बुधवार, 21 मार्च 2018

सुर-२०१८-८० : #कविता_का_किरदार



किरदारों से गुजरते हुए
कोई एक किरदार गढ़ती हूँ
उसे जीती-मरती और
सर पर ओढ़े फिरती हैं
इतने किरदार बुने-उधेड़े और
फिर सलाई पर चढाये
कि उलझकर अब उनमें
अपना ही किरदार ढूंढती हूँ
मैं किरदार नहीं बल्कि
अपना ही कोई अंश रचती हूँ
मुझमें ही छिपा कोई
उसे सफे पर उकेरती हूँ
उसके नाक-नक्श उभारती हूँ
फिर मिटाकर उसे दुबारा
एक नई शख़्सियत कागज़ पर उतारती हूँ
पर, कोई किरदार एक जेहन से
उतरता नहीं कभी तो फिर ताउम्र
उसी को ढोती हूँ...!!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२१ मार्च २०१८

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