शनिवार, 31 मार्च 2018

सुर-२०१८-९० : #भक्त_मनाते_हनुमान_जन्मोत्सव




चैत्र शुक्ल पक्ष में भगवान् श्रीराम के जन्मोत्सव के बाद पूर्णिमा को उनके ही भक्त श्री हनुमान का जन्मोत्सव आता जो भगवान और भक्त की इस जोड़ी के अटूट बंधन को प्रतिवर्ष और भी प्रगाढ़ करता जाता और वैसे भी ये दो नाम इस तरह से एकाकार हो चुके हैं कि एक के बिना दूसरा अधूरा-सा प्रतीत होता जो दर्शाता कि जब कोई भक्त तन-मन से पूर्ण समर्पित होकर अपने आराध्य को ध्याता तो फिर वो उसे अपने में समेट लेता फिर हनुमान जी ने तो इस तरह से उनके सेवा की जिसकी कोई दूसरी मिसाल ही नहीं जिसके वरदानस्वरुप उन्हें अमरता ही नहीं भक्त शिरोमणि का ऐसा पद प्राप्त हुआ जिसके प्रभाव से वे स्वयं ही पारसमणि बन गये और अब उनकी साधना-उपासना कर उनके भक्त उनसे अपनी मुंहमांगी मुरादे पाते

कलयुग में उनकी जिस तरह से महत्ता प्रतिपादित की गयी वो भी उनके अनुयाईयों को उनकी तरफ आकर्षित करती और जब उनका जन्मोत्सव आता तो छटा देखते ही बनती हर तरफ उनके और उनके प्रभु के जय-जयकारों से जमीनों-आसमान गूंज जाते और प्रसाद पाकर भूखे तन-मन भी तृप्त हो जाते और लोग अगले बरस की प्रतीक्षा में लग जाते जो फिर से उनके प्यारे हनुमान का जन्मदिन लेकर आयेगा जिसके साथ उनका दामन फिर से भर जायेगा और यही तो ईश्वर भी चाहता हैं कि लोग सदैव प्रेम से मिलकर रहे जिसमें इस तरह के आयोजन सार्थक भूमिका निभाते लेकिन, इसका अहसास वही कर सकते जो इसे अंतरतम से अनुभूत करते तो ऐसी ही गहन अनुभूति से भरा एक और दिवस... श्री हनुमान जन्मोत्सव... ☺ ☺ ☺ !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
३१ मार्च २०१८

गुरुवार, 29 मार्च 2018

सुर-२०१८-८८ : #महावीर_जयंती_बनाम_अहिंसा_की_जन्मतिथि




चैत्र शुक्ल त्रयोदशी
अहिंसा ने लिया मानवीय अवतार
राजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशला हुये धन्य
शुभ आगमन से जिसके
‘कुंडलपुर’ राज्य का हुआ उत्कर्ष
‘वर्धमान’ दिया गया उसको नया नाम
बचपन से ही मन में भरा था
पवित्रतम भावों का अपरिमित भंडार
परपीड़ा से होते द्रवित
प्राणीमात्र के प्रति दया से रहते भरपूर
जीव को न कोई कष्ट पहुंचे
अहिंसा परमो धर्म का सबको मंत्र देते
जियो और जीने दो के पक्षधर
बन गये जैन धर्म के चौवीसवें तीर्थंकर
अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह का दिया संदेश
आज मनाते हम सब मिलकर उनका जन्मदिवस
जिसने संपूर्ण जीवन किया देवार्पित
 
आप सभी को ‘महावीर जयंती’ की अनेकानेक शुभकामनायें... ☺ ☺ ☺ !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२९ मार्च २०१८

बुधवार, 28 मार्च 2018

सुर-२०१८-८७ : #ख़ुशफ़हमी



  
हम दोनों के दरम्यां
'कश्मीर' से लेकर
'कन्याकुमारी' तक की दूरी हैं
और मेरी ये ज़िंदगी
तेरे बिन अधूरी हैं
फिर भी जब कभी
कहीं पर भी लिखी हुई
पढ़ती हूँ ये बात कि
'कश्मीर से लेकर
कन्याकुमारी तक भारत एक हैं'
तो खुद को तुम्हारी दुनिया का
हिस्सा पाकर खुश हो जाती हूँ
ख्यालों में ही सही
तुम्हें अपने करीब पाती हूँ
फिर....
हम दोनों के दरम्यां
दूरी नहीं होती दूर होकर भी
सच....।।

