बुधवार, 14 मार्च 2018

सुर-२०१८-७३ : #मौत_भी_अपनी_करनी_पर_उदास_हैं_आज #स्टीफन_विलियम_हाकिंग_पर दुनिया_को_हैं_नाज़



  
८ जनवरी, १६४२ ‘गैलिलियो गैलिली’ जिन्हें महान वैज्ञानिक ‘अल्बर्ट आइन्स्टीन’ ने ‘आधुनिक विज्ञान का जनक’ कहकर संबोधित किया ने धार्मिक मान्यताओं के खिलाफ़ जाकर सिद्धांत देने के कारण बेहद विपरीत परिस्थितियों में कैद भुगतते हुये अपने प्राण त्यागे और इस घटना के ठीक पूरे ३०० साल बाद ८ जनवरी १९४२ को ‘इंग्लैण्ड’ के ‘ऑक्सफोर्ड’ शहर में ‘स्टीफन विलियम हाकिंग’ का जन्म हुआ जिनकी बुद्धिमता को देखकर उनके दोस्त बचपन में उन्हें ‘आइंस्टाइन’ कहकर पुकारते थे वही आज आज १४ मार्च २०१८ को उस दिल सी दुनिया को अलविदा कह गये जब सारी दुनिया सदी के महानतम वैज्ञानिक ‘अल्बर्ट आइंस्टीन’ का जन्मदिन मना रही थी

ये सारे संयोग देखकर कहीं न कहीं ये अहसास होता कि सितारों की दुनिया का अध्ययन करने वाले और विज्ञान के रहस्यों को सुलझाने वाली इन अद्वितीय हस्तियों में आपस में कोई दैवीय संबंध था जो इन्हें इस तरह आपस में जोड़ता हैं और जब कभी भी हम ज्ञान-विज्ञान की बात करेंगे तो निसंदेह इनके नाम एक साथ ही लिये जायेंगे कि इन्होने अपनी असाधारण खोजों व अनगिनत शोधों से इस विशाल जगत व मानवता को ऐसा दुर्लभ ज्ञान दिया जिस पर आने वाली कई पीढियां न केवल नाज बल्कि, अध्ययन करेंगी और इस तरह अपनी इन अमूल्य उपलब्धियों की वजह से ये अलग-अलग देश के होने के बाद भी संपूर्ण मानवजाति व विशालतम जगत के लिये सदैव अनुकरणीय और प्रेरणा के स्त्रोत रहेंगे

इनमें यही समानता नहीं थी बल्कि, ‘एलबर्ट आइन्सटाइन’ और ‘स्टीफन हॉकिंग’ का तो आई. क्यू. लेवल भी एक समान याने कि १६० था जो उन्हें ‘जीनियस’ से भी अधिक ‘जीनियस’ तो साबित करता ही हैं उनके भीतर की अदम्य इच्छाशक्ति व ज्ञान प्राप्त करने की ललक को भी दर्शाता हैं क्योंकि, भीतर की जिज्ञासा जब हद से अधिक हो तो फिर भूख, प्यास, नींद सब एकदम से उड़ जाती कि हर पल बस, कुछ न कुछ खोजते रहने की सनक दिमाग में सवार रहती जो एक पल भी चैन न लेने देती फिर चाहे शरीर भी कितनी ही तकलीफ़ में क्यों न हो या आस-पास माहौल में प्रतिकूलता या सुविधाओं की कमी ही क्यों न हो कुछ जानने की लगन भटकाती रहती  

यही वजह रही होगी कि जब ‘स्टीफन हाकिंग’ को २१ साल की उम्र में ये पता चला कि वे ‘न्यूरॉन मोर्टार’ नामक उस बीमारी से ग्रसित हैं जिसमें धीरे-धीरे शरीर की मांसपेशियां और फिर सारे अंग काम करना बंद कर देते है जिसके कारण अंत में श्वास नली भी बंद हो जाने से मरीज घुट घुट के मर जाता है डॉक्टरों ने तो अपने हाथ खड़े कर दिये और उनके पिता से कहा कि, वे दो साल से अधिक जीवित न रह सकेंगे जिसे सुनकर उन्होंने तुरंत जवाब दिया कि, ‘मैं अभी दो नहीं पूरे ५० साल तक जिंदा रहूँगा क्योंकि मुझे बहुत सारे काम करने हैं’ आज जब वे ७६ बरस की उम्र में गये तो लगा कि उनको जिंदगी के बारे में कितना सटीक अहसास था और उनका खुद पर कितना बेहतरीन नियंत्रण था कि कमजोर देह होने के बावजूद केवल मस्तिष्क के दम पर ही न केवल ये बल्कि दूसरी दुनिया से भी वो जानकारी प्राप्त कर ली जिसके लिये वो इस धरती पर आये थे ।

जहाँ लोग छोटी-छोटी बीमारियों से हार जाते और निराश होकर बैठ जाते वहां उन्होंने इस कष्टप्रद रोग को न केवल हराया बल्कि, मृत्यु को भी लगातार हराते रहे और आज जब वो उनसे जीत भी गयी तो कहीं न कहीं उसे भी ये देखकर अफ़सोस हो रहा होगा कि उससे गलती हो गयी लेकिन, ये वो लोग जिनका मौत कुछ बिगाड़ नहीं पाती केवल उनके शरीर को समाप्त करती उनका अस्तित्व आदमकद होकर सदा प्रासंगिक और जीवित रहता ये काल के कपाल पर अपने अमिट हस्ताक्षर कर जाते जिन्हें मिटा पाना काल के भी वश की बात नहीं उन्होंने खुद भी कहा कि, “अपने पैरों की तरह नहीं हमेशा सितारों की तरफ देखो वो आपको काम करने की प्रेरणा देते हैं” हम भी आज आसमान के तारामंडल के मध्य उनको देखकर सदैव उनसे ऊर्जा प्राप्त करते रहेंगे... मन से नमन... अश्रुपूरित श्रद्धांजलि... L L L !!
_____________________________________________________
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
१४ मार्च २०१८

कोई टिप्पणी नहीं: