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मित्रों...,
उच्च शिक्षा विभाग म.प्र.
शासन भोपाल और जनभागीदारी समिति, शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, नरसिंहपुर
(म.प्र.) के सहयोग से इसी वर्ष त्रैमासिक शोध पत्रिका (A Multy
Faculty Research Journal) ‘नर्मदांचल’
का प्रकाशन प्रारंभ किया गया हैं जिसका ‘प्रवेशांक’ मार्च २०१५ को जारी किया गया जो कि अभी मुझे
प्राप्त हुआ हैं और इसमें मेरा एक आलेख : ‘अपनी वैज्ञानिक सोच के माध्यम से विज्ञान
और तकनीक के क्षेत्र में इतिहास बनाये महिलाएं’ भी प्रकाशित हुआ हैं तो आज वही आप
सबसे साँझा कर रही हूँ...
अपनी वैज्ञानिक सोच के माध्यम से विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में इतिहास बनाये महिलाएं
------------ सुश्री
इंदु सिंह, नरसिंहपुर
अनुक्रम :
• संक्षिप्त परिचय
• प्रस्तावना
• विषय की आवश्यकता
• विज्ञान एवं तकनीक के क्षेत्र में सफल महिलाएं
1. गार्गी
2. कादम्बिनी गांगुली
3. डॉ. आनंदी बाई जोशी
4. निरुपमा राव
5. इंदिरा नूई
6. चंदा कोचर
7. कल्पना चावला
8. सुनीता विलिअम्स
9. टेसी थॉमस
10. छवि राजावत
१. प्रस्तावना :
अगर विज्ञान और
तकनीक हैं साथ में ।
तो नारी की किस्मत
हैं उसके हाथ में ।।
जैसा की हम सभी
जानते है की वर्तमान समय ‘कंप्यूटर युग’ हैं और आजकल सब कुछ इसी के माध्यम से संचालित होने लगा हैं ऐसे में यदि
महिलाएं भी विज्ञान और तकनीक के साथ कदम से कदम मिलाकर चले तो जैसे इस क्षेत्र में
हर पल कुछ नया इजाद हो रहा है उसी प्रकार महिलाओ की अपनी सोच में भी उन्नति होगी
और उसकी ये वैज्ञानिक सोच हमारे देश और परिवार के लिए फलदायी सिद्ध होगी क्यूंकि
महिलाएं ही हैं जिसे ईश्वर के बाद सृजनकर्ता का नाम दिया गया हैं जब वो एक नवीन
जीवन रच सकती हैं तो ऐसा क्या है जिसका निर्माण वो नहीं कर सकती जब-जब भी किसी
नारी ने किसी भी क्षेत्र में अपना कदम रखा हैं उसमे अपनी सफलता का परचम लहराया हैं
इसमें कोई शंका नहीं की अगर वो ‘विज्ञान’ और ‘तकनीक’ इन दोनों की
उपयोगिता और महत्व को समझ जाएँ तो वो अपनी क्षमताओं अपनी वैज्ञानिक सोच से ऐसे नए
उपकरण और संसाधनों का अविष्कार कर सकती हैं जो अभी केवल कल्पना जगत का हिस्सा हैं
एक महिला जिस तरह से सोच सकती हैं और अपनी सोच को मूर्त रूप दे सकती हैं वैसा और
कोई नहीं कर सकता ।
२. विषय की आवश्यकता :
विज्ञान और तकनीक के
क्षेत्र में महिलाओं की कम भागीदारी का मुद्दा अब वैश्विक चिंता का विषय बन चुका
है क्यूंकि आज हम विश्व के प्रत्येक देश विशेषतः यदि विकासशील देशों की बात करे तो
अपनी स्थिति को मजबूत बनाने में लगे हुए हैं ऐसे में यदि हम महिलाएं भी यदि इन
क्षेत्रों में अपना योगदान दे तो हम न सिर्फ खुद को साबित कर सकती हैं बल्कि
वैश्विक स्तर पर अपनी कार्य-कुशलता और बुद्धिमता का परिचय दे सकती हैं । इसीलिए ही
मैंने इस विषय को चुना हैं ।
एक I.A.S. topper लडकी से इंटरव्यू में पुछा गया की
प्रशासनिक सेवा में लडकी बेहतर है या लड़का।
.
उसका जवाब था लडकी।
.
पुछा गया क्यों तो
उसने कहा-
.
जब भगवान् ने स्वयं
धन के लिए ‘लक्ष्मी’, विद्या के लिए ‘सरस्वती’ और
शक्ति के लिए ‘दुर्गा माँ’ को इतने
ऊंचे पोस्ट पर बैठा रखा है हम तो फिर भी इंसान हैं।
३. विज्ञान एवं तकनीक के क्षेत्र में सफल महिलाएं :
मैंने अपने आलेख के
लिए उन महिलाओ की प्रेरक गाथा को चुना जिन्होंने अपनी क्षमताऔ और वैज्ञानिक सोच से
अन्य महिलाओ को भी इन दिशा में अपने पाँव बढ़ने के लिए न सिर्फ प्रेरित किया बल्कि
उनके लिए मार्ग प्रशस्त किये जिससे की वो भी अपनी पहचान बना सके ये सब नारियां आज
के आधुनिक भारत का चिर-परिचित चेहरा बन चुकी हैं और यदि हम इनकी जीवन कथा को पढ़े
तो पता चलता हैं की यहाँ तक का मार्ग इनके लिए आसान नहीं था पर जैसे इन्होने किसी
भी परिस्थिति या अभावों से हार नहीं मानी वो प्रेरणा दायक हैं इस लेख में उन महान
नारियों को भी शामिल करने का प्रयास किया हैं जिन्होंने स्वतंत्रता के पूर्व ‘विज्ञान’ के क्षेत्र में प्रथम होने का गौरव हासिल किया जिन्हें
शायद हम भूल चुके हैं पर नींव के पत्थर भले ही भुला दिये जाये पर ईमारत की हर ईट
को उसका एहसास होता हैं क्योंकि वो जानती है की वो किसके दम पर इस तरह तनकर खडी
हैं तो मैं उन सब स्त्रियों को शत-शत नमन करती हूँ उनका पुन्य स्मरण करती हूँ
जिन्होंने अपने आत्मबल और धेर्य के बल पर हमें आगे बढ़ने के लिए एक पथ प्रदान किया-
०१. अद्वितीय विदुषी नारी : वाचकन्वी गार्गी
सर्वप्रथम मैं एक
ऐसी महान नारी का नाम लेना चाहूंगी जिनका विद्वता का उल्लेख उपनिषद में भी किया
गया हैं ये एक ऐसी विदुषी महिला हैं जिन्होंने अपने विवेक और बुद्धि से महाराजा
जनक की राज्यसभा में ऋषि याज्ञवल्क्य से शास्त्रार्थ किया और अपनी बुद्धिमता से
सभा में उपस्थित सभी ज्ञानीजनों को प्रभावित किया...
