शनिवार, 30 सितंबर 2017

सुर-२०१७-२७१ : देखते ही देखते चमत्कार हो गया दैत्य ‘महिषासुर’ लोगों का भगवान् हो गया... लगता हैं कलयुग का आगाज़ हो गया... ‘रावण दहन’ दुष्ट आत्माओं को नागवार हो गया...!!!



यूँ तो देश में आये दिन ऐसी घटनायें होती रहती जो मानवीयता को शर्मसार कर देती पर, अब तो आध्यात्मिकता भी इससे बची न रही कि रोज कोई न कोई ढोंगी बाबा अपनी करतूतों की वजह से कानून की गिरफ्त में आ जाता हैं परंतु, कोई भी इनका गहन विशलेषण करने या इसकी जड़ में जाने की बजाय ‘धर्म विशेष’ को निशाना बना उस पर कीचड़ उछालने लगता और फिर मीडिया का स्टुडियो हो या फेसबुक की वाल या ट्विटर का हैंडलर एकाएक ही जंग का मैदान बन जाता कि लोगों को समाधान की जगह इस तरह एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाना अच्छा लगता जिसकी वजह यदि गहराई से सोची जाये तो कहीं न कहीं हमारी भारतीय संस्कृति और हमारे नैतिक मूल्यों का पतन ही हैं जो आये दिन इस कदर गिरता जा रहा कि शर्म-लिहाज, सोच-विचार, मान-मर्यादा जैसे शब्दों का भी लोप हो गया जिसकी जगह स्वच्छंदता, बेशर्मी, गाली-गलौच जैसी बुराइयों ने लोगों के मानस में इस तरह अपनी पैठ बना ली हैं कि उन्हें इस तरह का बर्ताव या बोलचाल जरा-भी अमर्यादित या अनैतिक नहीं लगता कि घरों से ईश्वर की तरह संस्कार भी तो गायब होते जा रहे हैं फिर भला उन्हें इस तरह की बातें पुरातन या गैर-जरुरी क्यों न लगे जो उनको सामान्य मानवीय व्यवहार का पाठ पढ़ाती जबकि वे तो मनमर्जी से जीने के आदि हो चले फिर भले उसके कारण उनका दोहन या शोषण ही क्यों न हो जाये लेकिन उन्हें वो गलत परिवर्तन दिखाई ही नहीं देता जिसने उसे संस्कारी सभ्य मानव से दुराचारी असभ्य दानव बना दिया हैं

तभी तो अब इस तरह की खबरें हर तरफ से सुनाई देती फिर चाहे किसी निकृष्ट जेहनियत के मालिक का आदिशक्ति माँ दुर्गा के प्रति अपशब्दों से अपनी गंदी मानसिकता का परिचय देना हो या फिर चंद गुमराह लोगों का ‘महिषासुर’ जैसे पापी दैत्य को अपना पूजनीय बताना हो या फिर कुछ लोगों को अभिमानी ‘रावण’ में अपना चेहरा नजर आना हो जो ये संकेत देता कि वेदों में वर्णित कलयुग का आगाज़ हो चुका तभी तो इस तरह के कलुष विचार मस्तिष्क में उभर रहे तो ऐसे में इनका सर्वनाश भी जरूरी ताकि ये असुर अपने आतंक से पृथ्वी को नष्ट ही न कर दे आज ‘विजयादशमी’ का पावन पर्व हैं को इसी बात का प्रतीक हैं कि जब-जब इस धरती पर अधर्म बढ़ता हैं, पाप चहुँओर बढ़ जाता हैं तब इस आतंक का खात्मा करने भगवान को अवतार लेकर आना पड़ता हैं कि दानवीय शक्तियों पर साधारण मानवीय ताकत विजय प्राप्त नहीं कर सकती उसके लिये अलौकिक अस्त्र-शस्त्र और विजयी भव के वरदान की भी आवश्यकता होती जो तपोबल से ही हासिल होता और जिसके भीतर इतना आत्मबल हो कि वो अपनी इंद्रियों पर विजय प्राप्त कर ले तो उस पर इन दुष्प्रवृतियों का कोई भी असर नहीं पड़ता बल्कि वो तो अपनी साधना से इस तरह की अद्भुत शक्तियाँ अर्जित कर लेता कि समाज को नष्ट होने से बचा लेता

