मंगलवार, 20 मार्च 2018

सुर-२०१८-७९ : #सुनो_चिरैया_की गुहार #जिसे_सिर्फ़_एक_कोने_की_हैं_दरकार




प्रकृति में हर एक शय को ईश्वर ने सबके लिये बनाया लेकिन, मानव ने अपने स्वार्थ के वशीभूत होकर हर चीज़ पर अपना कब्जा जमा लिया जिसकी वजह से कुदरत की अबोध मूक संतानें जो अपने जीवन-यापन के लिये सिर्फ उस पर ही निर्भर वे इस वजह से विलुप्ति की कगार पर पहुंच गयी जिनमें घर-घर में दिखने वाली सामान्य ‘गोरैया’ भी अब दिखाई नहीं देती और जो थोड़ी-बहुत बची भी हैं अपनी ची... ची... में उस पीड़ा को अभिव्यक्त करती...

●●●
सुनो,
ओ मानव...
प्रकृति पर हमारी भी
उतना ही हक़ हैं
जितना कि तुम्हारा
फिर क्यों ?
हर एक शय पर,
तुमने अकेले कब्जा जमाया
हमें बेघरबार कर के
हो रहे अपने में मगन
सुनते नहीं हमारी मूक पुकार
जिसमें छिपी हमारी
धीरे-धीरे विलुप्त होने की वेदना
तुम्हारी विलासप्रियता
तुम्हारी अति स्वार्थान्धता
तुम्हारी आत्ममुग्धता
बन रही हमारी जान की दुश्मन
न बचे जंगल, न वृक्ष, न ही कोई कोना
जहां सुरक्षित रह सके हम
अब तो घरों में भी नहीं कोई झरोखा
या रहता कोई दरवाजा खुला
जहाँ से हम पा सके कोई ठौर-ठिकाना
आसमां पर भी फैला दिए तुमने
विद्युत तारों और तरंगों के बड़े-बड़े जाल
ऐसे में हम निरीह पक्षी जाये कहाँ ?
धरती भी तुम्हारी, आसमां भी...
----------------------------●●●●●●
   
वाकई, सिर्फ ‘गोरैया’ ही नहीं अनगिनत जीव-जंतुओं का करुण संदेश हैं ये जिसको हम सुनकर भी अनसुना कर रहे लगातार मना रहे तमाम दिवस पर, करते नहीं कोई सार्थक पहल और जो करते भी तो नाममात्र की उस कार्यवाही से विशेष फर्क पड़ता नहीं ऐसे में जरूरी कि सब मिलकर सख्त कदम उठाये क्योंकि, सह-अस्तित्व में ही हम सबके जीवन का रहस्य छिपा इस ‘इको सिस्टम’ में कोई भी एक कड़ी टूटी तो संपूर्ण प्राकृतिक तंत्र बिखरकर रह जायेगा अब भी वक़्त की संभल जाये उनकी गुहार सुने और उनको बचाने आगे आये... ताकि, वे ही नहीं हम भी बच पाये... ची... ची... का यही ‘डिकोडेड मैसेज’ हैं... ☺ ☺ ☺ !!!

_____________________________________________________
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२० मार्च २०१८

कोई टिप्पणी नहीं: