बुधवार, 31 अक्तूबर 2018

सुर-२०१८-२९१ : #लौह_पुरुष_एवं_लौह_महिला_के_प्रतीक #सरदार_वल्लभ_भाई_पटेल_और_इंदिरा_गांधी




ये देश अगर बोल सकता तो बताता कि किस तरह के मंजर उसने देखे, कैसे हालातों से वो गुजरा, कितने राजा-महाराजा आये और चले गये, कितने शत्रुओं ने हमले किये और कितनों ने शासन कितनी बार किया, कितनी तरह से हर हुक्मरान ने उसका नक्शा बिगाड़ा उसकी वास्तविक पहचान बदल दी तो कितने उसके टुकड़े कर अलग-अलग हिस्से या देश बना लिये उसकी संतानों के साथ किस तरह दुर्व्यवहार किया गया, कितने जुल्मों-सितम सहने पड़े, कितना उसके साथ खिलवाड़ किया गया और कितने ज़ालिमों ने कितनी बार, कितने तरीकों से उसे समूल मिटाने का प्रयास किया

चूंकि, वो बोल नहीं सकता तो जो हम सबने इतिहास में पढा और जाना उसके आधार पर ये निष्कर्ष निकालते कि आज जो इसका स्वरूप है वो एक दिन में नहीं बना इसे बनाने-संवारने में भी कई लोगों का योगदान है जिसमें सबसे बड़ा व महत्वपूर्ण सहयोग ‘सरदार वल्लभ भाई पटेल जी’ का है जिन्होंने बड़ी कठिन लड़ाई से हासिल हुई आज़ादी के बाद इस देश के टुकड़ों को जोड़कर इसे एक आकार देने में सबसे कठिन पर, सबसे प्रभावी भूमिका निभाई । इसके अतिरिक्त इसे बचाने सजाने-संवारने में भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री ‘प्रियदर्शिनी इंदिरा गाँधी’ की भूमिका को भी नकारा नहीं जा सकता जिनके कुछ अति-महत्वपूर्ण निर्णयों ने ‘सरदार पटेल’ के इस भारत के स्वरुप को यथावत रखने का प्रयास किया

स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद सबको लग रहा था कि देश की अखंडता को अक्षुण्ण रखना मुश्किल ही नहीं असंभव काम भी है क्योंकि हर रियासत के प्रतिनिधि को ये समझाना कि उसका राज-पाट अब समाप्त हो गया और स्वतंत्रता पश्चात उसे एक सामान्य व्यक्ति या भारतीय नागरिक के रूप में ही अपना जीवन गुजारना होगा कहने में जितना सरल लग रहा उतना ही दुष्कर उसे आत्मसात करना होगा तो इस नामुमकिन काज के लिये लौह पुरुष कहलाने वाले असाधारण व्यक्तित्व के धनी ‘सरदार वल्लभ भाई पटेल’ को चुना गया

उन्होंने भी एड़ी-चोटी का जोर लगाकर जहां जिस तरह से संभव हुआ उस तरह से उन हुक्मरानों को अपना साम्राज्य छोड़कर एक देश, एक शासन के लिये तैयार किया और वो कर दिखाया जिसने उनका कद इतना बड़ा बना दिया कि उनके द्वारा किये गये उस चमत्कार को सम्मान दिलाने विश्व में उनकी इतनी ऊंची प्रतिमा बनवाई गई जो ये दर्शा सके कि इस व्यक्ति के योगदान की ऊंचाई इतनी अधिक है जिसके समकक्ष कोई खड़ा नहीं हो सकता क्योंकि, यदि वे नहीं होते तो चाहे जो होता पर, देश का जो स्वरूप हम सब आज देख रहे वो कतई नहीं होता ।

इसी तरह ‘इंदिरा प्रियदर्शिनी गांधी’ का बाहरी व्यक्तित्व भी आम महिला से न केवल भिन्न बल्कि, आंतरिक रूप से इतना मजबूत व सक्षम था कि उन्होंने बाल्यकाल से ही अपनी उस नैसर्गिक क्षमता का प्रदर्शन करना शुरू कर दिया भले ही वो अपने साथियों के साथ बनाई गई 'वानर सेना' हो या स्वतंत्रता संग्राम के लिये चलाये जाने वाले अभियानों में भागेदारी उन्होंने अपनी सूझ-बूझ व बुद्धि से अपनी उम्र ही नहीं अपनी बिरादरी से आगे बढ़कर काम किया जिसने उनके अंदर हौंसलों का ऐसा इस्पात भर दिया कि वे महिला होते हुए भी आयरन लेडी कहलाई गयी

जिसकी वजह उनके विपरीत परिस्थितियों में लिये गये सटीक निर्णयों को जाता है जिन परिस्थितियों में पुरुष बुद्धि भी सोचना-समझना छोड़ देती या उसे आगे राह दिखाई नहीं देती वहां वे अपनी प्रखर बुद्धि व गंभीर विवेक से ऐसा आंकलन कर लेती जो उनके फैसलों को प्रभावशाली बना देता तो उनकी तेजस्विता को भी बढ़ा देता जिसके आगे टिक पाना सबके वश की बात नहीं क्योंकि, भीतर का तेज बाहर चेहरे ही नहीं वाणी में भी ऐसा ओज भर देता जिसे सहन कर पाना सबके बूते की बात नहीं होती

ऐसे में सामने वाले के पास हथियार डालने के सिवा कोई विकल्प नहीं होता तो जब वे भारत देश की प्रथम महिला प्रधानमंत्री बनी तो उनके कार्यकाल में उनको कुछ ऐसी प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करना पड़ा जहां कोई भी चूक या छोटी-सी भी गलती एक तरफ जहां देश की अस्मिता को नुकसान पहुंचा सकती थी तो वहीं दूसरी तरफ देशवासियों की एकता-अखंडता को भी खंडित कर सकती थी पर, उनके पास ऐसी कोई दिव्य शक्ति या ईश्वरीय आशीर्वाद था कि वे उनसे न केवल बाहर निकली बल्कि, इतिहास में अपने उस साहसिक कदम हेतु अपना अलग स्थान बनाया व नया कीर्तिमान भी स्थापित किया जिससे आगे निकलना अभी किसी के बूते की बात नहीं ।

आज जहां लौह पुरुष की जयंती 'एकता दिवस' तो लौह महिला की पुण्यतिथि भी साथ-साथ मनाई जा रही है । भले ही दोनों ही सदेह उपस्थित नहीं पर उनकी अदृश्य काया हमारे आस-पास मौजूद है उनके इस महत्वपूर्ण दिवस पर उनको शत-शत नमन... !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
३१ अक्टूबर २०१८