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२८ मार्च २०१८


मंगलवार, 27 मार्च 2018

सुर-२०१८-८६ : #विश्व_रंगमंच_दिवस




रंगमंच हैं
ये विश्व ही सारा
अदाकारी दिखता जिसमें
हर इंसान अपनी
बिना किसी पटकथा के
नहीं जानता कोई
लिखी हैं क्या उसकी भूमिका
अंजान इस बात से वो
निभाता अपना अनदेखा पात्र
करता संवाद जैसा हो सामने किरदार  
देता प्रतिक्रिया भी अपनी
हर एक परिस्थिति के अनुसार
फिर एक दिन अचानक
गिर जाता पर्दा और
खत्म हो जाती उसकी कहानी
मगर, जो करते अदायगी बेमिसाल
छोड़ जाते इतिहास में छाप
करते समाज हित में सार्थक काम
रहता सदा उसका नाम
भले फिर नाटक हो जाये समाप्त
   
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२७ मार्च २०१८

सोमवार, 26 मार्च 2018

सुर-२०१८-८५ : #/काव्य_कथा #मिजाज़_का_सच




‘सोनाली’ ये कोई इतनी बड़ी बात नहीं तुम जितना बुरा मान रही हो छोडो इसे ये सब तो चलता ही रहता हैं अब ऐसे मुंह फुलाकर बैठने से तो कुछ होने से रहा हाँ, तुम्हारा मिज़ाज जरुर कुछ और तीखा हो जायेगा...

‘इमारा’ की बात सुनकर उसने कुछ चिडचिडे लहजे में कहा, सबको मेरे मिज़ाज का तीखापन ही दिखाई देता इसकी पीछे की वजह नहीं आखिर, मैं ऐसी क्यों बनी ? क्यों नहीं दूसरों की तरह प्रैक्टिकल बनकर अपना स्वार्थ साधती क्योंकि, बचपन से मुझे घुट्टी में नैतिक मूल्यों का जो काढ़ा पिलाया गया वो मुझे गलत करने से रोकता हैं इसलिये सब मुझे ओल्ड मॉडल कहते लेकिन, कोई ये नहीं सोचता कि ये सब एक दिन में नहीं हुआ किसी की शख्सियत एक दिन मैं नहीं बनती...

इसमें कई घटनाओं, कई हादसों और कई अच्छी-बुरी बातों का योगदान होता और जब लगातार एक के बाद एक धोखे मिले तो तो आदमी मेरे जैसा-ही बन जाता हैं... तू नहीं समझेगी ये करेले-सी कड़वी फ़ितरत किस तरह बनती...

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लोगों ने मेरी जुबां से
शहद चुराकर नीम बो दी हैं
अब बोलते हैं कि,
यार, तेरी जुबां बड़ी कड़वी हैं
.....
भरोसे की पीठ पर
लगातार धोखा वार करता रहा
कब तक खुद को संभालता
आखिर, एक दिन वो मर गया
फिर लोगों ने कहा,
बड़ी गंदी आदत हैं तुम्हारी
किसी पर भरोसा ही नहीं करते
.....
अक्सर,
स्पष्ट विचारधारा
जीवन मूल्यों को तरजीह देने वाले
छोटी-छोटो बातों से आहत हो जाते हैं
धोखेबाजी, बेईमानी
छल-कपट भरे व्यवहार से
तंग होकर चिडचिडे
तीखी जुबान वाले बन जाते हैं
.....
कुछ इनमें से
महात्मा या योगी भी बनते
पर, आजीवन वो किसी पर भी
विश्वास नहीं कर पाते हैं
बार-बार लगातार
लोगों को मौके देने और
सच जानकर भी आजमाने वाले
अमूमन, साफ दिल होते
लेकिन, जब घाव पर घाव मिलते
छाले फूट ही जाते
जिनसे निकला विष उनको
जो उस षड्यंत्र का हिस्सा नहीं थे
अपनी जद में ले लेता
.....
गोया कि,
किसी के गुनाह की सज़ा
कोई दूसरा भुगतता  
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तू, अब जा ‘इमारा’ तू नहीं समझेगी ये बातें... संवेदनशील होना अभिशाप हैं आज की दुनिया में पर, अब क्या करें, पत्थर दिल हो नहीं सकते तो जैसे ही वैसे ही रहेंगे... ओल्ड मॉडल... और, वो दरवाजा बंद कर अपने कमरे में चली गयी और ‘इमारा’ खड़ी-खड़ी बंद दरवाजों को देखती रही जिसके पीछे का सच वो आज जान चुकी थी

