शुक्रवार, 30 नवंबर 2018

सुर-२०१८-३०० : #तुम_मुझे_भूल_भी_जाओ_तो_ये_हक़_है_तुमको #मेरी_बात_और_मैंने_तो_मुहब्बत_की_है




ये प्यार था या कुछ और था
न तुझे पता, न तुझे पता
ये निगाहों का ही तो कुसूर था
न तेरी ख़ता, न मेरी ख़ता...

टी.वी. चैनल पर पुरानी ‘प्रेम रोग’ फिल्म देखते हुये जैसे ही स्क्रीन पर इस गीत के स्वर गूंजे ‘रश्मि’ तुरंत अपनी मम्मी से पूछने लगी माँ ये किसकी आवाज़ है बड़ी ही प्यारी और अलहदा है पहले कभी सुनी भी नहीं आपको तो संगीत का बड़ा शौक और पुराने गीतों में भरपूर दिलचस्पी भी है तो जरा इसके बारे में भी कुछ बताइये न प्लीज़...

टी.वी. स्क्रीन से नजर हटाकर उसी माँ ने उसे देखते हुये कहा, आज के लोग तो अपने दौर के गीत-संगीत और फनकारों से वाकिफ़ नहीं फिर पुराने लोगों को कैसे जानेंगे उन्हें तो बस, रिमिक्स के नाम पर बस, पुराने गीतों को बिगाड़ना आता है ये तो वो लोग जिन्होंने हिन्दी सिने जगत के शैशव काल में अपनी साधना व तपस्या से उसकी मजबूत आधारशिला रखी जिससे कि आगे तक ये परम्परा बढ़े तो सभी ने अपनी तरह से प्रयास कर मधुर से मधुर गीत-संगीत की रचना की जो आज के शोर भरे माहौल में भी खुद को कायम रखे हुये है

इस गीत को गाने वाली भी ऐसी ही एक अनोखी गायिका थी जिसका नाम ‘सुधा मल्होत्रा’ था और तुम्हें जानकर आश्चर्य होगा कि ये उनका गाया अंतिम पार्श्व गीत था यूँ तो उन्होंने कम ही गीत गाये पर जो भी गाये सभी ने सुनने वालों के दिलों में अपनी पुख्ता जगह बनाई है उनका गाया एक गीत तो मानो उनकी पहचान ही बन गया रुको मैं तुम्हें अपने मोबाइल पर वो गीत सुनाती हूँ...
तुम मुझे भूल भी जाओ तो ये हक़ है तुमको
मेरी बात और है मैंने तो मुहब्बत की है...

ये गाना उन्होंने १९५९ में बनी ‘दीदी’ फिल्म के लिये गाया जिसने सुनने वालों को मानो मंत्रमुग्ध कर दिया और प्रेमियों को ये अपने दिल की आवाज़ लगी जिसकी ख़ास बात ये थी कि इसका संगीत उन्होंने स्वयं तैयर किया था आज भी यदि कहीं ये गीत बजे तो कदम रुके बिना नहीं रहते और कान उस सुधा रस को अनवरत पीना चाहते है जिससे मन के भीतर भी कहीं कोई सोया हुआ प्यार जाग उठता है यही नहीं कव्वालियों में भी उनका जवाब नहीं इसलिये उन्होंने सिर्फ गाने ही नहीं गाये कव्वालियों में अपने आपको आज़माया और ऐसी तान छेड़ी कि आज भी उसका कोई सानी नहीं बोले तो मील का पत्थर समझा जाता उसे तो लो तुम भी उसका आनंद उठाओ ये कहकर उन्होंने वो कव्वाली बजा दी...

ना तो कारवाँ की तलाश है, ना तो हमसफ़र की तलाश है
मेरे शौक़-ए-खाना खराब को, तेरी रहगुज़र की तलाश है
मेरे नामुराद जुनून का है इलाज कोई तो मौत है
जो दवा के नाम पे ज़हर दे उसी चारागर की तलाश है
तेरा इश्क़ है मेरी आरज़ू, तेरा इश्क़ है मेरी आबरू
दिल इश्क़ जिस्म इश्क़ है और जान इश्क़ है
ईमान की जो पूछो तो ईमान इश्क़ है
तेरा इश्क़ है मेरी आरज़ू, तेरा इश्क़ है मेरी आबरू,
तेरा इश्क़ मैं कैसे छोड़ दूँ, मेरी उम्र भर की तलाश है
इश्क़ इश्क़ तेरा इश्क़ इश्क़ ...  

‘रश्मि’ कव्वाली पूरी होने के बाद भी आँखें बंद किये पड़ी रही तो उसकी माँ बोली, उस समय हर एक गीत-कव्वाली, गजल-भजन सब पर बड़ी मेहनत की जाती थी और लिखने वाले भी अपनी तरफ से कोई कसर न छोड़ते थे तो फिर गाने वाले किस तरह से कम रहते सब मिलकर अपने सृजन को उच्च आयाम तक पहुंचा देते थे यही वजह कि उन्होंने अपनी आवाज़ को हर विधा के अनुसार न केवल परिवर्तित किया बल्कि, उसे उस स्तर तक भी पहुँचाया जिसकी उसे आवश्यकता थी और इस कव्वाली में स्वर मलिका आशा भोंसले के होते हुये भी उन्होंने अपने आपको पीछे न रहने दिया

अब मैं तुम्हें उनका ही गाया एक भजन सुनाती हूँ तब तुम मेरी बात को सही तरीके से समझोगी इतना कहते ही उन्होंने उसे प्ले कर दिया...

न मैं धन चाहूँ, न रतन चाहूँ
तेरे चरणों की धूल मिल जाये
तो मैं तर जाऊँ, हाँ मैं तर जाऊँ
हे राम तर जाऊँ...