जिसका सबसे बेहतरीन उदाहरण ‘राम’ हैं जो एक साधारण मानव के रुप में अयोध्या में जन्मे पर, अपने चरित्र को पारस समान बना लिया जिसके स्पर्श से न जाने कितने पत्थर जैसे निकृष्ट इंसान भी कुंदन बन गये और आतंकी राक्षस भी जिनके आयुधों से अमरत्व को प्राप्त कर गये कि आज भी ‘राम’ के साथ उन सभी का स्मरण किया जाता फिर चाहे वो लंकाधिपति प्रकांड पंडित महाज्ञानी बलशाली ‘रावण’ हो फिर उनके भाई ‘कुंभकर्ण’, ‘विभीषण’ या उनका पुत्र ‘मेघनाद’ ये सब भगवान् श्रीराम के चमत्कारी सानिध्य से उनकी ही तरह विराट व्यक्तित्व बन गये । आज लोग मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के उज्ज्वल चरित्र पर प्रश्नचिन्ह लगाते हैं और उनकी कथा में कमियां ढूंढकर उन्हें अपने समकक्ष खड़ा करना चाहते हैं लेकिन उनके जैसा बनने का कोई प्रयास नहीं करते कि वो बेहद कठिन तो जो सहज-सरल लगता उसमें ही जुटे हुये जी-जान से ये भूलकर कि ‘रावण’ को उनसे श्रेष्ठ बताना या उसे अपना आदर्श साबित करना उन्हें राक्षस जैसा जरुर सिद्ध करता क्योंकि आप जिसको पूजते उसकी तरह ही बन जाते हो ये भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा हैं तो निसंदेह ये सब जो खुद को ‘महिषासुर’ का वंशज या ‘रावण’ का अनुयायी बता रहे वे भी एक दिन उन्हीं की तरह असुर बन जायेंगे और शायद, बन भी रहे तभी देश में अनाचार, अत्याचार बढ़ता जा रहा कि ‘लकेंश’ को अपना नायक घोषित करने वाले उसी की तरह अहंकारी भी हो गये पर, ख़ुशी की बात कि ये उनके अंत का सूचक हैं ।

सनातन हिंदू धर्म की अवधारणा में पाप-पुण्य और सुर-असुर की अवधारणा इसलिये नहीं कि लोग नकारात्मकता की तरफ आकृष्ट हो बल्कि इसलिये कि उसके परिणाम को देख उसकी तरह आचरण न करे पर, क्या करे उनका जो सोचते कि महिषासुर’ या ‘रावण’ को मारा जा सकता हैं लेकिन उसकी विचारधारा को नहीं तो ये उसे आगे ले जाकर उनको जिंदा रखने का काम कर रहे पर, देखा जाये तो ये केवल प्रकृति के दोनों पलड़ों को सम रखने का प्रयत्न मात्र कर रहे और जब इनका पलड़ा भारी होगा तो वही होगा जिसकी भविष्यवाणी ‘गीता’ में श्रीकृष्ण अपने श्रीमुख से कर गये हैं कि, “हे भारत! जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब ही मैं अपने रूप को रचता हूँ और साधु पुरुषों का उद्धार करने के लिए, पाप कर्म करने वालों का विनाश करने के लिए तथा धर्म की अच्छी तरह से स्थापना करने के लिए मैं युग-युग में प्रकट हुआ करता हूँ” । हर युग में उन्होंने अपने इस वचन का पालन भी किया चाहे ‘सतयुग’ हो या ‘त्रेतायुग’ या ‘द्वापर युग’ या फिर ये ‘कलयुग’ कि हर युग में वही असुर रूप और नाम बदलकर आये कभी ‘हिरण्यकश्यप’ और ‘हिरण्याक्ष’ तो कभी ‘रावण’ और कुंभकर्ण’ तो कभी ‘कंस’ और ‘दुर्योधन’ और अब तकनीकी युग में तो अनगिनत रूप व् नामों से हम उनको देख रहे तो ऐसे में भगवान के वचन पर विश्वास रखे कि वही ‘कल्कि अवतार’ लेकर आयेंगे और इन दुष्टों का संहार करेंगे... और हम उनके प्रतीकात्मक पुतलों का दहन कर इन दुष्ट आत्माओं को ये याद दिलाने का प्रयास करेंगे कि बुराई का परिणाम हर युग में यही होगा... जय श्रीराम... जय-जय श्रीराम... :) :) :) !!!
                       
