रविवार, 4 मार्च 2018

सुर-२०१८-६३ : #क्षणिक_मूक_सम्मोहन



‘विभोर’ ने जब से ‘तनिषा’ की तस्वीर देखी वो उसका दीवाना हो गया और जितना वो उसे देखता उतना ही खुद को उसके आकर्षण के मोहजाल में किसी तिनके की तरह फंसता हुआ महसूस करता कि उसकी सुंदरता ने उसके होश उड़ा दिये थे उस पर उसकी कलम से निकले शब्दों से वो जितना उसको समझने की कोशिश करता खुद को कमतर पाता कि उसकी लेखनी की गंभीरता जहाँ उसे उच्च बनाती वहीँ उसकी सोच उसको निम्न दर्शाती तो ऐसे में वो उससे बात करने की हिम्मत न कर पा रहा था कि उसका स्वाभाव काफी सामान्य व् मजाकिया था जबकि उसकी रचनाओं में कहीं हल्का-सा भी इस तरह की कोई बात होती जो उसके मिजाज से मेल खाती हो फिर भी न जाने क्यों उसके प्रति अपने मन में एक अजीब खिंचाव महसूस कर रहा था इसके बावजूद भी कि वो जो कुछ भी लिखती उसे रुचिकर नहीं लगता था परंतु, उसकी तस्वीर उतना ही उसे मोहती थी

इसलिये उससे संवाद स्थापित करने की गरज से उसने उसके लेखों पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करना शुरू कर दिया था जिसका कोई अनुकूल असर उसे दिखाई नहीं दे रहा था कि वो बेहद कम समय ही सक्रिय रहती जिसमें उससे वार्तालाप की कोई गुंजाईश नजर न आती कि वो इनबॉक्स में कभी कोई प्रतिउत्तर देती ही नहीं थी ऐसे में उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो किस तरह से उससे बातचीत शुरू करे तो कोई रास्ता सूझता दिखाई न देने से वो बेहद परेशान  रहने लगा था ऐसे में एक दिन उसने देखा कि वो उसके ही शहर में किसी साहित्यिक कार्यक्रम में शामिल होने आ रही जिसकी सुचना उसे उसके ही प्रोफाइल से मिली तो मानो मुंह मांगी मुराद ही पूरी हो गई वो उस दिन का इंतजार करने लगा आख़िरकार वो दिन भी आया और वो बड़े अच्छे-से तैयार होकर उस जगह पहुंचा और सबसे आगे की कुर्सी पर बैठ उसे देखने लगा वो जितनी खुबसूरत फोटो में नहीं दिखाई देती थी उससे अधिक सामने दे रही थी तो दिल थामकर उसे सुनने की प्रतीक्षा करने लगा

जैसे ही माईक से उसका नाम पुकारा गया वो संभलकर बैठ गया मगर, ये क्या वो आई पर, यूँ लगा मानो उसकी कल्पना चटाक से टूट गयी हो क्योंकि उसकी प्रस्तुति उतनी प्रभावशाली नहीं थी न ही उसका बोलने का अंदाज या कविता में ही वो बात नजर आई जो उसके शब्दों में आती थी वो दंग रह गया उसे समझ ही नहीं आया कि जो उसने सोचा था या जैसी उसने अपने मन में उसकी छवि बना रखी थी उसका एक प्रतिशत भी उसे वहां नजर न आया और यूँ लगा जैसे वो किसी सम्मोहन से मुक्त हो गया हो बड़े ही बोझिल मन से लौटकर वो सोचने लगा कि अच्छा हुआ जो उसने उससे बात नहीं की क्योंकि, उसकी तस्वीर से जो उसने रिश्ता बना लिया था वो उसकी सच्चाई जानने के बाद उससे जोड़ नहीं पा रहा था ये वो थी ही नहीं जिसका उसे इंतजार था वो महज़ उसका एक ख्याल था जो उसने मन में बुन लिया था और अब ये समझ गया कि ये ठीक नहीं बिना किसी को जाने या किसी से मिले बिना ही उसके बारे में कोई धारणा बना लेना अक्सर, विचार मनोनुकूल नहीं होते हैं

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
०४ मार्च २०१८

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