बुधवार, 27 मई 2015

सुर-१४७ : "<<< ‘चाबी वाली गुडिया’... तूने मन मोह लिया... >>>"


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मित्रों...,

हम ये सोचते हैं कि इश्क़ तो रब की मेहरबानी हैं सबको हासिल नहीं होता... बड़े किस्मतवाले होते हैं वो जिन्हें सोने-सा खरा प्रेम मिल जाता हैं... मगर, कभी-कभी ये भी देखा हैं कि वो ख़ालिस रिश्ता भी बीच राह में आकर टूट ही जाता हैं... जिसकी वजह अक्सर कोई ‘तीसरा कोण’ होता हैं... क्योंकि नजदीकियां और दिन-रात की संगत से ये एहसास होता हैं कि प्रेमी-प्रेमिका के लिये जो आकर्षण की बातें थी, अब वही विकर्षण का कारण बन गई हैं... ख़ास तौर पर जब दोनों ही एक से प्रतिभाशाली हो तब तो उनका वो ‘हूनर’ ही खलनायक बन उनका अलगाव कराता हैं... बहुत नजदीक से देखने में ये भी पाया हैं कि जब बरसो-बरस पुराना प्यार यूँ बिखरता हैं तो अमूमन प्रेयस को एक ऐसी प्रेयसी मिल जाती हैं जो उसके इशारों पर चलती हैं... उसका हंसना-बोलना, चलना-फिरना, उठाना-बैठना यहाँ तक कि अगला कदम भी उसके दिए निर्देशों पर उठता हैं... ये उसके उस अहं को तुष्ट करती हैं जिसे चोट पहुंची थी क्योंकि उसका अपना कोई वजूद कोई शख्सियत नहीं होती इसलिये महाशय को ये बहुत लुभाती हैं... वो हर समय इन्हें प्रभु मान पुजती रहती हैं और ख़ुद को उनकी प्रेम दिवानी बताती हैं... दिन-रात उनके ही नाम की माला जपती रहती हैं अपना सर्वस्व अपना जीवन वो ख़ुदा की नहीं बल्कि इनकी देन समझती हैं, इसलिये उनको देवता मान लेती हैं... आश्चर्य होता हैं मगर अच्छी-खासी पढ़ी लिखी लडकियाँ भी ऐसी सोच रखती हैं, तभी तो आदमी की सोच में अब भी वही उसे पति-परमेश्वर मानने वाली औरत की ही छवि बसी हैं... जब ऐसी बिना रीढ़ की हड्डी की लचीली गुड़िया मिल जाये तो फिर सर ऊंचा कर आँख-से-आँख मिला बात करने वाली भला कैसे टिक पायें... :( ???
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२७ मई २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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