मंगलवार, 1 अगस्त 2017

सुर-२०१७-२१२ : फासले उमर के... बमुश्किल पार होते... !!!


वो नजरें भी
इधर-उधर कुछ तो ढूंढती
बड़ी बेचैन दिखती थी

उन लबों पर भी
दिल की कोई अनकही बात
कई दिनों से ठहरी थी

जाते कदमों को
किसी की दूर से आती सदा
अक्सर, रोक तो लेती थी

मगर,
उमर की इक लंबी दूरी
उन दोनों के बीच
असाध्य बाधा बन खड़ी थी

जिसे पार कर ले
किसी भी तरफ से कोई एक
इतनी ऊँची छलांग लगा
एक दूजे तक पहुंचने की ख़्वाहिश
भीतर दम तोड़ रही थी

साथ अपने वो
उनके अंदर भी तो बहुत कुछ
तोड़ती जा रही थी

सब कुछ देखकर
इस अहसास को समझकर भी
परंपरा और संस्कारों की
मन को जकड़ी मज़बूत बेड़ियां
उन दोनों को रोक रही थी ।।
      
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

०१ अगस्त २०१७

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