुछ याद नहीं उसने तो सुबह खुद को एक अजनबी के बिस्तर पर पाया था और उसी दौरान उसका अपने बॉस के साथ भी अफेयर चल रहा था तो उसे कन्फ्यूजन था कि वो इनमें से किसकी औलाद हैं ?  

उसके कानों में अपनी माँ की आवाज़ गूंजने लगी, जब अपने आधुनिक ख्यालों व बेपरवाह वाली लाइफ की खातिर अपने पति को छोड़कर उसने अपनी मर्जी से जीने का विकल्प चुना था तो उन्होंने चिढ़कर कहा था, तू अपने कुतर्कों से मेरी जुबान तो बंद कर सकती हैं मगर, जब तेरी संतान तुझसे प्रश्न करेगी तब तुझे अपनी गलती समझ आयेगी कि यंग ऐज में तो सब सही लगता मगर, गलत हमेशा गलत रहता जिसे तर्कों से सच साबित नहीं किया जा सकता शायद, इसी दिन के लिये कहा था
  
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२३ जून २०१८

शुक्रवार, 22 जून 2018

सुर-२०१८-१७२ : #परिंदों_बिन_नीड़_उदास



कर गये पलायन
बहुत दूर सात समंदर पार
परदेश जाकर बस गये
छोड़ गये पीछे
अपना घर और परिवार
वो नन्हे चूजे
जिन्हें ऊँगली पकड़
चलना सिखाया था कभी
निकल आये पर तो
उन्ही हाथों को छुड़ाकर
उड़ गये इतना ऊंचे
कि अब हाथ बढ़ाने पर भी
हाथ नहीं आते वो
प्रवासी पंछियों की तरह
यदा-कदा चले आते
काटने प्रतिकूल हालात
फिर लौट जाते जड़ों से दूर
कि सीख गये हैं जीना
होकर विलग उस पेड़ से
जन्मे थे जिससे कभी
नन्हीं शाखा जैसे
शायद, जहाज के पंछी सम
लौट आये फिर कभी
हो जब अहसास उनको कि
परिंदों बिन नीड़ उदास
या बुलाये वो नाल
जिसे गाड़ा था जन्मते ही
कि नहीं आसां किसी के भी लिये
जो कर सके मिट्टी की पुकार अनसुनी ।।

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२२ जून २०१८

गुरुवार, 21 जून 2018

सुर-२०१८-१७१ : #योग_से_हो_हर_दिन_की_शुरुआत #बन_जायेगी_सबकी_हर_बिगड़ी_हुई_बात




बदलते परिवेश और जीवन शैली की वजह से हम प्रकृति से दूर होते जा रहे जिसकी वजह से बीमारियों के नजदीक होते जा रहे हैं ऐसे में प्रकृति से अपनाया गया ‘योग’ ही एकमात्र उपाय जिसे अपनाकर हम अपने शरीर को रोगमुक्त रख सकते हैं और पंचतत्वों से बने अपने तन को प्राकृतिक रख सकते हैं क्योंकि, कृत्रिमता हमारी सहजता-सरलता को ही नहीं हमारी स्वाभाविक वृति को भी असहज बना रही हैं जिसका भले अभी हमें अहसास नहीं लेकिन जब तक होता तब तक बहुत देर हो जाती हो और हम डॉक्टर की शरण में पहुंच चुके होते हैं

हमारे ऋषि-मुनियों ने प्रकृति को गोद में रहकर जीवन के ऐसे रहस्य खोजे जिन्होंने उनको स्वस्थ सुंदर देह के साथ-साथ मानसिक सृदृद्ता ही प्रदान नहीं की बल्कि, दीर्घायु भी प्रदान की और सेहत के इन सूत्रों को उन्होंने अपने ग्रथों में भी सहेजकर रख दिया ताकि हम सब लंबे समय तक इसका लाभ ले सके परंतु, इनकी उपयोगिता को समझने की बजाय हमने इसे किताबों में ही रखा रहने दिया पर, अब जब घर-घर इसके महत्व को समझने लगा और विदेशियों ने भी इसे स्वीकार तो ये ‘विश्व योग दिवस’ बन गया जिसने एक बार पुनः हमें ‘विश्व गुरु’ के पद पर आसीन कर दिया ।