गर्गवंश में वचक्नु
नामक महर्षि थे जिनकी पुत्री का नाम ‘वाचकन्वी गार्गी’ था। बृहदारण्यक उपनिषद् में इनका
ऋषि याज्ञवल्क्य के साथ बडा ही सुन्दर शास्त्रार्थ आता है। एक बार महाराज जनक ने
श्रेष्ठ ब्रह्मज्ञानी की परीक्षा लेने के लिए एक सभा का आयोजन किया। राजा जनक ने
सभा को संबोधित करके कहा:-
"हे
महाज्ञानीयों, यह मेरा सौभाग्य है कि आप
सब आज यहाँ पधारे हैं। मैंने यहाँ पर १००० गायों को रखा है जिन पर सोने की मुहरें
जडित है। आप में से जो श्रेष्ठ ब्रह्मज्ञानी हो वह इन सब गायों को ले जा सकता
है।" निर्णय लेना अति दुविधाजनक था, क्योंकि अगर कोई
ज्ञानी अपने को सबसे बड़ा ज्ञानी माने तो वह ज्ञानी कैसे कहलाये?
तब ऋषि याज्ञवल्क्य
ने अपने शिष्यों से कहा : "हे शिष्यों! इन गायों को हमारे आश्रम की और हाँक
ले चलो।"
इतना सुनते ही सब
ऋषि याज्ञवल्क्य से शास्त्रार्थ करने लगे याज्ञवल्क्य ने सबके प्रश्नों का यथाविधि
उत्तर दिया । उस सभा में ब्रह्मवादिनी गार्गी भी उपस्थित थी अतः याज्ञवल्क्य से
शास्त्रार्थ करने के लिए गार्गी उठीं और पूछा "हे ऋषिवर! क्या आप अपने को
सबसे बड़ा ज्ञानी मानते हैं?"
याज्ञवल्क्य बोले, माँ! मैं स्वयं को ज्ञानी नही मानता परन्तु इन गायों
को देख मेरे मन में मोह उत्पन्न हो गया है। गार्गी ने कहा आप को मोह हुआ, यह इनाम प्राप्त करने के लिए योग्य कारण नही है आप को यह साबित करना होगा
कि आप इस इनाम के योग्य हैं अगर सर्व सम्मति हो तो में आपसे कुछ प्रश्न पूछना
चाहूंगी, अगर आप इनके संतोषजनक जवाब प्रदान करें तो आप इस
इनाम के अधिकारी होंगे । गार्गी का पहला सवाल बहुत ही सरल था परन्तु उन्होंने
अन्तत: याज्ञवल्क्य को ऐसा उलझा दिया कि वे क्रुध्द हो गए गार्गी ने पूछा था,
हे ऋषिवर! जल के बारे में कहा जाता है कि हर पदार्थ इसमें घुलमिल
जाता है तो यह जल किसमें जाकर मिल जाता है? अपने समय के उस
सर्वश्रेष्ठ ब्रह्मनिष्ठ याज्ञवक्ल्य ने आराम से और ठीक ही कह दिया कि जल अन्तत:
वायु में ओतप्रोत हो जाता है फिर गार्गी ने पूछ लिया कि वायु किसमें जाकर मिल जाती
है और याज्ञवल्क्य का उत्तर था कि अंतरिक्ष लोक में पर गार्गी तो अदम्य थी वह भला
कहां रुक सकती थी? वह याज्ञवल्क्य के हर उत्तर को प्रश्न में
तब्दील करती गई और इस तरह गंधर्व लोक, आदित्य लोक, चन्द्रलोक, नक्षत्र लोक, देवलोक,
इन्द्रलोक, प्रजापति लोक और ब्रह्म लोक तक जा
पहुंची और अन्त में गार्गी ने फिर वही सवाल पूछ लिया कि यह ब्रह्मलोक किसमें जाकर
मिल जाता है? इस पर गार्गी को लगभग डांटते हुए याज्ञवक्ल्य
ने कहा-’गार्गी, माति प्राक्षीर्मा ते
मूर्धा व्यापप्त्त्’ यानी गार्गी, इतने
सवाल मत करो, कहीं ऐसा न हो कि इससे तुम्हारा भेजा ही फट
जाए।
गार्गी का सवाल
वास्तव में सृष्टि के रहस्य के बारे में था अगर याज्ञवल्क्य उसे ठीक तरह से समझा
देते तो उन्हें इस विदुषी दार्शनिका को डांटना न पड़ता पर गार्गी चूंकि अच्छी वक्ता
थी और अच्छा वक्ता वही होता है जिसे पता होता है कि कब बोलना और कब चुप हो जाना है, तो याज्ञवल्क्य की यह बात सुनकर वह परमहंस चुप हो गई
पर अपने दूसरे सवाल में गार्गी ने दूसरा कमाल दिखा दिया । उसे अपने प्रतिद्वन्द्वी
से यानी याज्ञवल्क्य से दो सवाल पूछने थे तो उसने बड़ी ही शानदार भूमिका बांधी
गार्गी बोली, "ऋषिवर सुनो जिस प्रकार काशी या विदेह का
राजा अपने धनुष पर डोरी चढ़ाकर, एक साथ दो अचूक बाणों को धनुष
