मंगलवार, 18 अप्रैल 2017

सुर-२०१७-१०८ : ‘अंतर्राष्ट्रीय विरासत दिवस’ का पैगाम... अपनी सांस्कृतिक संपत्ति का करो विशेष रख-रखाव...!!!

साथियों... नमस्कार...


हमारी सभ्यता हजारों साल पुरानी हैं ये बात हमें पता चलती हैं उस युग के अवशेषों और बची-खुची इमारतों से जो भले ही खंडहर रूप में ही दिखाई दे रही हैं लेकिन उनके साथ जुड़ी स्मृतियाँ हमें उस दौर की कहानी सुनाती हैं जब कभी वे पूर्ण रूप से अपने मूल आकार में उससे जुड़े जीवित ऐतिहासिक चरित्रों के साथ स्वयं एक पात्र के रूप में खड़ी थी और किसी जीवंत सहयोगी के भांति उनकी उस यादगार कथा का हिस्सा बन एक मूक गवाह की तरह उसने उसे अपने भीतर बसा लिया तभी तो उनको देखकर हम भी उस युग में पहुँच जाते जिसकी यादें उसने संजोकर रखी इस तरह वे हमें अपने अतीत के उस सुनहरे दौर की बेशकीमती निशानियाँ लगती जो अब केवल इतिहास में ही दर्ज हैं और जिनके गले लगकर हम अपने पूर्वजों के अहसास को भी महसूस करते तो फिर ऐसी बहुमूल्य धरोहरों की सुरक्षा की जिम्मेदारी भी तो हमारी हैं जिनसे हमारी जड़ें जुडी हुई हैं...

हर गाँव, हर नगर और देश में ऐसी बहुत-सी खुबसूरत इमारतें, अनमोल मुद्रायें, बोलती तस्वीरें, मनभावन मूर्तियाँ, प्राचीन मंदिर, बहुउपयोगी किताबें, भूलभुलैया सी गुफायें और अनेक ऐसी विधायें या पुरातन संस्कृति होती जो उस समय की वास्तु कला, शिल्पकला, चित्रकला, मूर्तिकला आदि का बेहतरीन नमूना पेश करती और यदि हम इनको संभालकर न रखे तो आने वाली पीढियां इन्हें किस तरह से जानेगी या वे केवल चित्रों या कहानियों में ही इनके बारे में सुनेगी और कल्पना से इनको समझने का प्रयास करेंगी लेकिन यदि हमने इनका सरंक्षण किया तो फिर हम उनको भूतकाल बन चुकी इन महत्वपूर्ण चीजों का वास्तविक अनुभव दे सकते हैं जैसे हमारे दादा-दादी व माता-पिता ने हमको दिया तो हम विश्वसनीयता के साथ उन तथ्यों को प्रस्तुत कर पाते जिससे उसकी प्रमाणिकता भी सिद्ध हो जाती अन्यथा वे बातें महज कपोल कल्पना ही लगती...

आज के तकनीकी युग में तो ‘विश्व विरासत दिवस’ की महत्ता अधिक बढ़ जाती क्योंकि आये दिन आने वाली नवीनतम तकनीकों की वजह से यंत्र-तंत्र बड़ी तेजी से बदलते जा रहे और पुराने का स्थान अधिक शक्तिशाली सुविधाओं से युक्त नूतन गेजेट्स लेते जा रहे जिससे कि उतनी ही तेजी से हमारी इस सभ्यता-संस्कृति के दुर्लभ निशान भी मिटते जा रहे हैं तो ऐसे में हमारा फर्ज़ बनता हैं कि हम जो कुछ भी बचा सकते हैं बचाये चाहे वो हमारी छोटी-छोटी देशज परम्परायें हो या फिर बोली-भाषा या भारतीय परिधान या भिन्न तरह की कलायें या फिर तरह-तरह के खेल हो जिनके अब केवल नाम ही बचे और मोबाइल व इंटरनेट के कारण तो इन के विषय में सम्बंधित जानकारी ही नहीं बल्कि इनके साधन भी गुम होते जा रहे जिस तरह मिक्सी, जूसर, वाशिंग मशीन, माईक्रोवेब, कंप्यूटर, मोबाइल, विडियो गेम्स, शोपिंग माल कल्चर के आने से सिलबट्टा, खलबट्टा, चक्की, मथानी, मोगरी, टेलीफोन, टाइपराइटर जैसे यंत्र ही नहीं बल्कि प्यारे-प्यारे खेल, लोरियां, बन्ने-बन्नी, रस्में भी विलुप्ति की कगार पर हैं क्योंकि अब किसी के पास समय ही नहीं तो हमें हर बड़ी ही नहीं छोटी-से-छोटी वस्तु का भी ख्याल रखना होगा कि ये महज़ हमारी जरूरतें पूरी करने का माध्यम भर नहीं बल्कि हमारे देश का इतिहास बनने जा रही धरोहरें हैं और यही तो इस दिवस का उद्देश्य भी तो उसके इस पैगाम को याद रखते हुये हम अपनी विरासत को सहेजने में अपना योगदान दे... इसी संदेश के साथ सबको ‘विश्व विरासत दिवस’ की शुभकामनायें... :) :) :) !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

१८ अप्रैल २०१७

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