सच, माँ ये तो बहुत ही प्यारा भजन है और दोनों आवाजों का तालमेल कितना सदा हुआ है न... हां रश्मि, यही तो एक सच्चे फनकार की विशेषता कि वो पानी की तरह सबके संग मिल जाता पर, अपने आपको मिटने भी नहीं देता कि उसकी अपनी मौलिकता नजर ही न आये तो जब भी उन्होंने किसी दूसरी गायिका के साथ गीत गाये या उनका साथ दिया अपनी आवाज़ को उनकी आवाज़ के नीचे दबने नहीं दिया तो उनके नाम से ही उनको जाना गया । यही नहीं ‘नरसी मेहता’ फिल्म में उनका गाया ‘दर्शन दो घनश्याम मेरी अंखिया प्यासी रे...” भी इस स्तर का एक भजन है जिसमें उन्होंने हेमंत कुमार जी के साथ सुर से सुर मिलाकर वो जादू जगाया कि आज भी उसका असर कम नहीं है । यू-ट्यूब पर तो सब उपलब्ध सुनो और जानो अपने अतीत के कलाकारों को जो न होते तो आज संगीत इस मकाम पर नहीं होता और अभी मैंने गूगल पर देखा कि आज तो पद्मश्री ‘सुधा मल्होत्रा जी’ का जन्म दिन भी है ।   


तो इस अद्भुत-अलबेली गायिका ‘सुधा मल्होत्रा’ जन्मदिवस बहुत-बहुत मुबारक... ☺ ☺ ☺ !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
३० नवंबर २०१८

गुरुवार, 29 नवंबर 2018

सुर-२०१८-३२९ : #आभासी_ही_सही_फेसबुक #सतर्क_सावधान_रहना_तो_जरूरी_है




फेसबुक को आभासी दुनिया या वर्चुअल वर्ल्ड इसलिये नहीं कहते कि वो वास्तव में है नहीं बल्कि, इसलिये कि यहाँ जो भी हो रहा या दिखाई दे रहा उसमें से ज्यादातर केवल दिखावटी या नकली है जिसे माया, झूठ, फरेब कहते है और जिसकी सच्चाई का पता लगाना भी आसान नहीं क्योंकि, सब कुछ इस तरह से पेश किया जाता कि सही ही लगता है  

जिस तरह से दिनों-दिन तकनीक एडवांस होती जा रही और नये-नये एप्स व टूल्स आ रहे उसकी वजह से ये सोचना जरूरी है कि सामने जो कुछ भी नजर आ रहा वो क्या वाकई में वैसा ही है जैसा कि दर्शाया जा रहा है क्योंकि, कोई भी व्यक्ति अपनी सोच को हूबहू वैसा ही प्रदर्शित तो नहीं कर सकता जैसा कि वो सच में महसूस करता है

इसलिये दुनिया को दिखाने वो मन के विचारों को सुन्दरता का जामा पहनाकर ही सबके सामने दिखाता ताकि, जिस तरह व्यक्ति उपरी चमक-दमक से प्रभावित होकर कोई भी उत्पाद खरीद लेता उसी प्रकार वो खुद की फोटोशॉप से बनी मोहक खुबसूरती व शब्दों के घालमेल की कारीगरी से यहाँ उपस्थित लोगों को अपना फलोवर बनाना चाहता है

इसलिये उसके अंतर में कोई गलत ख्याल भी होता तो वो इस तरह से उस पर लुभावना आवरण चढ़ाकर उसको सबके सामने रखता कि वे उसे ही सच मानकर उसके दीवाने हो जाते और ऐसे अनगिनत लोग यहाँ पर है जिनके नाम, पहचान और वास्तविकता का अता-पता नहीं फिर भी उनसे हजारों लोग जुड़े जो बाद में पछताते भी है

सबके तो नहीं पर, अधिकांश चेहरों पर मुखौटे है केवल उन्हीं को पहचाना जा सकता जिन्हें कि हम हकीकत में जानते है बाकी तो सब दिखावा है तो ऐसे में ये बेहद जरुरी कि हम इस छलावे में न आये और मछली की तरह उनके जाल में फंस जाये तो इसका उपाय कि उन्हीं को दोस्त बनाये जिनसे कोई पूर्व परिचय हो या जिनकी पहचान संदिग्ध न हो अन्यथा किसी दिन कोई बड़ा धोखा भी हो सकता जिस तरह मायावी दुनिया में पग-पग पर होता है            

बाबूजी धीरे चलना, सिर्फ... सच्ची नहीं आभासी दुनिया की भी जरूरत है वरना, स्क्रीन शॉट के धोखे है राहों में जो ऐसा गिरायेंगे कि सम्भलना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन भी हो सकता है

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२९ नवंबर २०१८

बुधवार, 28 नवंबर 2018

सुर-२०१८-३२८ : #लघुकथा_आनेस्टी_हमेशा_बेस्ट




तुम किसी के साथ लिव-इन में रही हो क्या?

इससे क्या फर्क पड़ता है...

पड़ता होगा तभी तो पूछा...

और तुम बताओ तुम नहीं रहे क्या?

हम तो जहाँ पले-बढ़े वही पढ़े-लिखे और वहीं जॉब लगी तो कभी ऐसी नौबत ही न आई

ओह, लिव-इन का लड्डू खाने नहीं मिला तो स्वाद पूछते फिर रहे तो झूठ नहीं कहूंगी हां रही हूं 2 साल जब चेन्नई में जॉब करती थी और 1 साल बैंगलोर जॉब के समय

वो रिश्ते टूटे क्यों?

क्योंकि, वो रिश्ते नहीं कॉन्ट्रैक्ट थे

तो, फिर रिश्ते में बंधना चाहोगी या आगे भी किसी कॉन्ट्रैक्ट का इरादा है

हम्म, गुड क्वेश्चन दो असफल लिव-इन के बाद यही सोचती हूँ कि अब कोई परमानेंट व्यवस्था होनी तो चाहिए

फिर मैं इस रिश्ते के लिये तुम्हारी हां समझूँ...

पहले ये बताओ लिव-इन वाला सवाल क्यों पूछा जबकि, जानते कि आजकल तो ये सब कॉमन गर, मैं झूठ बोल देती तो कैसे जानते

भले न जानता पर, शादी न करता क्योंकि सच की तलाश में निकला था जो अब तक देखी लड़कियों में सिर्फ तुम्हारे पास मिला और प्रॉब्लम लिव-इन से नहीं झूठ से है जो कभी-भी किसी रिश्ते की बुनियाद नहीं हो सकता

उसे महसूस हुआ वाकई, ‘सच’ पारसमणि होता जिसने उसे भी सोना बना दिया बचपन से सीखे एक सबक को गांठ बांधकर चलने से ऐसा सिला मिलेगा उसने कभी सोचा न था

आज वो मान गई कि आनेस्टी बेस्ट पालिसी होती है जिसकी किश्त यदि रेगुलर भरी जाये तो शानदार रिटर्न मिलता है ।

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२८ नवंबर २०१८

मंगलवार, 27 नवंबर 2018

सुर-२०१८-३२७ : #कलमकार_सुमन_और_बच्चन #हिन्दी_साहित्य_के_सशक्त_हस्ताक्षर




डॉ. हरिवंश राय बच्चन और शिवमंगल सिंग सुमन दोनों ही हिन्दी साहित्य के ऐसे नामचीन कलमकार जिन्होंने अपनी कलम से साहित्य को ही धनी नहीं किया बल्कि, अपनी ओजपूर्ण वाणी से भी मंच को सम्मानित किया और दोनों की जन्मस्थली भी उत्तरप्रदेश ही थी तो उनकी भाषा शैली व लेखन में भी अंशतः समानता थी साथ ही उनकी उच्च शिक्षा ने उन्हें समृद्ध व परिष्कृत बनाया जिसकी वजह से उनका लिखा हुआ साहित्य जगत में अपना सर्वोच्च स्थान बना पाया और आज तक भी वे पाठकों के पसंदीदा रचनाकार कहलाते है

इनकी लिखी कवितायें भी पढने वालों की जुबान पर सजी रहती है जो ये बताती कि यदि लिखा गया शब्द-शब्द आंचलिक व सहज-सरल होता तो उसे हृदय में बसा लेना या उसको शब्दशः याद कर लेना नामुमकिन नहीं होता और ये उन दोनों ने अपनी कलम से साबित कर के दिखाया जिसका परिणाम कि केवल एक ही नहीं दोनों को साहित्य की दुनिया में बराबर सम्मान दिया जाता और उनकी रचनाओं को भी उनके नाम के साथ उतने ही स्नेह से याद किया जाता है जो उस वक़्त भी उनके चाहने वालों ने उनको दिया गया था ।

आज ऐसा अद्भुत संयोग जो उन दोनों को एक साथ फिर स्मृति में ले आया जहाँ आज बच्चन साहब का जन्मदिवस वहीं आज सुमन जी की पुण्यतिथि जो हमारे जेहन में उनकी छवि ही नहीं उनके रचना कर्म की भी याद दिलाती दोनों को मन से नमन...!!!
    

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२७ नवंबर २०१८

सोमवार, 26 नवंबर 2018

सुर-२०१८-३२६ : #राष्ट्रीय_संविधान_दिवस_आया #कुछ_भूला_बिसरा_भी_याद_दिलाया




26 नवम्बर एक ऐसी तारीख़ जिसमें खुशी और गम दोनों एक साथ छिपे हुए है जहाँ हम इस दिन संविधान निर्माण की सालगिरह मनाते वहीं दूसरी तरफ हम सब आज ही के दिन 2008 में आतंकी हमले की वजह से शहीद हुए अपने देश के वीर जवानों की बरसी होने से उस दर्द को भी महसूस करते है ।

एक दिन से किस तरह कड़वी-मीठी यादें जुड़ जाती जो हमें कभी हंसाती तो कभी रुलाती फिर भी संविधान को मानने वाले ये जानते कि इस देश की शासन व्यवस्था में कहीं कोई कमी हो भी तो लोगों की देशभक्ति में तनिक भी फर्क नहीं इसलिये भले ही सिस्टम की किसी खामी की वजह से कोई आतंकवादी यहां घुस आये पर, वो हमारे हौंसलों को तोड़ नहीं पाता कि ऐसे मुश्किल वक़्त में तो देश का बच्चा-बच्चा भी अपने वतन की अमन-सुरक्षा की खातिर यदि कुछ सहयोग न भी कर सके तो हाथ जोड़कर दुआ जरूर मांगता है ।

संविधान एक दिन में नहीं बना और न ही एक व्यक्ति ने उसे अकेले ही बनाया और न ही उसे बनाने में सिर्फ एक देश से ही कुछ उधार लिया गया हो बल्कि, यहां तो जहां भी जो भी अच्छा और जनहितकारी लगा उसे अपने भारतीय संविधान में जगह दे दी गयी उससे प्रेरणा लेकर उसे अपने समाज के अनुसार परिवर्तित भी कर दिया गया और इस तरह हमने अपने देश के भीतर ही भिन्न जात-पात के लोगों की बगिया नहीं महकाई बल्कि, संविधान की किताब में भी इतनी विविधताओं का समावेश किया जिससे कि ये उपवन हमेशा खिला-खिला और सदाबहार बना रहे

इसका तात्पर्य ये कतई नहीं कि हम केवल अधिकारों की ही बिगुल बजाते रहे इसलिये कर्तव्यों की गठरी भी हमारे कंधों पर टांग दी गयी जो हमें याद दिलाती कि देश से केवल लेना ही नहीं उसको देना भी आना चाहिए उसे विकास के मॉडल के तौर पर देखने सरकार के भरोसे बैठने भर से काम न चलना अपना हाथ भी बढ़ना होगा मिल-जुलकर सबको अपने देश को सर्वोच्च स्थान पर लाकर अपने कर्तव्यों का निर्वहन भी करना होगा तभी तो हम संतुलन स्थापित कर पायेंगे पर, अफसोस कि चंद लोग ही इसका पालन करते तभी तो हम पीछे ही रह जाते है ।

आज संविधान दिवस मनाने के साथ ही हमको ये भी समझना होगा कि देश के विकास की दौड़ में अव्वल न आने का कारण क्या महज़ वो मुट्ठी भर नेता है जो देश चलाते या उसमें हमारी भी कोई भूमिका है ? क्या वजह है कि इस देश की शांति को भंग करने आतंकी संगठन साज़िशें रचते रहते है ?? वो कौन है जो संविधान की कमियों का फायदा उठाकर अपने ही भाई-बहनों का हक मार लेते और आपसी रंजिश का माहौल बनाते है???

ऐसे कई प्रश्नों के जवाब हमको ढूंढना है और अपने बलिदानी जवानों को श्रद्धांजलि देने से पहले ये भी विचार करना है कि क्या इस हमले को रोका जा सकता था और इसके पीछे जिनक हाथ क्या उनसे हमको दोस्ती करना चाहिये ???

