रंगमंच हैं
ये विश्व ही
सारा
अदाकारी दिखता
जिसमें
हर इंसान अपनी
बिना किसी
पटकथा के
नहीं जानता कोई
लिखी हैं क्या
उसकी भूमिका
अंजान इस बात
से वो
निभाता अपना अनदेखा
पात्र
करता संवाद जैसा
हो सामने किरदार
देता
प्रतिक्रिया भी अपनी
हर एक परिस्थिति
के अनुसार
फिर एक दिन
अचानक
गिर जाता पर्दा
और
खत्म हो जाती
उसकी कहानी
मगर, जो करते
अदायगी बेमिसाल
छोड़ जाते इतिहास
में छाप
करते समाज हित
में सार्थक काम
रहता सदा उसका
नाम
भले फिर नाटक
हो जाये समाप्त ॥
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© ® सुश्री इंदु सिंह
“इन्दुश्री’
नरसिंहपुर
(म.प्र.)
२७ मार्च २०१८
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