शुक्रवार, 2 मार्च 2018

सुर-२०१८-६१ : #धर्म_जात_से_परे_रंग #रहो_ऐसे_होली_का_यही_संदेश




रंग का कोई मज़हब नहीं होता...
लेकिन, हर मज़हब का अपना रंग होता हैं

प्रकृति में जितने भी नायाब ख़जाने हैं वो सबके लिये हैं उनका कोई भी धर्म या कोई जात-पात नहीं होती इसलिये हर मजहब के लोग उनका एक समान उपयोग करते मगर, अपनी बौद्धिकता का परिचय देने इंसान इनमें भी धर्म विभाजन कर दिया जिसकी वजह से वो कुदरती नेमतें जिसे विशुद्ध मानवीयता का संदेश देकर ईश्वर ने रचा था अब उनके भी अलग-अलग संप्रदाय होते हैं ये बंटवारे भी इंसान ने कुछ इस तरह से कर दिये कि किसी विशेष धर्म का महज़ प्रतीक मात्र न रहकर ये इंसानी जान से भी अधिक महत्वपूर्ण हो चुके हैं अक्सर, इनकी वजह से दंगे तक हो जाते जिनमें न जाने कितने बेकुसूरों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ता कि जानवर या रंग भी अब सिर्फ परमात्मा की बनाई कोई कृति नहीं वरन उस पर जो ठप्पा मानव ने लगा दिया ये उसका पहचान चिन्ह बनकर रह गयी जिस पर उसका मालिकाना हक़ भी उसके द्वारा जताया जाता और वे मूक बेचारे तो प्रतिरोध भी नहीं कर सकते तो बेबस अपनी वजह से होने वाले उन विवादों के दर्शक बनकर रह जाते काश, कि इंसान प्रकृति में छिपे इन गूढ़ रहस्यों से सबक लेकर खुद भी इतना सहज बन पाता तो आज ये समस्त भूमंडल वसुदेव कुटुम्बकं का मूर्त रूप बन जाता      

‘होली’ हो या कोई भी उत्सव इन्हें हमारे पूर्वजों ने बहुत सोच-समझकर कुदरत से जोड़ा ताकि हम सह-अस्तित्व के वास्तविक अर्थ को न भूल ये समझे कि सांझेपन में रहकर ही हमारा वजूद भी कायम रह सकता हैं इसलिये हर पर्व में ऐसी कई रवायतें शामिल जो हमें उन पंचतत्वों की अहमियत बताती जिनसे हमारी रचना हुई और जिनके बिना हमारा जीवन भी संभव नहीं चाहे कोई भी त्यौहार हो सबमें इन पांचों की अहम भूमिका होती फिर भी हम उसको न देखकर अपने झूठे अहं में खोये रहते हैं ‘होली’ में रंग से लिपे-पुते हमारे चेहरे मगर, हमारे उस मिथ्या भ्रम को तोड़ने का काम बड़ी सरलता से करते यदि हम इसी तरह से एक-दूसरे को देखे तो किसी की कोई पहचान नहीं रह जाती सब एक हो जाते न कोई नाम और न कोई जात इसलिये ही शायद, सबको ये बेहद पसंद ख़ासकर बच्चों को तो बहुत ज्यादा कि वो पहले से ही इन सब बेकार की बातों से दूर रहकर आपस में घुल-मिलकर रहते वो तो हम ही उनके भीतर ये अहसास जबरन भर देते अन्यथा उन्हें नहीं पता कि फलां त्यौहार या सरनेम या रंग या जानवर या मिठाई किस धर्म से ताल्लुक रखते हैं

आओ मिल जाये इंद्रधनुषी रंग की तरह आपस में
मिलकर हम सब आपस में बना ले अमन का रंग

‘होली’ को यदि कुछ मनचलों या बदमाशों के द्वारा दूसरा रंग न दिया जाये और केवल प्रेम के रंग से खेला जाये तो इससे खुबसूरत कोई दूसरा पर्व नहीं जहाँ इंद्रधनुषी रंग आपस में मिलकर एक हो जाते और फिर एक होकर शांति का श्वेत रंग बना लेते और क्या यही तो हैं ‘होली’ का असली संदेश... इसी के साथ सबको रंगोत्सव की अनंत शुभकामनायें... ☺ ☺ ☺ !!!
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
०२ मार्च २०१८

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