सिर्फ एक दिन यूं ही न गुजर जाने दे उसका मन्थन भी अवश्य करें तब ही बहुत से रहस्यों और बहुत-सी उन बातों को जान सकेंगे जिन सच्चाईयों को हमारे सामने आने से रोका जाता अन्यथा हर बरस ये दिन यूं ही आकर चला जायेगा और हम बस, उनका स्मरण कर उन्हें अपने श्रद्धा सुमन ही अर्पित करते रहेंगे जबकि, हम सबको अपने संविधान का सम्पूर्ण ज्ञान होना जरूरी है ।

जय हिन्द... जय भारत... 🇮🇳🇮🇳🇮🇳 !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२६ नवंबर २०१८

रविवार, 25 नवंबर 2018

सुर-२०१८-३२५ : #बाकी_सब_ठीक_है




फ़िल्म बॉर्डर में एक दृश्य है कि एक फौजी के घर से उसके नाम एक पत्र आता है । जिसमें घर-परिवार के बुरे हाल-चाल और दुर्दशा का वर्णन है पर, हर बुरी, दुख भरी ख़बर के साथ एक जुमला जुड़ा होता है... 'बाकी सब ठीक है'

इसे देखकर लगता है कि, हमारे देश में हर जगह, हर किसी के घर-परिवार में हालात, परिस्थितियां और इतनी सारी मुश्किलात है । इसके बावजूद भी हम धैर्य रखने के लिये कहते है कि, बाकी सब ठीक है ।

ये अलग बात है कि हक़ीक़त हम सब ही जानते है मगर, ये शब्द थोड़ी राहत देते है और मन के किसी कोने में एक एहसास कि यदि इतना कुछ खराब है गलत है तो भी कुछ ऐसा शेष है जो अभी भी ठीक है उसी की तलाश करनी है जिससे हम हर तकलीफ, दुख, दर्द को सहन करते हुये कह सके कि, “बाकी... सब ठीक है” ।

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२५ नवंबर २०१८

शनिवार, 24 नवंबर 2018

सुर-२०१८-३२४ : #एक_बेटी_जब_आगे_बढती #अनेक_बेटियों_का_हौंसला_बनती




एक महिला
वो भी मुक्केबाजी करेगी
कल्पनातीत था
फिर भी बसा हुआ था
जिन आंखों में ये अनोखा सपना
उसने न सोचा कुछ भी
पहनकर ग्लव्स वो उतर पड़ी
करने को जोखिमों से दो-दो हाथ
झेलने कठिनाइयों के पंच
खेल के उस रिंग में
डरकर पीछे हटने का न जिसमें
सामने कोई विकल्प था
सामना करना सबका और जवाब देना
हर वार पर डटकर खड़े रहना
बिना धैर्य-संयम खोये तब तक लड़ना
मिल न जाये विजय जब तलक
यही मूलमंत्र लेकर आगे बढ़ी
मणिपुर की मणि एम.सी. मेरीकॉम
मुश्किल लक्ष्य पर अपने
छोटी जगह साहस था मगर, बड़ा
जिसके आगे कदम न डिगा
कदम दर कदम उसको
सच्चे-अच्छे साथी मिलते गये
ख्वाहिशों को भी पंख मिलते रहे
विश्व चैंपियनशिप के खिताब
साल-दर-साल हासिल होते चले गये
जीतकर 6 बार ये सम्मान
रच दिया उसने आज फिर इतिहास
कर दिया साबित कि,
शादी और बच्चे मात्र एक पड़ाव
नहीं रोक सकते ये कभी
एक औरत के इरादे बेहिसाब
लगा नहीं सकती बेड़ियाँ
इच्छाओं के घोड़ों पर लगाम
देश की बेटी तुझे हमारा सलाम
दिलाया नारी को भी मान
बचाई न जाने कितनी बेटियों की जान
प्रेरणा पाकर निकल पड़ी है
बेटियां अपने घरों से कई हजार
दिलों पर करने राज
देश को दिलाने अव्वल स्थान
करने हर स्वर्ण पदक अपने नाम
मुबारक हो ये जीत तुमको
यूँ ही बनाती रहो नूतन कीर्तिमान
जियो हजारों-हजारों साल
विश्व चैम्पियन एम.सी. मैरीकॉम
☺ ☺ ☺ !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२४ नवंबर २०१८

शुक्रवार, 23 नवंबर 2018

सुर-२०१८-३२३ : #कार्तिक_पूर्णिमा_देव_दीपावली #लेकर_आई_गुरु_नानक_देव_जयंती




पूर्णिमा के साथ ही पुण्यदायी कार्तिक मास का समापन होता और इसी पावन दिवस पर सिखों के प्रथम गुरु नानक देवजी की जयंती का परम पावन प्रकाश पर्व भी मनाया जाता और हम आज के दिन उनका पुण्य स्मरण ही नहीं करते बल्कि, उनकी सीखों को भी दोहराते जिसे वो हमारा जीवन सर्वश्रेष्ठ बनाने के लिये हमें देकर गये

हम सबकी एक कमी कि हम केवल दिन विशेष पर ही अपने गुरुओं को याद करते जबकि, उन्होंने अपना सारा जीवन हमारे भविष्य को संवारने में लगा दिया और जिन बातों का वे विरोध करते रहे या जो वो हमसे अपेक्षा रखते थे उनको दरकिनार कर हमने उन्हें ही देवता बनाकर मन्दिरों में बिठा दिया और ये मान लिया कि जो उन्होंने कर दिखाया वो हम नहीं कर सकते

ऐसा समझने के पीछे हमारा लचर-सा तर्क होता कि, वे तो देवता थे और हममें तो इन्सान बनने तक की काबिलियत नहीं फिर हम भगवान किस तरह बन सकते और ये भूल जाते कि उन्होंने मानव रूप में ही अवतरित होकर हमें ज्ञान का मार्ग दिखाया जीवन जीने का सही ढंग और सच्चा सौदा करना सिखाया जिसकी वजह से वे आदमकद बन गये और हमने उन्हें शीर्ष स्थान पर बिठा ईश्वर का दर्जा दे दिया

हमने ये मान लिया कि उनके लिये सब कुछ करना इसलिये संभव था कि वे तो प्रभु थे हमारी यही गलती है जिसने हमारे और उनके मध्य दूरियां बढ़ा दी जिसके कारण हम उन्हें पूजने लगे उनको शक्तिशाली-अंतर्यामी समझकर अपने को साधारण मानने लगे हमारे इसी कमतरी के अहसास ने हमको उस स्थिति तक पहुंचने से रोका हुआ है

यदि हम गुरुदेव की शिक्षाओं को मन से ग्रहण करें उनके दिखाये हुये मार्ग पर चले तो अपनी पवित्र आत्मा को इस संसार की गन्दगी व मन के विकारों से बचाकर उस परमात्मा से मिला सकते है परन्तु, हम तो मोह-माया के जाल में फंसकर ऐसे भ्रम में पड़ते कि जीवन के वास्तविक उद्देश्य ब्रम्ह को साधने की जगह संसार की भूल-भुलैया में भटक जाते है

यही तो हमें सभी धर्म गुरुओं ने समझाने का प्रयास किया लेकिन, हमने उससे क्या सीखा यही याद दिलाने हर बरस वे इस तरह हमारे समक्ष आते तो अपने देवताओं व गुरुओं के अवतरण दिवस पर हम उनके दिये जीवन मन्त्रों में से किसी एक को भी अपने जीवन में शब्दशः उतार ले तो उनके सच्चे शिष्य बनकर उनको सच्ची भेंट समर्पित कर सकते है  

आज मानवता के रक्षक गुरु नानक देव की ५५० वीं जयंती पर सबको लख-लख बधाईयाँ... ☺ ☺ ☺ !!!
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२३ नवंबर २०१८

गुरुवार, 22 नवंबर 2018

सुर-२०१८-३२२ : #पितृसत्ता_में_भी_जातिवाद #शाबाश_मान_गये_आपको_जनाब




20 नवम्बर को एक खबर ने मुझे अचरज में डाल दिया जब एक तस्वीर देखी जिसमें कि माइक्रो ब्लोगिग साइट ट्विटर के सीईओ ‘जैक पैट्रिक डॉर्सी’ एक पोस्टर लेकर खड़े है जिस पर एक लड़की की पेंटिंग है जो एक तख्ती लेकर खड़ी है और उस तख्ती पर अंग्रेजी भाषा में जो लिखा था वो काफी चौंकाने वाला था बल्कि, बोले तो विचारणीय भी क्योंकि, उस पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा हुआ था स्मैश ब्राह्मिकल पैट्रिआर्कीइस अत्यंत कटु घृणित व जहरीली इबारत के मायने भी उतने ही खतरनाक थे कि 'ब्राम्हणवादी पितृसत्ता का नाश हो' या ‘ब्राम्हणवादी पितृसत्ता को उखाड़ फेंको' उसका अस्तित्व मिटा दो उसको जितना देखा, समझा और उस पर मनन-चिंतन किया उतना ही दिमाग उलझता गया कि ये सब क्या साज़िश है? देश के खिलाफ कौन-सा षड्यंत्र चल रहा है? किस तरह से इस देश को बर्बाद करने तमाम ताकतें जोर आज़माइश कर रही है इन सबके पीछे आखिर कौन है ?

उसके बाद इन महाशय के बारे में जानने का प्रयास किया तो पता चला कि भाईसाहब तो यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका में जन्मे है उस हिसाब से तो इन्होंने ब्रह्मानिकल पेट्रिआर्कि के बारे में न तो सुना ही होगा और न ही जाना होगा क्योंकि, वहां तो मनुस्मृति या ब्राम्हणों की सत्ता चलती नहीं तो फिर इन्हें ये शब्द व इसका इतना गूढ़ अर्थ किस बुद्धिमान ने समझाया जो अब तक इस देश के लोगों को तक नहीं पता था कि पितृसत्ता की भी जाति होती है अभी तक तो इंसानों, जानवरों, रंगों व मज़हब ही की जात-पात का पता था अब ये नया सियापा चालू हो गया जो विशेष तौर पर एक जाति ही नहीं समुदाय और देश को अपमानित कर रहा वो तो ब्राम्हणों को शिव की तरह जहर पीने की आदत तो सब कुछ सुनकर-सहकर भी नीलकंठ बने रहते और कुछ नहीं कहते है इसलिये ही शायद, ये लोग भूल जाते कि जब शिवजी का तीसरा नेत्र खुलता तो फिर बस, प्रलय ही आती है कुछ भी बाकी नहीं बचता अतः एक जाति को इतना भी न टारगेट किया जाये कि उसकी सहनशक्ति का बांध टूटकर जल प्रलय की स्थिति उत्पन्न कर दे अब तक तो अपने ही देश के लोग उंगलियां उठा रहे थे अब दूसरे देशों से भाड़े के टट्टू भी आने लगे ऐसे में चुप रहना गुनाह है ।

‘जैक डॉर्सी’ के जन्म स्थान अमेरिका के बारे में जानकर तो यही महसूस होता कि ऐसे माहौल में जन्मे बड़े होने के कारण उन्हें बड़ा आज़ाद, स्वछन्द, खुला परिवेश मिला होगा जहाँ औरतों को पूरी आजादी होगी और वहां तो शायद पितृसत्ता शब्द भी बोला व सुना भी नहीं जाता होगा और औरतों को सारे अधिकार प्राप्त होंगे तभी तो ये हमदर्द का टॉनिक भारत की महिलाओं का शुभचिंतक बन रहा बाहुबली बनकर उनको तारने आया क्योंकि, उनके उधर तो मातृसत्ता चलती है औरतें बिना शादी-ब्याह किसी के किसी के भी साथ रहती, सोती और जिसके चाहे उसके बच्चे पैदा करती, कोई रोक-टोक नहीं सिगरेट, शराब भी मर्दों की बराबरी से करती ऐसे में उनका दुख समझ मे आता कि जब वे यहां की स्त्रियों को एक ही पति के संग एक जीवन नहीं सात जन्मों तक बंधे और अपने परिवार के लिए अपना आप समर्पित करते देखता तो उसे आश्चर्य होता कि ये अब तक अपनी सभ्यता-संस्कृति को किस तरह बचाये इनका सब नष्ट कर दो, इनकी पहचान मिटा दो ताकि, ये भी हमारी तरह ही ऊपर से सभ्य और भीतर से असभ्य बन जाये मौज-मस्ती को ही जीवन का एकमात्र ध्येय समझे न कि अपने रिश्तों के लिए कुर्बान हो जाये कुछ पर तो इन असर हो गया पर केवल नाममात्र ऐसे में सबको प्रभावित करने का इन्हें यही तरीका समझ आया कि भारतीयों को नीचा दिखाओ, शर्मिंदगी का अहसास करवाओ, उनको पिछड़ा बताओ तब जाकर कहीं इनको फिर से गुलाम बनाया जा सकता है ।

