मंगलवार, 4 अप्रैल 2017

सुर-२०१७-९४ : आई महा-अष्टमी... घर-घर पूजती कुलदेवी...!!!

साथियों... नमस्कार...


श्रद्धा, आस्था, निष्ठा और भक्ति के परम पावन सकारात्मक ऊर्जा से भरपूर नवरात्र के दिनों का आज सबसे महत्वपूर्ण दिवस हैं क्योंकि भले कोई पूरे नौ दिन माँ जगततारिणी की पूजा या व्रत न कर पाये लेकिन इस दिन वो जरुर उनके लिये थोड़ा-सा वक़्त निकालता कि उसके परिवार में पीढ़ियों से ये परंपरा चली आ रही हैं कि आज के दिन हर हिंदू घर में कुलदेवी की विशेष पूजा-आराधना होती हैं ये केवल सनातन धर्म की रवायत कि प्रत्येक खानदान में एक देवी-देवता होते जिनसे उनके वंश का पालन होता और जिन्हें उस परिवार के समस्त सदस्यों द्वारा पीढ़ी-दर-पीढ़ी पूजा जाता इसे विशेष कहने का तात्पर्य केवल इतना हैं कि इसमें सभी परिजन सम्मिलित होते यहाँ तक कि यदि वे किसी वजह से अपने घर से दूर हो तब भी इस दिन दौड़कर वापस आ जाते कि इससे उनको अपने आगामी क्रियाकलापों के लिये पर्याप्त ईधन मिल जाता...

ये ‘शक्ति’ होती सात्विकता की जो नौ दिन वो निभाता, ये ‘संबल’ होता उस भरोसे का जो वो अपने इष्टदेव के प्रति प्रकट करता और ये ताकत होती उन परिजनों के प्रेम की जिनके दम पर वो कहीं भी सुरक्षित महसूस करता याने कि इस दिन की महत्ता इतनी कि केवल इस एक दिन में वो अपने भीतर अनंत उत्साह महसूस करता जिसके बल पर उसे अपने अधूरे कार्यों को पूर्ण करने की सामर्थ्य प्राप्त होती ये एक अकेला व्रत ही भक्त को उसके संकल्पों के प्रति आवश्यक दृढ़ता प्रदान करता तभी तो आज के दिवस आर्थिक रूप से कमजोर व्यक्ति भी अपनी भक्ति की शक्ति से तरह-तरह के भोग बनाकर माँ दुर्गा के नन्हे स्वरूपों की पूजन कर उन्हें खिलाकर प्रसाद पाता आज तो जिधर नजर जाये बस, माँ के ही दर्शन होते क्योंकि ये कन्या भोज महज़ रिवाज़ नहीं बल्कि नारी के भीतर छिपी देवी को पहचानने का एक अवसर भी परंतु जब इसे सिर्फ रस्मी तौर पर किया जाता तो वही बच्ची जिसे देवी की तरह पूजते उसी में लोगों को अपने मनोविकारों का रूप दिखाई देता इसलिये आज के संदर्भ में इस रिवाज़ के गूढ़ अर्थ को समझने की अधिक आवश्यकता हैं...  

ये सभी विधि-विधान कुछ इस तरह से सभी के अंतर में बसे कि वो सदियों से इनको इसी तरह निभा रहा इसकी वजह यही कि इनके पीछे खोखला आदर्श या तर्क या कोई वेदसम्मत वाक्य नहीं बल्कि व्यक्ति की अपनी खुद की वैज्ञानिक सोच हैं जहाँ वो स्वयं इस बात को महसूस करता कि इन दिनों प्रकृति भी अतिरिक्त ऊर्जा से भर जाती और ईश्वर के ध्यान मात्र से भीतर अनन्य शक्ति का संचार होता जिसका कारण कि समष्टि में ॐ का नाद गूंजता जिससे सकल ब्रम्हांड उस पवित्रता से भर जाता और जब वही नाद आकाश से टकराकर पुनः वापस पृथ्वीलोक में आता तो उसमें दैवीय आशीष का भी समावेश हो जाता जिससे कि वो खुद को अधिक ऊर्जावान पाता यही कारण कि महा-अष्टमी के दिन सारी दिशाओं व सारी सृष्टि में माँ का ही रूप नजर आता वो माँ जो सिर्फ जन्मदात्री या पूजनीय देवी नहीं हैं बल्कि वो जो साकार रूप में आपके आस-पास मौजूद हैं परंतु आप या तो उसे पूजनीय मानकर सीधे सर पर बिठा देते हो या दयनीय बनाकर पैरों के नीचे दबा देते तो लेकिन उसे उसके सच्चे स्वरुप में बहुत मुश्किल से स्वीकार करते हो जब तक कि वो खुद को साबित न कर दे...

नवरात्र के नौ दिन या अष्टमी को अपनी कुलदेवी की विशेष आराधना का उद्देश्य केवल इतना कि हम नारी को भी बराबर का दर्जा दे क्योंकि ये पूजा गृहलक्ष्मी के बिना अधूरी मानी जाती जो स्वयमेव उसकी महत्ता को दर्शाता अतः वे लोग जो इन दिनों तो देवी की भक्ति करते लेकिन अन्य दिनों उसी देवी के मानवीय रूपों का निरादर करते उन्हें इसके ममे को समझने की आवश्यकता... आज महागौरी से यही विनती की वे उनको ऐसी सद्बुद्धि दे कि वो स्त्री के भीतर छिपी दुर्गा, सरस्वती, काली को भले न देख पाये लेकिन उसके अस्तित्व, उसके अंगों को गाली न बनाये... इसी कामना के साथ सबको महा-अष्टमी की मंगलमयी शुभकामनायें... :) :) :) !!!
                     
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

०४ अप्रैल २०१७

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