यूँ तो हमारे भी दिन की शुरुआत ‘योग’ से ही होती पर, आज विशेष दिन होने की वजह से लगभग पूरा दिन इसके सानिध्य में गुजरा और लगातार अलग-अलग स्थानों पर प्रशिक्षक के रूप में आयुष मंत्रालय से प्राप्त योग अभ्यास क्रम के प्रोटोकॉल अनुसार इसे कराने का भी सौभाग्य प्राप्त हुआ तो संपूर्ण शरीर नूतन ऊर्जा से भर गया और इसके द्वारा प्राप्त स्कारात्मका ऊर्जा ने बड़े दिन को और लंबा बना दिया ।

सभी अपने जीवन में प्रथम सुख निरोगी काया को पाने इसे न केवल अपनाये बल्कि दूसरों को भी इसके प्रति जागरुक करने कृत संकल्पित हो इसी के साथ सबको ‘अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस’ की अनंत शुभकामनायें...☺ ☺ ☺ !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२१ जून २०१८

बुधवार, 20 जून 2018

सुर-२०१८-१७० : #शरणार्थी_बनकर_जीना #घूंट_घूंट_पलायन_होने_का_जहर_पीना



ये भी एक सत्य हैं कि ‘शरणार्थी’ बनकर हम सब इस दुनिया में आये लेकिन, जहाँ हमने जन्म लिया, जहाँ पले-बढ़े, पढ़े-लिखे, बड़े होकर अपने पैरों पर खड़े हुये उसे अपना समझने लगते, उससे प्यार करने लगते और उससे दूर होने के ख़्वाब से भी डरने लगते क्योंकि, वो धरती, वो घर, वो जगह, शहर, पास-पड़ोस सब अपने हो जाते उनसे एक नाता जुड़ जाता और वो पता हमारी पहचान बन जाता ऐसे में यदि किसी भी कारणवश उससे दूर जाना पड़ता या उसे छोड़ने को मजबूर होना पड़ता या फिर उससे बिछड़ना पड़ता तो ऐसी स्थिति को सहन करना या उससे सामंजस्य बिठाना हमारे लिये बेहद कठिन होता

ऐसे में ये ख्याल आना स्वाभाविक कि हमने तो कभी स्वप्न या कल्पना में भी ऐसा विचार नहीं किया कि हमें अपने घर या वतन से विलग होना पड़ेगा तो इस आपातकालीन स्थिति को स्वीकार करना तन-मन दोनों के लिये ही कष्टदायी होता उस पर ये तो और भी चिंताजनक कि हमे कहाँ जाये, क्या करें, कौन हमें अपनायेगा और सबसे बड़ी दुखदायी बात कि ‘शरणार्थी’ के ठप्पे के साथ जीना मतलब घूंट-घूंट अपमान का ज़हर पीना जो मृत्यु सम पीड़ादायक होगा फिर भी कभी-कभी कुछ लोगों को ऐसे ही अपना जीवन व्यतीत करना पड़ता हैं जिसे समझना या महसूस कर पाना हमारे वश की बात नहीं कि हमने इसे जिया नहीं

उन्हीं को समर्पित हैं आज का दिन जिसे कि ‘विश्व शरणार्थी दिवस’ के रूप में मनाने का उद्देश्य केवल इतना कि हम उनकी वेदना को समझ पाये, उनके दर्द को बाँट पाये जो इस तकलीफ़ से रात-दिन गुजर रहे हैं परंतु, हमें अहसास भी नहीं कि हम तो अपनी दिनचर्या में व्यस्त लेकिन एक दिन तो हम उनकी इस पीड़ा को महसूस कर सकते उनके दुखों को साँझा कर सकते और उनको अपनेपण का अहसास देकर उनके भीतर ये विश्वास जगा सकते कि वे भले पराये हैं लेकिन, अब जबकि उन्होंने इस जगह को अपना ही लिया तो फिर हमने भी उन्हें अपना मान लिया हैं और संविधान ने भी उनके लिये व्यवस्था बनाई हैं तो उनको इस परिस्थिति को न चाहते हुये भी स्वीकार कर उसके अनुरुप अपने आपको ढाल लेना चाहिये

