बुधवार, 26 अप्रैल 2017

सुर-२०१७-११६ : “भारतीय नृत्य : कहीं हो न जाये अदृश्य --- ०३”

साथियों... नमस्कार...

भारत देश की विविधताओं में ही इसकी ख़ासियत छिपी हुई हैं जिसकी वजह से ये किसी महासागर की तरह छोटी-छोटी नदियों जैसी संस्कृतियों को खुद में समो लेती हैं और यही वजह की यहाँ अलग-अलग संप्रदाय के अलग-अलग रीती-रिवाज़ को भी उनकी विशिष्टता के साथ स्वीकार किया गया हैं जिसमें ‘नृत्य कला’ का भी समावेश हैं जिसे यूँ तो मुख्य रूप से दो श्रेणियों में विभाजित किया गया है---

१.    शास्त्रीय नृत्य
२.    लोक नृत्य

परंतु भारतीय फिल्मों में दिखाये जाने वाले डांस की लोकप्रियता को देखते हुये आजकल ‘फ़िल्मी नृत्य’ की भी एक अलग श्रेणी विकसित हो गयी हैं लेकिन जिस तरह ‘शास्त्रीय’ या लोकनृत्य’ के अपने नियम, सिद्धांत और ख़ास शैली हैं जिसे सीखने के लिये उसका विधिवत प्रशिक्षण लेना जरूरी हैं उस तरह फ़िल्मी नृत्य के साथ जरूरी नहीं क्योंकि ये कोई अलग शैली न होकर वास्तव में इन्हीं नृत्यों क मिश्रण होता जिसमें आजकल ‘पश्चिमी  नृत्य’ का भी तड़का लगा दिया जाता तो इस तरह अन्य देशों से भी नृत्य की शैलियाँ आयातित होकर भारत आ गयी हैं फिर भी भारतीय नृत्यों का जवाब नहीं कि इनमें अपनी वाली बात हैं जिसे देखकर अपने देश की सौंधी मिट्टी की महक, अपनी सभ्यता की झलक के साथ अपनेपन का अहसास भी महसूस होता तभी तो इस पर हर प्रांत को गर्व होता कि हर एक राज्य या भाग का अपना ही एक विशेष नाच होता जिसे कभी उस राज्य के नाम पर तो कभी विधा के अनुसार जाना जाता और इस तरह शास्त्रीय एवं लोकनृत्य जमीन से जुड़े हुये हैं जिनके अभ्यास से हम अपनी विरासत को ही सहेजते पर, अफ़सोस कि यही अब धीरे-धीरे लुप्त होती जा रही ऐसे में हमें इनको बढ़ावा देने हेतु विदेशी डांस की नकल करने की जगह इनका प्रशिक्षण लेकर इनको प्रचारित करना चाहिये कि अधिक-से-अधिक संख्या में लोग इससे जुड़े और अपने देश में ही नहीं संपूर्ण विश्व में इन्हें विख्यात करे...

प्राचीन ग्रंथों के अनुसार नृत्य की जिस शैली का निर्माण किया गया उसे ‘शास्त्रीय नृत्य’ कहते हैं जिसकी अपनी विशिष्ट शैली, नियम, सिद्धांत और ख़ास परिपाटी होती तथा हर राज्य के अपने अलग नृत्य व उनकी अलग प्रस्तुति होती जैसे तमिलनाडू में भरतनाट्यम, उत्तरप्रदेश में कत्थक, करेल में कत्थककली, आँध्रप्रदेश में कुचिपुड़ी, मणिपुर में मणिपुरी, उड़ीसा में ओडिसी, केरल में मोहिनीअट्टम, आसाम में सत्त्रिया नृत्य प्रचलित हैं जिनकी अपनी ख़ास मुद्राएँ, भाव-भंगिमा, लय-ताल, वेशभूषा होती जिसके द्वारा उसे पहचाना जाता... इनमें भरतनाट्यम सबसे प्रचलित नृत्य विधा हैं इसके अतिरिक्त भी इस सूची में कई अनेक नृत्यों को भी जोड़ा गया हैं... जिनको सीखकर हम अपनी धरोहर को सहेजने में भी योगदान दे सकते कि यह भी तो समाज-सेवा कहलायेगी... स्वदेशी नृत्य का प्रचार-प्रसार करना यह भी तो एक तरह की देशभक्ति होगी या नहीं...???

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

२६ अप्रैल २०१७

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