गुरुवार, 6 अप्रैल 2017

सुर-२०१७-९६ : छोटा हो या बड़ा... जीवन को न करो शर्मिंदा...!!!

साथियों... नमस्कार...


शमां से सीखो
हुनर जीने का तुम 
एक रात के जीवन का जो
जश्न मनाती हैं

रोज सुबह उगता हैं सूरज और शाम ढले डूब जाता हैं... इस दरम्यां कई उतर चढ़ाव मगर, वो देख लेता हैं फिर अगले दिन शान से सर उठाकर चला आता हैं कि उसे पता वो जो पतन हैं उसका वहीँ उसके उत्थान का मार्ग छिपा हैं और जब तक न वो उस गहरी खाई में गिरेगा किस तरह से उबरेगा याने कि सूरज का नीचे जाना भी जरूरी हैं और जिसे हम उसका खो जाना या चले जाना समझते हैं वो कहीं और उसका उदित होना इंगित करता हैं याने कि हमारे लिये जो अस्त हैं वो किसी दूसरे के लिए उदय होना हैं इस तरह वो सूर्य हमें रोज ये बताता कि प्रत्येक पल कुछ न कुछ घटित हो रहा जिसका प्रभाव हमारे व्यक्तित्व पर पड़ता लेकिन यदि हम उससे प्रभावित होने के वाबजूद भी अपने लक्ष्य को नहीं बदलते या वो मार्ग नहीं छोड़ते जिस पर चलकर अपनी मंजिल तक जाना तो फिर निश्चित ही हमें सफ़लता प्रपात होती हैं तभी तो उसे देखो वो उपर से नीचे होता साथ ही उसका प्रकाश भी कम-ज्यादा होता रहता पर, इन सबके बीच वो अविचलित निरंतर चलता रहता जिससे कि एक पल की भी देरी किये बिना वो उसी समय अपने निर्धारित ध्येय को प्राप्त करता जो पूर्व में ही तय किया जा चुका था पर, उसे देखकर भी हम उससे कोई सीख नहीं लेते...

इसी तरह शमां का जीवन भी बड़ा प्रेरक जो अल्प होते हुये भी अपने आप में संपूर्ण होता कि उसके भीतर की आग उसके जज्बे को कभी कम नहीं होने देती यहाँ तक कि विपरीत परिस्थतियों में तो उसका साहस अधिक बढ़ जाता जब कभी आंधी या तूफान आने पर उसकी नन्ही लौ डगमगाते हुये भी उस हवा के झोंके से लड़ती रहती जब तक कि उसके भीतर सामर्थ्य की शक्ति रहती वो उसी स्थिति में बुझना स्वीकार करती जबकि उसके आगे टिकना असंभव होता लेकिन यदि ऐसे में कोई आड़ या कोई हल्का-सा भी सहारा मिल जाता तो फिर वो मैदान में डटी रहती यहाँ तक कि उसे अहसास कि उसकी जीवन डोर सीमित जो उसके जलते रहने से कम होती जाती फिर भी वो खुद को बचाने की कोशिश नहीं करती कि जितना ईधन उसके पास वो समस्त का उपयोग करती और अँधेरा जितना गहरा होता वो उतने ही तेज से जगमगाती जिससे कि अँधेरा भी किसी कोने में छिप जाता इस तरह वो अपने आप को पूर्ण सार्थकता के साथ जीने का सबक हमको सिखाती कि शक्तियाँ तो हम सबके भीतर लेकिन उनका सदुपयोग ही नहीं आये तो फिर वो बेकार...

मुश्किल परिस्थतियाँ हमारे स्वयं के आंकलन के लिये बेहद जरूरी कि इनके आने पर ही हमें अपनी अंदरूनी ताकत का अहसास होता और वे जो भीतर से खोखले होते इनके आगे समर्पण कर देते और साहसी लोग निडरता से इसका सामना करते उसके लिये उनका व्यक्तित्व छोटा हो या बड़ा उनके लिये कोई मायने नहीं रखता क्योंकि वे जानते कि नन्हीं चींटी भी हाथी को हरा सकती और विशालकाय व्हेल भी इंसान से मात खा सकती याने कि आंतरिक शक्ति के दम पर कोई भी किसी से जीत सकता और यही वो भीतरी आग जिसे कोई कैद नहीं कर सकता सिवाय मौत के लेकिन जब मौत हर कठिनाई का मुकाबला कर के आती तो फिर कोई शर्मिंदगी नहीं होती...

हौंसलों का
कोई विकल्प नहीं होता
एकमात्र संकल्प ही
जीत का मन्त्र बनता

तो अपने संकल्प की ताकत से अपने लक्ष्य का संधान करें... जीवन के हर क्षण का सदुपयोग करें... :) :) :) !!!              
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

०६ अप्रैल २०१७

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