आखिर, जीवन तो अंतिम सांस तक चलना हैं तो फिर उसे समय से पहले क्या गंवाना या उदास होकर बिताना बेहतर कि उससे समझौता कर उसमें ही मुस्कुराना सीख ले फिर मजबूरी या दूरी हमें उतना त्रास न दे सकेगी तो इस दिवस के महत्व को समझते हुये ही इसके प्रति दूसरों को जागरूक करें... ☺ ☺ ☺ !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२० जून २०१८

मंगलवार, 19 जून 2018

सुर-२०१८-१६९ : #माना_शादी_जरुरी_हैं #मगर_नहीं_मजबूरी_हैं



मंगली हैं...
मंगली हैं...
सुन-सुन कर
परेशां हो चुकी थी वो
तो उपाय बताया गया कि
करा दो किसी पेड़ से शादी इसकी
फिर न रहेगा व्यवधान कोई
सुनकर चीख पड़ी वो
नहीं करना शादी
माना कि वो जरुरी हैं
मगर, नहीं ऐसी न मजबूरी हैं
बिना ब्याह के क्या ?
खत्म हो जायेगा मेरा व्यक्तित्व
जबकि, मुझसे ही तो हैं
सारी दुनिया का अस्तित्व ।।

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
१९ जून २०१८

सोमवार, 18 जून 2018

सुर-२०१८-१६८ : #रोक_न_सकी_जिसके_कदम_मौत_की_खाई #ऐसी_थी_अद्भुत_हिम्मत_की_धनी_रानी_लक्ष्मी_बाई




कोमल थी कमजोर नहीं
सबला की परिभाषा नई गढ़ी
अदम्य शौर्य और पराक्रम से अपने
नारी की पारंपरिक छवि तोड़ी
माँ होकर भी खतरों से बिल्कुल न डरी
रण में एकदम कूद पड़ी
मृत्यु बनकर शत्रुओं की टूट पड़ी
अंतिम सांस तक लडती रही
भारी सेना देखकर भी न पीछे हटी
तलवार, बरछी, कटार सहेलियाँ थी उसकी
इशारे पर उसके नाचती रही
दे दिये प्राण मगर, न किसी के आगे झुकी
त्याग कर प्राण अपने रानी की झाँसी लक्ष्मी बाई
सदा-सदा के इतिहास में अमर हुई
वीरता-साहस से अपनी नारियों की प्रेरणा बनी
आज 'बलिदान दिवस' पर उनके
नम आँखों से से फिर उनकी कहानी पढ़ी ॥

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
१८ जून २०१८

रविवार, 17 जून 2018

सुर-२०१८-१६७ : #पापा_की_प्रेरक_बातों_का_अहसास #जगाता_मन_में_कुछ_करने_का_विश्वास



माता-पिता दोनों का प्यार व मार्गदर्शन अगर बच्चे को मिले तो उसका पूर्ण विकास होता क्योंकि, जहाँ माँ बच्चे की छोटी-से-छोटी बातों को सुनकर भावनात्मक रूप से सहारा देती देती वहीँ पिता उसका मनोबल बढ़ाने व शख्सियत निखारने में मदद करता तो इस तरह से उसका आंतरिक और बाहरी रूप से संपूर्ण व्यक्तित्व उभरकर सामने आता और उनकी भूमिकाओं का भी उसके भावी जीवन पर प्रभाव पड़ता जिस तरह से उनका एक-दूसरे के प्रति परस्पर व्यवहार होता उसी तरह से उसके मन में अपने भविष्य की तस्वीर भी बनती हैं

यदि उसके पालकों के बीच आपसी सामंजस्य सही न हो या उनके रिश्तों का तालमेल गड़बड़ हो तो उनकी संतान उस नकारात्मक वातावरण में रहकर हीन भावना की शिकार हो जाती और कभी-कभी तो ये भी देखने में आता कि उसके भीतर आत्मविश्वास की कमी होती क्योंकि, रोज-रोज की घरेलू कलह से उसके मन में निर्णय लेने ही नहीं बल्कि, दुनिया का सामना करने की भी हिम्मत में कमी आती और रिश्तों के प्रति भी कहीं न कहीं आशंका घर कर लेती जिसकी वजह से अक्सर, वे किसी स्थायी बंधन में बंधने से डरते हैं

यूँ तो माँ एकाकी ही बच्चे का जीवन संवारने में सक्षम होती लेकिन, यदि दोनों अपनी निश्चित भूमिकाओं का निर्वहन कर उसका पालन-पोषण करते तो ऐसी संतान दोनों का बराबर साथ पाकर ऐसे बड़ी होती जिस तरह धरती व गगन के मध्य सही संतुलन से प्रकृति फलती-फूलती और अपनी जड़ें जमीन में जमाकर रखती तो उपर उठकर आकाश को भी छूती ऐसे ही बच्चे भी माँ की गोद में रहकर जहाँ अपनी धरातल से दूर नहीं होते वहीँ वे पिता के कंधे पर बैठकर कामयाबी की हर ऊँचाई को छूने की समर्थ रखते हैं    

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माँ की लोरी
पिता की थपकी
माँ की ममता
पिता का लाड़-दुलार
माँ की नसीहत
पिता की डांट-फटकार
माँ के संस्कार
पिता के जीवन मूल्य
माँ के कर्तव्य
पिता के पारिवारिक फर्ज़
माँ का ज्ञान
पिता का मार्गदर्शन  
दोनों का संतुलित व्यवहार
तय करता संतान का भावी जीवन
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अपने जीवन के हर एक क्षेत्र में पूर्णतया सफ़ल व्यक्ति के बैकग्राउंड में यदि हम झांके तो पायेंगे कि उसके सशक्त व्यक्तिव में उसके पारिवारिक पृष्ठभूमि की महत्वपूर्ण भूमिका होती जिसमें माँ अकेले ही नहीं पिता का भी योगदान होता और जब इन दोनों के दायित्वों का पलड़ा सम पर होता तो संतान का जीवन भी एकदम सधा हुआ होता इसलिये हर एक बच्चे के जन्म के आदमी को पिता बनने की अपनी भूमिका की तैयारी बहुत सोच-समझकर कर लेना चाहिये न कि माँ पर भार लादकर निश्चिंत हो जाये तभी तो पितृ दिवस पर हर एक बच्चा अपने पिता को सच्चे मन से कहेगा... हैप्पी फादर्स डे... ☺ ☺ ☺ !!!
               
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
१७ जून २०१८

शनिवार, 16 जून 2018

सुर-२०१८-१६६ : #चाँद_तो_एक #मगर_अहसास_अनेक



अहसास – ०१ : तीस दिन के रोजे के बॉस रोजेदारों की नजर आसमान पर टिकी थी कि दूज का चाँद नजर आये तो वो ख़ुशी से झूमकर रमदान का जश्न मनाये मीठ-मीठी सिवई बनाये अपने सभी रिश्तेदारों व दोस्तों को बुलाये फिर सब मिल-बाँटकर ख़ुशी-ख़ुशी खाये नाचे-गाये आखिर, इतने दिनों तक नियम से रोजे रखे तो उसका समापन भी तो जोरदार होना चाहिए इसलिए सब ईद का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे जिसके लिये चाँद की मंजूरी जरूरी थी जब तक उसकी मुहर न लगे तब तक त्यौहार का आगाज़ तो हो ही नहीं सकता न तो बस, फ़लक को बड़ी आशा भरी नजरों से सब निहार रहे थे

अहसास – ०२ :सादिया’ को भी इंतजार था ‘चाँद’ का पर आसमान वाले नहीं उसका जो सरहद पार बैठा हैं देश की रक्षा के लिये ताकि, वो और उसके जैसे सब लोग चैन की नींद सो सके तो अपने उस देशभक्त शोहर और उसकी देशभक्ति पर नाज़ करती ‘सादिया’ बहुत खुश थी कि ईद का चाँद केवल रोजे वालों के लिये ही खुशियों की सौगात बनकर नहीं आयेगा बल्कि, उसके लिये तो सबसे बड़ी खुशखबरी लायेगा क्योंकि, ये दिन ही ऐसा कि ‘जोहेब’ को ऐसे भले छुट्टियाँ न मिले पर इस पर्व पर तो जरुर मिलती हैं और ये ईद तो वैसे भी ख़ास कि इस दिन उनकी शादी की पहली सालगिरह जो पड़ने वाली हैं

अहसास-०३ : उधर सरहद पर बैठा ‘ज़ोहेब’ तो दिन-रात की भी खबर न रखता बस, एक ही फ़िक्र कि उसके वतन पर कोई गद्दार नजर न डाले और यदि डाले भी तो उसकी गोलियों से बचकर न जा सके तो बड़ी मुस्तैदी से अपनी ड्यूटी अदा करता और जब भी थोड़ा-बहुत समय मिलता अपनी ‘सादिया’ को याद कर मन ही मन तरगों के माध्यम से अपना संदेश भेज देता तो कभी मोबाइल पर भी देख और सुन लेता पर, रूबरू मिलने का मौका तो बस ईद पर ही मिलता तो उसके लिये भी ये ‘चांद’ बेहद ख़ास था हो भी क्यों न वो दो बिछड़ों के मिलन का साक्षी जो बनने वाला था

अहसास – ०४ : छोटे-छोटे बच्चों को चाँद से ज्यादा ईद का इंतजार था लेकिन, बिना चाँद के दीदार के उसका आना मुमकिन नहीं तो वो सब भी हाथ उठाकर यही दुआ मना रहे थे कि चाँद जल्दी-से-जल्दी निकल आये और ईद मनाये जाने की मुनादी हो तो उनको भी खाने-पीने और नये-नये कपड़ों के अलावा ईदी का भी नजराना मिल जाये तो उनकी भी निकल पड़ेफिर हो उन्होंने सोचा हुआ हैं वो खरीद कर वे भी दोस्तों को दिखाये उनके साथ खेलें याने कि ईद पर सबको ही कुछ न कुछ मिलना था तो जिसे देखो वही बस, ‘चाँद’ इंतजार में पलक पांवड़े बिछाये बैठा था आखिर, वो कौन हैं जिसको ‘बोनस’ से प्यार नहीं होता वैसे भी कुछ एक्स्ट्रा मिले तो अच्छा ही लगता हैं न तो यही सबके अपने-अपने इंतजार की वजह थी

अहसास – ०५ : इससे इतर भी कुछ लोग थे जो देश-दुनिया या मानवीयता से परे होकर खुद को आतंकी कहलाना पसंद करते और कहीं भी चैनों-अमन या ख़ुशी का वातावरण हो तो उन्हें रास नहीं आता कि शैतान की औलाद का तो एक ही काम सबको परेशान करना तो वे भी इस इंतजार में थे कि इस बार चाँद निकलने से पहले ही उनको अपना टारगेट पूरा कर ईद से पहले ईद मनाना हैं जिसके लिये उनका निशाना ‘ज़ोहेब’ था जो इस छुट्टी पर घर जाने वाला था तो उसे अगवा कर के अपने मतलब की जानकारी निकाल बेदर्दी से मारना हैं ताकि, उनके संगठन का खौफ़ बरकरार रहे तो अपने मंसूबों को पूरा करने वे उस राह पर जाकर बैठ गये जहाँ से ‘ज़ोहेब’ और ‘सादिया’ के दिली अरमानों की डगर गुजरती थी जो खून से लालम-लाल होकर ईद के ‘चाँद’ के धब्बे को गहरा कर गयी थी ।