हम सब यही समझते कि महाशक्ति माना जाने वाला अमेरिका बड़ा प्रोग्रेसिव एंड मॉडर्न है जबकि, हक़ीकत इसके उलट है वे तो अपनी गोरी चमड़ी के भ्रम से भी आज तक मुक्त नहीं हुये और जात-पात का भेदभाव तो वहां भी चलता है एक बार अमेरिकी राष्ट्रपति ‘बराक ओबामा’ ने अपने एक साक्षात्कार में इस बात को स्वीकार भी किया था कि “नस्लवाद अमेरिका के डीएनए में है, अमेरिका अपनी नस्लीय मानसिकता से अभी तक नहीं उबरा है और वहां इसकी जड़ें बहुत गहरी हैं” ऐसे में वो किस मुंह से दूसरों पर ऊँगली उठाता है इसके अलावा वहां महिलाओं की स्थिति भी कोई बेहद मजबूत या बेहतर नहीं है उसे एक प्रोडक्ट ही समझा जाता है यदि आपको विश्वास नहीं होता तो इसके अनगिनत प्रमाण आपको यहाँ-वहाँ मिल जायेंगे जिससे आपके सामने महिला सशक्तिकरण की जो झूठी तस्वीर पेश की जाती उसका भेद खुल जायेगा फिर भी यदि सबूत ही चाहिये तो केवल दो बातों को ही यहाँ प्रस्तुत करना चाहूंगी पहली कि आज तक वहां कोई भी महिला राष्ट्राध्यक्ष नहीं बन सकी है और दूसरी घटना थोड़ी पुरानी हैं पर इतनी भी नहीं कि जेहन से उतर जाये जब अमेरिकी नौसेना की महिला कर्मचारियों की न्यूड तस्वीरों लीक की गयी और उस पर बड़े भद्दे व् अश्लील कमेंट्स भी किये गये जो स्वतः ही दर्शाता कि वहां महिलाओं को किस नजर से देखा जाता वो तो विमेन एम्पावरमेंट और फेमिनिज्म के चक्कर में इस देश की महिलाओं ने ऐसा भसड मचाया कि वो देश जो अपने यहाँ स्त्रियों को देवी और शक्ति का अवतार समझता था वो उसे देह समझने लगा चाहे तो आप खुद पूरी दुनिया के चक्कर लगा ले या सभी धर्मों का अध्ययन कर ले मगर, आप पायेंगे कि एकमात्र हिन्दू धर्म ही है जहाँ पर कि देवी की अवधारणा मौजूद है और स्त्री को पूजा जाता है पर, कुछ फेक फेमिनाओं के द्वारा इतना जहर व गलत प्रचार-प्रसार किया जा रहा कि मानो यहाँ औरतों को बंधुआ मजदूर बनाकर रखा जाता हो जबकि, जिस तरह यहाँ औरतें अपने घर की मालकिन बनकर रहती वैसा अन्यत्र दुर्लभ है

हाँ तो असल मुद्दा यह है कि पिछले दिनों यही महानुभव माइक्रोब्लॉगिंग साइट ट्विटर के सीईओ ‘जैक पैट्रिक डॉर्सी’ भारत भ्रमण पर आये जिसका उद्देश्य कांग्रेस अध्यक्ष माननीय राहुल गांधी जी और कुछ वामपंथी पत्रकारों व कायकर्ताओं से मुलाकात थी । इस मुलाकात में क्या खिचड़ी पकी ये तो नहीं पता चला पर इस खिचड़ी का जो दाना बाहर आया जिससे इसके पकने का अंदाजा हुआ वो अपने आप में काफी कुछ कहता है । इस फोटो के सामने आने पर कम्पनी के द्वारा जो सफाई पेश की गयी वो भी बड़ी हास्यास्पद है जिसके अनुसार हाल ही में कंपनी ने महिला पत्रकारों के साथ एक इवेंट में हिस्सा लिया था ताकि लोगों को करीब से समझा जा सके। महिलाओं के इस समूह में से ही किसी दलित महिला ने जैक के हाथ में यह पोस्टर थमा दिया है इसका मतलब यह है कि कंपनी सभी लोगों की बातें सुनती है और वह अपने सभी यूजर्स का ख्याल रखती है । उनके इस स्टेटमेंट से तो यही प्रतीत हो रहा कि वो बस, अपने किसी ख़ास यूजर की ही सुनती है और किसी एजेंडे के तहत काम करती अन्यथा इतनी बड़ी कम्पनी का सीईओ इतना मासूम या भोला-भाला नहीं हो सकता जो उसकी ही भाषा में लिखे वाक्यांश की गंभीरता न समझता हो वो भी तब जबकि, वो एक सोशल साईट का सर्वोच्च अधिकारी हो ऐसे में यही लगता कि साजिशों के तार बहुत दूर तक फैले है

ऐसे में हम सबको अत्यंत सतर्क व सावधान रहने की जरूरत है अन्यथा किसी दिन ये देश अपनी सभ्यता-संस्कृति जो इसकी अपनी पहचान उसे खोकर कहीं का भी नहीं रहेगा तब तक बहुत देर हो जायेगी अतः हम जब जहाँ ऐसी कोई घटना देखें अपनी आवाज़ बुलंद करें सहनशीलता का ये मतलब कतई नहीं कि कोई हमें रौंद ही दे, उखाड़ फेंके या हमारे वजूद को समाप्त करने का खुलेआम ऐलान करें और हम उसे यूँ ही लेकर उसकी साईट का इस्तेमाल करते रहे उसकी जेबें भरते रहे ताकि, एक दिन वो उसी पैसे से हमें ही बर्बाद कर दे जागो हिन्दुओं जागो... पानी सर के उपर से चला जा रहा लोग अब तो घर में घुसकर ही चेतवानी दे रहे देश के लोगों ये चुप रहने का समय नहीं है... क्रांति की चिंगारी सुलग चुकी है उसे शोला बनाने की जरूरत है   

