सोमवार, 31 दिसंबर 2018

सुर-२०१८-३६१ : #घड़ी_की_सुइयां #कहती_कभी_न_रुकना




घड़ी की तीनों सुइयां होती अलग-अलग नाप की और अलग-अलग नाम की पर, इन तीनों के बीच आपसी तालमेल से ही समय आगे बढ़ता जो पल-पल बदलता रहता और हमको कुछ कहता जिसे हम अनसुना कर देते...

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कुछ कहती
टिक-टिक करती
घड़ी की सुईयां
सुनो जरा गौर इसको
पल-पल बीत रहा
हर पल निरंतर
गर, समय हो कम तो
न रुकना क्षण भर को भी
बोले ‘सेकंड’ की सुई
थाम के हाथ इन पलों का
पा सकते एक घड़ी
जो देती जीने को
छोटे-छोटे लम्हों की कड़ी
ये कहती ‘मिनट’ की सुई बड़ी
और जो कर ली कदर
एक-एक पल की तो
जरा-सा थमकर इत्मिनान से
फ़िर बढ सकते आगे
पा सकते मंज़िल कोई भी
देती ये बडा संदेश
सबसे छोटी ‘घंटे’ की सुई ||
●●●●●●●●●

आज की रात भी ये अपने साथ इक्कीसवी सदी को कुछ और बड़ा कर देगा साथ ही हमारी उम्र व अनुभव में थोड़ा इजाफ़ा कर देगा जिसे हम रोक तो नहीं सकते लेकिन, इनके साथ कदम मिलाकर चलते हुये अपनी मंजिल को जरुर पा सकते है तो यही करना है

यही संकल्प लेना है कि अपने तयशुदा लक्ष्य को पा सके... ☺ ☺ ☺ !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
३१ दिसम्बर २०१८

रविवार, 30 दिसंबर 2018

सुर-२०१८-३६० : #फ़िल्में_जिनकी_विख्यात_देश_विदेश #वो_है_महान_निर्माता_निर्देशक_मृणाल_सेन




२०१८ जाते-जाते अपने साथ सदी के एक महान फिल्मकार को भी अपने साथ लेता गया वो भी ऐसे जिन्होंने भारतीय सिनेमा को विश्व परिदृश्य पर नाम व पहचान दिलाई आज रविवार की सुबह उस निर्देशक ने ९५ की उम्र में अंतिम सांस ली अपने पीछे अपनी समृद्ध विरासत और वो अनमोल थाती अपनी उन फिल्मों के रूप में फिल्म इंडस्ट्री को सौंपकर गये जिन्होंने हिन्दी सिनेमा को अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक पहुँचाया सिनेमा की दुनिया में काम करने वालों को कला या समनांतर सिनेमा जैसे एक नवीनत्तम और अलग ही तरह के सिनेमा की सौगात दी जिसने उस दौर ही नहीं उसके बाद के अनेक फिल्मकारों को इस दिशा में कार्य करने हेतु प्रेरित किया और ये बताया कि कहानी को इस तरह से भी फिल्माया जा सकता है कि वो मनोरंजन देने के अलावा सोचने को भी मजबूर करे

हम बात कर रहे है ‘मृणाल सेन’ की जो भारतीय सिनेमा के इतिहास में उस निर्माता-निर्देशक के रूप में अंकित है जिन्होंने सिनेमा की प्रचलित धारा को केवल मोड़ा नहीं बल्कि, उससे एक नई धारा भी उत्पन्न की जिसमें प्रवाहित होकर केवल कहानी का प्रस्तुतिकरण ही नहीं उसके साथ-साथ फ़िल्मी कलाकारों के अभिनय की भाव-भंगिमा व चरित्र-चित्रण भी कथा के अनुरूप होकर वास्तविकता का सजीव चित्रांकन हो उठता था यही वजह कि उनकी फ़िल्में बांग्ला भाषा में होने एवं वे बंगाली फिल्मकार होने के बावजूद भी हिंदी सिनेमा में अपना पूर्ण दखल रखते है क्योंकि, उन्होंने भले ही हिन्दी भाषा में कम फिल्मों का निर्माण किया पर, जो भी बनाई उन्होंने देश ही नहीं विदेशों में भी उन्हें व देश को ख्याति दिलाई व विश्व पटल पर हिन्दी सिनेमा का नाम सदा-सदा के लिये स्थापित कर दिया

यूँ तो उनका फ़िल्मी दुनिया में आना अकस्मात था लेकिन, जब वे यहाँ आ ही गये तो फिर ऐसा कमाल किया कि भारत सरकार ने उन्हें सिनेमा के सर्वोच्च सम्मान ‘दादा साहब फाल्के पुरस्कार’ ही नहीं कला के लिये ‘पद्मभूषण’ से भी सम्मानित किया और १९९८ से २००० तक वे राज्यसभा में मनोनीत सांसद भी रहे । उन्होंने अपनी फिल्मों के जरिये २० से अधिक ‘नेशनल अवार्ड’ भी हासिल किये इसके अलावा दुनिया में जितने टॉप फिल्म फेस्टिवल होते हैं केन (फ्रांस), वेनिस, बर्लिन, शिकागो, मॉस्को, मोंट्रियल, कार्लोवी, कायरो सब में उनकी फिल्मों को चुना जाता रहा व उन्हें अवॉर्ड भी मिलते रहे । यही वजह कि देश ही नहीं विदेश में भी उनको अनेकों सम्मान प्राप्त हुये विश्व सिनेमा में उनके योगदान के लिए सोवियत संघ ने भी उन्हें 1979 में ‘नेहरू-सोवियत लैंड अवॉर्ड’ से सम्मानित किया । यही नहीं, उन्हें साल 2000 में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन ने अपने मुल्क का ऊंचा सम्मान ऑर्डर ऑफ फ्रेंडशिपमृणाल सेन को पहनाया ये सम्मान पाने वाले वे अकेले इंडियन फिल्ममेकर थे । दो साल पूर्व ही उन्हें ऑस्कर फिल्मों की ज्यूरी का सदस्य भी बनाया गया था ।

उनकी इस विश्व विख्यात शख्सियत की वजह से ही आज उनके निधन की खबर सुनकर देश के प्रधानमन्त्री ने भी शोक संवेदनाएं व्यक्त की तो महानायक अमिताभ बच्चन ने भी श्रद्धा सुमन अर्पित किये क्योंकि उनकी फिल्म ‘भुवन शोम’ के माध्यम से ही उन्होंने पहली बार वोईस ओवर किया था और यही वो फिल्म जिसके आधार पर आमिर खान की फिल्म लगान के नायक-नायिका का नाम भी भुवन व गौरी रखा गया था । १९७६ में उनकी ही बनाई गयी ‘मृगया’ फिल्म से आगे डिस्को डांसर के रूप में अपनी पहचान बनाने वाले मिथुन चक्रवर्ती ने अपने फ़िल्मी कैरियर की शुरुआत की जिसके लिये निर्देशक ही नहीं अभिनेता को भी उस साल के सर्वश्रेष्ठ नायक राष्ट्रीय पुरस्कार मिला जो आज भी ‘मिथुन दा’ की एक बेस्ट मूवी मानी जाती है ।

सिने जगत को उनके दिये योगदान व विश्व परिदृश्य में उनके कद को देखते हुये उनके लिये कुछ-भी या कितना भी लिखा जाना कम ही है उन्हें बेहतर तरीके से जानने-समझने के लिये उनकी फिल्मों का अवलोकन ही पर्याप्त है और हम खुशनसीब कि वे फ़िल्में उपलब्ध है तो सिनेमा के शौकीन उन्हें देखकर ये जाने कि उसने क्या खो दिया... एक दिन अचानक... शब्दांजली... श्रद्धांजलि... !!!

#एक_दिन_अचानक
#चले_गये_मृणाल_सेन

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
३० दिसम्बर २०१८

शनिवार, 29 दिसंबर 2018

सुर-२०१८-३५९ : #सुपर_स्टार_के_पर्याय #राजेश_खन्ना_फिर_याद_आये




आज फिल्म इंडस्ट्री में कहने को तो अनेकों सुपरस्टार हैं लेकिन, एकमात्र साउथ के बड़े वाले अभिनेता रजनीकांत ही है जिनके नाम के पहले स्क्रीन पर ये टाइटल पहले आता है बाद में उनका नाम और हिन्दी सिने जगत में इस टैग को ईजाद करने का श्रेय जिस नायक को जाता वो है हरदिलअजीज आकर्षक अभिनय के धनी ‘राजेश खन्ना’

जिन्होंने रजत पर्दे पर आकर उसे अपनी उपस्थिति से इस तरह से अपने आभामंडल से रौशन किया कि उनकी उस छवि के लिये स्टार शब्द छोटा पड़ गया और वो हिन्दी सिने जगत के प्रथम सुपर स्टार कहलाये जिनकी मनभावन अदाओं और दिलकश अंदाजों ने हर किसी को अपना दीवाना बना लिया था और जिसकी एक झलक देखने के लिये लडकियाँ दीवानी हो जाती थी

हर एक नायिका जिसके साथ काम करने को लालायित रहती थी जिसकी फिल्मों का उनके चाहने वालों को बेसब्री से इंतजार रहता था इसलिये उनकी ज्यादातर फ़िल्में सुपर-डुपर हिट की श्रेणी में आती है उनके आगमन के साथ ही एक और नया शब्द भी सुनने को मिला था चॉकलेटी हीरो और लडकियों को ये कितनी पसंद बताने की जरूरत नहीं तो उस दौर की किशोरियां ही नहीं हर उम्र की महिलायें उनकी दीवानी हो गयी थी और उनकी आँखें मिचमिचाने की अदा हो या फिर हाथों को अपनी ही तरह से लहराने का जुदा ढंग सबने उन्हें उनके नाम से इस तरह से स्थापित कर दिया कि आज तक भी लोग उनके उन्हीं अंदाज की नकल करते है

जो दर्शाता कि एक कलाकार के पास यदि उसकी अपनी ही कोई अलहदा अदा हो तो भी वो लोगों को लुभा सकता बशर्तें कि उसके साथ अभिनय की गहराई भी होना जरूरी है क्योंकि, लोग केवल नाजो-अंदाज को अधिक दिन तक याद नहीं रखते वो तो केवल उसकी पहचान के तौर पर उसे दोहराते लेकिन, अंततः एक अदाकार द्वारा अभिनीत की गयी भूमिकायें और यादगार फ़िल्में ही उसकी धरोहर के रूप में शेष रह जाती जिनके माध्यम से उनके प्रसंशक उन्हें आने वाले समय में याद करते और सदियाँ भी उसे उसी तरह से इतिहास में दर्ज करती है

इसमें कोई संदेह नहीं कि जो मुकाम ‘राजेश खन्ना’ ने अपनी अनोखी स्टाइल से हासिल किया उसकी वजह से उन्हें भूल पाना मुमकिन नहीं होगा और जब-जब २९ दिसम्बर आएगी उनके जन्मदिन की बधाइयाँ उनके नाम लिखी जायेंगी... क्योंकि, मिसालें भुलाई नहीं जाती सदियों-सदियों दी जाती है... ☺ ☺ ☺ !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२९ दिसम्बर २०१८

शुक्रवार, 28 दिसंबर 2018

सुर-२०१८-३५८ : #आजकल_चरित्र #महज़_प्रमाण_पत्र




कभी आत्मबल
संयम, नियम पालन से
हीरे की तरह
सावधानी से तराशकर
गढ़ा जाता था
इंसान का चरित्र
जो अब बड़ी आसानी से
कागज़ पर लिख
बना उसका प्रमाण-पत्र
निर्धारित कर दिया जाता है
जिसका कोई लेना-देना नहीं होता
आचरण या व्यक्तित्व से
वो तो तय होता
आदमी के कद और रुतबे से
नहीं कोई मापक यंत्र
जो कर सके इसका आकलन
अब तो लिखा हुआ ही
सर्वोपरि होता
वास्तविकता का जिसमें
कोई अंश नहीं होता
तभी तो...
मिटते ही नामोनिशान
वो भी हो जाता गुमनाम
पर, जो सचमुच होते चरित्रवान
उनका होता सदा गुणगान ।।

#कैरेक्टर_नॉट_सर्टिफिकेट

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२८ दिसम्बर २०१८

गुरुवार, 27 दिसंबर 2018

सुर-२०१८-३५७ : #शायरी_का_पर्याय_मिर्ज़ा_ग़ालिब #उनके_लिखे_हर्फ़_हर_दास्ताँ_में_शामिल




मुझसे कहती है तेरे साथ रहूंगी सदा,
ग़ालिब बहुत प्यार करती है मुझसे उदासी मेरी

कोई इस जहाँ में ऐसा नहीं जिसकी जुबां पर उसका नाम नहीं, नाम गर, न भी हो लबों पर तो ये नामुमकिन कि उसके अल्फाज़ से कोई वाकिफ़ नहीं गोया कि जिन्हें शायरी की समझ नहीं या जिनका गज़ल में रुझान नहीं वे भी इस नाम से परिचित और कभी-न-कभी उसका कोई शेर कहीं-न-कहीं जरुर पढ़ा होगा कि उनके लिखे कई अशआर तो मुहावरे की तरह प्रयोग किये जाते है जो उनकी मकबूलियत को जाहिर करते कि किस कदर उन्होंने जीवन को हर सांस में जिया ही नहीं बल्कि, अपनी कलम से बयाँ भी किया जो अमूमन किसी न किसी की ज़िन्दगी के किसी न किसी अहसास से टकरा ही जाता तो अनायास ही उसके होंठों पर उसकी लिखी कोई शायरी आ ही जाती है...

हुई मुद्दत कि 'ग़ालिब' मर गया पर याद आता है,
वो हर इक बात पर कहना कि यूँ होता तो क्या होता

किसी के लिये तो उनको निरंतर पढ़े जाना ही नित अर्थों के नये पन्ने खोलता है क्योंकि, जरुरी नहीं कि सामने वाला उसके वही मायने निकाले जो लिखने वाले ने कहना चाहा कभी-कभी तो पढ़ने वाला अपने हिसाब से उसे नये तरह से परिभाषित करता और इस तरह तमाम शोध उन पर जारी रहते कि इतने सारे अनछुये पहलुओं को जानने के बाद भी कुछ ऐसा बाकी रहता जो उसे ही नजर आता जो उसकी तलाश में भटक रहा और यही बेचैनी ही तो है जो ग़ालिब को मिटने नहीं देती और न ही कभी उनका नाम कभी अतीत का हिस्सा बनेगा बावजूद इसके कि उन्हें गुज़रे शताब्दियाँ हुई जा रही है पर सोशल मीडिया के इस जमाने में भी कोई सर्वाधिक लोकप्रिय है तो वो मिर्ज़ा ग़ालिबहै जिनके नाम पर तो अब वो कलाम भी दर्ज हुये जा रहे जो उन्होंने कभी लिखे ही नहीं जो उनके प्रति लोगों के जुनून को दर्शाता है कि अपने शब्दों को भी उनके नाम के साथ अमर कर देना चाहते है...

तुम न आए तो क्या सहर न हुई
हाँ मगर चैन से बसर न हुई
मेरा नाला सुना ज़माने ने
एक तुम हो जिसे ख़बर न हुई

कोई-भी ऐसा जज्बात नहीं जिसे उन्होंने अपनी कलम से छूकर महसूस न किया हो या कोई ऐसा जज्बा नहीं जो उन्होंने महसूसा हो पर उसे जता न पाये हो कि अपनी फ़ाकामस्ती में रहते हुए भी वे किसी भी संवेदना से बच नहीं पाये चाहे फिर वो इश्क़ हो या उदासी या ख़ुशी या फिर गम का ही कोई आलम सबको उन्होंने इस तरह से सफों पर उतारा कि हर एक वो पल उस रूप में सदा-सदा के लिये इस तरह से पन्नों में दर्ज हो गया कि जब उसे कोई पढ़े तो उस अहसास से ही गुजरता है और खुद को कभी हंसता तो कभी रोता और कभी ग़मगीन पाता हैं कि रगों में दौड़ने वाले लहू के साथ जज्बात भी अक्सर, इस तरह से कलम के जरिये कागज़ पर उड़ेल दिये जाते है और जो शब्दों को इस खुबसूरती से शायरी में बाँधा करता वो खुद कहता है कि...

लफ़्ज़ों की तरतीब मुझे बांधनी नहीं आती ग़ालिब
हम तुम को याद करते हैं सीधी सी बात है

अपने इसी सीधे-साधे सटीक बात करने के अंदाज़ ने उनको आम जनता के बीच वो लोकप्रियता दी कि चलते-फिरते भी उन्होंने यदि कोई बात कह दी तो वो बहर में ही निकली कि गज़ल उनकी रूह में समाई हुई थी तो फिर भला गज़ल का वो शहंशाह किस तरह से कोई भी लफ्ज़ बेमानी कह देता इसलिये तो उनके जीते-जी ही नहीं बाद मरने के भी वो हमारे लिये उसी तरह मौज़ूद है जिस तरह से कोई शख्स अपनी मौज़ूदगी को सदेह साबित करता उसी तरह से कलमकार के शब्द ही उसके होने का भरम रखते है और जो रूह भटकती हो वफ़ा कि तलाश में तो वो शरीर के साथ छोड़ने पर भी उसे ढूंढती ही रहती चाहे फिर उसे उस नादानी का गुमां ही क्यों न हो जाये वो उसे खोजता ही रहता है...

मैं नादान था जो वफ़ा को तलाश करता रहा ग़ालिब
यह न सोचा के एक दिन अपनी साँस भी बेवफा हो जाएगी

उनकी क्या सबकी साँसों को एक दिन इसी तरह से साथ छोड़कर चले जाना है ये जानते-बुझते भी सब फ़िज़ूल उसे जाया करते चंद ही जो ऐसा कोई काम करते की फिर भले साँसें चूक जाये पर, वो ऐसा मुकाम हासिल कर लेते जब उनके न रहने पर भी उनका किया हुआ काम उनको जिन्दा रखता है यही वजह की आज उनके न रहने पर भी हम उनका जन्मदिन बड़े प्यार से मना रहे है और उन्हें बुला रहे कि वे अपने वादे पर कायम रहते हुये आये क्योंकि, वे हम सबके लिये गुज़रा हुआ वक़्त नहीं है बल्कि, उन्हें याद करके तो न जाने कितने अपना वक़्त गुजारते है...

मेहरबां होके बुला लो मुझे चाहो जिस वक़्त
मैं गया वक़्त नहीं हूँ के फिर आ भी न सकूँ

मिर्ज़ा असदुल्लाह खाँ 'ग़ालिब' साहब को आज उनकी २२१ वी जयंती पर उनके सभी चाहने वालों कि तरफ से यौम-ए-पैदाइश की तहे दिल से मुबारकबाद... <3 !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२७ दिसम्बर २०१८

बुधवार, 26 दिसंबर 2018

सुर-२०१८-३५६ : #नहीं_भूल_सकते_वो_नाम #उधम_सिंह_ने_किया_ऐसा_काम




इस देश ने अपनी आँखों से अनगिनत शासकों को देखा और अनेकों जुल्म सहे जो इतिहास के पन्नों में रक्तिम स्याही से लिखे हुये है जिनमें जलियावाला बाग़ जैसा क्रूरतम व जघन्य नरसंहार दूसरा कोई नहीं जहाँ घेरकर बच्चे, बूढ़े, युवा और असहाय लोगों को बड़ी निर्दयता के साथ एक अंग्रेज सनकी अफसर ने मौत के घाट उतर दिया जिसके निशान वहां अब तलक मौजूद है

जो उस खूनी खेल की निर्मम दास्तान दर्दीले स्वर में बयान करते है जिन्हें पढ़-सुनकर ही हमारा दिल दहल जाता और रगों में बहने वाला खून खौल उठता है ऐसे में जिन्होंने उस भयवाह घटना को दिल पर पत्थर रखकर सहा या उस समय घटनास्थल पर जाकर उस खौफ़नाक मंजर को अपनी आँखों से देखा भले, वे उस पीड़ा को अपनी जुबां से व्यक्त नहीं कर सकते पर पर, अपनों की मौत का बदला जरुर चाहते है

इसने जिस नवजवान को सर्वाधिक प्रभावित किया उसने अपने जज्बे को अपने भीतर उस वक़्त तक जज्ब कर के रखा जब तक कि लन्दन जाकर उस हत्यारे को उसके अंजाम तक नहीं पहुंचा दिया उसके बाद ही उसे चैन मिला ऐसे वीर देशभक्त शहीद को आज उसकी जयंती पर बारम्बार नमन जिसने माँ भारती के सपूत होने का फर्ज ही नहीं निभाया बल्कि, उन सब मृतात्माओं को सुकून भी पहुँचाया

वे सब जो कहने को उसके रिश्तेदार नहीं थे पर, उसके बावजूद भी उन सबसे उसका रूहानी रिश्ता था और जो न्याय की तलाश में न जाने कब से भटक रहे थे और जब अन्याय का प्रतिफल न मिले तो फिर इस तरह ही प्रतिकार लेना पड़ता है अपना हक छीनना पड़ता है तो उसने भी वही किया और जिस तरह किया वो सुनने में असम्भव लगता पर, उसने उसे सच कर दिखाया आज उस बहादुर को जन्मदिन की मुबर्बाद... उधम सिंह जिंदाबाद... ☺ ☺ ☺ !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२६ दिसम्बर २०१८

मंगलवार, 25 दिसंबर 2018

सुर-२०१८-३५५ : #प्रेम_से_जीतने_आये_दिल #प्रभु_के_प्यारे_पुत्र_ईशा_मसीह




इस दुनिया में ईश्वर ने अपना सन्देश लोगों तक पहुँचाने के लिये अपने अनेक दूत भेजे जो अलग-अलग रूप धरकर इस धरा पर आये और अपने तरीके से सबके बीच ये कहने का प्रयास किया कि, हम सब एक ही प्रभु की सन्तान है हम सबको आपस में मिल-जुलकर रहना चाहिये क्योंकि, जीवन क्षण-भंगुर है जिसे बेवजह की बातों या लड़ाई-झगड़े में व्यर्थ गंवाने की जगह आपस में प्रेम से व्यतीत करना चाहिये

जितने भी अवतार इस जग में आये सबने एक ही बात कहीं एवं सबने हमारे बीच वही पैगाम पहुँचाया जिसके लिये वे यहाँ आये थे पर, हमने उनकी बातों को मानने की जगह उन्हें ईश्वर का दर्जा देकर मन्दिर-मस्जिद-गिरजाघर या गुरूद्वारे में बैठा दिया क्योंकि, ये हमें उन नियम-कायदों पर अमल करने से ये काम अधिक आसान लगा पर, ये भूल गये कि एक दिन आता जिसे कयामत कहते तब हम इनकी कही बातों को दोहराते पर, अफ़सोस तब तक बहुत देर हो चुकी होती है

हम गौर करें तो पायेंगे कि, जब हमने किसी एक अवतार की बात को गंभीरता से नहीं लिया या ये माना कि चूँकि वे तो भगवान इसलिये उनके लिये कुछ भी कर पाना मुश्किल नहीं मगर, हम तो अदने-से इन्सान है तब-तब उस परमपिता ने अपने किसी अन्य पुत्र को पुनः हमारे बीच भेजा जिससे कि देर से ही सही हम ये समझ जाये कि इस जगत में सब उसके ही बनाये बन्दे है जिनका एक ही धर्म है मानवीयता

आज भी एक ऐसे ही ईश्वर के प्यारे पुत्र ईशा की जयंती है जो प्रेम का मानवीय रूप धारण कर इस दुनिया में आये और अपने समस्त जीवन में उन्होंने सबको निःस्वार्थ प्यार ही बांटा एवं सदैव उनकी ये कोशिश रही कि सब आपस में प्रेम से रहें अपने छोटे-छोटे क्रियाकलापों और हर गतिविधि से उन्होंने हमेशा यही जताया कि हम सब एक है और ये साबित करने ऐसा जीवन जिया जिससे हम ये माने कि सबका मालिक एक है  

उनके जीवन का एक वाकया ये बताता कि वे कितनी सहजता से सबक सीखते-सिखाते और सबको प्रेम बांटते थे...

एक बार की बात है ‘प्रभु ईसा मसीह’ अपने शिष्यों के साथ कहीं जा रहे थे, तब बीच राह में उन्होंने देखा कि एक गड़ेरिया अन्य भेड़ों की अपेक्षा अपनी एक भेड़ को अतिरिक्त स्नेह कर रहा है उसने स्नेह से उस भेड़ को गोद में उठाया फिर बहला-फुसला के उसे ताज़ी-हरी घास खाने को दी ये सब देखकर ईसा मसीह ने गडरिये से इस स्नेहातिरेक का कारण पूछा तो वो बोला—“प्रभु, यह भेड़ हमेशा रास्ता भटक जाती है यूँ तो कहने को मेरे पास और भी बहुत सारी भेड़ें है पर, वे सब सीधे घर आती है लेकिन, यही राह भूल जाती है इसलिये आज इसे अधिक प्यार दिया ताकि ये फिर से रास्ता न भटके” उसकी बात सुनकर ईसा मसीह प्रसन्न होकर अपने शिष्यों से बोले—“जो राह से भटक जाये उन्हें प्यार देकर राह पर लाना चाहिये न कि उन्हें मारना चाहिये या उन पर क्रोध करना चाहिये”

हम सबको सदा प्रेम का पथ पढ़ाने वाले प्रेम दूत की जयंती पर सबको बधाई... ☺ ☺ ☺ !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२५ दिसम्बर २०१८

सोमवार, 24 दिसंबर 2018

सुर-२०१८-३५५ : #हर_कोई_बन_सकता #किसी_दूसरे_के_लिये_सांता




न रहे कोई ग़म
न रहे कोई उदास
सबको मिले खुशियाँ
सब मना सके मिलकर
क्रिसमस का त्यौहार
इसलिये रात में आते सांता
बांटने सबको उपहार
देने हर हाथ में कोई सौगात
पाकर जिसे मुस्कुरा उठे
रोते हुये लब सभी
हर दिल में बजने लगे
जिंगल बेल का मधुर गीत
थिरक उठे सबके कदम
न रहे उनके बीच भेद कोई
न हो कोई अमीर
न ही रहे कोई गरीब
मिट जाये ऊंच-नीच की खाई
चढ़ गये जिसके लिये
प्रभु पुत्र ईसा मसीह सलीब
सबको हासिल हो
उसके हिस्से का प्यार
दे सकते हम भी
किसी को मुंहमांगी मुराद
कर सकते पूरे
किसी के अधूरे ख्वाब
पोंछ सकते है
किसी के बहते आंसू
लगा सकते है
जख्मों पर मरहम
बन सकते हम सब भी
दूसरों के लिये सांता
हम भी तो दूर कर सकते
किसी का कोई अभाव
देखें तो मिल जायेगा भीतर
छिपा हुआ वो संत
जो सबकी तो नहीं मगर,
चाहे तो कर सकता
किसी की कहानी का सुखांत   
फैलाकर प्रेम उजियारा
लेकर हाथों में हाथ
स्नेहिल स्पर्श से अपने
कर सकता है
नकारात्मकता के घनघोर
अँधेरे का अंत   
तो आओ चले वहां
कर रहा कोई इंतजार जहां  
ना-मुमकिन नहीं
इतना तो है सबके पास  
कि बन सकता
किसी के लिये कोई भी
इक दिन का ‘सांता’
☺ ☺ ☺ !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२४ दिसम्बर २०१८

रविवार, 23 दिसंबर 2018

सुर-२०१८-३५३ : #लघुकथा_कवयित्री_होना_आसान_है




वाह, दीदी आप तो फेसबुक पर सेलिब्रिटी बन गयी आपकी कविता डलती नहीं कि लाइक-कमेंट्स की झड़ी लग जाती है कोई माने या न माने मगर, ये सच है कि जिस तरह आपने सोशल मीडिया पर महिलाओं के दिल की बातों को कविताओं के जरिये सामने रखा वो सबको अपने ही मन की बात लगती जब से आपकी फैमिली से परिचय हुआ तो अब मैं भी आपकी फैमिली मेम्बर ही हूँ ‘प्रिया’ को प्यार देना और कहना कि मौसी उससे मिलने जल्दी ही आयेगी ।

नितारा ने मेघना के पर्सनल नम्बर पर मैसेज किया और तुरंत रिप्लाई आया कि, जब भी आना हो बता देना फिर मिलकर बात करते है ।

एक दिन जब वो किसी काम से कोर्ट गयी तो वहां उसे मेघना की बेटी ‘प्रिया’ मिल गयी जो वहां किसी से कोर्ट मैरिज करने आई थी जब उसने इसकी वजह पूछी तो उसने रोते हुये बताया कि, मौसी, मम्मी जबरदस्ती मेरी शादी किसी दूसरे लडके से करना चाहती जबकि, मुझे राहिल पसंद है पर, वो दूसरी जात का है इसलिये मम्मी उसके अगेंस्ट है ऐसे में मुझे मजबूर होकर ये कदम उठाना पड़ा उसने रिक्वेस्ट भी की कि, प्लीज आप उनको अभी ये बात बिल्कुल भी नहीं बताना आफ्टर मैरिज तो पता चल ही जायेगी पर तब कोई खतरा नहीं होगा

वो सोचने लगी कि, जो द्रोपदी, सीता, यशोधरा तक के मन की बात जानती और उस पर कवितायें रचती अफ़सोस उसे खुद के घर की बिटिया की पसन्द-नापसंद से कोई सरोकार नहीं वाकई, फेसबुक पर कविता लिखना बड़ा आसान है

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२३ दिसम्बर २०१८

शनिवार, 22 दिसंबर 2018

सुर-२०१८-३५२ : #हर_कोई_उसका_दीवाना_है




गोकुल की
हर एक गोपी
हर ग्वाल-बाल
सारा का सारा जमाना
हर कोई उसका दीवाना हैं ।
.....
उसकी बंशी
उसकी बोली
उसकी चाल
उसकी मुस्कान
उसकी हर एक अदा ने
सबको अपना बना डाला हैं ।
.....
जो भी देखे
जो भी सुने
जो भी मिले
उसका ही हो जाये
उसके बिन जी न पाये
नजर उसकी जो कातिल हैं ।
.....
हर आँख रोई
हर दिल तड़फा
जब चले गये कान्हा
छोड़ कर अपना धाम
सब रो-रोकर याद करते
हर कोई विरह में पागल हैं ।
……….

#मासानां_मार्गशीर्षोऽहं
#महीनों_में_मैं_मार्गशीर्ष_हूं
#मार्गशीर्ष_पूर्णिमा

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२२ दिसम्बर २०१८

शुक्रवार, 21 दिसंबर 2018

सुर-२०१८-३५१ : #वतन_के_आगे_कुछ_नहीं #मैं_खुद_भी_नहीं




चाह नहीं कि
इश्क़ में फ़ना हो जाऊं
किसी की ख़ातिर
वज़ूद अपना यूँ ही गंवाऊं
लिख प्रेम के पुर्जे
जेहन अपना फ़िज़ूल खपाउं
फिरूँ बन के दिवानी
जुनूनी पागल कहलाऊं
दुनियावी गहनों से
तन अपना सवारुं सजाऊँ
देख-देख दूसरों को
जी अपना नाहक जलाऊं
.....
ख़्वाहिश हैं तो
बस, इतनी सी कि
ये तुच्छ प्राण अपने
देश पर निछावर कर पाऊं ।।
………..

#मुझे_देश_में_डर_नहीं_लगता

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२१ दिसम्बर २०१८

गुरुवार, 20 दिसंबर 2018

सुर-२०१८-३५० : #नलिनी_जयवंत_की_अदाकारी #मासूम_चेहरे_पर_रब_की_कलाकारी




20 दिसम्बर 2010 का दिन जब अपनी अदाकारी से अपने चाहने वालों का मनोरंजन करने वाली और हिंदी सिनेमा के इतिहास में अपना एक अलग अध्याय दर्ज करने वाली मासूम अदाकारा #नलिनी_जयवंत हम सबको छोड़कर चली गयी और ये जाना इतनी खामोशी से हुआ कि उनके प्रशंसकों को तो छोड़ो अगल-बगल वालों तक को खबर नहीं हुई कि जिस धमक से उनकी फिल्मी नगरी में आमद हुई थी उतनी ही चुपचाप वो विदा हो गयी वो भी तब जबकि, उनकी नातिन काजोल जैसी अभिनेत्री सिनेमा के रजत पर्दे पर अपने अभिनय से उसी तरह शोहरत की बुलंदियां हासिल कर रही थी जिस तरह कभी उन्होंने अपने संवेदनशील अभिनय से ट्रेजेडी किंग दिलीप कुमार तक को अपना दीवाना बना लिया था

फ़िल्मी कलाकारों के जीवन का ये एक कड़वा सत्य है कि लोगों में उनकी दिलचस्पी केवल तब तक जब तक वे अपने ग्लैमर से उनको आकर्षित करते रहते और जैसे ही इसमें जरा-सी भी कमी आई और उसकी जगह दूसरे ने ली ऐसे में लाइम लाइट से हटकर एकाकी जीवन से सामना होते ही अधिकतर अवसाद से ग्रस्त हो जाते या फिर गुमनामी में एक दिन इसी तरह से गुम हो जाते जैसे वे चली गयी और हमको खबर भी तीन दिन बाद हुई क्योंकि, उस फ्लैट में वो अकेली थी वो जिसने न जाने अपनी कितनी फिल्मों और अपने कितने किरदारों से दर्शकों का मन बहलाया पर, आखिरी समय में कोई काम न आया तन्हाई ही ने बस साथ निभाया उसे ही पता जो गुफ्तगू उसके साथ हुई हम तो केवल उतना ही जानते जो हमारे सामने आया

उसके आधार पर ही ये कह सकते कि जीवन कहना को क्षण भंगुर मगर, जो अकेला उसे काटता उसके लिए एक-एक क्षण बरस के समान व्यतीत होता जिसका अहसास तक सब नहीं कर सकते पर, इन फ़िल्मी कलाकारों की ये भी खासियत कि वे न रहने पर भी अपनी कहानियों व उनके चरित्रों के जरिये हमारे बीच जीवित रहते तो इसी तरह नलिनी भी उन पात्रों में सदैव बनी रहेगी जिन्हें देखकर हम उनको महसूस कर सकते है उनके चेहरे पर पल-पल बदलते भावों में उनको ढूंढने का प्रयास कर सकते है क्योंकि, कलाकार भले ही झूठा अभिनय करे मगर, उसके बीच भी कहीं न कहीं वो ध्वनित हो जाता है जिस तरह नलिनी अपने मादक सौंदर्य के बीच उतनी ही मासूम नजर आती है

उनकी आंखों की शोखियाँ उनके अंतर की बेचैनी को दर्शाती है जो जीवन से उनको मिली थी बावजूद इस कड़वाहट के उन्होंने सबको अपनी मुस्कान की मिठास ही बांटी जिसके पीछे दर्द का सागर हिलोरें लेता था जिसे हमने उनके किरदार का अंश समझा जबकि हर किरदार में वो भी शामिल थी अपने ही स्वरूप में यकीन न हो तो उनकी अभिनीत फिल्मों को बार-बार देखें उन्हें फिर से अपने करीब पायेंगे उनको समझने का सिलसिला जो शुरू हुआ तो यही कहेंगे कि, हम बेखुदी में तुमको पुकारे चले गये... जीवन के सफर में राही मिलते है बिछड़ जाने को और दे जाते है यादें तन्हाई में तड़फाने को...!!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२० दिसम्बर २०१८

बुधवार, 19 दिसंबर 2018

सुर-२०१८-३४९ : #बलिदान_उनका_व्यर्थ_न_जाये #देश_को_हम_सब_सर्वश्रेष्ठ_बनाये




यूं तो लोग कहते पुरानी बातों को क्या याद करना, जो गुजर गया उसे क्यों बार-बार दोहराना और जो नहीं रहे उनकी याद में कब तक आंसू बहाना बेहतर कि आज में ही जीना पर, इसके बावज़ूद भी इतिहास में दर्ज कुछ घटनाएं और शख्सियत ऐसी है जिन्हें विस्मृत करना या जिनकी शहादत को विशेष दिवस पर भी नजर अंदाज कर देना वैसा ही है जैसे कि अपनी जड़ों से ही मुंह फेर लेना और ये समझना हम ही सब कुछ है

जिससे हमारा अस्तित्व कायम उसका जिक्र न करना संभव नहीं होता तो आज जब 19 दिसम्बर आई तो साथ ही #काकोरी_कांड के बलिदानी क्रांतिकारियों की याद भी आ गई जिन्होंने हमारे देश की आज़ादी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई वो भी उस वक़्त जबकि देश निराशा के गहरे अंधकार में घिरा हुआ था और आज़ादी का सपना आंखों में धुंधलाने लगा था क्योंकि, गांधीजी ने चौरा-चौरी हादसे के बाद असहयोग आन्दोलन वापस ले लिया था

ऐसे समय में लोगों को उस हताशा से निकालने का काम किया #रामप्रसाद_बिस्मिल , #अशफ़ाक़_उल्ला_खान और #ठाकुर_रोशन_सिंह ने जिन्हें उनकी इस हिमाकत पर ब्रिटिश सरकार द्वारा आज ही के दिन फांसी पर लटका दिया गया पर, उनकी कुर्बानी व्यर्थ नहीं गयी उसने अपने जैसे अनेक युवाओं को स्वतंत्रता प्राप्ति का मार्ग दिखा दिया जिस पर चलकर चन्द्रशेखर आज़ाद, भगत सिंह जैसे देशभक्तों ने अपने प्राण जरूर गंवा दिये पर, अंग्रेजों को ये जता दिया कि अब उनके दिन खत्म होने आये उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है

जो कहने को तो 15 अगस्त 1947 को समाप्त हुई पर, उस बीच कोई शान्त नहीं बैठा अपने वतन के प्रति कुछ कर गुजरने का जज्बा उसको फांसी के फंदे से डरा न सका न जाने कितने वीर अंग्रेजों की क्रूरता के शिकार हुये और कितनों का कोई पता नहीं चला ऐसे में हम जिनको जानते उनके प्रति अपनी श्रद्धांजलि अर्पित न करना कृतध्नता ही कहलायेगी क्योंकि, ये न होते अगर तो न जाने हम अभी आज़ाद फिर रहे होते या फिर गुलामी की जंजीरों से ही बंधे होते एक ऐसा सवाल जिसका जवाब निश्चित ही यही होगा कि ये थे इसलिए हम है तो फिर उनको याद न करना तो एकदम गलत है ।

आज उन अमर बलिदानियों को मन से नमन... जय हिन्द, जय भारत... वन्दे मातरम... ☺ ☺ ☺ !!!


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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
१९ दिसम्बर २०१८

मंगलवार, 18 दिसंबर 2018

सुर-२०१८-३४८ : #संशय_में_राह_दिखाता #गीता_का_ज्ञान_अंधकार_मिटाता




‘श्रीमद्भागवद्गीता’ एक ऐसा महान ग्रन्थ जिससे हर कोई न जाने कितने सबक सीख सकता और यही इसकी विशेषता जो इसे सदियों से आज तक प्रासंगिक बनाये हुये है ये उन परिस्थितियों में स्वयं भगवान कृष्ण के श्रीमुख से निकला महाज्ञान है जबकि, महावीर अर्जुन युद्धस्थल में भ्रम-संशय के कठिन मायाजाल में उलझे थे ऐसे में उनके मन में उठने वाले प्रश्नों के समाधान उनके मित्र, साथी, सारथी बने श्रीकृष्ण ने इस तरह से निकाले कि न केवल अंतर के जाल साफ़ हो गये बल्कि, आगे क्या करना है वह भी एकदम स्पष्ट समझ में आ गया था

जिसका नतीजा कि वो अर्जुन जो जंग से पहले ही हथियार रखने चला था न केवल उसने अपने अस्त्र-शस्त्र उठा लिये बल्कि, जिन अपनों को मारने की कल्पना से ही वो सहमकर पीछे हट गये थे उन्हें मारते समय उनके हाथ तनिक भी नहीं कंपकंपाये क्योंकि वे जान गये थे कि धर्म की लड़ाई में अधर्मियों को मारना कदापि गलत नहीं इस तरह उन्होंने अपने कर्मों से उन शब्दों का मान रखा उन्हें सार्थकता प्रदान की जो उनको प्राप्त हुये थे और ये धर्मयुद्ध आने वाली पीढ़ियों को ऐसी कठिन घड़ियों में राह दिखाने वाला मार्गदर्शक बन गया

हम सबके ही जीवन में कभी न कभी ऐसे हालात बन ही जाते जब हमें समझ में नहीं आता कि हम क्या निर्णय ले या किस राह पर जाये तब ऐसे में गीता को पढ़ने मात्र से हमारी सभी समस्यायें चुटकियों में हल हो जाती और हालत शीशे की तरह स्वच्छ दिखाई देने लगते जिसमें भविष्य की झलक भी उभरने लगती तब संशयरहित हमारे व्यक्तित्व में भी वो चमक प्रतिबिम्बित होने लगती जिसे आभामंडल कहते और यही तो वो रौशनी जो सभी विकारों को जलाकर भीतर का अन्धकार मिटाती हमारे भीतर आत्मविश्वास, आत्मदर्शन का बोध पैदा करती है

ऐसी प्रेरक, पथ प्रदर्शक, ज्ञान की असीम भण्डार गीता की आज जयंती है... सबको अशेष शुभकामनायें... ☺ ☺ ☺ !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
१८ दिसम्बर २०१८