मंगलवार, 30 अक्तूबर 2018

सुर-२०१८-२९० : #हो_कोई_कार्यक्षेत्र_कोई_प्रतिभा #हासिल_करें_उसमें_अपनी_विशिष्टता




भारत को यूं ही परम पावन पवित्र भूमि नहीं कहा जाता देवों, ऋषि, मुनियों की तपस्थली है जहाँ उनके द्वारा अर्जित ऊर्जा व परोपकारी कर्म की गूंज समस्त वायुमंडल में विद्यमान है जो यहाँ रहें वालों को सदैव सत्कर्मों की तरफ प्रवृत करती तभी तो देवता भी यहां जन्म लेने को तरसते है यहां के कण-कण में जिस तरह अलग-अलग रंग, स्वाद, भाषा, वेशभूषा के होते हुये भी जो एकरूपता दिखाई देती वही तो इसे अनेकता में एकता का प्रतिबिंब बनाती है जिसकी वजह से समस्त मानचित्र में यही एक देश अलग दिखाई देता और अपनी इन्हीं विशेषताओं की वजह से इसने खुद को ‘विश्वगुरु’ बना लिया ।

यूं तो इस धरा पर आना ही अपने आप मे पुण्य का उदय समझा जाता क्योंकि, कुछ महान विभूतियों ने देह धारण कर अपने जीवन को होम कर कुछ ऐसा कर दिखाया स्वदेश की खातिर जिसने इन्हें अपने वतन की पहचान के रूप में स्थापित कर दिया और कहीं भी इन नामों का लिया जाना मतलब निश्चित ही वहां भारत का गुणगान हो रहा है इन्होने इश्वरप्रदत्त प्रतिभा का भरपूर उपयोग करते हुये सदैव ऐसे समाजोपयोगी, देशहित कार्य किये जिसने देश का नाम विश्व पटल पर उजागर किया उसकी छवि को उज्ज्वल किया इन्होने अपना सर्वस्व देश को न्यौछावर कर दिया इस तरह अपनी जन्मभूमि के प्रतिनिधि बन माटी का ऋण चुकाया ।

हर व्यक्ति का रुझान व कार्यक्षेत्र अलहदा होता जहाँ वो अपनी विशिष्टता की वजह से कुछ ऐसा अद्भुत कारनामा कर जाता कि उसका पर्याय बन जाता ऐसा ही उल्लेखनीय सर्वजन हिताय काम किया स्वामी दयानंद सरस्वती, वी. शांताराम, डॉ होमी जहाँगीर भाभा एवं बेगम अख्तर ने अपने-अपने कार्यक्षेत्र में जहाँ इन्होने अपनी ऐसी छाप छोड़ी कि आज भी यदि कोई धर्म, विज्ञान, फिल्म एवं संगीत का नाम ले तो स्वतः ही ये नाम जेहन में आते जो अपने समय में अपनी कर्मभूमि में शीर्ष पर विराजमान रहे और जब यहाँ से गये तो अपनी अमूल्य धरोहर, अपनी विरासत अपनी आने वाले संतति के लिये निशानी स्वरुप छोड़ गये जिससे वे सीखकर उसे न केवल आगे बढ़ा सके बल्कि, उसे समयानुसार परिवर्तन कर उसे अपडेट भी कर सके जिससे कि वो परिमार्जित होकर पीढ़ी दर पीढ़ी स्थानांतरित होता रहे  


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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
३० अक्टूबर २०१८

सोमवार, 29 अक्तूबर 2018

सुर-२०१८-२९० : #वास्तविक_नारीवाद_का_चेहरा_बनी #कमलादेवी_चट्टोपाध्याय_इतिहास_में_यूँ_उभरी




आज भी जब देश की अधिकांश प्रगतिशील महिलाओं को ‘फेमिनिज्म’ का वास्तविक अर्थ नहीं पता और वो इसे दैहिक स्वछंदता, यौनेच्छा पूर्ति, आधुनिक सोच, पाश्चात्य सभ्यता, अर्धनग्न परिधान, आर्थिक स्वतंत्रता या लैंगिक समानता या पितृसत्ता से मुक्ति में ही तलाशती है वही इस धरा पर कुछ स्त्रियाँ ऐसी भी हुई जिन्हें न तो इस शब्द के मायने पता थे न ही वो ऐसी किसी मुहीम का हिस्सा ही रही लेकिन, उन्होंने अपने जीवन में कुछ ऐसा किया जिसने ये दर्शाया कि ‘फेमिनिज्म’ कोई सुनियोजित या तयशुदा प्रारूप नहीं जिसे अपनाकर उसे हासिल किया जा सकता बल्कि, ये तो देश, काल, परिस्थिति के अनुसार बदल जाता अतः हमें पश्चिम की विचारधारा को उनके नहीं अपने चश्मे से देखना चाहिये तभी वो भारतीय परिवेश में सफल हो सकता है

किसी भी औरत के जीवन में सही समय पर अपने लिये निर्णय लेकर धारा के विपरीत चलना लेकिन, न तो किसी को नीचा दिखाना और न ही पुरुष समाज को कोसना या अपनी नाकामियों का दोष देना केवल अपने पथ पर सतत चलते जाना और तयशुदा मुकाम पर पहुँचाना जहाँ जाकर उसे अहसास हो कि उसने जो कुछ किया उसके द्वारा उसने इतिहास रच दिया हैं अनजाने ही उसने अपने देश की नारियों को निश्चित परिपाटी से हटकर चलने का नवीन सूत्र दे दिया हैं जबकि, आज बहुत-सी स्त्रियाँ ये सोचकर कि वो अपने सम्पूर्ण जीवन में कम से कम कोई एक ऐसा कारनामा कर दे जिससे कि उनका नाम चाँद की तरह गगन पर चमक जाये वो कोई सुपर सितारा या आइकॉन बन जाये तब भी कुछ हासिल नहीं कर पाती

इसकी वजह ये है कि वे बीच मार्ग में पड़ने वाली मनमोहक गलियों में भटक जाती जो उन्हें लुभाकर माय बॉडी माय रूल्स, माय लाइफ माय चॉइस, अगेंस्ट पेट्रिओर्की, नो ब्रा- नो पेंटी डे जैसे फ़िज़ूल अभियानों की भूलभुलैया में उलझा देता और वो कुछ इस तरह के #tag को किसी जोरदार क्रांति का आगाज़ समझ उसका हिसा बन जाती जिससे उसकी राह ही नहीं मकसद भी खो जाता इसलिये इतने सालों में भी हम देखते कि ‘रियल फेमिना’ वही बनती जो इन सबसे परे अपने नैतिक मूल्य, अपनी परंपरा, अपनी वैयक्तिक पहचान, सभ्यता-संस्कृति, जन्मभूमि, मातृभाषा हर एक वो चीज़ जो गौरव की वस्तु उसे बिना झटके और जो उसके पथ की बाधक उन सब कुरीतियों से पल्ला छुड़ाकर अपने साथ लिये चलती अनजाने ही नारीवाद का चेहरा बन जाती है        

ऐसी ही एक प्रगतिशील नारी थी ‘कमलादेवी चट्टोपाध्याय’ जिनका जन्म 3 अप्रैल 1903 को मैंगलोर में हुआ और वे बचपन से ही बुद्धिमान थी उनके जीवन में बचपन से ही ऐसी घटनाएँ हुई जो किसी भी लड़की को कमजोर करने या उसके हौंसले तोड़ने काफी थी वो भी उस जमाने माँ जबकि, लडकियों को न तो बोलने या चुनने की आज़ादी थी और न ही अपने दम पर कुछ कर दिखाने की तो ऐसी हालातों में जब वो केवल सात बरस की ही थी कि उनके पिता का देहांत हो गया और उनकी उम्र 14 होते ही उनकी शादी करा दी गई उसके बाद भी कठिनाइयाँ कम न हुई और वे दो साल बाद ही विधवा हो गईं

जिसके बाद उनका असल संघर्ष या वो लड़ाई शुरू हुई जिसने उनको उनके नाम से पहचान दिलाई उन्होंने पहले तो पढाई पर फोकस किया और क्‍वीन मैरी कॉलेज में पढ़ने के दौरान ही उनकी दोस्‍ती 'स्‍वर कोकिला' सरोजनी नायडू की छोटी बहन सुहासिनी चटोपाध्‍याय से हो गई और सुहासिनी ने अपने छोटे भाई ‘हरिन’ से उनको मिलवाया जो एक कवि व नाटककार थे जैसा कि हम जानते है उस वक्‍त का समाज विधवा विवाह के सख्‍त खिलाफ था इसके बावजूद भी तमाम मुश्किलों को झेलते हुए कमला देवी ने 20 साल की उम्र में हरिन के साथ शादी की और उसके बाद दोनों ने मिलकर कई नाटक और स्‍किट तैयार किए यही नहीं ‘कमला देवी’ ने अपने जीवन में कुछ फिल्‍मों में भी काम किया वो भी उस वक़्त जब अच्‍छे घर की लड़कियों और महिलाओं का फिल्‍मों में काम करना अच्‍छा नहीं माना जाता था इस तरह उन्होंने निश्चित राह से अलग अपनी पगडंडी बनाई और जिस पर चलकर वे अपने पति के साथ लंदन शिफ्ट हो गईं

यहाँ पर भी वे खाली नहीं बैठी लंदन यूनिवर्सिटी से उन्‍होंने सोशियोलॉजी में डिप्‍लोमा हासिल किया इसी बीच 1923 में जब उनको महात्‍मा गांधी के ‘असहयोग आंदोलन’ के बारे में पता चला तो वे तुरंत भारत लौटी और आंदोलन का हिस्‍सा बन गईं इस तरह की गैर-सरकारी गतिविधियों का हिस्सा बनकर नमक कानून तोड़ने के मामले में बांबे प्रेसीडेंसी में गिरफ्तार होने वाली वे पहली महिला बनी स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के कारण वे चार बार जेल गईं और पांच साल तक सलाखों के पीछे रहीं और यही नहीं उन्होंने तो मद्रास विधानसभा का चुनाव भी लड़ा हालांकि वो इसमें हार गईं पर, फिर भी कीर्तिमान रच दिया क्योंकि, विधान सभा का चुनाव लड़ने वाली वो पहली भारतीय महिला थी

इसके बाद उन्होंने ‘ऑल इंडिया वुमेन कांफ्रेस’ का गठन किया व सामाजिक सुधार के मद्देनजर कई कार्यक्रमों की शुरुआत भी की तथा उन्‍होंने होमसाइंस की पढ़ाई के लिए दिल्‍ली में ‘लेडी इरविन कॉलेज’ की स्‍थापना की जो कि उस वक्‍त भारत में अपने तरह का पहला कॉलेज था जब 1947 में देश आज़ाद हुआ तो आजादी के बाद भारत-पाकिस्‍तान के बंटवारे के वक्‍त कमालादेवी ने शरणार्थियों को बसाने हेतु महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाई जिसके तहत उन्होंने ‘फरीदाबाद’ शहर का निर्माण कर करीब 50 हजार शरणार्थ‍ियों को बसाया और 1950 के दशक में असंगठित क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित की यही नहीं उन्‍होंने कई सारे क्राफ्ट म्‍यूजियम खुलवाए और इसके साथ-साथ ही ‘नाट्य इंस्‍टीट्यूट ऑफ कथक’ (बंगलुरु), नेशनल स्‍कूल ऑफ ड्रामा (नई दिल्‍ली) और संगीत नाटक अकादमी खोलने का श्रेय भी उन्‍हीं को जाता है

उनके इन अद्भुत कार्यों के लिये उन्हें कई पुरस्‍कारों से सम्‍मानित भी किया गया जिनमें पद्म भूषण (1955), पद्म‍ विभूषण (1987), रमन मैगसेस अवॉर्ड, संगीत नाटक अकादमी फेलोशिप और रत्‍न सदस्‍य शामिल हैं उनके द्वारा हस्‍त शिल्‍प को बढ़ावा देने के लिए उन्‍हें 1977 में यूनेस्‍को ने सम्‍मानित किया अपनी अंतिम साँस तक वे देश व समाज सेवा में जुटी और 29 अक्‍टूबर 1988 को 85 साल की उम्र में उनका निधन हुआ आज उनकी पुण्यतिथि पर उनको ये शब्दांजलि... !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
३० अक्टूबर २०१८

रविवार, 28 अक्तूबर 2018

सुर-२०१८-२८९ : #वायरल_होना_अच्छा_है




महज़ एक दृश्य
आम ही सा था जो
लेकिन, इतना भी नहीं
गाहे-बगाहे ही दिखता
सडक के किनारे
जब कोई मजदूर स्त्री
पीठ पर लादे अपना बच्चा
या पेड़ तले साडी के किनारे बांध
बनाकर झुला झुलाती लाल
फिर भी अब से पहले
शिक्षित नारियों का यूँ दिखना
कल्पनातीत ही था
पर, जब से लांघी दहलीज़
इक मां ने करने पूरी
अपनी दिल की ख़्वाहिश
होकर आत्मनिर्भर
पाकर आर्थिक स्वतंत्रता
भूली नहीं वो
अपनी जिम्मेदारियां
कार्यक्षेत्र के अपने कर्तव्य
निभाना दोनों को संग-संग जानती
नई युग की आधुनिक नारी
चाहे हो मजदूर या फिर अधिकारी
पाकर नारीत्व की खुशियां
नहीं चाहती खोना एक पल भी
नहीं होना चाहती वंचित
उस एक भी मासूम अहसास से
जो मातृत्व को देते मायने
बनाते उसे सम्पूर्ण नारी
देखना चाहती पल-पल बढ़ते
नन्ही-सी जान को हंसते-मुस्कुराते
तो, रखती साथ वो हर जगह
जिगर का अपना टुकड़ा
देती उसे ममता का कोमल स्पर्श
स्नेह भरी उष्ण गोद
आँचल की दूध भरी छांव
जिसके तले पलता निर्भय बचपन
बेखौफ खिलखिलाता हुआ
बिल्कुल, ऐसा ही दिखाई दिया
वात्सल्यता का वो चित्र
तो पड़ते ही नजर
कर लिया कैमरे में कैद उसे
अजनबी फोटोग्राफर ने उसी क्षण
फिर इस वाल से उस वाल
इस समूह से लेकर उस समूह तक
होती रही वो फारवर्ड लगातार
सोशल मीडिया पर हुई वायरल
जिसने भी देखी वो तस्वीर
ठहर गयी उसकी नजर
घूमते-घूमते इधर से उधर सतत
पहुंची वो उस जगह तक
जहां जाकर मिली उसे सार्थकता
उसकी वो पहचान
जिसकी थी उसे दरकार
बिना मांगा इंतज़ार
पाया उस मां ने उसके जरिये
अपने घर के नज़दीक स्थानांतरण
तब पढ़कर वो खबर
आया मन में यही ख्याल
यदि कोई फोटो
या फिर कोई खबर
पहुंच जाए मंज़िल तक अपनी
तो, वायरल होना अच्छा है ।

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२८ अक्टूबर २०१८

शनिवार, 27 अक्तूबर 2018

सुर-२०१८-२८८ : #करें_हमला_ताबड़तोड़ #आ_गया_फिर_करवा_चौथ



बिग बॉस चाहते है कि, आप सब इस बार फिर से अलग-अलग टीम बनाकर अपने टास्क ‘तीज-त्यौहारों का बहिष्कार’ पर मुस्तैदी से जुट जाये...

सभी एक स्वर में बोले, जी हम सब पहले से ही रेडी जो भी मैसेज हमको मिले थे हम सबने एडवांस में ही वायरल कर दिये, ये कोई पहली बार थोड़े न, हम सबको अपना काम अच्छी तरह से पता है बस, आप हमारा ख्याल रखियेगा हमें हर तरह का फेवर देकर    

यदि उसी तरीके से काम करना होता तो हमने तुम सबको यहाँ न बुलाया होता इस बार हमें अपना तरीका बदलना होगा क्योंकि, लोग अब थोड़े समझदार हो गये तो अब विरोध के स्वर उतने तीखे न रखे उनमें जरा-सी मिठास बढ़ा दीजिये जिससे कि उन्हें लगे कि आप उनके बहुत बड़े हितैषी है क्योंकि, उन तरीकों से हम कामयाब नहीं हो रहे अब भी महिलायें न केवल करवा चौथ बल्कि, हर तीज-त्यौहार बड़े उत्साह से मना रही तो ऐसे में स्ट्रेटजी बदलने की जरूरत है

यदि आपके पास कोई प्लान हो तो शेयर करें

तभी ‘बुद्धिजीवी टीम’ का एक सदस्य बोला, बिग बॉस क्यों न इस बार बड़ी बिंदी टीम की कुछ साथी उनमें शामिल होकर उनके समान बातें करे और मेहंदी-वेहंदी लगा सज-धज के साथ अपनी पिक डालकर लिखे कि, ‘मैं भी आज के दिन सजती-संवरती हूँ पर, सब कुछ अपनी मर्जी से अपनी ख़ुशी के लिये करती हूँ न कि पितृसत्ता की परम्पराओं का पालन करने के लिये जो मुझे चरणों की दासी बताती’ इस तरह दो काम होंगे मर्म पर वार भी होगा और उन्हें सपोर्ट भी मिलेगा तो भले कम ही सही पर, कुछ नारियां हमारे पाले में आयेंगी जैसे कुछ को हमने पिछले सालों में अपने साथ कर अपनी संख्या बढ़ाई थी अगले साल फिर कुछ नया सोचेंगे

मीडिया टीम कब पीछे रहती उसने भी अपने सुझाव दिये कि, हम कुछ ऐसी कहानियां व महिलाओं को सामने लायेंगे जो बतायेंगी कि पुराने समय में औरतें इसलिये पति की लम्बी उम्र की कामना व व्रत करती थी क्योंकि, वो अकेला कमाता अब जबकि, वे स्वयं आत्मनिर्भर तो ऐसे में किसे व्रत करना चाहिये आप खुद बताईये इस तरह प्रश्न करने से वे सोचने पर मजबूर होंगी और हमारा तीर निशाने पर लग जायेगा

‘बिग बॉस’ ये सब सुनकर खुश हुये और आदेश दिया कि आज से अभी से इस पर अमल किया जाये उसके बाद आगे के त्यौहारों पर भी तो फोकस करना है तो सबको इस दिन की बहुत-बहुत बधाई कि, यदि ये दिन न होते तो हम क्या करते

सबने एक साथ जोर का अट्ठाहस किया... ☺ ☺ ☺ !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२७ अक्टूबर २०१८

शुक्रवार, 26 अक्तूबर 2018

सुर-२०१८-२८७ : #भारत_में_चल_रहा_अजब_खेल #हिन्दू_को_मिलती_जेल_और_ईसाई_को_बेल




Reporter ask to bishop :
What kind of fun you have in church ?
He replied : Nun.

ये भले एक जोक है लेकिन, सच्चाई कुछ ज्यादा अलग नहीं बस, अंतर केवल इतना है कि जब हिन्दू धर्म का मजाक उड़ाया जाता तो सब चुप रहते मगर, दूसरे मजहब का नाम भी ले लो तो हल्ला मच जाता है उसी का परिणाम का जब 'केरल नन रेप केस' सुर्खियों में आया तो मीडिया हो या बॉलीवुड की बिकाऊ अभिनेत्रियां या फिर फेक फेमिना या मोमबत्ती गैंग या अवार्ड वापसी गैंग या फिर सेक्युलर गैंग किसी ने इस मामले पर चू-चां तक नहीं की इससे यही महसूस हुआ कि, उनके कानों में वकेवलही आवाज़ें या मसले जाते जिनका संबंध हिन्दू धर्म से हो उसके अतिरिक्त सभी तरह की घटनाओं पर उनके मुंह में टेप चिपक जाता, हाथों में हथकड़ियां बंध जाती और कान में रुई या ईयर फोन ठूंस जाता और सभी ज्ञानेन्द्रियाँ एकदम से काम करना बंद कर देती है

इसलिये जब किसी भी मुद्दे पर कोई शोर न हो, भीड़ न हो, कैंडल मार्च न निकले तो लोगों को लगता यूं ही कोई साधारण-सी बात होगी तो वे भी ध्यान नहीं देते इसका परिणाम कि दूसरे मजहब के लोग सिर्फ नौकरियों ही नहीं दुष्कर्म या अपराध में भी आरक्षण पाकर ऐश करते जबकि, हिन्दू धर्म का चोला पहनने वाले सब जेल में सड़ रहे बेल तो दूर सुनवाई तक न हो रही क्या इतना काफी नहीं ये समझने के लिये कि देश में बहुत कुछ विदेशी एजेंसियों द्वारा सुनियोजित तरीके से संचालित किया जा रहा है जिस पर पहले यकीन नहीं होता था पर, अब लगातार जब इस तरह के सभी मामलों की पड़ताल की तो यही समझ आया कि आप सब जो अपने बच्चों को ईसाई मिशनरीज संचालित स्कूलों में पढ़ाते उसी फीस से वे आपको कुचलने का प्लान बनाते

इसके साथ ही सबको बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का ब्रांडेड सामान ही चाहिए चाहे रुपया गिरते-गिरते खत्म ही न हो जाये हम सबके इसी अंग्रेजी भाषा व प्रोडक्ट के मोह के कारण इस तरह की स्थितियां निर्मित हो रही जिससे देश ही नहीं उसकी सभ्यता-संस्कृति खतरे में पड़ती जा रही है कोई भी ये सब देखने-सुनने को तैयार नहीं जिसकी वजह से इन स्कूल्स व आयातित उत्पादों की संख्या में दिनों-दिन इजाफा हो रहा और हर कम्पनी का टारगेट एकमात्र भारत देश ही होता जिसके दम पर वे फलती-फूलती पर, रुपया कमजोर होता है हर सर्वे में भारत ही पहला आता चाहे इंटरनेट चलाने वालों का हो या ऑनलाइन शौपिंग या फिर सोशल मीडिया में उपस्थिति या यु-ट्यूब पर विडियो देखना हो  

इन सबमें गौरतलब है कि, ईसाई मिशनरीज अपना काम इतने गुप्त तरीके से शांति से दीमक की तरह जड़ों में घुसकर करती कि जब आपके पांव के नीचे से जमीन खिसकने लगती तब आपको अहसास होता अन्यथा आप सोते ही रहते है इसलिए बेफिक्र होकर सोइये चादर तानकर पर, वे चौकन्ने होकर अपना काम कर रहे जिस पर आपकी चुप्पी ने ये साबित कर दिया कि आपको फर्क नहीं पड़ता वे अपने खरीदे बुद्धिजीवियों से कलम के जरिये आप पर हमला करवाये या आपके ही धर्म के संत-महात्माओं को जेल करवाये या फिर आपकी नाक के नीचे ही धर्म परिवर्तन करवाये आपकी इस सोने की आदत से भलीभांति परिचित वे तभी तो शातिर तरीके से जाल बिछाने में जुटे हुये है ।

ज्यादा पुरानी बात नहीं जब ‘कठुआ रेप केस’ प्रकरण सामने आया था जिसकी कितने व्यवस्थित तरीके से मार्केटिंग की गई थी कि टी-शर्ट, पोस्टर, कार्टून्स, जोक्स, पोस्ट्स, हिन्दू धर्म के खिलाफ माहौल यहां तक कि पीड़िता का नाम भी उजागर कर दिया गया था उस वक़्त तो हर किसी ने उसके नाम व चित्र के साथ अपने प्रोफाइल को सजा लिया यूं लगा कि अब इसके बाद तो किसी की हिम्मत न होगी दुष्कर्म करने की इस तरह से मामले को प्रायोजित किया गया (यहां प्रायोजक का नाम बताने की जरूरत नहीं यदि आप समझदार है और यदि नहीं तो जानकर ही क्या कर लीजिएगा) तो सभी नायिकाएं देवस्थल को इंगित करती तख्ती लेकर खड़ी हो गयी जिसमें साफ दिख रहा था इनका उद्देश्य पीड़िता को न्याय दिलवाना नहीं है और न ही उन्हें उससे सहानुभूति ही है अन्यथा अब तक तो उसके अपराधियों को फांसी पर लटक जाना था

चूंकि इसका संबंध कहीं न कहीं हिंदुओं से जुड़ा था तो इस तरह से हर किसी ने इस पर अपने विचार रखे मानो हिन्दू धर्म व उसके स्थान सब दुराचार के अड्डे और वे जीत गये क्योंकि, एक मासूम बच्ची के साथ हुए अत्याचार पर कोई पापी या शैतान ही विपक्ष में अपनी राय रखेगा तो सबने उनका साथ दिया किसी ने यदि नहीं भी दिया तो उनके खिलाफ न लिखा और न ही उनके आन्दोलन को कमजोर किया सबने आपत्ति केवल हिन्दू धर्म की खिलाफत करने पर जताई जिसे बेहद कुटिल तरीके से खारिज किया गया क्योंकि, उस समय उनका टारगेट यही था और कोई भी चालाक शिकारी कभी अपने लक्ष्य से नहीं भटकता जबकि, उसकी जेब में उसे निशाना लगाने को कहने वाले के दिये रुपयों की खनकार गूंजती हो तो वो उसके इशारों पर वही सब लिखता तो वो चाहता

यही सब बिकी हुई कलमों ने बखूबी किया और सबको जेल पहुँचवाकर ही दम लिया और इस तरह वे अपने षड्यंत्र में फिर कामयाब हो गए और हम खुर्राटे भरते रहे जब तक पानी सर के उपर न आ जाये या दुश्मन घर में ही न घुस आये तब तक कुछ भी करना बेकार है ऐसी सोच के साथ जीने पर हम अनेकों बार गुलाम बन गये लेकिन, इतिहास से कुछ न सीखे फिर ऐसे इतिहास को पढ़ने की जरूरत ही क्या जो हमें सतर्क, सजग व जिम्मेदार न बना दे हम तो आज़ादी पाकर यूं मतवाले हुये कि गुलामी को भूल गए तो ज्यादा दिन नहीं जब फिर से किसी के नुमाइंदे बन जाये किसी के आगे मजबूर होना पड़े उससे पहले जागना मना है वैसे ऐसा कहीं लिखा नहीं पर, क्या करें आदत से मजबूर है कुम्भकर्ण तो सिर्फ 6 महीने ही सोता था जबकि, हम तो 24*7 सोये ही रहते है ।

आपको इस तरह नेट व फालतू के मुद्दों में उलझाकर इतने चुपके-चुपके ‘केरल नन रेप  केस’ खामोशी से निपटा लिया गया कि जब आपसे इस बाबत पूछा गया तो आप यूं मुंह ताक रहे जैसे पता नहीं किस देश के किस मामले की बात हो रही है अभी  पिछले महीने 8 सितंबर 2018 को ही तो एक नन ने सात पेजों के पत्र में काफी विस्तृत और भावुक तरीके से अपनी आपबीती लिखी 'कैथलिक चर्च सिर्फ बिशपों और पादरियों की चिंता करता है हम जानना चाहते हैं कि क्या कैनन कानून में महिलाओं और ननों को न्याय का कोई प्रावधान है? चर्च की चुप्पी मुझे अपमानित महसूस करा रही है।' नन ने इसमें पूछा कि, ‘क्या चर्च उन्हें वह लौटा सकता है, जो उन्होंने खोया है’। इसके अलावा नन ने यह भी बताया है कि कब-कब उन्हें शिकार बनाया गया और कैसे उन्हें और उनके समर्थकों को चुप कराने की कोशिशें की गईं। गौरतलब है कि पहले भी बिशप पर नन और उनके समर्थकों को पैसे और संपत्ति देकर मामले को दबाने की बात सामने आई थी। चौंकाने वाली बात यह है कि अपने इस खत में उन्होंने आरोप लगाया है कि बिशप ने पहले दूसरी नन्स के साथ भी ऐसा व्यवहार किया है।

मामला पूरा आईने की तरह साफ था जिसने साबित किया कि कोई देश हो या धर्म या कोई भी बस्ती आपका स्त्रीलिंग होना आपके यौन शौषण के लिए पर्याप्त है पर, जिनके एकाउंट में इस मसले को उठाने या इस पर लिखने को पैसा नहीं आया वो क्यों अपना समय व शब्द खर्च करेगा तो सभी फेक फेमिनाएँ चुप रही यहां तक कि केरल के एक विधायक पी.सी. जार्ज ने पीड़ित नन के खिलाफ बेहद आपत्तिजनक और शर्मनाक शब्दो का इस्तेमाल करते हुए कहा कि इस बात में किसी को शक नहीं है कि नन वेश्या है। उसने 12 बार मजा लिया तो 13वीं बार यह बलात्कार कैसे हो गया ? जब उससे पहली बार रेप हुआ तो उसने पहली बार ही शिकायत क्यों नहीं की”? इसके बाद बिशप के बचाव में उतरा ‘मिशनरीज ऑफ जीसस’ और कहा कि, ‘हर रेप पीड़िता के लिए दोषी से घटना के बाद मिलना मरने के समान होता है, ऐसे में जिस रेप की बात हो रही है, उसके बाद भी वह (नन) बिशप के साथ 20 बार यात्रा पर क्यों गईं’? इतनी बड़ी-बड़ी व घटिया बातें सुनकर भी फेमिनाओं के कान पर जूं तक न रेंगा माना कि जूं नहीं होंगे पर जमीर/ईमान जैसी कोई चीज़ तो होगी पर सुना उसको बेचकर ही ये खिताब हासिल करती तो इस संस्था पर किसी ने उंगली न उठाई

