शनिवार, 29 अप्रैल 2017

सुर-२०१७-११९ : “भारतीय नृत्य : कहीं हो न जाये अदृश्य --- अंतिम कड़ी”

साथियों... नमस्कार...


नाच-गाना हमारी संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहा हैं जिसको विकसित करने और उसे जन-जन तक पहुँचाने में उन कलाकारों का महत्वपूर्ण योगदान रहा जिसने इसे साधना की तरह अपने जीवन में अपनाया और अपनी मनभावन शैली व मनमोहक अदाओं के दम पर लाखों-करोड़ों लोगों को अपना दिवाना बना लिया लेकिन इन्होने केवल ‘शास्त्रीय’ या ‘लोक नृत्य’  को ही तवज्जो दी क्योंकि इनका ये मानना था कि केवल यही विशुद्ध नृत्य कला बाकी सब तो नृत्य के नाम पर महज़ हाथ-पैर पटकना या पश्चिम की नक़ल करना जिसकी वजह से अपनी इन पुरातन विधाओं को नुकसान हुआ हैं कि लोगों को ये लगना लगा कठिन परिश्रम के साथ लंबे समय तक इसे सीखना पड़ता तब कहीं जाकर वो उसे नियमानुसार सही तरह से प्रस्तुत करने के योग्य बन पाता जबकि जो कुछ भी आज नाच के नाम पर परोसा जा रहा वो कसरत नुमा या कलाबाजी टाइप लगता जहाँ नाच करने वाले किसी भी वेशभूषा में किसी भी तरह की भाव-भंगिमा या मुद्रा में मन के कोमल भावों की जगह द्विअर्थी इशारे करता जिससे कि नृत्य की गरिमा और सम्मान कम होता अतः अमूमन शास्त्रीय या लोक नृत्य प्रेमी इस तरह के डांस को पसंद नहीं करता उस ये भी खतरा रहता कि इनकी वजह से अपने धरोहर जैसे प्राचीन नृत्यों का अस्तित्व संकट में पड़ सकता क्योंकि इस तरह से हाथ-पैर अंग चलाने के न तो कोई विशेष नियम और न ही इनमें अपनी सभ्यता-संस्कृति का ही ध्यान रखा जाता चूँकि ये सीखने में आसान और कम समय लेते अतः इनकी लोकप्रियता दिनों-दिन बढती जा रही...

चूँकि अन्य नृत्यों को करना बेहद आसान तो वे लोगों को अधिक आकर्षित करते इसका कारण यह भी कि इसमें शास्त्रीय या लोक नृत्य की तरह कठिन नियमावली, परिधान, मुद्रा, भाव-भंगिमा आदि की बाध्यता नहीं होती तो लोग इसे अधिक पसंद करते और नित बनने वाली फिल्मों एवं रियाल्टी शोज ने इसमें वृद्धि ही की तो आज उसे सीखने वालों की तादाद बढती जा रही आज के जमाने में तो वैसे भी न तो किसी के पास धैर्य और न ही समय जो कि उन नृत्यों को सीखने व करने के लिये दरकार तो ऐसे में ये रेडीमेड स्टेप्स वाले शोर्ट टाइम में तैयार होने वाले नाच आजकल बेहद लोकप्रिय और जिसे देखो वही इन्हें सीखने के लिये लालयित उसे ये फ़िक्र नहीं कि उसकी इस अनदेखी या लापरवाही की वजह से हमारी वो समृद्ध विरासत हमारी अपनी वैयक्तिक पहचान खतरे में पड़ती जा रही उन्हें तो बस, आनन-फानन सफ़लता चाहिये जिसमें जिसमें टेलीविजन, कंप्यूटर, लैपटॉप और मोबाइल ने भी बहुत योगदान दिया जिसकी वजह से लोग ये भूलकर कि उन भारतीय नृत्यों में देश की आत्मा बसती वो इसी तरह के नाच को प्रचारित कर रहे जिससे कि विदेशों में भी भारतीयता की पहचान वास्तविक शास्त्रीय/लोक नृत्यों की जगह अब इस तरह के नृत्य प्रतिनिधित्व कर रहे तो इससे हमारी पहचान पर संकट खड़ा हो गया हैं तो ऐसे में हमारा भी फर्ज कि हम अपने नृत्यों के प्रति रूचि पैदा करे और किसी सच्चे गुरु से इसका ज्ञान प्राप्त करे जिससे कई लाभ होंगे और दूर-दराज के लोगों को भी ये पता चलेगा कि हमारे देश में कितनी तरह की विविध नृत्य शैलियाँ होती जिनको करने के लिये किसी साधक की तरह तपस्या करनी पडती न कि देख-देखर उनको सीख लिया जाता ये मिथक अगर, टूट गया तो हमारे नृत्य हाशिये पर न होकर मंच के बीचों-बीच पूरी शान-शौकत और गर्व के साथ प्रदर्शित किये जायेंगे...

एक समय था कि भारतीय नृत्य की विविधताओं ने उसे विश्व पटल पर जिज्ञासा का केंद्र बना दिया था जिससे कि विदेश में भी इसे सीखने की ललक बढ़ने लगी लेकिन आज सब जगह एक-सा उछल-कूद वाला नृत्य दिखाई दे रहा जो ये दर्शाता कि केवल हम ही पश्चिम से उसे आयातित नहीं कर रहे बल्कि वे भी भारतीय नृत्यों में दिलचस्पी दिखा रहे अतः अपनी कलाओं के सरंक्षण हेतु हमें भी प्रयास करना चाहिये ताकि हमारे विशुद्ध नृत्यों की शुद्धता कायम रहे... अंतर्राष्ट्रीय दिवस पर यही शुभकामना हैं... :) :) :) !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

२९ अप्रैल २०१७

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