सोमवार, 24 अप्रैल 2017

सुर-२०१७-११४ : “भारतीय नृत्य : कहीं हो न जाये अदृश्य --- ०१”

साथियों... नमस्कार...

जो भी एक बार ‘भारत’ आता हैं उसे ये बहुत अधिक लुभाता हैं क्योंकि विविधताओं से भरा हुआ ये राष्ट्र जो ‘अनेकता में एकता’ का प्रतीक हैं संपूर्ण विश्व में कहीं ऐसा दूसरा कोई भी मुल्क नहीं हैं जहाँ इतनी सारी भाषा बोलने वाले, अलग-अलग धर्म मानने वाले, यहाँ तक कि भिन्न-भिन्न जाति-संप्रदाय से जुड़े करोड़ो लोग एक साथ मिलकर एक ही परचम के तले रहते हैं उसकी इसी विशेषता के कारण ही हमेशा से कई शासकों के द्वारा उस पर कब्जा जमाने के प्रयास किये गये क्योंकि यूँ तो दुनिया में बहुत से देश हैं लेकिन सामान्यतः वहां एक ही धर्म और भाषा से जुड़े लोग ही रहते तो उस एकरूपता के बाद जब वे इसकी बहुरूपता को देखते तो इसकी तरफ ज्यादा आकर्षित होते इसके अलावा यहाँ की संस्कृति व सभ्यता भी इतनी प्राचीन और विविध कलाओं से परिपूर्ण कि किसी गुलदस्ते की तरह अपने में कई रंग और ढंग के फूलों को समेटे हुये हैं ऐसे में कौन हो जो इस पर फ़िदा न हो जायेगा लेकिन जैसा कि हमारे देश के लोगों की एक कमजोरी भी कि उन्हें घर की मुर्गी दाल बराबर लगती तो जैसे-जैसे विकास हुआ और अन्य देशों के साथ उसके ताल्लुकात बढ़े तो उन्हें विदेशों का कल्चर और उनके रीति-रिवाज़ इस कदर भाने लगे कि उन्होंने अपनी उन पुरातन अमूल्य गौरवशाली संस्कृति को भी ताक पर रख उनकी नकल करनी शुरू कर दी जिसके कारण अब उनमें और हम में अधिक अंतर न रहा कि अब तो भारत में लोग सूट-बूट पहनते, कुर्सी-टेबल पर जूते-चप्पल पहनकर कांटें-छुरी से खाना खाते, अंग्रेजी में गिटर-पिटर करते और पिज़्ज़ा-बर्गर-हॉटडॉग-नूडल्स-मंचूरियन-पास्ता जैसे विदेशी नाश्तों के संग पानी की जगह कोला-पेप्सी पीते खुद को किसी दूसरे देश का साबित करने का प्रयत्न करते यहाँ तक तो फिर भी ठीक था लेकिन उसने अपनी पहचान बन चुकी नृत्य-संगीत जैसी कलाओं को भी खतरे में डाल दिया जो कि केवल चिंतनीय ही नहीं बल्कि व्यवहारिक रूप से इस सोच में परिवर्तन लाकर कदम उठाने लायक स्तर तक पहुँच चुकी समस्या हैं...
             
जिस तरह से आजकल के रियाल्टी डांस शो में ‘वेस्टर्न डांस’ को अधिक महत्व देकर लोगों के मन में उसके प्रति आकर्षण पैदा किया जा रहा उसकी वजह से हमारे देश के अलग-अलग प्रान्त के अनेकानेक नृत्यों पर संकट खड़ा होता जा रहा ऐसे में अब भी यदि हमने इसे गंभीरता से न लिया तो एक दिन ऐसे आयेगा कि जिस तरह से खान-पान-पहनावा में भारतीयता समाप्त हो गयी उसी तरह फ्यूजन या मिक्सचर के नाम पर हमारे शुद्ध भारतीय नृत्यों में से भी उसका खालिसपन निकल जायेगा तो फिर जिस तरह हम मजबूरीवश ‘हिंगलिश’ को ही अपनाने लगे उसी तरह एक दिन इंडो-वेस्टर्न को भी स्वीकार कर लेंगे क्योंकि यही तो हमें आता हम खुद अपने हाथों से अपनी विरासत को लुटाते फिर जब अहसास होता तो पछताते इसलिये जरुरी कि हम इस पर अभी से ही ध्यान दे जिससे कि हमारी ये सांस्कृतिक धरोहर कहीं खो न जाये जिसकी वजह से हमें जाना जाता उस पर हम तो इस मामले में इतने अधिक धनवान कि हमारे यहाँ कदम-कदम पर पानी या बोली ही नहीं बल्कि संस्कृति भी बदल जाती और हर प्रान्त की अपनी एक अलग ख़ासियत जिससे कई चीजें जुडी हुई हैं जैसे उस प्रांत के लोगों का बोलचाल, उनकी खाने-पीने की आदतें और उनकी अपनी नृत्य-संगीत की शैलियाँ जिस पर उसे गर्व होता लेकिन जिस तरह से उनके स्वरुप को बिगाड़ा जा रहा जरूरी कि इसे रोकने ठोस कार्यवाही की जाये नहीं तो अभी हम अपने देश और उसके अनेक प्रदेश की भिन्नताओं को सर उठाकर गर्वित स्वर में उसका वर्णन करते अगर, किसी दिन जब वो पहचान ही खो जायेगी तो फिर हम भी एकरूपता का शिकार होकर उब जायेंगे और बोलो फिर किधर जायेंगे कि तब तो हम भी उनके रंग में ढल जायेंगे तो फिर ऐसा करे कि अपने इंद्रधनुषी रंगों वाली भारतीयता को बचाये जिसके रंगों में हमारी बहुरंगी संस्कृति बसी हुई हैं...  

२९ अप्रैल को ‘अंतर्राष्ट्रीय नृत्य दिवस’ आ रहा उसी अवसर पर ‘भारतीय नृत्य, कहीं हो न जाये अदृश्य’ नाम से एक श्रृंखला आरंभ की हैं जिसकी प्रथम क़िस्त आप सबके समक्ष हैं अगली कडियों में अपने देश के अलग-अलग प्रांतों के अलग-अलग नृत्य और उनकी विशेषताओं पर बात करेंगे ताकि हम जान सके कि जो बात स्वयं की पहचान में हैं वो किसी दूसरे की नकल करने में नहीं... :) :) :) !!!    

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

२४ अप्रैल २०१७

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