रविवार, 23 अप्रैल 2017

सुर-२०१७-११३ : विश्व पुस्तक दिवस पर पुकारती किताबें... पाठकों फिर से पुस्तकालय आयें...!!!

साथियों... नमस्कार...


आजकल रोज ही कोई न कोई दिन होता जिसे किसी देश या प्रांत नहीं बल्कि वैश्विक स्तर पर मनाया जाता कि अब कोई भी ख़ुशी हो या गम या कोई भी समस्या वो किसी एक की नहीं रही बल्कि संपूर्ण जगत अब उसका हिस्सेदार हैं जो तकनीकी युग में इंटरनेट के माध्यम से एक पटल पर एकत्रित समस्त भूमंडल के वैश्वीकरण को तो दर्शाता ही साथ ही ये भी बताता कि अब सब कुछ साँझा हैं चाहे फिर वो किसी उत्सव का खुशनुमा माहौल हो या किसी ग़मगीन खबर का असर या फिर दुनिया के किसी कोने में उपजी कोई समस्या सभी मिल-जुलकर कभी उसकी खुशियाँ मनाते तो कभी दुःख में शरीक होते और कभी मिलकर उस मुश्किल का निदान ढूंढते जो इस दिन की सार्थकता के लिये जरूरी भी लेकिन अमूमन यही होता कि दिन आता उस पर विचार-विमर्श टाइप कुछ गोष्ठी या औपचारिक कार्यक्रम आयोजित किये जाते और दिन बदलते ही अगले दिवस की तैयारी में सब जुट जाते जिससे कि उस दिवस का औचित्य पूर्ण नहीं हो पता जिसके लिये उसे बनाया गया क्योंकि वैसे भी जिस तरह की भाग-दौड़ और व्यस्तता भरी जिंदगी आदमी की हो चुकी उसके लिये दिन आम हो या ख़ास महज़ रस्म अदायगी रह गया जिसे इस तरह से निरर्थक बनाने में गेजेट्स व सोशल मीडिया का भी हाथ हैं क्योंकि इनकी वजह से इंसान सुबह से शाम तक केवल उस दिन से संबंधित संदेशों व जानकारी को ही इधर-उधर फारवर्ड करता रहता लेकिन एक पल भी उसके मूल में जाने का प्रयास नहीं करता तो ऐसे में अब ये भी जरुरी कि हम दिन विशेष पर कोई व्यवहारिक कदम भी उठाये जिससे कि उस दिवस के आयोजन को सफल बना सके...

आज भी एक ऐसा ही दिन हैं ‘विश्व पुस्तक दिवस और कॉपीराइट दिवस’ जिसके नाम से ही ये अहसास होता कि ये महज़ मनाने मात्र का दिन नहीं बल्कि इसके साथ किताबों व कॉपीराइट के उपयोग का मुद्दा भी जुड़ा और जिस तरह से आजकल हम देख रहे कि किताबें भले ही छप रही लेकिन उन्हें खरीदकर पढ़ना या सहेजना लगभग समाप्त हो गया क्योंकि नई पीढ़ी को मोबाइल या लैपटॉप के स्क्रीन पर ही उन्हें पढने की आदत पड़ चुकी हैं जिससे हमारे प्राचीन ग्रंथ, उपन्यास, महाकाव्य आदि केवल बुक शेल्फ या अलमारी का हिस्सा मात्र बनकर रह गये हैं जिन पर गुजरते दिन के साथ धूल की परतें चढ़ती जा रही हैं पर, पाठकों के पास उनको देखने या पढ़ने की भी फुर्सत नहीं कि अब उसके हाथों में दिन-रात कोई न कोई यंत्र होता जिस पर पल-पल की खबरें और ई-बुक्स का भंडार भरा और उसके पास तो उन्हें पढने का भी पर्याप्त समय नहीं लेकिन संतुष्टि का भाव रहता कि जब भी उसे कोई जानकारी चाहिये वो एकदम सहज-सुलभ हैं जिसके लिये उसे किताबें खंगालने या पुस्तकालय घुमने की जरूरत नहीं सब कुछ एक क्लीक पर हाज़िर तो इस सुविधा ने उससे वो अहसास छीन लिये जो किसी किताब को पकड़कर ही महसूस किया जा सकता जैसे कि उसकी सोंधी खुशबू, मुड़े हुये यादगार पन्ने, सफों पर दर्ज कोई बात, किसी जगह रखा कोई गुलाब या किसी से मिली स्पेशल भेंट या किसी जगह रखा कोई ख़त ये सब रूहानी अहसास कभी भी कोई यंत्र नहीं दे सकता इसे तो बस, छूकर ही महसूस किया जा सकता पर, अब तो ये सिर्फ किताबों का ही किस्सा बनकर रह गया...

किताब के साथ कॉपीराइट का भी मामला जुड़ा होता कि कोई भी लेखन हो वो लेखक का अपना नितांत मालिकाना अधिकार वाला दस्तावेज होता जिसे कोई भी बिना उसकी अनुमति के इस्तेमाल नहीं कर सकता तो उसके साथ कॉपीराइट को भी जोड़ दिया जाता कि उस किताब के किसी हिस्से या जानकारी का किसी के भी द्वारा दुरपयोग न किया जा सके और लेखक को भी आर्थिक नुकसान न हो इस तरह से बुक एंड कॉपीराइट एक सिक्के के दो पहलु की तरह एक-दूसरे से जुड़े जिसका उल्लंघन करने पर सजा का भी प्रावधान होता आखिर ये किसी भी रचनाकार का बौद्धिक संपदा अधिकार जो ठहरा और जो उसने अपनी बुद्धि व दिमाग का प्रयोग कर रचा उस पर उसका हक़ उसे मिलना ही चाहिये तो इस उद्देश्य के लिये २३ अप्रैल को ‘विश्व पुस्तक एवं कॉपीराइट दिवस’ बना दिया गया कि सिर्फ पाठक ही नहीं लेखक का भी पुस्तकों से गहरा रिश्ता होता भले ही एक पाठक लेखक न हो लेकिन लेखक अक्सर एक पाठक होता तो उसे अपने सृजन पर अधिकार के साथ-साथ आमदनी भी प्राप्त हो साथ ही लोग जिस तरह से किताबों से दुरी बनाते जा रहे इस फासले को भी कम किया जा सके... तो हम सब मिलकर ये प्रयास करे कि रोज कुछ न कुछ किताबों से जरुर पढ़े अपनी इस आदत को पूरी तरह से न छोड़े और अपने आस-पास के लोगों को भी इस अभियान से जोड़े... फिर ये दिवस स्वतः ही  हो जायेगा... तो सबको बधाई व शुभकामनायें... :) :) :) !!!
              
_____________________________________________________
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

२३ अप्रैल २०१७

कोई टिप्पणी नहीं: