रविवार, 31 मार्च 2019

सुर-२०१९-९० : #ईमानदारी_की_जब_कीमत_चुकानी_पड़ती_है #व्यवस्था_भी_तब_शर्मिंदा_होती_है




‘नशामुक्त समाज’ की कल्पना कोई नई नहीं जब से इस देश में इस लत की शुरुआत हुई तब से ही इसके दुष्परिणाम सामने आने पर इसका प्रतिरोध भी तरह-तरह से किया गया फिर भी अभी तक ये सिर्फ एक कल्पना ही है कि कभी ये व्यसन जड़ से समाप्त होगा तमाम प्रयासों के बाद भी इसका कायम रहना यही इंगित करता है और देश के सबसे खुशहाल समझे जाने वाले राज्य ‘पंजाब’ को जहाँ दिलेरी और साहस के लिये जाना जाता है वहीँ यहाँ की सम्पन्नता ने यहाँ के युवाओं व नौजवानों को शराब-अफीम से लेकर तमाम तरह के ड्रग्स का इस कदर अभ्यस्त बना दिया कि आज इसे पांच पवित्र नदियों वाले ‘पंजाब’ की जगह पचासों तरह के जानलेवा नशे की वजह से ‘उड़ता पंजाब’ कहा जाने लगा है

जिस पर लगाम कसने सरकार के सारे प्रयासों के बावजूद भी ये किस हद तक कम हुआ ये तो नहीं पता लेकिन, इसने वहां के लोगों के दिमाग पर किस तरह अपना कब्जा जमा लिया इसे इस बात से ही समझा सकता है कि ‘पंजाब’ के ‘खरड़’ में ‘जोनल लाइसेंसिंग अथॉरिटी’ के पद पर दवा और खाद्य रासायनिक प्रयोगशाला में तैनात महिला अधिकारी ‘नेहा शौरी’ को शुक्रवार (२९ मार्च) के दिन सुबह 11 बजकर 40 मिनट पर उनके ही दफ्तर में घुसकर एक व्यक्ति ने अपनी लाइसेंसी रिवाल्वर से तीन गोलियां मारीं ये पूरी घटना सी.सी.टी.वी. कैमरे में भी कैद हो गई है और जिस वक्त ‘नेहा’ पर हमला हुआ, उस वक्त वे अपनी 3 साल की भतीजी से फोन पर बातें कर रही थीं साथ ही उस वक़्त दफ्तर के सहकर्मी भी मौजूद थे जब वे दरिंदगी का शिकार हो रही थी हमलावर ने सबकी मौजूदगी में ही तीन गोलियां उनके सीने, चेहरे और कंधे पर मारी जिससे उनकी मौके पर ही मौत हो गई।

यहाँ पर ‘पंजाब’ और उसकी इस विकराल समस्या का जिक्र इसलिये ही किया गया क्योंकि, ‘पंजाब’ में दवाइयों का बिज़नेस देश के अन्य हिस्सों की तरह न सिर्फ नक़ली दवा माफियाओं के शिकंजे में है बल्कि, यहाँ हर तरह का नशा उपलब्ध है चाहे वो खतरनाक ‘स्मैक’ हो या ‘ब्रॉउन शुगर’ सब डिमांड पर आसानी से मिल जाता है इसकी वजह कि यहां के अधिकतर नौजवान ‘कोरेक्स’ एवं अन्य प्रतिबंधित दवाओं को नशीले द्रव्य की तरह प्रयोग में लाते है बोले तो ये जहरीली दवाइयों के साथ-साथ घातक किस्म के नशीले पदार्थों का इस्तेमाल करते है इसलिये यहाँ ये उद्योग बड़ी तेजी से फल-फूल रहा है और यहाँ के ज़्यादातर मेडिकल शॉप्स में सालों से प्रतिबंधित दवाओं को बेचा जा रहा है क्योंकि, कुछ ड्रग इंस्पेक्टर इनसे रिश्वत लेकर समझौता कर लेते हैं पर, ये नहीं जानते कि उनके इस भ्रष्टाचार की सजा उन ईमानदार अधिकारीयों को भुगतनी पडती है जो करप्ट सिस्टम में भी अपने उसूलों के साथ रहकर काम करना चाहते वो भी अपराधियों से बगैर हाथ मिलाये ताकि, जिस शपथ को लेकर उन्होंने सरकार के अधीन ईमानदारी से कम करने का वचन दिया उसके प्रति वे कभी भी शर्मिंदा न हो मगर, वे नहीं जानते कि चंद बेईमान चुपचाप उनकी जान का सौदा कर देते है

ऐसा ही हुआ ‘नेहा शौरी’ के साथ जिसने अपनी नौकरी, अपने काम को अपना दायित्व समझा और 2006 में जब ‘जोनल लाइसेंसिंग अथॉरिटी’ के पद पर नियुक्त हुई तो पंजाब के लगभग 70-80% युवाओं को बर्बाद कर चुकी ड्रग्स से लड़ने की ठानी जिसके तहत उन्होंने ऐसी दुकानों एवं संस्थाओं को चिन्हित कर उनको प्रतिबंधित करने का बीड़ा उठाया और 2009 में नेहा ने ‘बलिंदर मोरिंडा’ नाम के एक दवा व्यापारी की दुकान पर छापा मारकर वहां से कथित रूप से नशीली दवाएं बरामद की जिसके बाद उन्होंने उस दवा की दुकान का लाइसेंस रद्द कर दिया तो पुलिस ने उनकी हत्या का मामला दर्ज कर कर उस मामले को ही आधार मानकर ‘बलिंदर मोरिंडा’ को आरोपी बता दिया जबकि, उनके पिता रि. कैप्टन कैलाश शौरी जिन्होंने स्वयं देश सेवा की आज अपनी बेटी को इस तरह खोने पर दुखी है और उनको इस पूरे मामले में किसी साजिश के होने का अंदेशा लग रहा है   

उनका ऐसा सोचने की पीछे की मुख्य वजह ये है कि शुरूआती जाँच के बाद जब सामने आया कि 11 मार्च को हत्यारे को .32 बोर की रिवाल्वर रखने का लाइसेंस जारी कर दिया जबकि, पूरे देश में लोकसभा चुनाव के मद्दे नजर 10 मार्च को ही आचार संहिता लागू कर दी गयी थी ऐसे में उनसे हथियार जमा करवाने की जगह उनको लाइसेंस दे दिया जाता है और 12 मार्च को वे रिवाल्वर व 20 कारतूस भी खरीदते है ऐसे में सवाल उठता कि कोई ‘गन हाउस’ जब सरकार की मंजूरी के बिना किसी को हथियार नहीं बेच सकता तो फिर हत्यारे को रूपनगर प्रशासन द्वारा किस तरह से ये हासिल हुआ ? जिस तरह एक व्यक्ति ने दिन-दहाड़े रिवाल्वर लेकर ऑफिस घुसकर में वहां एक अधिकारी को मारा उसने सुरक्षा पर भी सवालिया चिन्ह खड़ा कर दिया है और दस साल तक वो इस हत्या का षड्यंत्र रचता रहा लेकिन, किसी को कानों-कान खबर ही नहीं हुई इसका मतलब कि कहीं न कहीं तो इस हत्याकांड मामले में बहुत सारी गड़बड़ियाँ है जो व्यवस्था पर भी ऊँगली उठाती है
   
यह एक ‘रेयर ऑफ़ द रेयरेस्ट’ केस है जहाँ एक सिरफिरे हत्यारे की वजह से किसी ने अपनी बेटी तो किसी ने अपनी बहन और किसी ने अपनी पत्नी और एक नन्ही मासूम बच्ची ने अपनी माँ को खो दिया है और उनकी सोशल मीडिया पर उपलब्ध जितनी भी तस्वीरें देखी वे बताती कि वे बेहद खुशमिजाज ऊर्जा से भरपूर एक जिंदादिल महिला थी जो अपनी जिम्मेदारियों के प्रति भी बेहद सजग व सतर्क थी जिसके लिये उन्होंने बड़ी बहादुरी से किसी सैनिक की तरह अपनी भूमिका का निर्वहन किया और देश को आंतरिक रूप से मजबूत बनाने देश के भावी कर्णधारों को नशामुक्त करने का अभियान छेड़ा जिसके लिये सभी ने उनकी ईमानदारी की प्रशंसा की जो उनके एक कर्तव्यपरायण नागरिक होने और जिम्मेदार व्यक्तित्व को दर्शाती है और उनकी इस तरह हत्या किये जाने पर देश की जनता प्रशासन को कहीं न कहीं दोषी समझती है

शायद, इस बार खतरे की घंटी उन पर ही बज रही यही कारण है कि – ‘मीडिया चुप है’ सेलेक्टिव लोग, कैंडल मार्च, बड़ी बिंदी, पोस्टर आदि गैंग इसके खिलाफ़ कुछ नहीं लिख रहे  लेकिन, इस सत्य को कोई छिपा नहीं सकता कि, ‘प्रशासन’ की कमजोरी से ही ‘ईमानदारी’ पर ये खूनी हमला हुआ है । सलाम उस वीर जाबांज अधिकारी को जिसने कर्मरत होते हुये अपनी कर्मभूमि पर ही अपनी जान गंवा दी मगर, अफ़सोस कि ये प्रश्न भी अपने छोड़ गयी कि जब तक ईमानदारी पर इस तरह हमला होता रहेगा तब तक भ्रष्टाचार ऐसे ही पनपता रहेगा जिस पर लगाम कसने अब ठोस कार्यवाही की सख्त जरूरत है

विनम्र शब्दांजली ‘नेहा शौरी’ को...

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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
मार्च ३१, २०१९

शनिवार, 30 मार्च 2019

सुर-२०१९-८९ : #काव्य_कथा #खुद_पर_भरोसा_रखो #अपने_जीवन_की_डोर_थामो




‘अनाहिता’ उदास थी क्योंकि, ‘नमित’ ने उसको इग्नोर कर दिया उसने उसी के कहने से नया हेयर स्टाइल बनाया था पर, उसके पास इतना समय ही नहीं था कि देखता जब उसने कहा तब भी उसकी कोई विशेष प्रतिक्रिया नहीं मिली बल्कि, उल्टा वो नाराज हो गया कि यहाँ मैं ऑफिस को लेट हो रहा हूँ उधर तुम्हें अपने हेयर स्टाइल की पड़ी है तब उसे लगा शायद, ये ठीक नहीं तो उसने वापस पुराना स्टाइल ही अपना लिया उसे खुद पर भरोसा ही नहीं था वो तो ‘नमित’ की आँखों से खुद को देखती थी इसलिये उसके निर्णय हमेशा ऐसे ही आधे-अधूरे होते थे वो कभी निश्चय ही नहीं कर पाती कि उसे क्या करना चाहिए क्या नहीं क्योंकि, वो जो भी करती वो गलत ही होता जिसकी वजह से आये दिन ‘नमित’ का मूड ऑफ हो जाता था रोज-रोज के इन झगड़ों ने से त्रस्त आकर उसे लगने लगा था कि उसका जीवन किसी काम का नहीं है और उसने खुद को खत्म कर लेने का अंतिम फैसला किया ताकि, नमित तो कम से कम सुखी हो सके ये सोचकर वो कलाई की नस काटकर सो गयी

अर्धचेतन में उसने देखा कि नमित ऑफिस से आकर उसकी इस हरकत पर भी नाराज होकर उसे ही दोषी ठहरा रहा है ये देख उसके मानस में न जाने कैसे-कैसे विचार उठने लगे...    

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उसने कहा,
तुम सोचती नहीं
कुछ सोचा करो
जब सोचना शुरू किया तो
फिर उसने कहा,
बहुत सोचती हो यार
इतना भी न सोचा करो
और...
इससे बचने का
अब एकमात्र उपाय था
कि जेहन को इस देह के पिंजरे से
मुक्त कर दिया जाये
तो उसने वही किया
पर...
किसी का इल्जाम लगाना तो
अब भी जारी हैं ।।
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उसकी गुस्से भरी आवाज़ सुनकर उसने घबरकर आँख खोली तो पाया कि ऐसा कुछ नहीं हुआ वो रोते-रोते सो गयी तो ये सब उसने स्वप्न में देखा था पर, आज इस सपने ने उसको हकीकत का अहसास करा दिया कि, जब जीवन अपना तो जीने का तरीका भी अपना होना चाहिये न कि दूसरों के हिसाब से अपने मापदंड तय हो वो भी तब जबकि, बात व्यक्तिगत स्तर पर जीने के तरीके की हो न कि समाज के अनुसार चलने की जब वो किसी सामाजिक नियम का उल्लंघन नहीं कर रही तो फिर इतना परेशान होने की जरूरत ही क्या है ‘नमित’ को उसने लाइफ समझकर सब कुछ उस पर छोड़ दिया जबकि, वो तो महज उसके जीवन का एक हिस्सा भर है गलती उसकी नहीं खुद की है जो वो उसके उपर निर्भर रहती न कि स्वयं ही अपने लिये अपने नियम निर्धारित करती है आज उसे समझ आ गया कि अपनी मम्मी को पापा के निर्देश पर चलते देख वो भी उन्ही का अनुसरण करने लगी भूल गयी कि ये नया जमाना, नई जनरेशन है जो अपनी ज़िन्दगी का रिमोट कंट्रोल किसी को नहीं थमाती है
  
एक ख्याल, एक सपने ने उसकी वास्तविकता को पूरी तरह बदल दिया था, कभी-कभी जागकर भी जिन सवालों के जवाब नहीं मिलते वो यूँ ख्वाबों में मिल जाते है अब वो खुश थी

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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
मार्च ३०, २०१९

शुक्रवार, 29 मार्च 2019

सुर-२०१९-८८ : #कवि_भवानीप्रसाद_मिश्र #याद_करे_आपको_हिंदी_साहित्य




जिस तरह हम बोलते हैं, उस तरह तू लिख,
और इसके बाद भी हमसे बड़ा तू दिख...

नरसिंहपुर धरा का ये सौभाग्य कि हिंदी साहित्य के मूर्धन्य साहित्यकार ‘भवानीप्रसाद मिश्र’ का इससे जुड़ाव रहा और उनकी कलम ने इस आंचलिकता को भी अपनी कलम के माध्यम से काव्य रूप में उकेर इस माटी का कर्ज भी चुकाया और यही एक संवेदनशील कवि का साहित्य धर्म भी होता कि वो चाहे खिन भी जाये या कुछ भी लिखे लेकिन, अपनी जड़ों से कभी विलग न हो उसकी शिराओं में बहता लहू उसे हमेशा ये स्मरण कराता रहे कि आज वो जिन ऊंचाइयों को छू रहा और प्रसिद्धि के जिस शिखर पर विराजमान उसकी आधारशिला तो वहीँ है जहाँ से उसने पहला कदम उठाया था तो होशंगाबाद के टिगरिया गांव में आज के दिन 29 मार्च 1913 को जन्मे ‘भवानी प्रसाद मिश्र’ की  प्रारंभिक शिक्षा क्रमश: सोहागपुर, होशंगाबाद, नरसिंहपुर और जबलपुर में हुई तो इस तरह उनका एक सिरा इस जमीन से भी जुड़ा इसे यूँ भी कह सकते है कि जड़ें भले जन्मस्थान से निकली मगर, उसकी शाखायें सभी जगह फैली और अपनी खुशबू से हर अंचल को महकाया ये उनकी अभूतपूर्व प्रतिभा का ही चमत्कार था जो ‘अज्ञेय जी’ ने उन्हें दूसरे ‘तार सप्तक’ में स्थान दिया

अपने प्रति सख्त बनो
जिससे नरम बन सको
दूसरों के प्रति
अच्छी है अति यहीं
और कहीं नहीं

चूँकि वे जमीन से जुड़े हुये रचनाकार थे तो उनकी कविताओं में भी सोंधेपन का वो खुबसूरत अहसास समाया हुआ था जिसने उनको कवियों का कवि बना दिया और उनकी सहजता-सरलता व सादगीपूर्ण व्यक्तित्व ने उन्हें सबका चहेता भी बना दिया उनकी कविताओं में हर बिम्ब उसी तरह से प्रस्तुत होता जैसे प्रकृति में हमें हर एक शय दिखाई देती है पर, उसे शब्दों में ढालना सबके बस की बात नहीं होती लेकिन, एक कलमकार अपनी दृष्टि से उसे नये अर्थ दे देता है तो इसी तरह उन्होंने अपनी मशहूर रचना सतपुड़ा के घने जंगल में जिस तरह से जंगल को मानवीय रूप में प्रस्तुत किया वो अपने आप में अद्वितीय है जिसको पढ़कर वो जंगल उंघते अनमने से नजरों के सामने दिखाई देने लगता इस तरह से कोई विरला कवि ही अपनी कविताओं में कुदरत का ऐसा साकार रूप दर्शा पाता है जो साक्ष्य भाव से उसे देखता व दार्शनिक दृष्टिकोण से उनको मानी देता है              

सतपुड़ा के घने जंगल
नींद मे डूबे हुए से
ऊँघते अनमने जंगल
झाड ऊँचे और नीचे,
चुप खड़े हैं आँख मीचे,
घास चुप है, कास चुप है
मूक शाल, पलाश चुप है।
बन सके तो धँसो इनमें,
धँस न पाती हवा जिनमें,
सतपुड़ा के घने जंगल
ऊँघते अनमने जंगल

ये तो महज़ एक बानगी ऐसे अनगिनत उदाहरणों से उनका रचा साहित्य संसार भरा पड़ा है जिसका मुल्यांकन केवल उनको मिले सम्मान या पद्म पुरस्कार से नहीं किया जा सकता वो तो कहीं भी होते अपनी असाधारण काबिलियत से इसी तरह अपना स्थान बनाते ये तो हमारा भी सौभाग्य कि हमें उनका लिखा पढ़ने-गुनने मिला जिसने हमें भी प्रेरणा दी कि हम भी शब्दों से कमाल कर सकते है और वो क्यों लिखते थे इसकी वजह तो वे खुद ही बताकर गये है...

मैं कोई पचास-पचास बरसों से
कविताएँ लिखता आ रहा हूँ
अब कोई पूछे मुझसे
कि क्या मिलता है तुम्हें ऐसा
कविताएँ लिखने से

जैसे अभी दो मिनट पहले
जब मैं कविता लिखने नहीं बैठा था
तब काग़ज़ काग़ज़ था
मैं मैं था
और कलम कलम
मगर जब लिखने बैठा
तो तीन नहीं रहे हम
एक हो गए  

सबको नहीं हासिल ये कला वो तो जिन्हें ईश्वर चुनता है किसी ख़ास काम के लिये तो उसके लिये कुछ भी कर पाना असम्भव नहीं होता बल्कि, स्वयं कायनात ही उसका साथ देती है तो उन पर भी उसकी कृपा बनी रही और आज उनकी जयंती पर हम उनको याद कर रहे कि काश, वे इसी तरह लिखते रहते तो हम उन्हें थोड़ा अधिक पढ़ पाते है न...!!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
मार्च २९, २०१९

गुरुवार, 28 मार्च 2019

सुर-२०१९-८७ : #बच्चों_में_बढ़ता_अपराध_का_ग्राफ #स्कूल_का_भी_गैर_जिम्मेदारना_व्यवहार




एक बच्चे की पैदाइश से लेकर उसकी परवरिश व शिक्षा-दीक्षा के लिये सभी माता-पिता अपनी तरफ से सर्वश्रेष्ठ करने का प्रयास करते है और उसे बेहतरीन एजुकेशन के लिये महंगे से महंगे स्कूल में एडमिशन दिलाते ताकि, उसका भविष्य व कैरियर सुनिश्चित किया जा सके तो अपने जीवन भर की कमाई भी दांव पर लगाकर उसके लिये सभी सुविधायें व व्यवस्था जुटाते है लेकिन, जब उनको पता चले कि उनके जिगर के टुकड़े को उसी स्कूल में पढ़ने वाले कुछ छात्र व स्कूल स्टाफ द्वारा मारकर उसकी हत्या को छिपाने षड्यंत्र रच्छा गया तो सोच भी नहीं सकते कि उनके दिलों पर क्या गुजरी होगी और ये कोई कहानी या कल्पना नहीं बल्कि, आज के आधुनिक युग की एक कड़वी हकीकत है और अब इस हृदयविदारक घटना को इसी देश के एक स्कूल में अंजाम दिया गया है

सम्पूर्ण घटनाक्रम कुछ यूँ है कि देहरादून के एक बोर्डिंग स्कूल के कुछ बच्चे १० मार्च को आउटिंग के लिये बाहर गये जहाँ ७वीं क्लास के एक छात्र ने किसी दुकान से बिस्किट का एक पैकेट चुरा लिया जिसकी शिकायत दुकानदार ने स्कूल प्रशासन से कर दी जिसके चलते स्कूल प्रशासन ने बच्चों के बाहर जाने पर रोक लगा दी जो कुछ छात्रों को बेहद बुरा लगा मगर, उनमें से १२वीं कक्षा के दो सीनियर जिनकी ऊम्र १९ वर्ष है को तो इतना गुस्सा आया कि उन्होंने इसके लिये उस १२ वर्षीय बालक को दोषी मानते हुये उस पर अपने भीतर का क्रोध उतारने उन्होंने उसे पहले तो उसे क्लासरूम में बैट से खूब मारा फिर छत पर ले जाकर उसे ठंडे पानी से नहलाया, गंदा पानी पिलाया और उसके बाद भी उनका आक्रोश कम न हुआ तो वे उसे तब तक मारते रहे जब तक वो बेहोश नहीं हो गया फिर उसे उसी अवस्था में स्टडी रूम में छोडकर चले गये

इसके बाद जब वार्डन की उस पर नजर पड़ी तो उसने उसे अस्पताल में भर्ती करवाया मगर, तब तक इतनी देर हो चुकी थी कि उसे बचाया नहीं जा सका तब भी स्कूल प्रशासन को होश नहीं आया उसने इस मामले को दबाने के लिये उसका पोस्टमार्टम करवाए बिना ही उसे वहां से ले जाकर उसके माता-पिता को बिना सूचना दिये ही उसे स्कूल परिसर में दफना दिया मगर, सच्चाई किस तरह से और कब तक छुपती तो जब उत्तराखंड बाल संरक्षण आयोग की चेयरपर्सन ऊषा नेगी को मौत की सूचना मिली तो उन्होंने इस मामले को उठाया जिसके कारण ये घटना सबके सामने आई और जाँच में पता चला कि स्कूल प्रबंधन ने परिजन को भी गुमराह किया उन्हें सूचना दी गई थी कि फूड प्वॉइनिंग के चलते उनके बेटे की तबीयत बिगड़ गई, जिसके बाद उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया था ।

इसी पूरे मामले ने एक बार फिर नौनिहालों के लालन-पालन व स्कूल प्रबन्धन पर कई सवाल खड़े कर दिये है जिसके जवाब यदि अब न तलाशे गये तो आने वाले समय में शायद, इससे भी भयावह कुछ देखने-सुनने को मिले क्योंकि, जिस तरह से आजकल सयुंक्त परिवार एकल परिवार में बंट रहे वहां संस्कार भी घट रहे और जिस तरह से ये पालक अपनी सन्तान को पाल रहे उसे ‘पालने’ से अधिक ‘पलना’ कहना अधिक उपयुक्त होगा वे केवल, सन्तान के लिये सुख के साधन जुटाने को ही अपना फर्ज समझते व टेक्नोलॉजी के इस जमाने में खुद तो कमाने निकल पड़ते और उसे गेजेट्स के भरोसे छोड़ देते जिसके कारण अधिकांश बच्चे हिंसक गेम्स व विडियो की शरण में कब चले जाते पता ही नहीं चलता जो उनके अवचेतन व मानस पटल में किस तरह काबिज हो जाते खुद उनको अंदाजा नहीं होता वो तो जब इस तरह के नृशंस काण्ड सामने आते तब उनके बेकग्राउंड की जाँच करने पर पता चलता कि इसके पीछे कहीं न कहीं ये अत्याधुनिक लाइफ स्टाइल है जिसमें दिखावा तो बहुत है मगर, कोमल संवेदनाएं इन हिंसक वीडियोज को देख-देख धीरे-धीरे दम तोड़ रही इसलिये किशोर व युवा इस तरह के अपराधों को अंजाम दे रहे है

साथ ही ये महंगे प्राइवेट स्कूल केवल फीस पर ध्यान देते मगर, अपने छात्र-छात्राओं पर पूरी तरह से ध्यान नहीं देते तभी तो आजकल सबसे सुरक्षित समझे जाने वाले ये विद्या के मंदिर से भी चीखें बाहर आ रही और ये कोई एक मामला नहीं ऐसे कई किस्से अब तक घटित हो चुके है मगर, कोई भी न चेत रहा जबकि, लोग अब तो बच्चे भी एक या दो ही कर रहे और स्कूल को मोती फीस देकर वे समझते उन्होंने अपने फर्ज की अदायगी कर दी आगे का काम उनका इसी तरह स्कूल समझता कि जिम्मेदारी टीचर की और टीचर समझते कि बच्चे ही तो है इन पर क्या ध्यान देना तो सब एक-दूसरे के भरोसे आँख मूंदकर निश्चिन्त रहते फिर जब कहीं ऐसी कोई दर्दनाक घटना घटती तब उनकी आंख खुलती जो उस हादसे के साथ ही पुनः बंद हो जाती इसलिये इनको अब तक कोई गम्भीरता से नहीं ले रहा अन्यथा स्कूल कैम्पस में होने वाली हर एक घटना का जिम्मा प्रबन्धन को लेना चाहिये और ऐसी चाक-चोबंद व्यवस्था करनी चाहिए कि हत्या तो क्या मामूली मारपीट भी सम्भव न हो वरना, ये सारी आधुनिकता, शिक्षा, तकनीक व विकास किसी काम का नहीं जो दिन-ब-दिन मानवीयता को लीलता ही जा रहा है ।   

वैसे तो पुलिस ने इस मामले में दोनों आरोपी छात्रों के खिलाफ दफा 302 के तहत मामला दर्ज किया है, वहीं स्कूल प्रशासन के तीन कर्मचारियों हॉस्टल मैनेजर वॉर्डन और स्पोर्ट्स टीचर पर अपराध के सबूत मिटाने के जुर्म में सेक्शन 201 तहत केस दर्ज किया है पर, अब जरूरत कि कुछ ऐसा किया जाये कि ऐसी नौबत ही न आये बच्चे स्कूल में विद्यार्जन कर संस्कारवान जिम्मेदार नागरिक बने न कि अपराधी जैसा कि आजकल ज्यादातर हो रहा है
        
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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
मार्च २८, २०१९

बुधवार, 27 मार्च 2019

सुर-२०१९-८६ : #भारत_बना_अतंरिक्ष_महाशक्ति #सुरक्षित_हुए_जल_थल_वायु_आकाश_व_अंतरिक्ष




कल्पना करो कि पृथ्वी से 300 किमी की दूरी पर 3000 किमी/घण्टे की रफ्तार से दुश्मन का कोई मिसाइल भारत पर आक्रमण करने की कोशिश कर रहा है तभी 24000 किमी/घंटा की गति से आकर एक मिसाइल उससे टकराता है फिर जो हुआ वो अविश्वसनीय जिसने इतिहास रच दिया 27 मार्च 2019 की तारीख को स्वर्ण अक्षरों में दर्ज कर दिया तो पहले जहां इस तरह की दुश्मन की अंतरिक्षीय गतिविधियों को समझना या इसका पता लगाना मुमकिन नहीं था वहीं अब महज़ 3 मिनट में उसका खात्मा किया जा सकता है जब ये सोचना ही इतना रोमांचित कर रहा तो जब हमारे देश के वैज्ञानिकों ने इस कारनामे को अंजाम देकर ‘मिशन शक्ति’ को सफलतापूर्वक पूर्ण किया गया होगा तब उन्हें किस कदर गर्व व हर्ष की अनुभूति हुई होगी इसका हम अंदाजा भी नहीं लगा सकते साथ ही इस परीक्षण की कामयाबी ने ये भी साबित कर दिया जल, थल, हवा, पानी के साथ-साथ अब हम अंतरिक्ष में भी सुरक्षित है

अब दुश्मन कहीं से भी वार करें उसे निरस्त करने के हर हथियार हमारे पास है सबसे बड़ी बात कि अब तक इसके पूर्व केवल यू.एस., चीन व रूस ही इस तरह की स्पेश पावर से युक्त था मगर, आज से हम भी उनके समकक्ष खड़े हो गये है ये एक तरह से उस चीन को जवाब है जो हमेशा वीटो पॉवर का लाभ लेकर मसूद अजहर को बचा लेता है अब उसे ये संदेश दिया गया है कि वो किसी भी रास्ते से इस भारतवर्ष में घुसने या इस पर निगरानी करने की कोशिश न करें क्योंकि, उनके हर हथियार को विफल करने हमने अंतरिक्ष में भी सुरक्षा प्रहरी नियुक्त कर दिया है जो 24*7 उन पर सतत अपनी आंखें गड़ाये रखेगा तो अब आंखों की गुस्ताखियां माफ न होगी कोई ऐसी जुर्रत करने की कोशिश न करें हमने सुदूर आकाश में भी देश की सुरक्षा हेतु ऐसी व्यवस्था कर दी है कि इस मुल्क की सरहदों को कोई छू नहीं सकता, इस मुल्क की सरहदों की निगेहबान है टेक्निकली पावरफुल इंडियन साइंटिस्टों की  स्वदेशी तकनीक से निर्मित जासूसी आँखें जिसे धोखा देना संभव नहीं है ।

ये भी एक सच है कि भारत ने अंतरिक्ष में अपनी कक्षा में घूमते उपग्रह को मार गिराने की क्षमता 2012 में ही हासिल कर ली थी और ये उस समय की बात है जब चीन ने भारत के एक वेदर सैटलाइट को मार गिराया था उसी समय स्पेस वार टेक्नोलॉजी का पूरा प्रोग्राम लेकर डी.आर.डी.ओ. और ‘इसरो’ के वैज्ञानिक तत्कालीन यु.पी.ए. सरकार यानी श्रीमान मनमोहन सिंह जी के पास गए और बताया कि भारत के पास बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस और अग्नि लॉन्च करने के बाद अब ऐसी क्षमता हो गई है कि अब हम ‘एंटी सैटेलाइट वेपन’ भी बना सकते है बस, इस दिशा में हमें थोड़ा और काम करने की जरूरत है और अगर हम इस दिशा में आगे कदम बढ़ते हैं तो सफलता मिल जाएगी हमने स्पेस में सेटेलाइट को मार गिराने की क्षमता विकसित कर ली है अतः परियोजना के इस प्रस्ताव लिये जरूरी फंड की मुहैया कराये जाये लेकिन, उस समय की सरकार में इतना आत्मबल या साहस नहीं था कि वो इसको आजमाने की अनुमति दे देती क्योंकि, उसे तो अमरीका, चीन और पाकिस्तान से डर लगता था कि कहीं वे बुरा न मान जाये तो जिस इसरो की स्थापना का श्रेय पंडित जवाहर लाल नेहरु जी को जाता है उसी स्थान में कांग्रेस सरकार के समय के इसरो चीफ वी.के. सारस्वत ने आज खुलासा करते हुये बताया कि हमारी इच्छा जताने के बाद भी सरकार ने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं दी

ऐसे में उनको 2014 तक इसके लिये इंतजार करना पड़ा और जो निर्णय 2012 में नहीं लिया जा सका वो अब हुआ तब जाकर ‘मिशन शक्ति’ को मंजूरी मिली जिसके बाद पिछले 4-5 सालों में जो जरूरी एलिमेन्टस तैयार नहीं थे उन्हें डिजाईन किया गया एवं जो एलिमेंट्स थे उन्हें इंटिग्रेट कर एक ऐसे मिसाइल का रूप दिया गया जो ‘लो अर्थ ऑर्बिट’ (LEO) में घूमते हुए मिसाइल को खत्म कर सके और इस सरकार ने इस कार्य के लिए वैज्ञानिकों को प्रोत्साहित किया तथा उन्हें आवश्यक रिसॉर्स मुहैया कराया जिससे कि वो इसे सच कर दिखाये तो इस तरह पिछले चार सालों में इस क्षमता को आगे बढ़ाया गया अतः आज का मिसाईल टेस्ट कोई छोटी-मोटी घटना नहीं है, यह सम्पूर्ण विश्व में हडकम्प मचाने वाली अभूतपूर्व उपलब्धि है कि हमने ‘लो अर्थ ऑर्बिट’ में स्थित ‘लाइव सेटेलाइट’ को ‘एंटी सैटेलाइट’ (A-SAT) के जरिए गिराया है वो भी देश मे विकसित तकनीक से ऐसा केवल आत्मरक्षा के लिए किया गया और सनद रहे केवल ISRO & DRDO खड़ा करने से कुछ नही होता उसकी क्षमता का देश के विकास और रक्षा के लिए इस्तेमाल ही उसे उपयोगी बनाता है

आज भारत अंतरिक्ष की चौथी महाशक्ति बन गया है तो बधाई तो बनती है उन वैज्ञानिकों व सरकार को जिसकी बदौलत हमने महज़ 4 या 5 साल की देरी के बाद ही सही उस मिशन को हासिल कर लिया जबकि, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के एक वरिष्ठ अधिकारी के रूप में कार्यरत व क्रायोजेनिक डिवीजन के प्रभारी ‘नंबी नारायणन’ जो कि एक भारतीय वैज्ञानिक व एयरोस्पेस इंजीनियर है को 1994 (सरकार तो पता ही होगी की किसकी थी) में जासूसी का झूठा आरोप लगाकर गिरफ्तार कर लिया गया जिसकी वजह से क्रायोजेनिक कार्यक्रम 24 साल पीछे चला गया और 2019 में उन्हें पद्म पुरस्कार से नवाजा गया वहीं आज ये ऑपरेशन इतनी जल्दी पूर्ण हुआ तो हर हाल में हमारी सोच में राष्ट्र सर्वोपरि होना चाहिये न कि अपना हित कि जहाँ सुना मुफ्त में 72 हजार मिल रहे वहीं गिर गये भले देश जाये भाड़ में पर, अपनी दाल-रोटी चलती रहनी चाहिये भले वो गुलामी की जंजीरें पहनकर ही क्यों न मिले यही सोच है जिसने इस देश को आज़ादी के बाद भी इतनी धीमी गति से आगे बढ़ा है अन्यथा हम पहले ही विश्वशक्ति बन चुके होते मगर, देर से ही सही बहुत कुछ ऐसा सुनने मिल रहा जिससे लग रहा कि भारत एक बार फिर विश्वगुरु बनने की तरफ अग्रसर है    

जय हिन्द... जय भारत... वन्दे मातरम...

#वाकई_ये_नया_भारत_है
#मेरा_देश-बदल_रहा_है
#OperationShakti
#MissionShakti
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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
मार्च २७, २०१९

मंगलवार, 26 मार्च 2019

सुर-२०१९-८५ : #मैं_नीर_भरी_दुख_की_बदली #महादेवी_वर्मा_की_हृदयस्पर्शी_लेखनी




स्त्री अपने अंतरतम के रहस्यमय संदूक में कौन-से कोमल विचार छिपाये रखती और गहन एकान्तिक क्षणों में किन नाज़ुक मनोभावों को जीती और पल-पल मानवीय संवेगों की किन कन्दराओं से गुजरती ये केवल एक नारी ही समझ सकती और वही उन कोमल अनुभूतियों को शब्द भी दे सकती है किसी भी अहसास को एक स्त्री जिस तरह से महसूस करती है उसे केवल एक स्त्री ही समझकर उन अनगढ़ स्वरों को सुरों में ढालकर मधुमय रागिनी बनाकर पेश कर सकती है इसे साबित किया छायावाद की अग्रणी कवयित्री ‘महदेवी वर्मा’ ने अपनी कविताओं के जरिये जो नारी हृदय की सर्वोत्तम अभिव्यक्ति समझी जाती है और हमारे लिये ये सौभाग्य की बात कि आज उन शब्दों की चितेरी की जयंती है जिनकी रचनाओं का स्वाद हम सभी ने कभी न कभी चखा है और इसे भूल पाना मुमकिन नहीं क्योंकि, उनकी कलम से निकले अक्षर महज़ कोरे शब्द नहीं होते था बल्कि, उनके पीछे गहरे भाव छिपे होते थे और इन तरह की प्रस्तुति केवल लेखन की कारीगरी या शाब्दिक ज्ञान से नहीं आती बल्कि, अनुभवों के खजानों से पन्नों पर अपने आप ही उभरती है तभी तो हर रचनाकार उन महानतम शब्दरथियों के समकक्ष खुद को खड़ा नहीं कर पाता वो तो बस, आजीवन उन आदमकद के करीब पहुंचने की जद्दो-जेहद में लगा रहता फिर भी कोई उसके घुटने तक भी नहीं पहुंच पाता कि ये कोई साधारण प्रतिभायें नहीं बल्कि, ईश्वरीय कृपा स्वरुप धरा में आई वरदानी शक्तियां होती है जिनका कार्य अपने उस दैवीय गुण से ऐसा अद्भुत काज करना होता जो उसे उसके क्षेत्र में उसके उस अलहदा कार्य के लिये इस तरह से स्थापित करे कि मिसाल बन जाये और ये कारनामा अपनी लेखनी से ‘महादेवी जी’ कर दिखाया जो उनके नाम के अनुरूप भी था जिसने उनको हिन्दी साहित्य में विरह की देवी के रूप में काव्य सिंहासन पर विराजमान कर दिया और आज भी हम उनकी कविताओं का पाठ करते है तो खुद को उसमें दर्ज मनोभावों की वीथिकाओं में भटकता हुआ पाते है ये वही अहसास होते जो हम सबके भीतर भी समाये लेकिन, हम उन्हें उस तरह से सफों पर उकेर नहीं पाते जिस तरह से ‘महादेवी वर्मा जी’ ने अपनी कलम से ये चमत्कार कर दिखाया जिसकी वजह से उनका नाम साहित्याकाश में एक नक्षत्र की तरह दमकता दिखाई देता है और सदैव वो इसी तरह अपने स्थान पर अडिग रहेगा क्योंकि, अपनी विधा में वो सर्वश्रेष्ठ थी और जो अपनी कला में सर्वोत्तम होता उसकी कृति न किस तरह से उसकी तरह ही लाज़वाब हो तो उनकी भी थी जिसने उन्हें खुद एक सम्मान में परिवर्तित कर दिया तो फिर एक कलाकार के लिये इससे बढ़कर कोई बड़ी बात नहीं हो सकती कि उसे एक सम्मान की तरह उस कार्यक्षेत्र में काम करने वाले सृजनकर्ता को प्रदान किया जाये जिससे उसका गौरव व कलाकार का मान भी उसकी तरह ही जीवंत हो जाये व इतिहास में अपनी प्रभावी उपस्थिति अंकित करें ‘महादेवी वर्मा जी’ ने अपनी जीवन यात्रा के हर पड़ाव में ऐसा कुछ अनोखा काम किया जिसने उनकी अमिट छाप बनाई तो आज उनके जन्मदिन पर उनकी याद आई... <3 !!!           

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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
मार्च २६, २०१९

सोमवार, 25 मार्च 2019

सुर-२०१९-८४ : #कोई_न_आयेगा_बचाने #अब_भी_न_अगर_हम_जागे




दुनिया के किसी भी कोने में किसी मुसलमान पर हल्की-सी आंच भी आये या कोई उससे थोड़ी-सी तेज आवाज़ में भी बात कर ले तो न्यूज़ बन जाती है और हर कोने से शुभचिंतक प्रकट हो-होकर तमाम लोगों पर उँगलियाँ उठाने लगते उन्हें आरोपों के कटघरे में खड़े कर देते जिसका ताजा प्रमाण ‘गुरुग्राम’ का मामला तो है ही उसके पूर्व ही ‘न्यूजीलैंड मस्जिद हमला’ हुआ उसमें भी ऐसा ही देखने में आया बल्कि, ‘कठुआ रेप केस’ हो या ‘पहलू खान’, ‘अख़लाक़’ या ‘जुनैद प्रकरण’ यहाँ तक कि रोहिंग्याओं को जब म्यामार से बेदखल किया गया तो हमारे यहाँ से ही सबसे ज्यादा आवाजें उठी जबकि, पूरे वर्ल्ड में 58 इस्लामिक कंट्रीज है फिर भी कहीं से किसी को निकाला जाये उसका बसेरा ‘भारत’ ही होता जिसमें बुराई कोई नहीं बल्कि, ये सब देख-सुनकर या पढ़कर ख़ुशी ही होता और इस बात से संतोष महसूस होता कि भले कोई कुछ भी कहे ‘मानवीयता’ अभी जीवित है हम भारतवासियों ने उसे सहेजकर रखा हुआ है ‘अनेकता में एकता’ ही सदियों से हमारा आधार है  

पक्षपात केवल तब लगता जब बात किसी ‘हिन्दू’ की हो तो सबकी जुबान ही नहीं कलम भी एकाएक जाम हो जाती आँखों को भी शायद, नजर आना बंद हो जाता तभी तो ऐसी खबरें यहाँ और वहां मीडिया की सुर्खियाँ नहीं बनती यदि ऐसा होता तो ‘पाकिस्तान’ के सिंध प्रान्त में होली की पूर्वसंध्या पर दो नाबालिग बहनों 13 वर्षीय ‘रवीना’ और 15 वर्षीय ‘रीना’ का कुछ लोगों ने घोटी जिले स्थित उनके घर से अपहरण कर लिया इसके बाद जैसी कि पाकिस्तानियों की आदत कि वे विडियो जारी करते तो एक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें मौलवी दोनों लड़कियों का निकाह कराते दिख रहे हैं और बात यही खत्म नहीं हुई फिर इसका अगला वीडियो सामने आया जिसमें लड़कियां इस्लाम अपनाने का दावा करते हुए कह रही है कि उनके साथ किसी ने जबरदस्ती नहीं की है ।

इस मामले में कहीं किसी अन्य देश या संगठन या समूह की तरफ से कोई संज्ञान नहीं लिया गया पिता ने ही आवाज़ उठाई और भारत से विदेश मंत्री ‘सुषमा स्वराज’ ने इसके लिये पाकिस्तान को जल्द-से-जल्द कार्यवाही करने हेतु कहा तब जाकर कहीं वहां इस घटना को गंभीरता से लिया गया और वहां पत्रकारों ने भी सवाल उठाया कि, "आख़िर नाबालिग़ हिंदू लड़कियां ही इस्लाम से क्यों प्रभावित होती हैं? क्यों उम्रदराज़ मर्द या औरतें इससे प्रभावित नहीं होते? क्यों धर्मपरिवर्तन के बाद लड़कियां केवल पत्नियां बनती हैं, बेटियां या बहनें नहीं बनतीं?" इस पूरे प्रकरण से यही समझ आता कि समस्त विश्व में हिन्दुओं का कहीं कोई सुरक्षित ठिकाना है तो वो है ‘भारत’ पर, यही के हिन्दू नहीं समझते जो जातियों में बंटे हुये उन्हें इन मामलों को दूसरे देश का समझकर छोड़ नहीं देना चाहिये जैसा कि मुसलमान अपने भाई-बन्धुओं के लिये करते चाहे जहाँ रहे उनके साथ खड़े होते पर, हम जिनके लिये एकमात्र यही मुल्क दूसरा कोई ठौर नहीं बावजूद इसके भी नहीं समझते है

आज तो ‘सुषमा स्वराज’ है जो पाकिस्तान से अधिकारपूर्वक उन बच्चियों के बारे में पूछती है मगर, कल जब वे न होगी तो क्या घटनायें रुक जायेंगी 1947 में ही भारत-पाकिस्तान दोनों एक साथ बने और जहाँ पाक में 23% हिन्दू से मात्र 3% बोले तो इससे भी कम ही बचे जबकि, हमारे यहाँ मुसलमानों का प्रतिशत बढ़ा क्योंकि, यहाँ उनके साथ किसी तरह का पक्षपात नहीं किया गया फिर भी वे खुद को अल्पसंख्यक कहते जबकि, हकीकत तो ये जो अधिकतर हिन्दुओं को नजर नहीं आ रही कि इसी देश के अधिकांश राज्यों में हिन्दू ही अल्पसंख्यक या नगण्य हो चुके है और जिस तरह से ये सब हो रहा लगता कि जल्द बाकी राज्यों में भी यही स्थिति होगी तो क्या हम तब तक इंतजार करें या फिर जागे समझे कि हमारा अपन अस्तित्व हमें खुद ही बचाना है बिना किसी को मारे या किसी पर आक्षेप लगाये ये समझते हुये कि कब हम खुद को अधिक महफूज समझते तो अपने उस सुरक्षा कवच को हमें मजबूत बनाना है ताकि, आने वाली पीढियों को ऐसी किसी घटना का सामना न करना पड़े अन्यथा हमें तो इस दुनिया में रहने को सिवा इसके कोई मुल्क भी नहीं है

हमारा अलग-अलग सम्प्रदायों या जातियों म बंटा होना ही हमारी कमजोरी और शायद, यही वजह होगी जो हमारे देश में ‘हिन्दुओं’ की बहुलता होने के बाद भी उसे कभी वोट बैंक नहीं समझा गया सारा फोकस एकमात्र ‘मुसलमानों’ पर किया गया जिसका नतीजा कि हिन्दुओं ने खुद को सदैव उपेक्षित समझा और उसका ख्याल किसी ने रखा तो उसने भी उसको भरपूर तवज्जो दी जब अगले को ये समझा आया तो उसने मस्जिदों में माथा टेकने की जगह मन्दिर-मन्दिर घूमना शुरू कर दिया मगर, जब एक बार आप एक्सपोज हो जाते तो फिर चाहे जनेऊ पहने या खुद को ब्राह्मण बोले या फिर राम जन्मभूमि की ही बात क्यों न करें कोई फर्क नहीं पड़ता कि लगभग ६० सालों में आपने उसको इतना नजरअंदाज किया कि उसे अब आपके लुभावने वादे भी आकर्षित नहीं करते क्योंकि, ये उसने पहली बार नहीं सुना आपका परिवार पिछले चार-पांच दशक से ‘गरीबी हटाओं’ का नारा देता आ रहा उस हिसाब से यदि काम किया होता तो न गरीबी, न बेरोजगारी कोई मुद्दा ही न होता और एक आप है कि 2019 में फिर से 1971 वाली बात कर रहे है

जो उस वक़्त सम्भव न हुआ वो अब किस तरह होगा जबकि, उस दौर में तो लोगों को बेवकूफ बनाना आसान था पर, अब जनता न केवल जाग गयी है बल्कि, स्मार्ट भी हो गयी जिसे ये चोंचले नहीं भाते वो तो कमाकर खाने में विश्वास करता हराम की कमाई उसे हजम नहीं होती इसलिये जब स्वरोजगार का विकल्प तब वो मुफ्त की कमाई में लालच में न आयेगा उसे तो अपने देश में सुरक्षा पहले नम्बर पर चाहिये यदि देश सुरक्षित तो वो खुद को भी सुरक्षित समझेगा लेकिन, आपने उसे हमेशा दोयम दर्जे पर रखा आज ही उसकी याद तब आई जब आपको अपना वोट बैंक भी जाता दिखा तो दूसरों के बैंक में सेंध मारने लगे लेकिन, हुजूर बहुत देर कर दी आते-आते आपके लिये हिन्दू कभी मतदाता रहा ही नहीं उसके हितों का आपको कभी ख्याल रहा ही नहीं अन्यथा आज आपको खुद को हिन्दू घोषित करने के लिये इतनी मशक्कत नहीं करनी पड़ती वो भी सिर्फ चुनाव के समय बाद में वही पुराना ढर्रा सब जानते है

वोट पाने के लिये नेता लोग पैसा बांटते ये तो सुना था लेकिन, पहली बार खुलेआम प्रेस-कांफ्रेस के जरिये देश की जनता को ऐसा ऑफर देते हुये पहली बार देखा क्या चुनाव आयोग को इस पर संज्ञान नहीं लेना चाहिये जो मीडिया द्वारा मतदाता को लालच दे रहे है ???  

#जागो_हिन्दू_जागो
#दुनिया_के_हिन्दुओं_एक_हो_जाओ

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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
मार्च २५, २०१९

रविवार, 24 मार्च 2019

सुर-२०१९-८३ : #लघुकथा_दिल_नहीं_मिले




"बिंदिया तू अभी तक तैयार नहीं हुई देख, लड़के वाले आ भी गये चल उठ... जल्दी से कपड़े बदलकर बाहर आ जा" अपनी बेटी से ये कहते हुए उसकी व्यस्त मां जिस तेजी से आई थी उसी गति से वापस लौट जरुर गयी मगर, उनकी आंखों में उसका उतरा हुआ चेहरा ही घूम रहा था ।

उधर बेमन से बिंदियाने उठकर ड्रेस चेंज की और जब उसे बाहर बुलाया गया तो उसी तरह मुस्कान रहित चेहरा लिये बैठक में आ गयी और बुझे-बुझे स्वर में उसे भी नहीं पता उसने उन लोगों को क्या जवाब दिये बस, माता-पिता की इच्छा के लिए उसने औपचारिकताओं का निर्वहन मात्र किया जिसे देख मां को लगा कि पिछले रिश्ते टूटने के कारण शायद, वो निराश हो चुकी है ।

इस बात को अभी एक सप्ताह ही गुजरा था कि शाम को उसके पापा मिठाई का डब्बा लिए घर में आये और उसकी मम्मी का मुंह मीठा कराते हुये बोले कि "आखिर, लंबे इंतजार के बाद बिंदियाका रिश्ता तय हो ही गया आज लड़के वालों का फोन आया था उन्हें हमारी बिटिया पसन्द आ गई है और वो जल्दी से जल्दी शादी के लिये तैयार है तुम जाकर बिंदियाको ये खबर दे दो तब तक मैं फ्रेश होकर आता हूं" ।

मम्मी खुशी-खुशी मिठाई का डब्बा लेकर कमरे में आई और बोली, "मैं न कहती थी कि इस बार सब कुछ सही होगा, पिछले पांच दफा कुंडली न मिलने से तू बेकार ही नाउम्मीद हो गयी थी । ले अब मुंह मीठा कर..."

"मां मैं ये शादी नहीं करना चाहती आप उन लोगों को मना कर दो" खिड़की के पास खड़ी बिंदियाने बड़े आत्मविश्वास से पलटकर मुस्कुराते हुये कहा ।

"क्यों मना कर दे कितनी मुश्किल से तो हां हुई है और उन लोगों से बोलेंगे क्या" ?

"मां पिछली पांच बार लड़के वालों ने गुण नहीं मिले कहकर ना किया तो क्या आप एक बार दिल नहीं मिले कहकर उनको अपना जवाब नहीं भेज सकती हो" उनके कंधे पर अपने हाथ रखते उसने उतने ही स्नेह से कहा ।

मां  गौर से उसके खिले चेहरे को देखने लगी जो अपने भीतर की कशमकश से जीतकर यूँ चमक रहा था जैसे ग्रहण के बाद चाँद चमकता है और आज वो उसके उस उदास चेहरे की वजह समझ गयी जिसे वो अब तक 5 लड़कों द्वारा किया गया इंकार ही समझती थी ।

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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
मार्च २४, २०१९

शनिवार, 23 मार्च 2019

सुर-२०१९-८२ : #इतिहास_स्वयमेव_नहीं_बनता #बलिदान_के_लहू_से_लिखा_जाता_है




इतिहास का महत्व तभी है, जब हम उससे कुछ सीख ले अन्यथा वो महज़ एक किताब जिसमें अतीत के किस्से-कहानियां दर्ज जिन्हें पढ़कर या दोहराकर हम उसके प्रति नतमस्तक होकर मन ही मन ये कहते हुये उसे रख देते कि हमें अपने देश पर गर्व और अपने भारतीय होने को अपनी शान समझते जिसे आज़ाद कराने के लिये अनगिनत वीरों-वीरांगनाओं ने अपने प्राण लुटा दिये थे । हम उन बलिदानों के पीछे की वजह और उनकी यशगाथा को जानकर भी उससे कुछ सीखने या समझने का प्रयत्न नहीं करते यदि किया होता तो बार-बार वही गलतियां नहीं दोहराते या देश को लुटते हुये चुपचाप नहीं देखते बल्कि, अपने स्तर पर जो भी संभव होता वही करते न कि देशहित के उपर निजहित को रख स्वार्थ की रोटियां सेंकते । क्योंकि, देश रहेगा तभी हम भी बचेंगे अन्यथा जिस गुलामी से बरसों-बरस लड़कर प्राणों की आहुतियां देकर स्वतंत्रता हासिल की वो उसी तरह खो जायेगी जिस तरह अज्ञानी के हाथों में कीमती हीरा देने पर वह उसे पत्थर समझकर गुमा देता है ।

इस देश पर प्रारंभ से ही हर किसी की नजर रही और जिसने इसे देखा उसकी ही लार टपकने लगी तो उसने इस पर अपना कब्जा जमाने आक्रमण किया जिसकी वजह से हम कभी यवन तो कभी शक-कुषाण तो कभी हूण या अरब-ईरान तो कभी तुर्की तो कभी मुगल तो कभी अंग्रेजों के गुलाम बनने मजबूर हुये और लगभग 2500 सालों तक हमारी न जाने कितनी पीढ़ियों ने अपनी कुर्बानियां देकर हमें आज़ादी की सौगात देने की कोशिशें की बिना ये सोचे-समझे कि हम कभी उनका स्मरण करेंगे या नहीं या हम इसकी रक्षा कर पाएंगे या नहीं या हम उसके काबिल नहीं है । वे तो केवल अपनी भारतमाता को जंजीरों में तड़फते हुये नहीं देखना चाहते थे तो निकल पड़े सर हाथ में लेकर 1857 का प्रथम स्वाधीनता संग्राम हो या सारागढ़ी का युद्ध या जलियांवाला हत्याकांड की शहादत ये सब हमें बहुत कुछ सिखाती है कि हम इनको याद करें तो ये भी न भूले कि ये उस आज़ादी को पाने लड़े जो इनको नहीं हासिल हुई और इन्होंने उन आने पीढ़ीयों के लिए अपनी जान दी जिनको ये जानते भी नहीं थे । इसलिये ऐसा किया उन्होंने क्योंकि, इनके जीवन का एकमात्र उद्देश्य कि हमारी मातृभूमि सदा-सदा स्वाधीन रहे और देश की आन-बान-शान उसका परचम शान से लहराता रहे जिसके तले समस्त देशवासी बेफिक्र होकर खुली हवा में सांस लेते हुए अपना जीवन व्यतीत करें ।

आज वाकई उनका वो स्वप्न हम सब हकीकत में जी रहे पर, अफसोस कि आजादी के केवल 72 सालों के भीतर ही हम न केवल, उनके नामों को भूलते जा रहे बल्कि, अपने देश की सभ्यता-संस्कृति को पश्चिमी रंग में रंगकर उनकी कुर्बानी को भी शर्मसार कर रहे जिसे कायम रखने वे अंतिम सांस तक जूझते रहे जिसकी बदौलत हम जय हिंद, भारत माता की जय, वन्दे मातरम गर्व से कह पा रहे है और अपने पर्व भी उत्साह से मना रहे । लेकिन, देश में छिपे चंद गद्दार इस कोशिश में लगे हुए कि हम इस प्राचीन सभ्यता-संस्कृति को विस्मृत कर अपनी उस गौरवशाली पहचान से दूर होकर देश के टुकड़े-टुकड़े होते देखते रहे चुपचाप । जो देश के टुकड़े-टुकड़े करना चाहते उनका मकसद देश को तबाह-बर्बाद करना जिसके लिये उन्हें विदेशों से अकूत धन मिलता तो वे निरंतर इसी कोशिश में लगे रहते और हम इससे बेखबर अपने घरों के दरवाजे बंद कर चैन से सोते रहते क्योंकि, जब तक हमारा घर सुरक्षित हमें कोई मतलब नहीं हद दर्जे का स्वार्थीपन हमारी रगों में समा गया वो भी तब जब इस देश की मिट्टी में असंख्य बहादुरों के पराक्रम का लहू गिरा जिनके किस्से इतिहास में स्याही से नहीं उनके रक्त से लिखे गये तब लानत है हमारे भारतीय होने पर कि भारत के लोग ही इतने कृतध्न हो गये है ।

23 मार्च सिर्फ एक तारीख नहीं एक ऐसा ऐतिहासिक दिन जब भगत सिंह, सुखदेव व राजगुरु को फांसी दे दी गयी जबकि, उनको बचाना मुमकिन था लेकिन, बड़े-बड़े वकीलों के होते कोई उन्हें बचा न सका और आज लोग आतंकवादियों की पैरवी के लिये न केवल रात में कोर्ट खुलवा लेते बल्कि, अपनी सेना के शौर्य पर संदेह करते और आतंकियों को बचाव में दुश्मन के पाले तक में खड़े होने में गुरेज नहीं करते है । ऐसे में यही ख्याल आता कि उनकी आत्मायें यदि देखती होंगी तो यही कहती होंगी किन बेक़दरो व स्वार्थी लोगों के लिए जान दे दी जो देश की उन जमीनों को शत्रुओं के हाथों में सौंप रहे कभी जिनको छुड़ाने वे जान पर खेल गये जिसकी अखंडता कायम रखने उन्होंने अपने परिजनों का नहीं सोचा उसी को उसके अपने खंडित कर रहे उफ़, आज हम अपनों से ही ठगे जा रहे है ।

एक प्रश्न इतिहास में आज तलक अनुत्तरित है कि यदि इन तीनों को बचाना संभव था तो इसके लिये प्रयास क्यों नहीं किया गया जबकि, ‘महात्मा गाँधी’, ‘पंडित जवाहर लाल नेहरु’ और ‘अम्बेडकर साहब’ जैसे विदेश में शिक्षित नामी वकील थे हमारे पास फिर भी उनको फांसी दे गयी क्यों ???

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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
मार्च २३, २०१९

शुक्रवार, 22 मार्च 2019

सुर-२०१९-८१ : #जल_हो_या_फिर_रिश्ते #मिले_जब_सरंक्षण_तभी_बचते




यदि सवाल किया जाये कि, “जीवन जीने के लिये सबसे जरूरी क्या है” ???
   १.     प्रेम
   २.     रक्त संबंध  
   ३.     दोस्ती या फिर  
   ४. पर्यावरण 

तब निश्चित है कि अधिकाश लोगों का जवाब होगा ‘प्यार’ मगर, ये सब बेमानी हो जाते जब सांस लेने को शुद्ध ‘वायु’ न हो और पीने के लिये साफ़ ‘पानी’ क्योंकि, जब जीवन बचेगा तभी तो इन सब अहसासों को हम अंतर से महसूस कर पायेंगे, इन्हें जी-भरकर जी पायेंगे और आगे की नस्लों में इनको हस्तांतरित भी कर सकेंगे लेकिन, इस सार्वभौमिक सत्य को जानने के बावजूद भी हम अब तक ‘पर्यावरण सरंक्षण’ नहीं सिर्फ और सिर्फ अपने आपको बचाने में लगे है जबकि, प्यार से सराबोर और तमाम रिश्तों से घिरे होने के बाद भी घुटन महसूस होती यदि खिड़की या किसी दरार से हवा की आवाजाही नहीं होती है

जिस तरह से दुनिया में विकास की दर व जनसंख्या बढ़ रही उसी गति से जल, वायु, खाद्य, मकान व बेरोजगारी जैसी समस्यायें भी विकराल गति से बढ़ रही फिर भी ताज्जुब होता जब हम लोगों को कुदरत की कदर करने की जगह इन्हें बर्बाद करते ही पाते है माना कि इनके बीच चंद ऐसे जिन्होंने अपना जीवन सिर्फ प्रकृति बचाने को समर्पित कर दिया लेकिन, जितनी हमारी आबादी उसके आगे उनकी संख्या नगण्य तो ऐसे में जरूरत कि हम भी अब तो सही ये समझे कि यदि पर्यावरण ही नहीं होगा तो हम सब भी नहीं बचेंगे इस तरह की विकट परिस्थितयों में अब हम सबको इस पर विचार करने से आगे बढ़कर इसको बचाने आगे आना होगा जिससे कि आगे आने वाली पीढियों को हम जीने के लिये वो सब दे सके जिस पर उनका जन्मजात अधिकार है

कहीं आप ये तो नहीं समझ रहे कि इसका तात्पर्य ‘रोटी’, ‘कपड़ा’ और ‘मकान’ से है तो एकदम गलत सोच है आपकी क्योंकि, इनका नम्बर बाद में आता पहले तो वो वातावरण जरूरी जिसमें वो खुलकर सांस ले सके उसके बाद उन सांसों को चलाते रहने के लिये उस तत्व की आवश्यकता जिससे हमारे शरीर का 70% हिस्सा निर्मित हुआ है । हमने सह-अस्तित्व को नकारते हुये जंगल तो खत्म कर ही दिए हर जगह बहु-मंजिला इमारतें व कंक्रीट की सडकें बनाकर पशु, पक्षियों व जानवरों को भी लगभग विलुप्ति की कगार पर खड़ा कर दिया और रही-सही कसर प्रदुषण फैलाकर नदियों-तालाबों को भी इतना गंदा कर दिया कि जलचर भी त्राहिमाम-त्राहिमाम कर रहे हैं ।
  
यदि हमने इन्हें बचा लिया तो फिर अगला क्रम आता है ‘रिश्तों’ का जिनके बिना जीवन उदासीन व एकाकी लगने लगता इसलिये तो एकमात्र भारतीय संस्कृति ऐसी जहाँ उसने हर एक रिश्ते को महत्व देते हुये उनका उत्सव मनाने की परम्परा स्थापित की जिसका परिणाम कि मातामह-पितामह, माता-पिता, पति-पत्नी, भाई-बहन हर रिश्ते को समर्पित कोई न कोई त्यौहार हम बड़ी धूमधाम से मनाते है । ऐसा कर के हम उन रिश्तों में पुनः नया अर्थ भरते, उनको पुनर्जीवन देते है और यदि कोई गिला-शिकवा भी हो तो उसे भूलकर फिर से उसे नये सिरे से शुरू करते याने कि ये दिन हर कड़वाहट को भूलाकर उस रिश्ते को फिर से आगे आने वाले एक साल के लिये रिचार्ज कर देता है ।

आखिर, रिचार्ज’ की जरूरत तो सबको ही होती चाहे वो ‘रिश्ते’ हो या ‘गेजेट्स’ तो समय-समय पर हम उनके लिये कुछ अलग करने की कोशिश करते पर, जिस तरह से आजकल के लोग व्यस्त ऐसे में इनकी महत्ता अधिक बढ़ जाती क्योंकि, हर दिन न सही कम-से-कम एक दिन तो हम अपने कीमती समय में से थोड़ा वक़्त अपने रक्त सम्बन्धों को दे ही सकते है । इस बात का अहसास हमारे पूर्वजों को होगा तभी तो उन्होंने ‘भाई-दूज’ जैसा प्यारा पर्व बनाया और जब वैश्विक स्तर पर इस बात को गम्भीरता से समझा गया कि ‘जल नहीं तो कल नहीं’ तब ‘विश्व जल दिवस’ मनाने का निर्णय लिया गया और आज अद्भुत संयोग जब ये दोनों एक साथ आकर ये कहना चाह रहे कि ‘जल’ हो या ‘रिश्ते’, मिले सरंक्षण तभी बचते... <3 !!!      

इसकी सार्थकता तभी जब हम सोचे कि हमारी प्राथमिकताओं का क्रम उल्टा क्यों है ???

#भाई_दूज_और_जल_दिवस
#रिश्ते_और_जल_मांगे_सरंक्षण
   
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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
मार्च २२, २०१९

गुरुवार, 21 मार्च 2019

सुर-२०१९-८० : #यूं_तो_होते_रंग_अनेक #होली_में_घुलमिल_बनते_एक




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एक रंग
हो जाये सब
होली में...
होली का यही
मतलब है
न रहे कोई जात
न रहे कोई भेदभाव
रंग दे सबको
ऐसे एक रंग आज
होली में..
मिलकर गले
मिटा दे मनभेद सारे
भूल जाये सब
दूसरों की गलतियां
अपनों से न हो
गिले-शिकवे कोई भी
होली में...
न हरा
न भगवा
न रहे अलग कोई
घुल-मिल जाये
रंगों में रंग
इस तरह कि लगे
एक के बिना
दूजा भी बेमानी
होली में...
बिखरे रंग
हर रंग के हर तरफ
मिल जाये जो
एक साथ सब गर,
बन जाये फिर
मानवीयता का रंग
होली में...
आओ,
मिलकर घोले
सात रंग सुनहरे
इस तरह कि
आये नजर हम
सतरंगी इक इंद्रधनुष
होली में...
...●●●

रंगोत्सव रंगों का रंगरंगीला पर्व बनाये जीवन रंगीन, सबको रंगबिरंगी शुभकामनाएं... 💐💐💐 !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
मार्च २१, २०१९