यहां तक कि उन्होंने उस नन की फोटो सार्वजनिक कर दी तो उन्हें लताड़ा गया कि ये गलत है पर, कुठार रेप में पीड़िता का नाम-फोटो सब कुछ ज़ाहिर कर दिया गया था इसमें जिसको किसी साज़िश की बू नहीं आती वो धर्मात्मा शुद्ध आत्मा है पर, हम तो ठहरे पापी तो हमें ये सब अब देश व धर्म के खिलाफ एक गहरा षड्यंत्र प्रतीत होता है । इसके दरमियान ही एक बात देखने में आई कि चारों तरफ से ‘मी टू, मी टू’ की इतनी सारी व इतनी बुलंद आवाजें एक साथ आई कि उस एक नन की आवाज़ इसके बीच घुटकर या दबकर रह गयी जिसका नतीजा कि बिशप को न केवल बेल मिल गयी बल्कि, उनका जोरदार स्वागत भी किया गया और फिर उसके बाद खबर आई कि इस प्रकरण के एकमात्र गवाह रहे ‘फादर कुरियाकोस’ की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गईं फादर कुरीयाकोस के भाई जोस कुरीयाकोस ने इसे हत्या बताते हुये आरोप लगाया कि नन यौन उत्पीडन केस में शिकायत करने के बाद उनके भाई को लगातार धमकियां दी जा रही थी।

आश्चर्य की बात कि इस बार भी सभी गेंग, मीडिया जो हिन्दू संतों के मामले में उनके ख़ुफ़िया ठिकानों से लेकर उनके परिजनों व प्रशंसकों तक पहुँच गये थे ये सब जानने के बाद भी अपने बिग बॉस के आदेशानुसार खामोश ही रहे एक ही तरह के दो केस और दोनो आरोपियों पर अलग कानुनी करवाई कहीं न कहीं ये दर्शाती कि ये संविधान, ये न्यायालय  सिर्फ सेकुलर और अल्पसंख्यकों का है आज देश में रोहिंग्या, राममंदिर, 370, घुसपैठिए, आतंकवाद, अनेक ज्वलंत मुद्दे हैं जिन पर न्यायालय संज्ञान लेते हुए नहीं दिखाई दे रहे हैं बल्कि, वे तो जातिवाद की आग भड़काने वाली या संवेदनशील मुद्दों के अलावा भारतीय संस्कृति को खंडित करने वाली याचिकाओं पर त्वरित प्रभाव से निर्णय दे रहे है क्या अब भी आपको लगता कि इन सबके पीछे कोई साजिश नहीं ?

इतने बड़े मामले के बाद न तो मीडिया ट्रायल हो रहा, न ही पोस्ट्स लिखी जा रही और यहाँ तक कि न तो कैंडल मार्च की जा रही या बॉलीवुड की सशक्त महिलायें तख्ती लिये खड़ी, न ही कहीं दबी आवाज़ में ही सही कोई कह रहा कि, “I am ashamed to be a Christian”. इतने शानदार खेल के लिये ‘बिग बॉस को बधाई तो बनती है... साथ ही इन सभी गेंग के इस बेमिसाल प्रदर्शन के लिये तालियाँ बजती रहनी चाहिये दोस्तों...
  
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२६ अक्टूबर २०१८

गुरुवार, 25 अक्तूबर 2018

सुर-२०१८-२८६ : #फेक_फेमिनिज्म_ने_सिद्ध_किया #नारी_ही_नारी_की_दुश्मन_यही_अटल_सत्य




छद्म नारिवादिता का एक और घिनौना रूप दिखा एक और मुखोटा उतरा वही जो अब से कुछ दिन पहले तक ये साबित करने में लगी थी कि औरत ही औरत की दुश्मन नहीं होती और नारी को भी नारी के रूप-रंग लुभाते है, मोहते है और उनके बीच कोई इर्ष्य या दुश्मनी या छल-कपट या फिर अहंकार जैसी कोई भावना नहीं होती बल्कि, वे तो एक-दुसरे की सच्ची हितैषी व शुभचिंतक होती है

वे तो एक-दुसरे की बात बिना कहे भी बेहद अच्छे से समझती ये तो पितृसत्ता की साजिश जो वो औरतें के बारे में ऐसा बोल उनके बीच दूरियां बढाते उनके मन में ये भ्रम भरते कि वे कभी भी आपस में अच्छी दोस्त नहीं हो सकती जबकि, उनकी दोस्ती तो जग-ज़ाहिर की किस तरह से बे बचपन की सहेलियों को सहेजती एवं हर जगह नई-नई सहेली और रिश्ते बनाती जिन्हें यथसंभव लम्बे समय तक निभाती यदि वे मिलकर न रहे तो इतने बड़े परिवार को संभालना उसे लेकर चलना संभव नहीं होता

इसलिए अब जबकि, ये फेमिनाएं पुरुषों की इस चाल को समझ चुकी है तो वे उनके जाल में नहीं फंसने वाली वे अब पढ़-लिखकर अपने पैरों पर खड़े होकर आत्मनिर्भर ही नहीं आर्थिक रूप से भी स्वतंत्रता पाकर इतनी अधिक सक्षम व सशक्त हो चुकी है कि उनका हर भांडा फोड़ देंगी उनके सभी राजों का पर्दाफाश कर देगी जिसके दम पर वे औरतों को आपस में एक-दुसरे का दुश्मन बताकर उन पर राज करते उन्हें अपनी दासी बनाकर रखते है

ऐसी ही न जाने कितनी बातों से उन्होंने ये साबित करने का प्रयास किया कि जिसे अब तक प्रसारित-प्रचरित किया गया वो झूठ है और स्त्रियाँ एक-दूसरे की दुश्मन नहीं दोस्त हैं उनके इस तरह बार-बार लगातार लिखने से ये लगने लगा कि वाकई औरतों की सोच में बदलाव आ गया है वे अब एक-दूजे को नीचा नहीं दिखाती उनको सपोर्ट करती उनकी सहायक बनती जहाँ जरूरत होती आगे बढकर मदद करती इस तरह से सोशल मीडिया में उन्होंने आपस में मदद कर अनेक अभियानों को सफल बन इस छवि को तोड़ने का हर संभव प्रयास किया जैसे कि, यदि किसी महिला को ट्रोल किया गया तो उसका सफलतापूर्वक बचाव किया जिसने धीरे-धीरे मानसिकता में परिवर्तन कर इस नये मन्त्र को अभी स्थापित करना ही शुरू किया था कि कल इस मिथ्या भ्रम का गुब्बारा फूट गया

केंद्रीय मंत्री ‘स्मृति ईरानी’ ने एक बयान क्या दे दिया कि, ‘‘मैं उच्चतम न्यायालय के आदेश के खिलाफ बोलने वाली कोई नहीं हूं, क्योंकि मैं एक कैबिनेट मंत्री हूं लेकिन, यह साधारण-सी बात है क्या आप माहवारी के खून से सना नैपकिन लेकर चलेंगे और किसी दोस्त के घर में जाएंगे आप ऐसा नहीं करेंगे क्या आपको लगता है कि भगवान के घर ऐसे जाना सम्मानजनक है?  मुझे पूजा करने का अधिकार है लेकिन, अपवित्र करने का अधिकार नहीं है यही फर्क है कि हमें इसे पहचानने तथा सम्मान करने की जरूरत है''

उनके इस बयान के पीछे का पूरा सच न जानकर सब इस तरह उनके उपर पिल पड़ी कि उनको गलत साबित करने में खुद बेनकाब और पुनः एक बार भेड़ साबित हुई जो आगे वाली को देखकर उसके पीछे चलने लगती किसी ने भी जानने की कोशिश नहीं की कि उनके कहने का तात्पर्य क्या है चूँकि, एक तो वो मंत्री दूजे वो उस दल का प्रतिनिधित्व करती जिसे देश की अधिकांश जनता नापसंद करती तो बस, आधे-अधूरे स्टेटमेंट को लपक लिया फिर अपने तरीके से उनकी ऐसी फजीहत की कि जो बात प्राचीन काल से सुनते आ रहे थे वही कानों में फिर से गूंजने लगी

ये फेक फेमिनाओं की ट्रेनिंग क्या किसी विशेष स्थान पर होती हैं जो इनकी भाषा, शैली व तर्क सब एक जैसे होते जिसमें न कोई सर, न पैर और न ही कोई धड़ होता सब गोलमाल टाइप मामला लगता कुछ समझ न आता कल जितनी भी पोस्ट्स पढ़ी उसमें सब लगभग एक सुर में यही सिद्ध करती दिखाई दी कि पीरियड बड़ी पवित्र चीज़ और वे इन दिनों पैड लगाकर ही हर जगह जाती चाहे स्कूल हो या कॉलेज या दोस्त का घर वर्क प्लस या फिर मन्दिर जबकि, एक मूर्ख भी ये समझ सकता कि माहवारी में बिना पैड लगाये घर से निकलना संभव नहीं और जहाँ भी महिला जायेगी उसके साथ ही जायेगी तो फिर ऐसा लिखने की क्या जरूरत जो सार्वभौमिक सत्य है केवल इसलिए कि उन्हें ये लगा कि ‘स्मृति’ ने उन्हें ही टारगेट कर के कहा है तो फिर वे चुप किस तरह रह सकती हैं        

ये तो एक महिला होने के नाते ‘स्मृति’ को भी पता होगा कि इन दिनों पैड लिये बिना जाना असंभव तो फिर वो कोई अनपढ़ या गंवार तो नहीं जो ऐसी कहेंगी उनके कहने का सीधा तात्पर्य कि वो उस सो काल्ड सोशल एक्टिविस्ट ‘रेहाना फातिमा’ पर प्रश्नचिन्ह लगा रही थी  जिसके बारे में मीडिया में खबर आई थी कि वो अपना इस्तेमाल किया हुआ सेनटरी नेपकिन ‘अयप्पा स्वामी’ के उपर चढाने ले जा रही थी वैसे तो मैंने अनेक बुद्धिजीवी, पत्रकार, बिकी हुई कलम/बौद्धिकता को ‘रेहाना फातिमा’ का पुरजोर तरीके से पक्ष लेते भी देखा वो भी पूरे तर्कों के साथ क्योंकि, ये जो फेक फेमिनाएं है इनका न तो कोई धर्म, न कोई उद्देश्य और न ही इन्हें देश-समाज से कोई लेना-देना केवल अपने आपको खुदमुख्तार व बुद्धिGB साबित करना है

इसलिये इनका तो बस एक ही काम कि जहाँ इन्हें ये लगे कि इनकी इतनी मेहनत से कमाई हुई स्वछंदता खतरे में ये सब मिलकर चिल्लाने लगती इस मामले में ये सब एक है क्यों न हो आखिर इनकी ट्रेनिंग जो एक ही संस्थान में एक साथ हुई है तो वहां सिखाये हुये इस सबसे महत्वपूर्ण नियम को किस तरह से भूल सकती हैं कि हर सही-गलत में सबको सबका साथ निभाना है तो इस मामले में आप इन्हें एक जैसा ही लिखते पायेंगे मसला चाहे जो हो इनको इस तरह की हर गतिविधि के लिये विशेष तरह से प्रशिक्षित किया जाता है

जिसमें हथियार के तौर पर इन्हें ऐसे कुतर्क प्रदान किये जाते जिससे सामने वाला तिलमिला जाये या उसकी दुखती रग को इतना जोर से दबा दिया जाये कि वो उनकी पोस्ट से भाग जाये ये भी न हुआ तो ब्लॉक, गालियाँ, बदतमीजी जैसे अनेक अस्त्र-शस्त्र भी इनके तरकश में पाए जाते हैं ऐसे में जो शालीन या सभ्य या इनके जैसे कुटिल/शातिर नहीं या तो इनको जवाब देने का रिस्क नहीं लेते या फिर चुपचाप इनकी पोस्ट से खिसक जाते तो उसे अपनी विजय समझकर आगे भी यही दांव अपनाती हुई अपने झूठे विजयरथ की लगाम थामे आगे बढ़ जाती है

यदि ये वाकई स्त्री जाति की चिंतक होती तो उनके बयान का सटीक विश्लेषण करती फिर अपनी बात रखती न कि किसी एक बात को पकड़ ये साबित करने में नहीं जुट जाती कि माहवारी जैसा पवित्रतम दुनिया में कुछ नहीं जबकि, उन्होंने ये नहीं कहा कि वो अपवित्र प्रक्रिया और न ये कि माहवारी में पैड लिए बिना ही जाना चाहिये उनका मन्तव्य तो केवल ये कहना था कि जो इस तरह की हरकत कर रही ज़ाहिर है कि वो ‘रेहाना’ की तरफ ही इशारा कर रही है पर, जिन्हें अपने हिसाब से मतलब निकालना वे निकालकर ट्रोल करना चालू हो जाते तो ये भी हो गई