पर चढ़ाकर अपने दुश्मन पर सन्धान करता है, वैसे ही मैं आपसे
दो प्रश्न पूछती हूँ" यानी गार्गी बड़े ही आक्रामक मूड में थी और उसके सवाल
बहुत तीखे थे ।
याज्ञवल्क्य ने
कहा--- हे गार्गी, पूछो तो गार्गी ने
पूछा---स्वर्गलोक से ऊपर जो कुछ भी है और पृथ्वी से नीचे जो कुछ भी है और इन दोनों
के मध्य जो कुछ भी है; और जो हो चुका है और जो अभी होना है,
ये दोनों किसमें ओतप्रोत हैं? पहला सवाल स्पेस
के बारे में है तो दूसरा टाइम के बारे में है ‘स्पेस’
और ‘टाइम’ के बाहर भी
कुछ है क्या? नहीं है, इसलिए गार्गी ने
बाण की तरह पैने इन दो सवालों के जरिए यह पूछ लिया कि सारा ब्रह्माण्ड किसके अधीन
है? याज्ञवल्क्य बोले, ‘एतस्य वा
अक्षरस्य प्रशासने गार्गी’ यानी कोई अक्षर, अविनाशी तत्व है जिसके प्रशासन में, अनुशासन में सभी
कुछ ओतप्रोत है। गार्गी ने पूछा कि यह सारा ब्रह्माण्ड किसके अधीन है तो
याज्ञवल्क्य का उत्तर था- अक्षरतत्व के! इस बार याज्ञवल्क्य नें अक्षरतत्व के बारे
में विस्तार से समझाया। वें अन्तत: बोले, गार्गी इस अक्षर
तत्व को जाने बिना यज्ञ और तप सब बेकार है अगर कोई इस रहस्य को जाने बिना मर जाए
तो समझो कि वह कृष्ण है और ब्राह्मण वही
है जो इस रहस्य को जानकर ही इस लोक से विदा होता है।
इस बार गार्गी भी
मुग्ध थी अपने सवालों के जवाब से वह इतनी प्रभावित हुई कि महाराज जनक की राजसभा
में उसने याज्ञवल्क्य को परम ब्रह्मिष्ठ मान लिया। इतने तीखे सवाल पूछने के बाद
गार्गी ने जिस तरह याज्ञवल्क्य की प्रशंसा कर अपनी बात खत्म की तो उसने वाचक्नवी
होने का एक और गुण भी दिखा दिया कि उसमें अहंकार का नामोंनिशान नहीं था गार्गी ने
याज्ञवल्क्य को प्रणाम किया और सभा से विदा ली।
याज्ञवल्क्य विजेता
थे गायों का धन अब उनका था पर याज्ञवल्क्य ने नम्रता से राजा जनक को कहा "राजन! यह धन प्राप्त कर मेरा मोह नष्ट
हुआ है यह धन ब्रह्म का है और ब्रह्म के उपयोग में लाया जाए यह मेरी नम्र विनती
है" इस प्रकार राजा जनक की सभा के द्वारा सभी ज्ञानीओं को एक महान पाठ और
श्रेष्ठ विचारों की प्राप्ति हुई । ऐसी थी गार्गी वाचक्नवी, देश की विशिष्टतम दार्शनिक और युगप्रवर्तक।
इनकी कथा से हमें ये
पता चलता हैं की नारी में बुद्धि और धेर्य जैसे अन्य गुणों का समावेश हैं और यदि
वो इनका समुचित प्रकार से उपयोग करे तो अपनी सोच और कुशलता से न सिर्फ अपनी बात रख
सकती हैं बल्कि इश्वर प्रदत्त इस ज्ञान रूपी अनमोल उपहार से अपनी पहचान भी बना सकती
हैं । संभवतः ये प्रथम प्राचीन विदुषी नारी है जिनकी कहानी ये बताती है की स्त्री
की सोच कितनी गहरी, कितनी सूक्ष्म हो सकती
है।
०२. कादम्बिनी गांगुली : पहली महिला स्नातक -
यूरोपीय चिकित्सा प्रणाली में प्रशिक्षित पहली महिला चिकत्सक
अब स्मरण करती हूँ
देश की उन दो नारियों को जिन्हें भारत की प्रथम स्नातक महिला होने का गौरव हासिल
हैं। एक समय ऐसा भी था की हमारा देश परतंत्रता की जंजीरों में जकड़ा हुआ था ऐसे समय
में जबकि लोगों के लिए जीना कठिन था कोई पढने के बारे में सोच भी नहीं सकता था वो
भी महिलाएं, पर ये गौरवशाली भारत की
भूमि हैं जहाँ यदि कोई मन में कुछ ठान ले तो फिर कितनी भी मुश्किलें आयें अपने
लक्ष्य को प्राप्त कर के ही रहता हैं ऐसा ही किया था दो असीम इच्छाशक्ति की हार न
मानने वाली महिलाओ ने और अपने इस कारनामे के कारण वे बन गयी परतंत्र भारत के प्रथम
स्नातक और यूरोपीय चिकित्सा प्रणाली में प्रशिक्षित पहली महिला चिकित्सक...
‘कादम्बिनी गांगुली’
(18 जुलाई 1861 - 3 अक्टूबर 1923) ‘चंद्रमुखी
बसु’ के साथ ब्रिटिश साम्राज्य की पहली महिला स्नातकों में
से एक थी। वह और चंद्रमुखी बसु कॉलेज से पहले स्नातक बन गयी और इस प्रक्रिया में
देश में और पूरे ब्रिटिश साम्राज्य में पहली महिला स्नातक बनी । वह दक्षिण एशिया
की पहली महिला चिकित्सकों में से एक एवं भारत की पहली महिला चिकत्सक थी जो यूरोपीय
चिकित्सा प्रणाली में प्रशिक्षित थी।
कादम्बिनी ने बंगा
महिला विद्यालय में अपनी शिक्षा शुरू की और बेथुने स्कूल में 1878 में कलकत्ता विश्वविद्यालय की
प्रवेश परीक्षा पास करने वाली पहली महिला बन गयी। उस समय के विख्यात अमेरिकी
इतिहासकार डेविड ने लिखा है कि, "अपने समय की सबसे अधिक निपुण और मुक्त ख़याल वाली औरत थी । उनके हिसाब से
रिश्ते आपसी प्रेम, संवेदनशीलता और समझ-बूझ पर बनते है जो कि
उस वक्त के लिए सबसे असामान्य बात थी”।
आज के समय में जब हम
आज़ाद हो चुके हैं और सभी प्रकार की सुविधाओं से संपन्न हैं लोगों का पढ़ाई के प्रति उतना रुझान नहीं है जबकि उन कठिन
परिस्थितियों में हर अभावों के साथ जूझते हुए अपने आत्मबल और विवेक के बल पर इन
महिलाओ ने शिक्षा के महत्त्व को न सिर्फ समझा बल्कि अन्य महिलाओ की लिए आगे बढ़ने
के लिए राह भी बनाई ।
०३. डॉ. आनंदी बाई जोशी : पहली भारतीय महिला
डॉक्टर
अब मैं उस महान नारी का स्मरण करना चाहूंगी जिसने ‘प्रथम भारतीय डॉक्टर होने का गौरव हासिल किया परतंत्र
भारत में विज्ञान शिक्षा के क्षेत्र में पहला नाम ‘डॉ आनंदी
जोशी’ का आता है जिन्होंने 1886 में अमेरिका के फिलाडेल्फिया
से चिकित्सक की डिग्री हासिल की और इस प्रकार डॉक्टर आनंदी जोशी बन गयी प्रथम
भारतीय महिला डॉक्टर...
आनंदीबाई जोशी पूना
शहर में जन्मीर पहली भारतीय महिला थीं, जिन्होंरने डॉक्टआरी की डिग्री ली थी। जिस दौर में महिलाओं की शिक्षा भी
दूभर थी, ऐसे में विदेश जाकर डॉक्ट री की डिग्री हासिल करना
अपने-आप में एक मिसाल है। उनका विवाह नौ साल की अल्पाऐयु में उनसे करीब 20 साल
बड़े गोपालराव से हो गया था। जब 14 साल की उम्र में वे माँ बनीं और उनकी एकमात्र
संतान की मृत्युऔ 10 दिनों में ही गई तो उन्हें
बहुत बड़ा आघात लगा। अपनी संतान को खो देने के बाद उन्हों ने यह प्रण किया
कि वह एक दिन डॉक्टरर बनेंगी और ऐसी असमय मौत को रोकने का प्रयास करेंगी। उनके पति
गोपालराव ने भी उनको भरपूर सहयोग दिया और उनकी हौसलाअफजाई की।
आनंदीबाई जोशी का
व्यौक्तित्वा महिलाओं के लिए प्रेरणास्त्रोनत है। उन्होंिने सन् 1886 में अपने
सपने को साकार रूप दिया। जब उन्होंकने यह निर्णय लिया था, उनके समाज में काफी आलोचना हुई थी कि एक शादीशुदा
हिंदू स्त्री विदेश (पेनिसिल्वेिनिया)
जाकर डॉक्टकरी की पढ़ाई करे। लेकिन आनंदीबाई एक दृढ़निश्च यी महिला थीं और उन्हों
ने उन आलोचनाओं की तनिक भी परवाह नहीं की। यही वजह है कि उन्हेंी पहली भारतीय
महिला डॉक्टंर होने का गौरव प्राप्तव हुआ। डिग्री पूरी करने के बाद जब आनंदीबाई
भारत वापस लौटीं तो उनका स्वांस्य्े
गिरने लगा और बाईस वर्ष की अल्पा यु में ही उनकी मृत्युद हो गई। यह सच है
कि आनंदीबाई ने जिस उद्देश्यव से डॉक्टकरी की डिग्री ली थी, उसमें
वह पूरी तरह सफल नहीं हो पाईं, लेकिन उन्होंाने समाज में वह
मुकाम हासिल किया, जो आज भी एक मिसाल है।
उनका जीवन परिचय
पढने का बाद ज्ञात होता हैं की ये सब उस समय इतना आसान नहीं था जितना की आज
स्वतंत्रता के बाद हैं जब वो इतनी विषम परिस्थितियों के बाद भी ये कर सकती थी तो
मुझे नहीं लगता की आज की आधुनिक और सुविधा संपन्न नारियों के लिए इस क्षेत्र में
अपना मुकाम बनाना जरा भी कठिनाई भरा कार्य हो सकता हैं ।
०४. सशक्त नारी : निरुपमा राव
इस पावन और गौरवशाली
भारत भूमि में जन्म लेने वाली नारियों ने सिर्फ इस देश में नहीं वरन विदेशों में
भी अपनी योग्यता ओर कौशल के दम हमारा सर गर्व से ऊँचा कर दिया हैं ऐसी ही एक सशक्त
नारी हैं ‘निरुपमा राव’ जिन्होंने अपनी काबिलियत से आज वो मुकाम हासिल किया हैं जिसके कारण आज
उनका नाम भारत की शीर्ष शक्तिशाली और प्रतिभाशाली शख्सियत के साथ लिया जाता हैं...