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

३० सितंबर २०१७

शुक्रवार, 29 सितंबर 2017

सुर-२०१७-२७० : दुर्गा नवमी संग पूर्णाहुति... सुख-दुःख की मिश्रित अनुभूति...!!!



ऋतू परिवर्तन अपने साथ माँ आदिशक्ति के पावन पर्वों का नव-दिवसीय त्यौहार लेकर आती हैं जिसके आगमन से साधकगण नियम-कायदों के साथ यदि इन दिनों प्रकृति की उपासना करें तो वे आगे वातावरण में आने वाले बदलाओं का सामना करने हेतु खुद को तैयार कर सकते हैं हिंदू संस्कृति में हर एक रीति-रिवाज़ या परंपरा इतनी वैज्ञानिक हैं कि उसको यदि विधि-विधान से अपनाया जाए और शास्त्रोक्त तरीके से उनका पालन किया जाये तो न केवल व्यक्ति सात्विक विचारों से अपने तन-मन को परिष्कृत कर सकता हैं बल्कि अपनी आत्मा का भी उद्धार कर अपने अनेक जन्मों को सुधार सकता हैं हर तीन महीने बाद नौ दिन के इन विशेष आयोजनों की रवायत बहुत सोच-समझकर शामिल की गयी जिसमें से दो तो वैसे ही गुप्त कर दी गयी तो अब सिर्फ हर छे मास के अंतराल में चैत्र व शारदीय नवरात्री आती जिनके साथ ग्रीष्म व शीत ऋतू भी चली आती तो इनके अनुरूप अपने आपको ढालने में ये दिवस सबदे सहायक सिद्ध होते हैं

जिन्होंने भी इन दिनों व्रत या उपवास के माध्यम से अपने शरीर के साथ अपने मानस को भी साध लिया होगा उसके लिये तो फिर ये वरदान साबित होगी कि केवल धार्मिक या आध्यात्मिक दृष्टिकोण से ही इनको नहीं मनाया जाता बल्कि इनका सामाजिक सरोकार भी होता हैं इस तरह के आयोजनों को यदि हम किसी संप्रदाय वर्ग से जोडकर न देखे और केवल अपने संपूर्ण शुद्धिकरण के उद्देश्य से ही इसे अपने जीवन में लागू करे तो देखेंगे कि थोड़ा-सा संयम, थोड़ा-सा परहेज, थोड़ा-सा ध्यान, थोड़ा-सा जप-पूजन, थोड़ी-सी सावधानी, थोड़ी-सी एकाग्रता हमें अपने लक्ष्यों तक पहुंचने के लिये इतनी ऊर्जा दे देती कि अगले छे महीने तक अपने सभी कर्मों को बिना थके बखूबी अंजाम दे सकते हैं । हम सब अपने जीवन में किसी न किसी ध्येय को पाना चाहते पर उस तक पहुँचने के लिये मार्ग या पथ का निर्धारण ही न कर पाते यदि किसी तरह कर भी ले तो धैर्य के साथ उस पर चल नहीं पाते और जो चल भी पाये तो कभी ऐसा होता कि मंजिल आने से पहले ही थक जाते लेकिन यदि साधना-उपासना करते तो इन बाधाओं को आसानी से पार कर लेते हैं ।

‘दुर्गा नवमी’ के पावन अवसर पर आज सभी भक्तगण शक्ति पूजन का पूर्णाहुति के साथ उद्यापन कर अपनी नौ दिवसीय पूजन का विसर्जन करेंगे और पिछले नौ दिनों से जगदंबा के सानिध्य और उनकी स्थापना से जो हर्षोल्लास छाया था कहीं उसमें दुःख की एक छटा भी शामिल हो जायेगी कि अब माँ की विदाई के बेला आ गयी उनके मायके से अपने ससुराल जाने का समय आ गया तो जो दुःख बेटी के जाने से सभी सगे-संबंधियों को होता वही उनके उपासकों को भी महसूस होता हैं माँ दुर्गा के आगमन से सारी प्रकृति में ही ख़ुशी की लहर दौड़ जाती और जगह-जगह उनके पांडाल व मूर्ति स्थापना से चहुँओर जिस तरह से चहल-पहल और रौशनी की जगमगाहट बिखर जाती उन सबके ही चले जाने का ख्याल मन में कहीं न कहीं पीड़ा का अहसास देता लेकिन, उनके फिर वापस आने का विचार एक आत्मिक सुकून देता कहीं ये भी एक सुखद अहसास होता कि माँ तो हमेशा हमारे साथ हमारे दिलों में विराजमान रहेंगी तो फिर कमजोर होते अपने ही तन को आंतरिक संबल मिलता और इस विश्वास के साथ वो क्षमा प्रार्थना कर माँ का विसर्जन करता कि माँ इसी तरह अपनी कृपा बनाये रखना, हमारी गलतियों को माफ़ करना... साथ कभी न छोड़ना और हमारे बीच यूँ ही आती रहना... जय माँ अम्बे, जय जगदंबे नमोस्तुते... :) :) :) !!!
             
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

२९ सितंबर २०१७

गुरुवार, 28 सितंबर 2017

सुर-२०१७-२६९ : शहीद-ए-आज़म ‘भगत सिंह’... नवजवानों को सिखाते देशभक्ति...!!!


आज भारत की पवित्र भूमि पर जन्मी एक ऐसी प्रेरक शख्सियत की जयंती हैं जिसकी जीवन गाथा सिर्फ युवाओं ही नहीं बल्कि हर एक देशवासी को अपनी मातृभूमि के प्रति अपने कर्तव्यों का भान कराती हैं जिस तरह उन्होंने अल्पायु में ही अपने जीवन के लक्ष्य तय कर अपने भावी मार्ग का निर्धारण किया उसी तरह से यदि सभी युवक भी करें तो फिर इस देश को पुनः विश्वगुरु बनने से कोई नहीं रोक सकता कि इस वक़्त इस देश में युवाशक्ति का प्रतिशत सर्वाधिक लेकिन वो अपनी ऊर्जा व ताकत का उपयोग महज़ सोशल मीडिया पर गपबाजी करने या फालतू की बातों में टाइमपास करने या इतिहास को तोड़-मरोड़कर पेश करने या फिर भिन्न जातियों के मध्य नफ़रत का ज़हर फ़ैलाने में कर रहा हैं

यदि इसी तरह से उस वक़्त उस दौर के युवाओं ने भी अपने कर्तव्यों को न समझकर केवल अपनी जिंदगी को मूल्यवान माना होता तो आज हम आज़ाद नहीं बल्कि गुलाम ही बन होते कि ये तो अनगिनत क्रांतिकारियों के सतत प्रयासों का परिणाम हैं कि हम अंग्रेजों को इस भारत भूमि से बाहर निकाल सके पर, उनकी ‘फूट डालो राज करो नीति’ को अपने जेहन से न निकाल सके तो आज भी देश के शीर्ष नेता उसी नीति का पालन कर अपना स्वार्थ सिद्ध कर रहे जिसका नतीजा कि ‘यथा राजा तथा प्रजा’ के अनुरूप जनता का चरित्र भी निर्मित हो रहा जिसे अपने सिवाय किसी से कोई मतलब नहीं सिर्फ अपने फायदे को देखना फिर चाहे जो हो तभी तो आज शहीद-ए-आजम ‘भगत सिंह’ की जयंती पर ‘फेसबुक’ पर इन्हीं जवान युवक-युवतियों को जिस तरह से उनके खिलाफ लिखते देखा मन में संशय उत्पन्न हुआ कि जो लोग २७ सितंबर १९०७ को जन्मे ‘भगत सिंह’ के बलिदान की दास्तान को जो कि ज्यादा पुरानी नहीं औ र्जिसके साक्ष्य भी मिलते हैं को अपनी तरह से तोड़-मरोड़कर पेश कर रहा वो अतीत को जिसके बारे में प्रमाण उपलब्ध नहीं या जिसे नष्ट कर दिया गया उसे फिर किस तरह से प्रस्तुत करेंगे या उसे भी अपने हिसाब से जिस तरह चाहेंगे लोगों के सामने पेश कर देंगे