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२६ मार्च २०१८

रविवार, 25 मार्च 2018

सुर-२०१८-८४ : #एक_दिन_चार_जन्मदिन #रामनवमी_लाई_खुशियों_भरा_दिन



अयोध्या में वो खुशियों से भरा दिन था जब एक साथ राम, भारत, लक्ष्मण और शत्रुध्न का जन्म हुआ भले ही उनकी मायें अलग-अलग थी लेकिन, उनकी आत्मायें एक ही थी इसलिये उन्होंने हमेशा एक-दूजे के साथ निभाया कभी विलग भी रहे तो मात्र देह ही जुदा थी मन तो उनके जुड़े हुए थे तो स्नेह का बंधन कभी-भी ढीला नहीं हुआ चाहे उनके बीच में चौदह वर्षों के वनवास का अन्तराल ही क्यों न आ गया भातृप्रेम की जो अद्भुत अनूठी मिसाल कायम करने वे इस दुनिया में आये थे उसको स्थापित कर के ही रहे कि लोग उनकी कथाओं से प्रेरणा लेकर रिश्तों की अहमियत समझे और अपने किसी भी संबंध में कभी खटास न आने दे लेकिन, फिर भी ऐसे अनेक जो रामकथा तो पढ़ते-सुनते मगर, अपने भाई-बहिनों से इस तरह का घनिष्ट नाता नहीं बना या निभा पाते जो इस कथा का मूल हैं

‘राम’ ने राज्य मिलने पर उसे तिनके की तरह इसलिये छोड़ दिया क्योंकि, उनके छोटे भाई ‘भरत’ के लिये उसे माँगा गया था और उनके लिये अपने बड़ों की आज्ञा और अपनों का प्रेम इतने उच्च स्थान पर था कि यदि उनको बदले में अपने प्राणों का भी त्याग करना पड़ता तो एक पल भी न हिचकते जबकि, अब तो लोग जरा-सी जायदाद के लिये न केवल खून के रिश्ते छोड़ देते बल्कि, वक़्त पड़े तो अपनों की जान लेने से भी न डरते ऐसे में इस घोर कलयुग में इस रामकथा की प्रासंगिकता और भी अधिक बढ़ जाती जिसमें हर तरह के आदर्श के ऐसे प्रतिमान भरे पड़े जिनका त्याग, समर्पण और निष्ठा हमें सकारात्मक ऊर्जा से भर अपने गुणों से अंतरतम को प्रभावित करती और यदि हमारे भीतर तनिक भी परिवर्तन की इच्छा होती तो अपने पारसमणि स्पर्श से हमारे अवगुणों को हर उसे कंचन में बदल देती

हम रामनवमी तो हर बरस मनाते और रामायण प्रतिदिन दोहराते लेकिन, इसका महत्व तभी हैं जबकि, हम इसमें वर्णित जीवन मूल्यों को अपने भीतर उतारे... एक भी पद या चौपाई को यदि हमने आत्मसात कर लिया तब हम उसके सच्चे अनुयायी बन पायेंगे... एक ही नारा... एक ही नाम... जय श्री राम... बोले नहीं उसको समझे... बोलने से उद्धार तभी होगा जब उसके प्रति मन में श्रद्धा होगी... महज़, नारा समझ उसका दोहराव नहीं... सबको इस विचार के साथ रामनवमी की शुभकामनायें... ☺ ☺ ☺ !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२५ मार्च २०१८

शनिवार, 24 मार्च 2018

सुर-२०१८-८३ : #टी.बी._निगल_गयी_हस्तियाँ_कैसी_कैसी




२४ मार्च १८८२ को जर्मन वैज्ञानिक ‘रोबर्ट कोच’ ने टी.बी. के जिम्मेदार बैक्टीरिया ‘माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्यूलोसिस’ की पहचान की जिसके लिये उन्हें १९०५ में ‘नोबेल पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया और आज ‘विश्व क्षयरोग दिवस’ हैं जो  भारत में इस रोग के पाये जाने वाले सर्वाधिक  मरीजों को समर्पित हैं वे सभी जो इसकी वजह से नहीं रहे और वो जो इसकी वजह से आने वाले कल में तारीख बन सकते हैं क्योंकि, यह रोग इतना खतरनाक हैं कि यदि प्रारंभिक अवस्था में इस पर नियंत्रण न रखा जाये तो देखते-देखते व्यक्ति मौत को आगोश में चल जाता हैं अपने देश भारत में तो हर तीन ‍मिनट में दो मरीज क्षयरोग के कारण दम तोड़ दे‍ते हैं इसलिये इसके प्रति लोगों को जागरूक करने ही इस दिवस का आयोजन किया जाता

जिससे कि केवल रोगी ही नहीं बल्कि, उसके माध्यम से उसकी चपेट में आने वाले अन्य व्यक्तियों को भी बचाया जा सके क्योंकि, यह एक छुआछुत की बीमारी हैं जो संक्रमण से फैलती हैं यदि इसकी रोकथाम न की जाये तो देखते-देखते इसके संपर्क में आने वाले लोग भी इससे ग्रसित हो जाते हैं परंतु, ऐसा नहीं हैं कि इसकी अंतिम परिणिति मृत्यु ही हो केवल इसका पता लगते ही यदि इसका सही तरीके से उपचार किया जाये तो एक साथ कई जिंदगियों को बचाया जा सकता हैं
  
इस दिवस के बहाने किये जाने वाले जागरूकता अभियानों का नतीजा कि लोग अब इसके प्रति सचेत हो गये और इसे गंभीरता से लेने लगे हैं जो दर्शाता कि निश्चित ही एक दिन भारत पोलियोमुक्त की तरह टी.बी. मुक्त भी हो जायेगा क्योंकि, सरकार ने इसके लिये कड़े कदम उठाये हैं साथ ही वो लोग जो कहने को तो बड़ी नामचीन शख्सियतें लेकिन, कभी वे भी इसके शिकार हुये और कभी उनको भी इसकी शिकायत रही परंतु, आज इसके चंगुल से आज़ाद होकर अब दूसरों को भी इसके लिये प्रेरित कर रहे हैं जो एक सार्थक कदम हैं

महानायक ‘अमिताभ बच्चन’ एक ऐसा ही नाम हैं जिन्होंने बड़ी जल्दी इसका अहसास होते ही इसको न केवल काबू किया बल्कि, आज लोगों को यही संदेश दे रहे हैं कि माना, ये बीमारी खतरनाक हैं लेकिन, यदि हमने समय पर जाँच द्वारा इसका पता लगा लिया तो फिर हम इसको हरा सकते हैं लेकिन, यदि लापरवाही की तो हम सिर्फ खुद की ही नहीं अपने आस-पास के लोगों की जान के लिये भी खतरा बन सकते हैं क्योंकि, हमारी एक खांसी या हंसी या बात के साथ निकले ‘बैक्टीरिया’ कई स्वस्थ व्यक्तियों को रोगी बना सकते हैं

इस बीमारी को यदि जड़ से खत्म न किया गया तो इसका ग्राफ़ बढ़ता ही जायेगा और न जाने कितनी प्रतिभाओं को निगल ले क्योंकि, देश-विदेश में कई बड़ी-बड़ी हस्तियाँ इसकी चपेट में आ चुकी हैं जिनमें कमला नेहरु, फ्रेंज काफ्का, खलील जिब्रान, लुईस ब्रेल, जेन ऑस्टिन, जॉन कीट्स, अन्तोन चेखव, एमिली ब्रोंट, अन्ना रूजवेल्ट, एंड्रू जैक्सन जैसी नामचीन और विश्व प्रसिद्ध शख्सियतों के नाम शामिल हैं जो दर्शाता कि ये असमय आपके अपनों और उनके सपनों को लील सकता इसलिये खुद भी जागे उनको भी जगाये... टी.बी. जैसे घातक रोग को भारत से दूर भगाये... सिर्फ़, क्षयरोग दिवस ही न मनाये... ☺ ☺ ☺ !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२४ मार्च २०१८

