शुक्रवार, 14 अप्रैल 2017

सुर-२०१७-१०४ : साधारण परिवेश में जन्मा अ-साधारण प्रतिभाशाली व्यक्तित्व... संविधान निर्माता ‘डॉ भीमराव आम्बेडकर’...!!!

साथियों... नमस्कार...


एक समय था जब देश में चतुवर्ण-व्यवस्था थी जिसमें समाज में रहने वाले समस्त जनता को ब्राम्हण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शुद्र में बांट उनके कर्म एवं कार्यक्षेत्र तक का विभाजन कर दिया गया था इस असमानता ने किसी वर्ग को उच्च तो किसी को निम्नता के अहसास से भर दिया था जिसके कारण आपसी वैमनस्य की दरार बढ़ती जा रही थी जिसे पाटने किसी को तो आना ही था तो ऐसे में निचले वर्ग को उपर लाने तथा उनको हीनता बोध से मुक्त कराने उनके मसीहा के रूप में आये डॉ भीमराव आम्बेडकर जो अत्यंत प्रतिभाशाली थे जिसकी वजह से उन्होंने अपने दम पर अपनी पहचान बनाई और अपनी असाधारण योग्यता से न केवल स्कालरशिप प्राप्त की बल्कि सतत अध्ययन कर उच्चतम शिक्षा हासिल की लेकिन, उनका ये सफर या वो आदमकद व्यक्तित्व जिसे हम आज देखते या जिसका स्मरण करते हैं वो एक दिन में या एक रात में ही निर्मित नहीं हुआ बल्कि इस तक पहुँचने के लिये उन्हें उस दौर की सामाजिक व्यवस्था के साथ-साथ शिक्षा प्रणाली और तत्कालीन शासन से भी लड़ना पड़ा लेकिन उनका तो जन्म ही निचले तबके के उद्धार के लिये हुआ था तो फिर वो किस तरह किसी भी तकलीफ या परेशानी के आगे घुटने टेक सकते थे...

उनकी मंजिल की राह में कितनी भी मुश्किलें आई वे घबराये नहीं बल्कि इन कठिनाइयों ने उनके इरादे व् संकल्प को अधिक मजबूत कर दिया जिसकी वजह से वे दृढ़ता के साथ इससे जूझते रहे और अपनी बौद्धिक क्षमता से अनवरत अध्ययन करते रहे जिसने उनके भीतर ज्ञान की ज्योति नहीं वरन मशाल जला दी जिसके उजाले में उन्हें हर समस्या का समाधान नजर आता रहा और पीड़ित मानवता के आत्मा में लगे जख्म को वे इस मरहम से सहलाते रहे तो उनके इस अथक प्रयासों ने उनके निराश मन एवं बुझते आशा के दीपक को भी जलने ईधन दिया फिर क्या था उनके साथ कारवां जुड़ता गया और अपार जन-समर्थन ने उनके मनोबल को इतना बढ़ा दिया कि फिर उन्होंने पीछे मुड़कर न देखा क्योंकि वे चाहते थे कि प्रत्येक मानव को एक समान अवसर उपलब्ध कराये जाये जिससे कि बिना किसी भेदभाव के वो अपने भीतर छिपी प्रतिभा का प्रदर्शन कर सके और उसके अंदर आत्मविश्वास का ऐसा बल आ जाये जिसके बूते वो बिना किसी सहारे के खुद अपने पैरों पर खड़ा हो सके लेकिन उनके इस मर्म को समझने की बजाय आज भी लोग आरक्षण रूपी वैसाखी थामकर चल रहा हैं जबकि उन्होंने केवल अपने स्तर को ऊंचा उठाने ये अल्पकालीन सुविधा दी थी....

उनके प्ररि सच्ची श्रद्धांजली यही होगी कि वे सब जो उनकी बनाई इस ‘आरक्षण’ की लाठी अपने जीने का जरिया समझते इससे मुक्त हो जाये... और जिस तरह उन्होंने अपनी प्रतिभा से अपना मुकाम बनाया उसी तरह वे भी अपनी पहचान कायम करें... :) :) :) !!!   

          
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

१४ अप्रैल २०१७

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