गुरुवार, 13 अप्रैल 2017

सुर-२०१७-१०३ : १३ अप्रैल बना ऐतिहासिक... इससे जुड़ी यादें कई...!!!

साथियों... नमस्कार...


१३ अप्रैल को ‘बैसाखी’ का पर्व बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाता हैं जो ‘वैशाख’ के महीने में आता हैं इसलिये इसे ‘बैसाखी’ कहा जाता हैं जिसे मुख्य रुप से पंजाब और हरियाणा में सेलिब्रेट किया जाता हैं जब किसान सर्दियों की फसल काट लेते हैं तो वे सब मिलकर आनंद से सराबोर होकर नाचते-गाते और हैं इस तरह से ये खरीफ की फसल पकने का भी आयोजन हैं जब किसानों की मेहनत स्वर्ण रूपी अनाज के रूप में खलिहान से उसके आंगन में आ जाती हैं तो ऐसे में उसका खुश होना लाजिमी हैं केवल यही एकमात्र इस दिन के साथ जुड़ी विशेष बात नहीं हैं बल्कि  इसी दिन, १३ अप्रैल को १६९९ में सिखों के दसवें गुरु ‘गोविंदसिंहजी’ ने ‘खालसा पंथ’ की स्थापना भी की थी तो सिख इस त्योहार को उनके जन्मदिवस के रूप में मनाते हैं और गुरूद्वारे में पूजा-पाठ व लंगर के द्वारा सभी लोग एकत्रित होकर एक-दूसरे को बधाइयाँ देते और सभी को प्रसाद का वितरण कर मुंह मीठा कराते हैं

जब मुगल शासक औरंगजेब के जुल्म-अत्याचार इस कदर बढ़ गये कि अन्याय की हर सीमा ही पार कर गये और  उसने ‘श्री गुरु तेग बहादुरजी’ को दिल्ली के चाँदनी चौक पर शहीद कर दिया तब इस अन्याय का प्रतिकार लेने ‘गुरु गोविंदसिंहजी’ ने अपने अनुयायियों को संगठित कर ‘खालसा पंथ’ की स्थापना की जिसका लक्ष्य था धर्म व नेकी के के रस्ते पर चलते हुये सदा भलाई के लिये तत्पर रहना इस हेतु उन्होंने जातिगत भेदभाव भी मिटाने के प्रयास किये तथा जिन्हें समाज निम्न जाति ऐसे पिछड़े हुये वर्ग को अमृत छकाकर ‘सिंह’ बना दिया उन्होंने सभी जातियों के लोगों को एक ही अमृत पात्र से अमृत छका पाँच प्यारे बनाये जो किसी एक जाति या स्थान के नहीं थे, वरन्‌ अलग-अलग जाति, कुल व स्थानों के थे, जिन्हें खंडे बाटे का अमृत छकाकर इनके नाम के साथ ‘सिंह’ शब्द लगा दिया तथा उनके बाद गद्दी या सत्ता को लेकर किसी तरह का विवाद या झगड़ा उत्पन्न न हो अतः उन्होंने अपने गुरुत्व को त्याग गुरु की गद्दी ‘गुरुग्रंथ साहिब’ को सौंप व्यक्ति पूजा ही निषिद्ध कर दी जिससे कि धर्म बचा रहे ।

इस दिन का हिंदुओं के लिए भी बड़ा महत्व हैं क्योंकि ऐसा माना जाता है कि हजारों साल पहले भगीरथ आज ही के दिन ‘देवी गंगा’ को धरती पर लाये थे तो उनके सम्मान में हिंदू धर्मावलंबी आज पारंपरिक पवित्र स्नान के लिए गंगा किनारे एकत्र होते हैं केरल में यह त्योहार 'विशु' कहलाता है इस दिन नए, कपड़े खरीदे जाते हैं, आतिशबाजी होती है और 'विशु कानी' सजाई जाती है इसमें फूल, फल, अनाज, वस्त्र, सोना आदि सजाए जाते हैं और सुबह जल्दी इसके दर्शन किए जाते हैं इस दर्शन के साथ नए वर्ष में सुख-समृद्धि की कामना की जाती है ।

खुशियों भरे इस उत्सव में दुःख भी शामिल हो गया जब १९१९ में जलियावाला बाग़ में रोलेट एक्ट के शांतिपूर्ण विरोध हेतु हजारों लोग इकट्ठा हुये तब अंग्रेजों ने इन पर लगाम कसने अपने एक निरंकुश अफसर जनरल डायर को भेजा जिसने बड़ी ही क्रूरता से उन मासूम व निर्दोष लोगों पर लगातार गोलियां चलाने का आदेश दे दिया जिसने इतिहास में केवल एक काला अध्याय ही नहीं बल्कि रक्तरंजित दास्तान लिख दी जिससे मिटा पाना संभव नहीं और ये घटना इतना दुखद कि बैसाखी की खुशियों पर भारी पड़ जाती और इस तरह १३ अप्रैल अपने आप में एक महा ऐतिहासिक दिवस बन गया जिसके नाम पर कई महत्वपूर्ण घटनायें दर्ज... तो शहीदों की शहादत को नमन करते हुये ही बैसाखी की बधाई... :) :) :) !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

१३ अप्रैल २०१७

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