रविवार, 25 मार्च 2018

सुर-२०१८-८४ : #एक_दिन_चार_जन्मदिन #रामनवमी_लाई_खुशियों_भरा_दिन



अयोध्या में वो खुशियों से भरा दिन था जब एक साथ राम, भारत, लक्ष्मण और शत्रुध्न का जन्म हुआ भले ही उनकी मायें अलग-अलग थी लेकिन, उनकी आत्मायें एक ही थी इसलिये उन्होंने हमेशा एक-दूजे के साथ निभाया कभी विलग भी रहे तो मात्र देह ही जुदा थी मन तो उनके जुड़े हुए थे तो स्नेह का बंधन कभी-भी ढीला नहीं हुआ चाहे उनके बीच में चौदह वर्षों के वनवास का अन्तराल ही क्यों न आ गया भातृप्रेम की जो अद्भुत अनूठी मिसाल कायम करने वे इस दुनिया में आये थे उसको स्थापित कर के ही रहे कि लोग उनकी कथाओं से प्रेरणा लेकर रिश्तों की अहमियत समझे और अपने किसी भी संबंध में कभी खटास न आने दे लेकिन, फिर भी ऐसे अनेक जो रामकथा तो पढ़ते-सुनते मगर, अपने भाई-बहिनों से इस तरह का घनिष्ट नाता नहीं बना या निभा पाते जो इस कथा का मूल हैं

‘राम’ ने राज्य मिलने पर उसे तिनके की तरह इसलिये छोड़ दिया क्योंकि, उनके छोटे भाई ‘भरत’ के लिये उसे माँगा गया था और उनके लिये अपने बड़ों की आज्ञा और अपनों का प्रेम इतने उच्च स्थान पर था कि यदि उनको बदले में अपने प्राणों का भी त्याग करना पड़ता तो एक पल भी न हिचकते जबकि, अब तो लोग जरा-सी जायदाद के लिये न केवल खून के रिश्ते छोड़ देते बल्कि, वक़्त पड़े तो अपनों की जान लेने से भी न डरते ऐसे में इस घोर कलयुग में इस रामकथा की प्रासंगिकता और भी अधिक बढ़ जाती जिसमें हर तरह के आदर्श के ऐसे प्रतिमान भरे पड़े जिनका त्याग, समर्पण और निष्ठा हमें सकारात्मक ऊर्जा से भर अपने गुणों से अंतरतम को प्रभावित करती और यदि हमारे भीतर तनिक भी परिवर्तन की इच्छा होती तो अपने पारसमणि स्पर्श से हमारे अवगुणों को हर उसे कंचन में बदल देती

हम रामनवमी तो हर बरस मनाते और रामायण प्रतिदिन दोहराते लेकिन, इसका महत्व तभी हैं जबकि, हम इसमें वर्णित जीवन मूल्यों को अपने भीतर उतारे... एक भी पद या चौपाई को यदि हमने आत्मसात कर लिया तब हम उसके सच्चे अनुयायी बन पायेंगे... एक ही नारा... एक ही नाम... जय श्री राम... बोले नहीं उसको समझे... बोलने से उद्धार तभी होगा जब उसके प्रति मन में श्रद्धा होगी... महज़, नारा समझ उसका दोहराव नहीं... सबको इस विचार के साथ रामनवमी की शुभकामनायें... ☺ ☺ ☺ !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२५ मार्च २०१८

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