उसके बाद चाँद भी निकला ईद भी आई मगर, मीठी सिवई में कसैला स्वाद घुल चुका था चूँकि देश का बेटा मरा था तो सबके लिये ये मातम का वक़्त था ऐसे में ‘ज़ोहेब’ का परिवार अपना फर्ज़ निभाने सामने आया और बोला कि... ‘बेशक, चाँद हमारे घर का चला गया जरुर लेकिन, देश के चाँद को ग्रहण नहीं लगने दिया हमने सबको ईद मुबारकबाद हो’ ☺ ☺ ☺ !!!


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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
१६ जून २०१८

शुक्रवार, 15 जून 2018

सुर-२०१८-१६५ : #लघुकथा_मम्मी_का_डायपर




कायरा ने ऑफिस से लौटकर घर में कदम रखा ही था कि, भीतर से सासू माँ की जोर-जोर से बोलने की आवाज़ सुनाई दी तो मामला समझने के लिये वो दबे पांव दीवार से सटकर खड़ी हो गयी और खिड़की से झांककर देखा तो दोनों जेठानी मुंह झुकाये खड़ी थी और सासू जी गुस्से में उनसे कह रही थी...

किसकी हरकत हैं ये बोलो, अब मुंह में दही जमाये क्या बैठी हो ? माना कि वो राजकुमारी अभी-अभी इस घर में आई ज्यादा दिन नहीं हुये पर तुम दोनों को तो यहाँ बरसों-बरस गुजर गये फिर भी इस घर के रीति-रिवाज़ नहीं पता या उस महारानी की तरह खुद को भी अमरीका रिटर्न समझने लगी जो संस्कार भूलकर खुलेआम इस तरह की चीजों को कहीं भी पटक दो क्या ये नहीं पता घर में छोटे-छोटे बच्चे और तुम लोगों के देवर व ससुर भी रहते हैं ये सब देखकर वो क्या सोचेंगे कि बहुएं लाज-शर्म भूलकर इतनी मॉडर्न हो गयी कि अपनी माहवारी का यूँ खुलेआम प्रचार करती हैं

ये बात सुनकर उसे मामला समझ में आया कि सुबह जब वो ऑफिस को निकल रही थी तब अचानक उसे पीरियड आने का अहसास हुआ तो जल्दबाजी में पैड लेकर उसने पैकेट सोफे पर ही छोड़ दिया था जो शायद, सासू माँ के हाथ लग गया और उन्होंने सास-बहु सीरियल का एपिसोड बना दिया अभी वो अपने ख्यालों में लगी थी कि सासू माँ की फिर से जोरदार आवाज़ कानों में पड़ी जिसने उसके ख्याल की कड़ी को तोड़ दिया...

पैकेट को हाथ में उठाये उन्होंने चिल्लाकर कहा, कोई तो बोलो कि ये किसका हैं ? बैठक में क्या कर रहा हैं ? अभी कोई बच्चा आकर इसे उठ ले और पूछ बैठे कि क्या हैं तो क्या जवाब दोगी बोलो, बोलो...     

तभी उन आवाजों को सुनकर छोटी जेठानी का बेटा जो कमरे में सो रहा था बैठक में आ गया और ये सुनकर तपाक से बोल पड़ा, इसमें सोचना क्या बोल देना मम्मी का डायपर हैं जिस तरह हम बच्चों का होता मुझे तो अमरीका वाली चाची ने यही बताया था

ये सुनकर सब आश्चर्य से एक-दूसरे का मुंह देखने लगी और ‘कायरा’ ने चैन की साँस लेते हुये भीतर प्रवेश किया तो उसे देखकर दोनों जेठानियां मुस्कुराई और उन्हें लगा कि, कुछ सवालों के जवाब इतने भी कठिन नहीं होते जितने हम बना देते हैं वाकई न्यू जनरेशन स्मार्ट हैं

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
१५ जून २०१८