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२२ नवंबर २०१८

बुधवार, 21 नवंबर 2018

सुर-२०१८-३२१ : #हरी_हर_के_मिलन_की_तिथि #आई_सौभाग्यदायिनी_वैकुण्ठ_चतुर्दशी




आज बड़ा ही दुर्लभ संयोग है और एक ऐसी तिथि का आगमन जो कि यूँ तो महीने में दो बार आती है लेकिन, कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी कोई आम दिवस नहीं बल्कि, आध्यात्मिक व सामाजिक दृष्टिकोण से इसका अत्याधिक महत्व है क्योंकि, आज के दिन जगत के पालनकर्ता चक्रधारी भगवान् विष्णु एवं सृष्टि संहारक जगतपिता आदिदेव शिव दोनों की एक साथ पूजा ही नहीं की जाती बल्कि, उनके हरी-हर स्वरुप की विशेष साधना-अर्चना की जाती है और यही वो दुर्लभतम योग भी लाती जबकि, आदिदेव शंकरजी को तुलसी दल तो भगवान् विष्णु को बेलपत्र चढ़ाई जाती है

देव उठनी ग्यारस के दिन जब चार महीने की लम्बी योगनिन्द्रा के पश्चात् जगतपालक विष्णु जागते हैं तो उनकी अनुपस्थिति में भोलेनाथ जो उनके स्थान पर इस सृष्टि का भार अपने हाथों में ले लेते आज वो उसे पुनः उनको सौंपते हैं अर्थात हम जो सोचते कि इतने दिन जब देवता सो जाते तो फिर इस पृथ्वी का संचालन यथावत किस तरह होता है उसका जवाब है कि जिस तरह कोई अधिकारी अपने कार्यस्थल से कुछ समय का अवकाश लेकर कहीं जाता तो वो इस अवधि में अपनी जगह किसी सुयोग्य कार्यकुशल विश्वसनीय अधिकारी को अपना इंचार्ज बनाकर अपना काम-काज सुपुर्द कर के जाता ताकि, उसके न रहने पर भी कार्यालय का समस्त कार्य सुचारू रूप से चलता रहे कोई व्यवधान या बाधा न आये बिल्कुल, उसी तरह से देवलोक में भी ऐसी ही व्यवस्था होती जहाँ किसी एक के न रहने या किसी कार्यवश छुट्टी लेने पर उसके स्थान पर कोई उतना ही समर्थ देवता उसका प्रभार लेता है और फिर जब वो वापस आता तो उसे उसके अधिकार वापस दे दिए जाते है

आज वही परम पावन घड़ी जबकि, देवों के देव महादेव देव शयनी एकादशी से देव उठनी एकादशी तक लक्ष्मीप्रिय जगन्नाथ के पाताललोक में जाने के बाद इस संसार का समुचित ढंग से क्रियान्वन करते और फिर आज इस विशेष योग पर उसे पुनः उनके ही हाथों में सौंप देते है जिसके निमित्त आज भगवान विष्णु अपने आराध्य शिवजी का हजारों कमल पुष्प से अभिषेक करते और वरदान स्वरुप उनसे सुदर्शन चक्र प्राप्त करते तो ऐसी पुण्यदायिनी तीती की सबको शुभकामनायें सभी अपने मन की कामनाओं को पूर्ण करने का देवताओं से आशीष पाये... जय हरिहर... जय भोलेनाथ... जय जगन्नाथ...  ☺ ☺ ☺ !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२१  नवंबर २०१८

मंगलवार, 20 नवंबर 2018

सुर-२०१८-३२० : #साहित्य_का_अमिट_नाम #बने_महाकवि_कालिदास_महान




आदिकवि वाल्मीकि और वेदव्यास के बाद अगर, किसी रचनाधर्मी का नाम साहित्य जगत में आता है तो वो है महाकवि कालिदास जिनके जन्म व स्थान के बारे में भले ही कोई शंका हो मगर, उनके रचित ग्रंथों के सम्बन्ध में किसी को कोई संदेह नहीं है । वो जिनके बारे में कई मिथक व किवदंतियां प्रचलित जिन्हें जानकर पूर्वार्द्ध में ज्ञानशून्य मानते थे उन्हीं के जीवन में इतना बड़ा चमत्कारिक परिवर्तन आया कि न केवल उनके ज्ञानचक्षु खुले वरन उन्होंने बुद्धिबल से ऐसी रचनाओं को जन्म दिया जो आज तलक भी अपनी सानी आप ही है । जिन्हें पढ़कर न जाने कितने ही लिखने वालों ने लिखने का तरीका और भाषा का सौंदर्य सीखा व जाना कि किस तरह से किसी लोककथा या आध्यात्मिक अंश को काव्य में ढालकर उसे सदियों के लिये अमर किया जा सकता है जिसका नतीजा कि वो आज भी अपनी जगह कायम है ।

उनको एक साधारण व्यक्ति से असाधारण व्यक्तित्व में परिवर्तित करने वाली पारसमणि का नाम 'विद्योत्तमा' है । जो एक राजकुमारी व अनिंद्य सुंदरी थी जिनसे विवाह करने न जाने कितने लालायित थे पर, वो अपने समान बुद्धिमान इंसान से ही शादी करना चाहती थी तो उनकी शर्त थी कि जो उनको शास्त्रार्थ में हरा देगा वे उसका ही वरण करेंगी । तब कुछ ईर्ष्यालु व उनसे पराजित विद्वानों ने इनको उनके समक्ष प्रस्तुत कर दिया तो उनके द्वारा इशारों में पूछे गए गूढ़ प्रश्नों का कालिदास ने भी इशारों में भी जवाब दिया जो एकदम सटीक निकले । इस तरह उन्हें अपनी जीवन संगिनी ही नहीं पथ-प्रदर्शक, गुरु भी मिल गयी जिसने उनके जीवन को इस तरह बदला कि एक बुद्धिहीन आदमी एकदम बुद्धिमान ज्ञानी पंडित में परिवर्तित हो गया । जिसका भाषा-व्याकरण पर इतना अधिकार था कि उसने अपनी कलम से संस्कृत जैसी कठिन भाषा में साहित्य का मापदंड ही बदल दिया और ऐसी कृतियों का निर्माण किया जो आप अपनी जवाब है ।