शुक्रवार, 23 मार्च 2018

सुर-२०१८-८२ : #सच्चे_सपूत_निज_स्वार्थ_से_दूर




आज़ादी की खातिर देश के जितने भी वीर पुत्र और पुत्रियों ने अपना बलिदान दिया उसमें से सबको ये पता था कि वो इसका उपभोग नहीं कर पायेंगे फिर भी उन्होंने बिना किसी भी हिचकिचाहट या स्व-चिंतन के चाहे फांसी का फंदा हो या दुश्मन की गोली अपने बढ़े कदमों को पीछे न हटाया क्योंकि, उनका एकमात्र लक्ष्य अपनी भारतमाता को गुलामी की जंजीरों से आज़ाद करना था जिसके लिये भले ही समय कितना भी लग जाये लेकिन, ये तय था कि सतत प्रयासों और अनवरत प्रहारों से कभी-न-कभी जंजीरें कमजोर होकर टूटेगी तो ऐसे में यदि अपने हौंसलों को ढीला पड़ने दिया या वार को बंद किया तो कहीं ऐसा न हो कि यही हमारी नियति बन जाये लोगों को ऐसे ही जीने की आदत पड़ जाये तो एक के बाद एक लगातार क्रांतिवीर इस पुनीत यज्ञ में अपने प्राणों की आहुति देते रहे और आख़िरकार वो दिन आ ही गया जब जंजीरें खुल गयी

अफ़सोस कि जिस अखंड भारत को कायम रखने उन्होंने अपनी जान की बाजी लगा दी अंततः वो जब एक बार बंटा तो फिर बंटता ही गया कि इस देश के स्वार्थी बेटे इतने अधिक जिन्होंने देश की खातिर कुछ भी न किया मगर, एक कृतध्न पुत्र की तरह अपना हिस्सा मांगने में पीछे न हटे और अब तलक भी नाज़ायज वारिस की तरह देश को अपनी पुश्तैनी जायदाद समझ जब-तब एक टुकड़े की मांग दोहराते रहते वो नक्शा जिसे अविभाजित रखने के लिये ये क्रांतिकारी फांसी के फंदे पर झूल गये आज यदि उसे देख ले तो जरुर सोचेंगे कि यदि ऐसा पता होता तो फिर भला वे क्यों मौत को चुनते जब तक सांसें चलती जीते रहते परंतु, उनका खून या उनकी सोच आज के लोगों की तरह आत्मकेंद्रित नहीं थी इसलिये उन्होंने संपूर्ण देश और देशवासियों के लिये सोचा जिसका नतीजा कि देर से ही सही स्वदेश स्वतंत्र हुआ

आज तो व्यक्ति पहले अपना फायदा देखता यदि लगे कि इस काम में उसका कोई हित नहीं तो तुरंत पीछे हट जाता जबकि, आज़ादी मिले कोई बहुत अधिक समय नहीं बीता जबकि, परतंत्रता के कठिन दीर्घ दिनों में जो भाईचारा या आत्मीयता थी अपनों-परायों के मध्य वो अब एक परिवार के सदस्यों में भी दिखाई नहीं देती कि आज़ादी ने लोगों की सोच के दायरे को संकुचित कर दिया और उनके भीतर के सद्भावों व सद्गुणों को भी सीमित कर दिया ऐसे में स्वार्थ भरे इस माहौल में जब किसी वीरपुत्र का बलिदान दिवस आता तो जेहन में कहीं ये ख्याल भी उभर आता कि कैसे रहे होंगे वो लोग जिन्होंने उस चीज़ के लिये अपना जीवन कुर्बान कर दिया जिसके बारे में उन्हें ये पता था कि शायद, वे उसे जी भी न पाये मगर, किसी भी हाल में उन्होंने खुद को रुकने दिया जो ठान लिया सो ठान लिया फिर कदम आगे ही आगे बढाये... जिससे हम ‘आज़ादी’ की साँस ले पाये... आओ इन वीरों के बलिदान दिवस पर श्रद्धा से सर नवाये... उनकी बहादुरी के गीत गाये... मेरा रंग दे बसंती चोला... ☺ ☺ ☺ !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२३ मार्च २०१८


गुरुवार, 22 मार्च 2018

सुर-२०१८-८१ : #जल_बिन_धरती_जल_रही



त्राहि-त्राहि मची हुई
जल बिन धरती जल रही
जल रहा गगन
जल रहा जंगल
जल बिन जल रहा कण-कण
निर्जल हो रहा चमन
निर्जल हो रहा दामन
निर्जल होता जा रहा पर्ण-पर्ण
सूख गये कुयें
सूख गये नल  
सूखती जा रही हर एक शय
यूँ ही अगर चलता रहा
हमने अगर कुछ न किया
रोयेंगी कई सदियाँ
आने वाली पीढियां
भयावह हैं आने वाला कल
पल-पल ज्यूँ घट रहा जल
फ़िज़ूल मनाना ‘विश्व जल दिवस’
समझे न हमने जो ये संकेत
प्रतिदिन कुदरत दे रही संदेश  
बना नहीं सकते जल
बचाना ही एकमात्र विकल्प...!!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२२ मार्च २०१८