निरुपमा मेनन राव
(जन्म 6 दिसम्बर, 1950) एक भारतीय विदेश
सेवा (आई.एफ.एस.) अधिकारी हैं जो जुलाई 2009 में वे भारतीय विदेश सचिव के पद,
जो कि भारतीय विदेश सेवा का सर्वोच्च पद है पर पहुँचने वाली दूसरी
महिला (चोकिला अय्यर के बाद) बनीं । अपने करियर में वे कई पदों पर कार्य कर चुकी
हैं जिनमे शामिल हैं - वॉशिंगटन में प्रेस मामलों की मंत्री, मास्को में मिशन की उप प्रमुख, विदेश मंत्रालय में
संयुक्त सचिव (पूर्व एशिया), (बाहरी प्रचार) जिसने उन्हें
विदेश मंत्रालय की पहली महिला प्रवक्ता बनाया, कार्मिक
प्रमुख, पेरू और चीन की राजदूत और श्रीलंका की उच्चायुक्त ।
निरुपमा राव का जन्म
मलप्पुरम, केरल में मीमपाट थरवाड़
में हुआ था. उनके पिता सेना में थे. उन्होंने अपनी पढ़ाई बेंगलोर, पुणे, लखनऊ, कून्नूर जैसे
विभिन्न शहरों से की । निरुपमा राव ने भारतीय विदेश सेवा के 1973 बैच में सर्वोच्च
स्थान प्राप्त किया था । भारत में अपना प्रशिक्षण पूर्ण करने के बाद उन्होंने
सत्तर के दशक के मध्य में वियना (ऑस्ट्रिया) के भारतीय दूतावास में काम किया ।
उन्होंने 1981-83 तक श्रीलंका के भारतीय उच्चायोग में प्रथम सचिव के रूप में कार्य
किया । विदेश मंत्रालय में अपने प्रारंभिक वर्षों के दौरान, उन्होंने
भारत-चीन संबंधों पर विशेषज्ञता हासिल की और प्रधानमंत्री राजीव गांधी द्वारा
दिसंबर 1988 में बीजिंग की अपनी ऐतिहासिक यात्रा के दौरान वे शिष्टमंडल की सदस्य
भी रही थीं ।
अमेरिका में भारत की
राजदूत निरुपमा राव ने विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने पर जोर
दिया है । उनका कहना है कि यदि देश को विज्ञान और अन्य मोर्चे पर आ बढ़ाना है तो
महिलाओं की भागीदारी बढ़ानी होगी। उन्होंने कहा कि पुरुष वर्चस्व के कारण महिलाएं
विज्ञान के क्षेत्र में ज्यादा तरक्की नहीं कर पाई हैं। उन्होंने विज्ञान और अन्य क्षेत्रों
में लैंगिक भेदभाव को खत्म करने के लिए नीति निर्माण की भी बात कही। उन्होंने कहा कि आजादी के बाद देश में महिला
वैज्ञानिकों की संख्या भले ही बढ़ी है और विज्ञान के प्रति उनमें ललक जगी है लेकिन, आबादी के अनुपात में उन्हें इस क्षेत्र में काम करने
के मौके नहीं मिल पा रहे हैं। निरुपमा ने कहा, 1975 में देश
में महिला इंजीनियरों की संख्या महज 800 थी। यह आज दो लाख से ज्यादा हो गई है
लेकिन बावजूद इसके, आबादी के अनुपात में देखा जाए तो यह
संख्या काफी कम है।
निरुपमा ने कहा--- ''भारतीय महिला वैज्ञानिकों की संख्या काफी कम है और
विज्ञान में महिलाओं की अनुपस्थिति पर हमें यह सोचने की जरूरत है कि इस क्षेत्र
में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए क्या हम पर्याप्त काम कर रहे हैं”।
०५. दुनिया की सबसे ताकतवर महिला : इंद्रा
कृष्णमूर्ति नूई
अब बात करते हैं एक
ऐसी महिला की जिसने अपनी काबिलियत और अनोखी सोच से दुनिया की १०० सबसे ज्यादा
ताकतवर महिलाओ की सूचि में अपना नाम दर्ज करवाया उनका ये कदम उन सभी के लिए
प्रेरणा का सबब बना जो कि इस क्षेत्र में अपना मुकाम बनाना चाहती थी...
इंद्रा कृष्णमूर्ति
नूई का जन्म [अक्तूबर 28, 1955 में हुआ था, वह पेप्सीको की अध्यक्ष और मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं, जो दुनिया के अग्रणी खाद्य और पेय कंपनियों में से एक है । 14 अगस्त 2006
में, नूई को 1 अक्टूबर 2006 से कंपनी के मुख्य कार्यकारी
अधिकारी के रूप में स्टीवन रेनमंड के उत्तराधिकारी के रूप में नामित किया गया ।
इंद्रा नूई चेन्नई, तमिलनाडु, भारत में पैदा हुई
थी. उन्होंने होली एन्जिल्स AIHSS, चेन्नई से अपनी स्कूली
शिक्षा पूरी की थी । 1994 में नूई, पेप्सीको में शामिल हुईं
और 2001 में उन्हें अध्यक्ष और CEO नामित किया गया था
पेप्सीको के 44 साल के इतिहास में वह पांचवीं CEO बन गई ।
नूई ने दशक से भी अधिक समय कंपनी की वैश्विक कार्यनीति को निर्देशित किया और
पेप्सीको के पुनर्गठन का नेतृत्व किया ।
नूई को वॉल स्ट्रीट
जर्नल की 2007 और 2008 में देखी जाने वाली 50 महिलाओं की सूची नामित किया, और 2007 और 2008 में टाइम की 100 अधिकांश प्रभावशाली
लोगों की सूचीबद्ध में शामिल थी 2008 में फोर्ब्स ने उन्हें #3 सबसे ताकतवर औरत का
नाम दिया था ।
०६. व्यापार में सबसे शक्तिशाली महिला : चंदा कोचर
वाणिज्य और व्यापार
में भी महिलाओं ने दखल देकर अपनी सशक्त उपस्थिति से वो मूकाम हासिल किया हैं कि
सिर्फ देश नहीं बल्कि विदेशों तक अपने नाम की धूम मचाई हैं और अपने कुशल नेतृत्व
और निर्णय क्षमता से अपनी सफ़लता की कहानी लिखी हैं...
चन्दा कोचर (जन्म :
१७ नवम्बर, १९६१) आई.सी.आई.सी.आई.
बैंक की मुख्य कार्यकारी ऑफिसर (सीईओ) एवं प्रबन्ध निदेशक (एम डी) चन्दा कोचर का जन्म राजस्थान के जोधपुर नगर में
हुआ था वहीं वे पली-बढीं । उन्होने मुंबई के जय हिन्द कॉलेज से सन १९८२ में
कला-स्नातक की डिग्री प्राप्त की। इसके उपरान्त उन्होने एमबीए एवं कॉस्ट
एकाउन्टेन्सी की शिक्षा ली इसके बाद
उन्होने जमनालाल बजाज प्रबन्धन संस्था से प्रबन्धन के क्षेत्र में मास्टर डिग्री
प्राप्त किया ।
ममास्टर डिग्री लेने
के बाद चंदा ने आई.सी.आई.सी.आई. बैंक में मैनेजमेंट ट्रेनी के रूप में प्रवेश किया
और अपने काम और अनुभव के साथ-साथ वे लगातार आगे बढ़ती गईं। उन्होंने बैंक को सफलता
के नए आयामों तक पहुंचाया। उनके नेतृत्व में ही बैंक ने अपने रीटेल बिजनेस की
शुरुआत की। बैंकिंग के क्षेत्र में अपने योगदान के कारण चंदा को कई अवॉर्डों से
नवाजा गया जिसमें भारत सरकार द्वारा दिया जाने वाला तीसरा सबसे बड़ा पुरस्कार पद्म
विभूषण शामिल है। इसके साथ ही वे उन दो महिलाओं में एक हैं जो कि इंडियन
डॉमेस्टिक बैंक की हेड हैं। कई महिलाओं की प्रेरणास्त्रोत होने के साथ-साथ चंदा आज
कई युवाओं की भी आदर्श हैं। जिनकी सफलता की कहानी से आज युवा आगे बढ़ने की सीख
लेते हैं।
०७. अन्तरिक्ष में जाने वाली प्रथम भारतीय महिला :
कल्पना चावला
भारत की बेटी कल्पना
चावला पर पूरा देश गर्व करता हैं जिन्होंने किसी भी मुश्किल या बाधा की परवाह न
करते हुये वो असम्भव काम कर के दिखाया जिसके लिये एक छोटे-से कस्बे की किसी लडकी
के लिए ख्वाब में भी पूरा करना मुश्किल था और महिलाओं के लिये आसमान में एक झरोखा
खोला और एक छोटा-सा दरवाजा बनाया जिससे कि
वो भी वहां पर अपना नाम लिख सके...
कल्पना चावला (जन्म-
1 जुलाई, 1961 - मृत्यु- 1 फ़रवरी,
2003) एक भारतीय अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री और अंतरिक्ष शटल मिशन
विशेषज्ञ थी वे कोलंबिया अन्तरिक्ष यान आपदा में मारे गए सात यात्री दल सदस्यों
में से एक थीं । कल्पना चावला अंतरिक्ष में जाने वाली प्रथम भारती महिला थी ।
कल्पना चावला का जन्म 1 जुलाई, 1961 ई. को हरियाणा के करनाल
कस्बे में हुआ था कल्पना के पिता का नाम श्री बनारसी लाल चावला और माता का नाम
संज्योती था ।
कल्पना चावला ने
1976 में करनाल के टैगोर स्कूल से स्नातक, 1982 में चंडीगढ़ से एरोनॉटिकल इंजीनियरिंग तथा 1984 में टेक्सास
विश्वविद्यालय से एरोस्पेस इंजीनियरिंग में एम. ए. किया । इसी वर्ष कल्पना ने नासा
के एम्स रिसर्च सेंटर में काम करना शुरू किया । कल्पना की पहली अंतरिक्ष उड़ान एस.
टी. एस.-87 कोलंबिया स्पेस शटल से संपन्न हुई तथा इसकी अवधि 19 नवंबर से 5 दिसंबर,
1997 थी । कल्पना की दूसरी और अंतिम उड़ान 16 जनवरी, 2003 को कोलंबिया स्पेस शटल से ही आरंभ हुई यह 16 दिन का मिशन था ।
उन्होंने अपने सहयोगियों सहित लगभग 80 परीक्षण और प्रयोग किए वापसी के समय 1 फरवरी
2003, को शटल दुर्घटना ग्रस्त हो गई तथा कल्पना समेत 6
अंतरिक्ष यात्रियों की मृत्यु हो गई ।
०८. अन्तरिक्ष में सबसे लम्बा समय बिताने वाली
महिला : सुनीता विलियम्स
भारतवंशी सुनीता
विलियम्स ने भी अंतरिक्ष में अपने नाम का झंडा गाद ये साबित किया कि सिर्फ हौंसलों
के दम पर हर वो किला फतह किया जा सकता हैं जो दूर से देखने पर अभेद्य लगता हैं
इसलिए उन्होंने धरती पर नहीं आसमान पर अपनी कामयाबी की कहानी लिखी जिसे देखकर
दुनिया ने भी माना कि लिंग नहीं केवल कर्म से ही अपना भविष्य बनाया जा सकता हैं...