जिसके तहत एक नई मुहीम या जिसे भविष्य में #Testing_Period_Blood या कोई अन्य  नाम दिया जा सकता के होने की सम्भावना दिखाई क्योंकि, जो अब तक सिर्फ पैड लेकर मन्दिर जाने की जिद कर रही थी इसके बाद आगे खुद को प्रबुद्ध जताने में अपने पीरियड के ब्लड को टेस्ट करने में भी पीछे न हटेगी याने कि बौद्धिकता का परीक्षण अब इस तरह से होगा आगे जाने क्या-क्या टेस्ट करे आखिर, फेक फेमिनिज्म कोई हवाई चीज़ थोड़े, न ही मर्दों की बनाई कोई परिपाटी जिसका परिपालन करना अनिवार्य हो ये तो उनका अपना चुनाव है जिसमें नियम भी उनके और तौर-तरीके भी उनके अपने है अतः इसमें दखल देने वाले को गाली ही पड़ेगी चाहे फिर वो कोई स्त्री ही क्यों न हो जैसा कि इस मामले में हुआ ‘स्मृति ईरानी’ की कल पूरी तबियत से इज्जत आफजाई की गयी फेक फेमिना ब्रिगेड के द्वारा जय हो फेमिना देवी की जो सदैव अविजित रहती है           

कल भी यही सब सोशल मीडिया पर सारा दिन व रात देखने को मिला जिसके बाद यही निष्कर्ष निकला कि, “नारी ही नारी की दुश्मन होती है” इसे झुठलाना ‘डॉन’ को पकड़ने की तरह ही नामुमकिन है

इति सिद्धम...☺ ☺ ☺ !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२५ अक्टूबर २०१८

बुधवार, 24 अक्तूबर 2018

सुर-२०१८-२८५ : #शरद_पूर्णिमा_का_चांद_खिला #वाल्मीकि_जयंती_से_हर्ष_दुगुना_हुआ




बरषा बिगत सरद ऋतु आई। लछिमन देखहु परम सुहाई॥
फूलें कास सकल महि छाई। जनु बरषाँ कृत प्रगट बुढ़ाई॥

श्रीरामचरित मानस में शरद ऋतू के आगमन का वर्णन इस प्रकार है जब भगवान श्रीराम अपने अनुज से कहते है... “हे लक्ष्मण! देखो वर्षा बीत गई और परम सुंदर शरद ऋतु आ गई। फूले हुए कास से सारी पृथ्वी छा गई। मानो वर्षा ऋतु ने कास रूपी सफेद बालों के रूप में अपना वृद्धकाल प्रकट किया है”।

बारिश के जाते ही मौसम परिवर्तन के साथ ही वातावरण ही नहीं अपने भीतर भी कई तरह के बदलाव महसूस होते है जिनके साथ सामंजस्य बिठाने हमारे पूर्वज ऋषि-मुनियों ने बड़े सुनियोजित तरीके से ऐसे विधि-विधान बनाये जिन्हें अपनाकर हम अपने शरीर को स्वास्थ्य रखते हुये हर तरह के मौसम के साथ कदम-से-कदम मिलाकर चल सकते हैं

आज शरद पूर्णिमा एक ऐसी ही रात जिसका आध्यात्मिक, सामजिक, मानवीय, वैज्ञानिक व स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से बहुत महत्व है इस दिन चन्द्रमा पृथ्वी के इतना निकट आ जाता कि बहुत बड़ा दिखाई देता और सोलह कला पूर्ण होने के कारण उसकी चांदनी में घुली अमृत बूंदें हमारे तन-मन पर बरसकर उन्हें पुनर्जीवन देकर नूतन ऊर्जा से भर देती है

आज की रात खुले आसमान में घर की छत या बाहर आंगन में खीर बनाकर रख दी जाती जिससे कि वो औषधि में बदलकर हमारे अंतर के रोग व विषाद को दूर कर सके जो लोग वेद-पुराणों के इस धार्मिक तर्क को नहीं मानते क्योंकि, ऐसा करने से उनकी आधुनिकता पर प्रश्नचिन्ह लगता और जो ऋषि-संत-मुनि के साथ-साथ धार्मिक शब्द पढ़कर ही बिदक जाते

उनके लिये इसका वैज्ञानिक पक्ष यह हैं कि, “दूध में लैक्टिक एसिड और अमृत तत्व होता है जो चन्द्र किरणों से अधिक मात्रा में शक्ति का शोषण करता है तथा चावल में स्टार्च होता है जो इस प्रक्रिया को आसान बनाता है” इस रहस्य को हमारे संत-मुनियों ने किसी सुसज्जित प्रयोगशाला में उपकरणों की मदद से नहीं बल्कि, अपने तपोबल व व्यवहारिक ज्ञान से जाना अतः यह अधिक महत्वपूर्ण है

वैज्ञानिकों ने अपने अलग-अलग शोध से ये भी जान लिया कि दूध से बने उत्पाद का यदि चांदी के पात्र में सेवन किया जाये तो अति-उत्तम होता क्योंकि, चांदी में रोग-प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है इसलिये आज की रात आसमान के नीचे रखी खीर को खाने से बहुत-से चर्म रोग, अस्थमा, दिल की बीमारियां, फेफड़ों की बीमारियां और आंखों की रोशनी से जुड़ी परेशानियों में भी कई गुना लाभ होता है

आश्विन माह की पूर्णिमा का केवल इतना ही महत्व नहीं है इस दिन आदिकवि वाल्मीकि की जयंती का होना भी इसे दुगुना उत्साहवर्धक बना देता जिन्होंने रत्नाकर डाकू से प्रायश्चित्त स्वरुप तपस्यारत होकर जब ‘ऋषि’ का स्वरुप पाया तो सिर्फ मन का कलुष ही नहीं उनका सम्पूर्ण चिन्तन ही बदल गया और क्रोंच पक्षी के शिकार ने उनके भीतर छिपे कवि को जागृत कर दिया जिसके बाद उन्होंने अपनी लेखन क्षमता से अविश्वसनीय काव्य रचा

वाल्मीकि कृत रामायण ने ही सर्वप्रथम हमें महानायक श्रीराम से परिचित करवाया और उनके जीवन-चरित्र से हमने मानव के चरित्रिक गुणों की श्रेष्ठता को जाना कि जब वो चरम पर पहुँचती तो साधारण इन्सान भगवान् बन जाता है और उसकी कृपा का प्रथम अनुभव उन्हें तप के दौरान हुआ तो उन्होंने इसे लिखने का निश्चय किया जिससे कि आम जन भी जान सके कि एक आदर्श परिवार, निश्चल भात्र प्रेम, उच्च वैवाहिक सम्बन्ध, दुष्ट विनाश, राम राज्य किस तरह से स्थापित होता तो उन्होंने इसे शब्दों में ढाला

आज सोशल मीडिया पर अनगिनत लोगों को भक्तों से ज्यादा राम नाम का जाप करते देखती तो अनायास ही उनकी जयंती का मनाये जाना प्रासंगिक लगता कि जिस तरह वाल्मीकि उल्टा नाम लेकर भी तर गये उसी तरह ये दुष्ट प्रवृति के भटके लोग भी एक दिन जरुर सद्गति पायेंगे वैसे भी राम कथा में वर्णित है कि, रावण भी ज्यादातर समय राम-राम नाम ही कहता था जिसने उसको स्वर्ग में स्थान दिया तो ऐसे में इनके द्वारा किसी भी प्रयोजन से ‘राम’ लिखना अच्छा ही है आखिर, कलयुग नाम अधारा ही तो है
      
सभी को इस परम पावन दिवस की शुभकामनायें... जिसमें दो शुभ तिथियों का संगम है... मतलब दुगुना लाभ... ☺ ☺ ☺ !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२४ अक्टूबर २०१८