बुधवार, 21 मार्च 2018

सुर-२०१८-८० : #कविता_का_किरदार



किरदारों से गुजरते हुए
कोई एक किरदार गढ़ती हूँ
उसे जीती-मरती और
सर पर ओढ़े फिरती हैं
इतने किरदार बुने-उधेड़े और
फिर सलाई पर चढाये
कि उलझकर अब उनमें
अपना ही किरदार ढूंढती हूँ
मैं किरदार नहीं बल्कि
अपना ही कोई अंश रचती हूँ
मुझमें ही छिपा कोई
उसे सफे पर उकेरती हूँ
उसके नाक-नक्श उभारती हूँ
फिर मिटाकर उसे दुबारा
एक नई शख़्सियत कागज़ पर उतारती हूँ
पर, कोई किरदार एक जेहन से
उतरता नहीं कभी तो फिर ताउम्र
उसी को ढोती हूँ...!!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२१ मार्च २०१८

मंगलवार, 20 मार्च 2018

सुर-२०१८-७९ : #सुनो_चिरैया_की गुहार #जिसे_सिर्फ़_एक_कोने_की_हैं_दरकार




प्रकृति में हर एक शय को ईश्वर ने सबके लिये बनाया लेकिन, मानव ने अपने स्वार्थ के वशीभूत होकर हर चीज़ पर अपना कब्जा जमा लिया जिसकी वजह से कुदरत की अबोध मूक संतानें जो अपने जीवन-यापन के लिये सिर्फ उस पर ही निर्भर वे इस वजह से विलुप्ति की कगार पर पहुंच गयी जिनमें घर-घर में दिखने वाली सामान्य ‘गोरैया’ भी अब दिखाई नहीं देती और जो थोड़ी-बहुत बची भी हैं अपनी ची... ची... में उस पीड़ा को अभिव्यक्त करती...

●●●
सुनो,
ओ मानव...
प्रकृति पर हमारी भी
उतना ही हक़ हैं
जितना कि तुम्हारा
फिर क्यों ?
हर एक शय पर,
तुमने अकेले कब्जा जमाया
हमें बेघरबार कर के
हो रहे अपने में मगन
सुनते नहीं हमारी मूक पुकार
जिसमें छिपी हमारी
धीरे-धीरे विलुप्त होने की वेदना
तुम्हारी विलासप्रियता
तुम्हारी अति स्वार्थान्धता
तुम्हारी आत्ममुग्धता
बन रही हमारी जान की दुश्मन
न बचे जंगल, न वृक्ष, न ही कोई कोना
जहां सुरक्षित रह सके हम
अब तो घरों में भी नहीं कोई झरोखा
या रहता कोई दरवाजा खुला
जहाँ से हम पा सके कोई ठौर-ठिकाना
आसमां पर भी फैला दिए तुमने
विद्युत तारों और तरंगों के बड़े-बड़े जाल
ऐसे में हम निरीह पक्षी जाये कहाँ ?
धरती भी तुम्हारी, आसमां भी...
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वाकई, सिर्फ ‘गोरैया’ ही नहीं अनगिनत जीव-जंतुओं का करुण संदेश हैं ये जिसको हम सुनकर भी अनसुना कर रहे लगातार मना रहे तमाम दिवस पर, करते नहीं कोई सार्थक पहल और जो करते भी तो नाममात्र की उस कार्यवाही से विशेष फर्क पड़ता नहीं ऐसे में जरूरी कि सब मिलकर सख्त कदम उठाये क्योंकि, सह-अस्तित्व में ही हम सबके जीवन का रहस्य छिपा इस ‘इको सिस्टम’ में कोई भी एक कड़ी टूटी तो संपूर्ण प्राकृतिक तंत्र बिखरकर रह जायेगा अब भी वक़्त की संभल जाये उनकी गुहार सुने और उनको बचाने आगे आये... ताकि, वे ही नहीं हम भी बच पाये... ची... ची... का यही ‘डिकोडेड मैसेज’ हैं... ☺ ☺ ☺ !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२० मार्च २०१८