इसकी वजह यही कि वे जानते इस तकनीक युग में लोगों को जितनी सुविधा मिली वो उतने ही आलसी हो गये और ‘गूगल’ जैसे सर्च इंजन के होने के बावजूद भी किसी भी जानकारी या संदेश की प्रमाणिकता को जांचने के जहमत उठाने के बजाय सीधे-सीधे आगे फारवर्ड कर देते और ये सिलसिला चलता ही रहता जिसकी वजह से नकल भी असल बन जाता बिलकुल उसी तरह जिस तरह हजारों बार दोहराया गया झूठ बन जाता वास्तव में यही तो इस सोशल मीडिया के जमाने में हो रहा और आज तो हद हो गयी जब ‘भगत सिंह’ को शहीद मानने से इंकार करती कई पोस्ट्स नजर आई साथ ही ये भी कि वे ऐसे कोई महान व्यक्तित्व नहीं जिनका स्मरण या गुणगान किया जाये साथ ही इतिहास को बदलते हुए ये भी लिखा गया कि ‘साइमन कमीशन’ तो अछूतों के फायदे हेतु आ रहा था जिसका विरोध करना उन्हें अछूतों का नायक नहीं बना सकता और चूँकि केवल ‘डॉ भीमराव आंबेडकर’ ही उसके सदस्य रूप में शामिल थे अतः एक वर्ग विशेष को उन दोनों में से किसी एक को चुनना होगा जो स्वतः ही ये साबित करता कि आज का युवा किस तरह दिग्भ्रमित व् पढ़ा-लिखा होने के बावजूद भी कितना अनपढ़ जो जात-पात जैसी कु-प्रथाओं को न केवल जीवित रखना चाहता बल्कि उसके आधार पर फिर से देश का बंटवारा भी करना चाहता

इस तरह की अनेक पोस्ट्स ने सर शर्म से झुका दिया कि किस तरह से आज के युवा सोशल मीडिया को जंग का मैदान समझकर हवा में अपने शब्दों के खोखले तीर चला रहे जबकि इनको उमर में खुदीराम बोस, भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु अपने वतन की खातिर फांसी के फंदे पर झूल गये पर, इनको लगता इसी कारण तो उन्हें शहीद का दर्जा नहीं दिया जाना चाहिये कि वो कोई स्वेच्छा से थोड़े अपनी जान दिये ऐसे में इन भटके हुये जवानों से यही कहना चाहूंगी कि जिस कृत्य की वजह से उनको अपनी जान गंवानी पड़ी उस अंजाम देने से पहले ही उन्हें अपना अंजाम भी ज्ञात हो गया था लेकिन उसके बाद भी उन्होंने बगैर ये सोचे-विचारे ही आगे कदम बढ़ा दिये जबकि आज न जाने कितनी समस्याएं जिनका विरोध जमीन पर हो तो शायद कोई बात बने लेकिन ये सब की सब फेसबुक की वाल को रणक्षेत्र समझकर रात-दिन कोरी बातों में लगे रहते और सोचते कि इस तरह से ये देश की तस्वीर बदल देंगे जबकि कर्मयोगी तो सीधे जमीन पर उतरकर अपने लक्ष्यों को पाने कर्म करते आजकल तो यूँ प्रतीत होता कि कंप्यूटर युग की ये उपज तो की-बोर्ड या टच स्क्रीन से ही सब लड़ाई लड़ लेगी इन्हें तो अपने गौरवशाली इतिहास, अपनी संस्कृति, सभ्यता, परम्पराओं और सनातन धर्म से ही परहेज जिसका मखौल उड़ाने का कोई अवसर हाथ से न जाने देते फिर चाहे देवी-देवता हो या महान हस्तियाँ सब पर कीचड़ उछालते ये भूलकर कि वे तो इस धरती पर नहीं न उनको कोई फर्क पड़ेगा फिर चाहे तुम गालियाँ दो या जूते ही मारो लेकिन इस तरह वो अंग्रेज जो ये सब देखते या सुनते होंगे वो जरुर गर्व से हंसते होंगे कि हमने जो चिंगारी भारत भूमि पर छोड़ी थी वो आज ज्वाला बनकर भभक रही और उसे सर्वनाश करने तुली लेकिन जिस देश में भगत सिंह जैसे क्रन्तिकारी हुये वो अभी ऐसे देशभक्तों से खाली नहीं जो अपनी जान की बाज़ी लगाकर भी देश का सर झुकने न देंगे...        

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मौज-मस्ती
और ऐश उड़ाना ही
जिनका कर्म हैं
जो खोये हुये
तकनीकी जाल में
रहते लिव-इन में
न बची जिनकी आँखों में शर्म हैं
देखते खामोश
लुटती अस्मत बाज़ार में
खून भी न होता जिनका गर्म हैं
छोड़ते मात-पिता को
वृद्धाश्राम में नहीं जानते कि
मानवता भी कोई धर्म हैं
देश का संविधान
गौरवशाली इतिहास
अमर शहीद बलिदानी
और हमारी संस्कृति सहित
भूल चुके जो युवा लोग
वेद-पुराण उपनिषद का मर्म हैं
समझते नहीं
राजनीति के दावपेंच
बनते राजनेताओं की मोहरें
जबकि इस नादां उम्र में
गौतम बुद्ध, विवेकानंद
भगतसिंह, खुदीराम बोस
और... अनगिनत जवान देश के
कर चुके थे प्राप्त अपना ध्येय
जिन पर हम आज भी करते गर्व हैं ।।
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आज इस तरह की पोस्ट्स पढ़कर वाकई ‘भगत सिंह’ की आत्मा यही कह रही होगी कि विश्वास नहीं होता ये वही देश हैं जहाँ उन्होंने जन्म लिया और इन खुदगर्जों के लिये अपने प्राण त्याग दिए जिनको अभी से ही उनका नाम लेने में भी शर्म का अहसास हो रहा तो आने वाले समय में तो ये उनको या किसी भी शहीद को याद करेंगे शंका हैं या फिर जिसे राजनेता महान बतायेंगे उनका ही नाम लेंगे कि आजकल ये राजनेता भी अपने लाभ के अनुसार ही किसी की पूजा करते उफ़, ये भारत देश मेरा प्यारा वतन जहाँ नव-जवानों की भरमार पर, फिर भी नहीं रहा देश का विकास कि सब फोन में व्यस्त वही से एक-दूसरे को गरिया रहे पर, जो करना चाहिये वो नहीं कर रहे इससे अधिक शर्मनाक कुछ न होगा ऐसे में यहाँ दुबारा जन्म लेने का ख्याल भी अपने दिल से निकाल देता हूँ  
         
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

२८ सितंबर २०१७

बुधवार, 27 सितंबर 2017

सुर-२०१७-२६८ : ऐसे मनाओ हर एक त्यौहार... गरीबों को भी खाने मिले पकवान...!!!



हम केवल उस देश के वासी नहीं हैं जिस देश में गंगा बहती हैं बल्कि जहाँ कि संस्कृति और परम्पराओं का दुनिया भी गुणगान करती कि यहाँ न केवल विभिन्न संप्रदाय के लोग आपस में मिलकर रहते बल्कि अपने तीज-पर्व को भी मिलकर मनाते और पूरे देश को एक परिवार की तरह ही समझते जहाँ कोई किसी से भेदभाव नहीं करता हालाँकि दिनों-दिन जिस तरह के हालात बनते जा रहे एकात्म दर्शन का ये सिद्धांत महज़ किताबी बातें या इतिहास का कोई अनोखा अध्याय लगता सहज ही विश्वास नहीं होता कि कभी देश में इस तरह के दृश्य भी नजर आते थे जब हर धर्म के लोग एक साथ मिलकर अपने उत्सवों का आयोजन करते थे यहाँ तक कि यदि किसी की आर्थिक स्थिति अच्छी न हो तो उसे भी ये अहसास न होने देते थे और जो कुछ भी अपने घर बने वो उसके साथ ख़ुशी-ख़ुशी साँझा करते थे जो इन उत्सवों के आयोजन की ख़ुशी को द्विगुणित कर देता था ये उस दौर की बात हैं जब हर घर का मुखिया ये सोचता था...

सांई इतना दीजिये जा में कुटुंब समय
मैं भी भूखा न रहूँ न साधू भूखा जाय

इसलिये खाने के वक़्त कोई भी घर में पधार जाये तो फिर भले ही भोजन कम हो लेकिन मन में किसी तरह का असमंजस या परेशानी का भाव नहीं होता था कि उन्हें अपने अतिथि धर्म का पालन करना आता था जिसे हर तरह निर्वह किया जाना ही गृह-स्वामी का फ़र्ज़ होता था लेकिन अब इस तरह की स्थिति की कल्पना भी संभव नहीं लगती क्योंकि अब तो न मेहमान का आना ही किसी को भाता न ही उसके लिये कुछ भी करने का ही किसी के हृदय में ही कोई भाव होता बल्कि सब यही सोचते कि जितनी जल्दी हो ये यहाँ से चला जाए उस पर यदि उनके पास खाने का कोई बढ़िया सामान हैं तो फिर तो उसे इस तरह से उसकी नजरों से छिपाते कि उसे खुशबू तक न आये जबकि कभी इसी देश में हर घर में पहली रोटी गाय की तो आखिरी कुत्ते की बनाई जाती थी और जो भी जिस वक्त आ जाए उसके लिये दिल ही नहीं रसोई के दरवाजे भी खुले होते थे फिर चाहे चूल्हा ही जलाकर दुबारा खाना पकाना पड़े पर, बेहिचक ये करते थे

हर तरह के आयोजनों में भी गरीबों का विशेष ध्यान रखा जाता था कि उन्हें भी उतना ही मिले जितना उनकी जरूरत और वही जो उनकी थाली में परोसा गया हैं और अब तो सब आत्मकेंद्रित होते जा रहे हैं जिनको अपने सिवाय कोई नजर न आता इसलिये वे जो भी करते उसका केंद्र बिंदु उनका अपना परिवार ही होता और जो भी धर्म-कर्म करते वो भी सिर्फ और सर्फ अपने परिजनों के लिये ही होता तभी तो न सिर्फ नव दुर्गा या कोई भी उत्सव हो विशेष तरह के खाद्य बनाकर ईश्वर को समर्पित किये जाते जिसका उद्देश्य खुद की मनचाही मुराद प्राप्त करना होता जबकि यदि वे यही भोज्य पदार्थ यदि किसी भूखे और जरुरतमन्द को अर्पित कर दे तो वो साक्षात् भगवान् को ही प्राप्त होगा तो इस नवरात्र हम यही संकल्प ले कि कन्या भोज में भी उन कन्याओं को ही भोग परोसे जो वाकई इसकी सुपात्र तथा अष्टमी या नवमी पर हम जो भी मिष्ठान्न या खीर-पुड़ी-हलवा लेकर जाते वो भी भगवन को चढ़ाने के बाद मन्दिर के बाहर हाथ फैलाये खड़े किसी भूखे को ही दे ताकि उसका सार्थक उपयोग हो सके और इस तरह न हम किसी भूखे की मदद कर पायेंगे बल्कि प्रसाद को सीधे प्रभु का निवाला बना सकेंगे... यहीतो वास्तव में इन धार्मिक आयोजनों का मूल उद्देश्य होता हैं जिस हम भूलकर खुद में मगन होते जा रहे हैं... तो अपनी परम्पराओं को मरने न दे भूखा किसी को सोने न दे... :) :) :) !!!
             
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

२७ सितंबर २०१७

मंगलवार, 26 सितंबर 2017

सुर-२०१७-२६७ : आवाज़ और अभिनय का अद्भुत संगम... हेमंत कुमार और देव आनंद… !!!


याद किया दिल ने कहाँ हो तुम
झूमती बहार है कहाँ हो तुम
प्यार से पुकार लो जहाँ हो तुम...

तेरी दुनियाँ में जीने से, तो बेहतर हैं के मर जाये
वही आँसू, वही आहें, वही गम हैं जिधर जाये... 

ना हम तुम्हें जाने, ना तुम हमें जानो
मगर, लगता हैं कुछ ऐसा मेरा हमदम मिल गया...

ये रात, ये चांदनी फ़िर कहाँ सुन जा दिल की दास्ताँ
चांदनी रातें, प्यार की बातें खो गयी जाने कहाँ...

हैं अपना दिल तो आवारा ना जाने किस पे आयेगा...

इन गीतों को जहाँ इनके फिल्मांकन की वजह से भूलना नामुमकिन हैं, उतना ही इसमें ऐसी दो अपने-अपने क्षेत्र की जानी-मानी शख्सियतों का बेमिसाल मिलन भी इसे यादगार बना देता हैं... जो अपने जाने के बाद भी अपने अनमोल तरानों और अविस्मरणीय अभिनय की ऐसी बेशुमार दौलत हमारे लिये छोड़ गये हैं कि हम उनके जरिये उनकी स्मृतियों को सदैव अपने ह्रदय में संजोकर रखेंगे... आज हिंदी सिने जगत की उन्ही दो विलक्षण प्रतिभाओं को एक साथ स्मरण करने का दिन हैं, ये और बात हैं कि आज एक का जन्मदिवस तो दूसरे की पुण्यतिथि हैं... एक को जहाँ अभिनय जगत में अपने अलहदा लटकों-झटकों अभिनय की ख़ास शैली और बेजोड़ अंदाज़ के लिये जाना जाता हैं तो वही दूसरे को अपनी मखमली दिल को छू लेने वाली आवाज़ और मधुर संगीत के लिये हम कभी भूल नहीं सकते... जी हाँ, मैं सदाबहार हरदिल अज़ीज़ कलाकार देव आनंदऔर पुरसुकून अंतर में उतर जाने वाली आवाज़ के साथ-साथ उतना ही बेहतरीन संगीत रचने वाले शाहकार हेमंत कुमारकी ही बात कर रही हूँ... इन दोनों ने ही अपने-अपने चाहने वालों को कभी भी निराश नहीं किया बल्कि हर बार कुछ ऐसा रच दिया कि उनके प्रशंसक मंत्रमुग्ध से उन्हें देखते और सुनते रह गये... दोनों ही हरफ़नमौला और अपने-अपने काम में इतने निपुण थे कि इन्होने सारी ज़िंदगी अथक परिश्रम किया और जब गये तो लोगों की आँखों में आंसू और दिलों में अपनी यादें छोड़ गये... तो सलाम इन दोनों महान कलाकारों को जिन्होंने कर्मयोगी की तरह सारा जीवन सिर्फ़ काम किया और जाते-जाते भी हमारे लिये अपने अभिनय और गायन का बहुमूल्य खज़ाना छोड़ गये जिसकी बदौलत हम अपने सूनेपन को उनकी हुनरमंदी से भर ख़ुद को अकेलेपन की घेराबंदी से मुक्त कर सकते हैं... नमन... __/\__ !!!
       
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

२६ सितंबर २०१७

सोमवार, 25 सितंबर 2017

सुर-२०१७-२६६ : आंचल को परचम बना लिया... वज़ूद आज अपना आज़मा लिया...!!!


तेरे माथे पे ये आँचल बहुत ही खूब है लेकिन, तू इस आँचल से एक परचम बना लेती तो अच्छा था इन पंक्तियों को जिसने अपने जीवन का सिद्धांत माना हो वो भला किसी के तंज कसने या किसी के छेड़े जाने पर ख़ामोश रह सकती हैं तो कुछ ऐसा ही हुआ जब ‘दुर्गा’ को सरेराह कुछ मनचलों ने छेड़ दिया...

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राह चलते
कुछ मनचले
देखकर तेज हवा में
उड़ती चुनरिया
फब्ती कसने लगे
तो उसी दुपट्टे को बना
हथियार उसने
उन सबको बाँध डाला
सरे राह लोगों को जमा कर
उनका मजमा बना दिया
और तुरंत उनकी फ़ोटो खींच
सोशल मीडिया पर भी चेप दिया
निर्भया सुरक्षा सुविधा का नंबर
अपने मोबाइल से घुमाकर
उनको पकड़वा दिया
जाते-जाते ये भी सबक दिया
कि ये वही आँचल
जिसके साये तले कभी तुमने
जीवन पाया था
और आज उसी को लजा रहे
समझकर कमजोर हमें
तुमने अब तक चाहे जो भी किया
पर, याद रहे नारी जाग चुकी
अपनी रक्षा करना भी सीख लिया
अब न छेड़ना किसी को
वरना, ये चूनर जो अब तक
हमारे गले का हार हैं
कहीं तम्हारी ही गर्दन के लिये
फांसी का फंदा न बन जाये ।।
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देख लिया आजमाकर सबको क्या कानून, क्या संविधान और क्या सरकार कोई भी लडकियों को न सुरक्षा देता और न ही उनके हक में खड़ा होता ऐसे में उसने ये जान लिया कि अब उसे अपनी रक्षक स्वयं ही बनना होगा तो इस संकल्प ने उसे इतना साहस दिया कि उसे पता न चला किस तरह उसने ये कारनामा कर दिखाया पर, जो कर ही दिया तो अब बाकियों को भी ये दांव-पेंच सीखाना हैं... जागरूक बनाना हैं ये ठान उसने अपने जीवन का लक्ष्य पा लिया... :) :) :) !!!
  
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

२५ सितंबर २०१७