सुनीता विलियम्स
(जन्म: 19 सितंबर, 1965) अमेरिकी अंतरिक्ष
एजेंसी नासा के माध्यम से अंतरिक्ष जाने वाली भारतीय मूल की दूसरी महिला हैं । यह
भारत के गुजरात के अहमदाबाद से ताल्लुक रखती है इन्होंने एक महिला अंतरिक्ष यात्री
के रुप में 194 दिन, 18 घंटे रहकर नया विश्व किर्तिमान
स्थापित किया है उनके पिता दीपक पांड्या अमेरिका में एक डाक्टर हैं।
सुनीता लिन पांड्या
विलियम्स का जन्म 19 सितम्बर, 1965
को अमेरिका के ओहियो राज्य में यूक्लिड नगर (स्थित क्लीवलैंड) में हुआ था ।
मैसाचुसेट्स से ही हाई स्कूल पास करने के बाद 1987 में उन्होंने संयुक्त राष्ट्र
की नौसैनिक अकादमी से फिजिकल साइन्स में बीएस (स्नातक उपाधि) की परीक्षा उत्तीर्ण
की। तत्पश्चात 1995 में उन्होंने फ़्लोरिडा इंस्टिट्यूट ऑफ़ टैक्नोलॉजी से
इंजीनियरिंग मैनेजमेंट में एम.एस. की उपाधि हासिल की जून 1998 में उनका अमेरिका की
अंतरिक्ष एजेंसी नासा में चयन हुआ और प्रशिक्षण शुरू हुआ ।
सुनीता भारतीय मूल
की दूसरी महिला हैं जो अमरीका के अंतरिक्ष मिशन पर गईं। सुनीता विलियम्स ने सितंबर
/ अक्तूबर 2007 में भारत का दौरा भी किया। जून, 1998 से नासा से जुड़ी सुनीता ने अभी तक कुल 30 अलग-अलग अंतरिक्ष यानों
में 2770 उड़ानें भरी हैं साथ ही सुनीता सोसाइटी ऑफ एक्सपेरिमेंटल टेस्ट पायलेट्स,
सोसाइटी ऑफ फ्लाइट टेस्ट इंजीनियर्स और अमेरिकी हैलिकॉप्टर एसोसिएशन
जैसी संस्थाओं से भी जुड़ी हुई हैं । कार्यक्षेत्र में अपनी उपलब्धियों से उन्हें
नेवी कमेंडेशन मेडल, नेवी एंड मैरीन कॉर्प एचीवमेंट मेडल,
ह्यूमैनिटेरियन सर्विस मेडल जैसे कई सम्मानों से सम्मानित किया गया
है ।
एक साधारण
व्यक्तित्व से ऊपर उठकर सुनीता ने अपनी असाधारण संभाव्यता को पहचाना और कड़ी मेहनत
तथा आत्मविश्वास के बल पर उसका भरपूर उपयोग किया। अपनी असाधारण सफलता से उन्होंने
उन लोगों के लिए एक प्रतिमान तैयार किया है, जो उनके पदचिह्नों पर चलना चाहते हैं । यह सफलता उन्होंने अपने स्नेही और
सहयोगी परिवार व मित्रों के सहयोग से प्राप्त की है । सुनीता विलियम्स को सन 2008
में भारत सरकार द्वारा विज्ञान एवं अभियांत्रिकी के क्षेत्र में पद्म भूषण से
सम्मानित किया था ।
०९. भारत की प्रथम मिसाईल वुमन : ‘टेसी थॉमस’
अब तक सब ने मिसाईल
मेन ऐ.पी.जे. कलाम का नाम तो सुना हैं लेकिन उनकी शिष्या ‘टेसी’ को नहीं जानते होंगे
जिन्होंने विज्ञान के क्षेत्र में बेमिसाल काम कर अपने लिये ‘मिसाईल वुमन’ का ख़िताब हासिल किया और ये बात भी देश
और दुनिया के समक्ष रखी कि अब इस क्षेत्र में महिलाओं को अपनी क्रियात्मक भूमिका
निबाहने के लिये आगे आना चाहिए...
