मंगलवार, 11 अप्रैल 2017

सुर-२०१७-१०१ : ‘हनुमान’ जैसा मित्र नहीं दूजा... सकल जगत करता उनकी पूजा...!!!

साथियों... नमस्कार...


‘हनुमान’ एक ऐसे भगवान जो हमें किसी ईश्वरीय शक्ति के साथ-साथ ही मित्रता का भी सुखद अहसास कराते और वही एक हैं जिनसे हमारा परिचय सबसे पहले अपने बाल्यकाल में ही हो जाता जब हमारे मन में किसी तरह का भी भय या डर महसूस होता तो हमें उनका नाम लेकर उन्हें पुकारने का जो मंत्र दिया जाता वो सदैव किसी कवच की भांति फिर सदैव हमारे साथ रहता और हमें पता ही नहीं चलता कि कब हम उनके ध्यान मात्र से इतने अभय बन गये कि बड़े से बड़े संकट को उनके नाम के सहारे पार कर जाते शायद, ही कोई ऐसा हो जिसने अपने बचपन में अँधेरा होने पर या किसी सूनसान जगह पर खुद को अकेले पाने पर ‘भूत पिशाच निकट नहीं आवे, महावीर जब नाम सुनावे’ नहीं दोहराया हो या शायद, ही कोई ऐसा हिंदू हो जिसे ‘हनुमान चालीसा’ याद न हो क्योंकि वो इतनी सहज-सरल व लयबद्ध कि बड़ी आसानी से पढ़ते-सुनते स्मृति में बैठ जाती और जहाँ जिसको जिस तरह की आवश्यकता महसूस होती वो उस चौपाई या दोहे को अपनी सुविधानुसार गा लेता या कभी-कभी पूरी चालीसा ही पढ़ लेता क्योंकि हर किसी को इसका अभ्यास होता...

‘हनुमानजी’ की पूजा में भी कोई विशेष विधि-विधान की जरूरत नहीं होती केवल राम नाम का जप या उसे केवल लिखकर भी उन्हें अर्पित किया जाये तो वे प्रसन्न हो जाते याने कि ‘हनुमानजी’ एक ऐसे ताले जिनकी चाबी ‘राम’ हैं जिसके स्मरण मात्र से उनकी कृपा के द्वार खुल जाते और उनके भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण हो जाती इसलिये यदि कोई अधिक पूजा-पाठ न भी करता हो तो भी मंगलवार या शनिवार का व्रत वो जरुर रखता और ऐसे दो-चार नहीं लाखों लोग जो उनकी उपासना करते वो तो महिलाओं को उनकी पूजन से दूर रहने के निर्देश दिये जाते कि वे एक ‘बाल ब्रम्हचारी’ अतः स्त्रियों को बहुत सावधानी के साथ उनकी उपासना करनी होती जिससे कि किसी तरह की त्रुटि न होने पाये जिसे इस तरह से प्रचारित किया गया कि वे उनसे दूर ही रहने लगी जबकि सिर्फ कुछ निर्देशों के साथ ऐसा करने को कहा गया परंतु उनके स्थान पर निषेध का इतना अधिक प्रचार हो गया कि फिर उसी का पालन किया जाता हैं जिससे कि धर्म की अवहेलना न हो जो ‘हनुमानजी’ को एक सेवक या भक्त के रूप में प्रतिपादित करता जहाँ वे भगवन श्रीराम के अनन्य उपासक और उनके लिये अपना जीवन समर्पित कर दिया तो ये उनका भी आदेश कि मेरे स्वामी की पूजा में ही मेरा आशीष बसा तो जिसने उन्हें प्रसन्न कर लिया उसने मेरी कृपा को भी पा लिया...

‘हनुमान’ की कहानियों को सुन-सुन हमें उनके पराक्रम ही नहीं बल्कि उनके अनेक गुणों का परिचय मिलता कि किस तरह वे अपनी बुद्धिमता से बड़े-से-बड़े असंभव लगने वाले काम को भी चुटकियों में संपन्न कर देते थे... और किस तरह उन्होंने बचपन में सूरज को रोटी समझकर निगल लिया या किस तरह उनकी हनु टूटने से उनका नाम ‘हनुमान’ पड़ा या किस तरह उन्होंने सुरसा या लंकिनी को छकाया और लंका को जला सीता माता की खबर लाये उनकी ये कहानियां ही हमें उनसे जोडती... तो ऐसे हम सबके प्रिय वीर महाबलशाली मारुतीनंदन अंजनीपुत्र को उनके जन्मदिवस की मंगलमयी शुभकामनायें... :) :) :) !!!
  
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

११ अप्रैल २०१७

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