उन्होंने पौराणिक चरित्रों की कथाओं, देश-प्रदेश का वर्णन, ऋतुओं की व्याख्या और नायक-नायिकाओं का चरित्र-चित्रण इस तरह से किया मानो उन्हें कलम से पृष्ठों पर जीवंत ही कर दिया हो उनके संवाद व दृश्यों को इतनी रोचक तरीके से उभारा कि जब उनका अनुवाद भी पढ़ो तो वे सब आंखों के सामने सजीव होकर दिखाई देने लगते है । उनकी भाषा में अलंकारों व काव्यगत विशेषताओं का इस तरह से उपयुक्त प्रयोग हुआ है कि रसिक जन विस्मृत होकर उसमें खो जाते है और उन्हें यूं लगता मानो ये कोई कल्पना नहीं बल्कि, वास्तविकता का सटीक लेखन हो जैसे उन्होंने इसे साक्षात देखकर लिखा हो और ये कोई अतिशयोक्ति नहीं है उन पर मां सरस्वती की विशेष कृपादृष्टि थी तो फिर किस तरह वो सामान्य श्रेणी की रचना कर सकते थे । उनके द्वारा रचित अभिज्ञान शाकुन्तलम, मलविकाग्निमित्र, कुमार संभव, मेघदूत, ऋतु संहार आदि अब तक भी साहित्य अनुरागियों के प्रिय ग्रंथो में शुमार है इनके अनुवाद आज भी सबसे अधिक पसन्द किये जाते और खरीदे भी जाते है जिनमें अपने प्राचीन भारतीय सभ्यता-संस्कृति का दर्शन भी होता है ।

यूं तो कालिदास जी की जन्मतिथि के बारे में कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता फिर भी उनके द्वारा देव प्रबोधिनी एकादशी तिथि का बार-बार उद्धृत करना कहीं न कहीं ये इंगित करता कि संभवतः यह उनकी प्रिय का जन्म से जुड़ी हुई तिथि है तो साहित्यकार कार्तिक शुक्ल द्वादशी को उनकी जयंती मनाते है तो आज उनके अवतरण दिवस पर उनका पुण्य स्मरण व उनको मन से नमन...☺ ☺ ☺ !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२० नवंबर २०१८

सोमवार, 19 नवंबर 2018

सुर-२०१८-३१९ : #देव_उठनी_ग्यारस_मनाओ #तुलसी_विवाह_का_मंडप_सजाओ




भारत देश की जीवन्तता के नजारे आये दिन देखने को मिलते ही रहते जिसमें बीच-बीच में आने वाले तीज-त्यौहार उल्लास-उत्साह ही नहीं अपार ऊर्जा का संचार भी करते और यही इसकी विविधतायें जो दुःख व गरीबी में भी लोगों को टूटने नहीं देती बल्कि, निराशा के घोर अंधकार के मध्य ये भले सितारों की तरह नन्ही-सी चमक ही बिखेरें पर जीने के लिये काफी है आखिर, मरते को तिनके से बढ़कर सहारा चाहिये भी नहीं यदि उसके भीतर जीने का जज्बा भरा हुआ है अन्यथा सब कुछ होते हुये भी सब निरर्थक व बेकार ही है

यही वजह कि हम इन परम्पराओं का वास्तविक आनंद उठाते हुये इन्हें ही देखते जो चेहरों या वस्त्रों से भले दीन-हीन नजर आये पर दिल से बेहद रईस होते इसलिये तो सबको पूजन की सामग्री बेचते हुये अपना अंगोछा बिछाकर उस पर छोटे-छोटे सामान ही नहीं चेहरे पर मुस्कान भी सजाये रहते और उस पर भी जब लोग इनके साथ रूपये-दो-रूपये कम करने जोर देते तो अपने मुनाफे में कटौती होते देख भी ये उसे उनकी बताई कीमत पर दे देते ताकि, सबका त्यौहार ख़ुशी-ख़ुशी मन सके जीवन में भला इससे बड़ी ख़ुशी और क्या है ।

इस देश की यही सहनशीलता और सबके साथ मिलकर जीने की इस अद्भुत कुशलता से ही तो सब जलते और अक्सर ये प्रयास करते कि इनके बीच किसी तरह से फूट डाल दी जाये ताकि ये आपस में झगड़ते ही रहे और इनका काम बन जाये इसके लिये ये तरह-तरह के प्रपंच भी रचते पर, इस देश में जब तक लोगों के हृदय में सनातन आस्था-विश्वास की पूंजी शेष है कोई कितना भी चाहे छल-कपट कर ले या कितने भी जाल बिछा ले कुछ न होने का क्योंकि, उखड़ते वही जिनकी जड़ें कमजोर या सतही होती है ।      

आज कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी एक ऐसी ही पावन तिथि जब संसार के पालनकर्ता जागते और उसके साथ ही समस्त मांगलिक कार्य भी शुरू हो जाते तो आज सुबह से ही ऐसी अनगिनत दृश्य दिखाई दिये जो ये विश्वास दिलाते कि सोशल मीडिया पर जितनी भयावह नजर आती उतनी जहरीली भी नहीं हुई है हवायें अब भी उसमें प्रेम, स्नेह, भरोसे, बन्धुत्व के कण घुले हुये है जो डगमगाती हुई संस्कृति-सभ्यता की नाव को मजबूत सहारा देकर बिना डुबाये बहुत आगे तक ले जा सकते है

हमारे पुरातन रीति-रिवाज व धरोहर इसी तरह हम संजोतें रहे यही मनोकामना और सबको देव-प्रबोधिनी एकादशी व तुलसी विवाह की मंगलकारी शुभकामनायें... ☺ ☺ ☺ !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
१९ नवंबर २०१८

रविवार, 18 नवंबर 2018

सुर-२०१८-३१८ : #एक्स्ट्रा_केयरिंग #अक्सर_पोल_खोलिंग




जब चलता
किसी भी पति का
घर से इतर 
किसी से कोई चक्कर
बाहर या दफ्तर
तब शुरू हो जाता
बहानों का सिलसिला
घर देर से आना अक्सर
ऐसे में किसी पल
हो न जाये किसी को शक़
आज नहीं तो कल
सोच-सोचकर ये सब
वो ओवर स्मार्ट बनने लगता  
खुद को जिम्मेदार दर्शाने
अपनी बीबी को कुछ ज्यादा ही
अटेंशन देने लगता है
पर, प्रेम में अंधा हुआ वो
ये देख नहीं पाता कि
उसकी यही ‘एक्स्ट्रा केयरिंग’
बन जाती उसकी वाइफ की टेंशन
सजग और सतर्क हो जाती
उसकी छठी इन्द्रिय
इस तरह अनजाने में ही
खुद पति के द्वारा ही
उसकी पोल खुल जाती है
हरकतें बिना कहे ही  
वो सब कुछ बोल जाती है
☺ ☺ ☺ !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
१८ नवंबर २०१८