प्रक्षेपास्त्र ‘अग्नि-5’ के सफल परीक्षण के बाद
महिला वैज्ञानिक ‘टेसी थॉमस’ की मुख्य
भूमिका उभर कर सामने आई है । मिसाइल मैन ‘डॉ अब्दुल कलाम’
की प्रमुख शिष्या रहीं डॉ थॉमस को भी इस परीक्षण के बाद ‘मिसाइल वुमन’ अथवा ‘अग्नि-पुत्री’
नामों से संबोधित किया जाने लगा है मिसाइल कार्यक्रम का संपूर्ण
नेतृत्व संभालने वाली वे देश की पहली महिला वैज्ञानिक बन गई हैं।
रक्षा अनुसंधान एवं
विकास संगठन (डी.आर.डी.ओ.) में पुरुषों की जमात में इस अनोखी महिला वैज्ञानिक ने देश के अति सक्षम अंतरद्वीपीय बैलिस्टिक
मिसाइल को तैयार करने में एक प्रमुख भूमिका निभाई है। अग्नि श्रेणी की सभी मिसाइल
परियोजनाओं से जुड़ीं, थॉमस ने अग्नि-4 की टीम
का नेतृत्व परियोजना निदेशक (वाहनों व मिशन) के रूप में किया था और अग्नि-5 की टीम
का नेतृत्व परियोजना निदेशक (मिशन) के रूप में किया था । हाल ही में सफलतापूर्वक
प्रक्षेपित, 5,000 किलोमीटर मारक क्षमता वाली परमाणु सक्षम
बैलिस्टिक मिसाइल, अग्नि-5 के विकास में प्रमुख भूमिका
निभाने वाली वैज्ञानिक टेसी थॉमस का मानना है कि किसी महिला के इस तरह के काम से
जुड़े होने में कोई बुराई नहीं है। थॉमस ने इस मिसाइल का विकास करने वाली टीम को
दिशानिर्देश देने का काम किया था । अग्नि-5 के सफल परीक्षण बाद, थॉमस ने कहा, "विज्ञान में कोई लिंगभेद नहीं
होता, क्योंकि विज्ञान को पता नहीं होता कि उसके लिए कौन काम
कर रहा है जब मैं काम करने जाती हूं तो महिला नहीं रह जाती मैं सिर्फ वैज्ञानिक रह
जाती हूं।"
साड़ी में लिपटी
थॉमस ने कहा कि--- “अतीत में डी.आर.डी.ओ. के
वैज्ञानिक समुदाय में दो-तीन प्रतिशत महिलाएं थीं पर अब महिलाओं की संख्या 12 से
15 प्रतिशत है और यह बदलाव 20 वर्षो में हुआ है”।
१०. कॉरपोरेट गर्ल बनी गांव की सरपंच : छवि राजावत
सबसे अंत में बात
करती हूँ आज के आधुनिक दौर की दिल्ली के लेडी श्रीराम कॉलेज से स्नातक और फिर पुणे
से एम.बी.ए. पढ़ी-लिखी आत्मविश्वास से भरपूर एक जवान और अन्य लडकियों के लिए आदर्श
स्थापित करने वाली एक ऐसी लडकी की जो अब अपने गांव की सरपंच हैं जिसने अपने काम से
उन सभी लोगों को ये संदेश दिया जो गाँव से बाहर जाने के बाद उसे भूलकर शहर में ही
अपना कैरियर बना लेते हैं जबकि इन्होने न सिर्फ अपने गांव में अपने लिये एक कैरियर
की तलाश की बल्कि उसकी तस्वीर भी बदली दी...
गांव की चौपाल पर
बैठी किसी महिला सरपंच की आपकी कल्पना से इतर हैं ‘छवि राजावत’ राजस्थान के टोंक जिले में मालपुरा का
एक छोटा सा गांव है ‘सोडा’ इस छोटे और
अनजाने से गांव से सरपंच बनी छवि राजावत अन्य महिला सरपंचों से कई मायनों में वाकई
अलग हैं। वे अपने गांव और गांव की बुनियादी समस्याओं को लेकर जानकारी, समझ और संवेदना तीनों के स्तर पर बहुत सजग और सक्रिय रहती हैं । जब आप
उन्हें देखते हैं तो चौपाल और ग्राम सभाओं में चटख रंग के पारंपरिक पहनावे
लहंगा-ओढनी पहने बैठी महिला सरपंच की जगह आप पाते हैं- जींस-टॉप वाले आधुनिक
पहनावे और फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने वाली एक मॉडर्न सरपंच लेकिन यह पहनावा और
भाषा उनके और गांववासियों के बीच संवाद में कभी बाधा नहीं बना । वे कहती हैं,
गांव में होने के बावजूद मेरे पहनावे ने मेरे लिए मुश्किल खडी नहीं
की क्योंकि मैं इस गांव की बेटी हूं हां, अगर मैं यहां की
बहू होती तो बात कुछ और हो सकती थी, तब मुझे अपने कपडों पर
ध्यान देना पडता।'
उच्च शिक्षित छवि ने
एमबीए करने के बाद अखबार और एक टेलीकॉम कंपनी में काम किया। बाद में अपने परिवार
के ही होटल व्यवसाय में मां को मदद की। छवि बताती हैं, सरपंच बनने के बाद अब अपने लिए समय कम ही मिल पाता
है। गांव में होती हूं तो रोजाना सुबह सात बजे से गांव वालों से मुलाकात और तालाब
पर खुदाई के कामों के बीच कब समय बीत जाता है, पता ही नहीं
चलता।
30 साल की छवि
राजावत ने कॉरपोरेट ग्लैमर और शहरी जीवन छोड़कर जयपुर से 60 किलोमीटर दूर अपने
गांव सोडा के सरपंच के रूप में काम शुरू किया है। ज्यादातर लोग ऐसे कदम को पीछे
लौटना बता सकते हैं, लेकिन छवि के लिए यह
यात्रा अपनी जड़ों तक पहुंचने की है छवि का कहना है कि ऐसा करके मैं अपने गांव का
कर्ज उतार रही हूं। छवि राजस्थान के गांवों की तेजी से बदलती सूरत की पहचान बन रही
हैं वह कहती हैं कि सूरत बदलनी चाहिए, यहां करने के लिए काफी
कुछ है। छवि का कहना है कि सच तो यह है कि बिजनेस मैनेजमेंट की मेरी डिग्री गांव
के लिए बेहतर तरीके से काम करने में मेरी मदद कर रही है ।
गर, बना ले नारी विज्ञान और तकनीक को अपना हथियार,
तो सच मानिये नहीं
मुश्किल होगा फिर कुछ भी सरकार ।।
विज्ञान और तकनीक का
साथ, करें महिलाओ के मजबूत हाथ
।।
• संदर्भ सूची :
1. www.wikipedia.org
2. www.webopedia.com
3. www.britannica.com
4. www.famousscientists.org
5. womenshistory.about.com
6. famousfemalescientists.com
7. www.women-scientists-in-history.com