शनिवार, 10 अक्तूबर 2015

सुर-२८३ : "भूलेंगे न जगजीत सिंग को... !!!"


गज़ल’
जो कभी शान थी
महफ़िल-ए-ख़ास की
उसे बना दिया
पहचान आम-ओ-अवाम की
जिसने भी सुनी
सुनता ही रहा लज्जत गायिकी की
उनकी सरलता सादगी
बन गयी पसंद हर किसी की
हुआ मुरीद जमाना
बना लेती अपना आवाज़ मखमली
जीत लिया सारा जग
ऐसी शख्सियत थी ‘जगजीत सिंह’ की
भर नहीं सकता कभी
कोई वो ख़ाली जगह रहेगी कमी उसकी     
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मित्रों...,

या तो मिट जाइये या मिटा दीजिए
कीजिये जब भी सौदा खरा कीजिए

‘गज़ल’ को महफिलों से आज़ाद करा उसे हर लब पर सजाने का काम किया ८ फरवरी १९४१ को राजस्थान के गंगानगर में पिता ‘सरदार अमर सिंह धमानी’ के घर जनम लेने वाले ‘जगमोहन’ उर्फ़  ‘सरदार जगजीत सिंह धीमान’ ने जिसे कि हम सब ‘जगजीत सिंह’ के नाम से बेहतर तरीके से जानते-पहचानते हैं उन्होंने तो अपनी गायिकी की अलहदा अदायगी से हर किसी को अपना दीवाना बना लिया अपने प्रथम एल्बम ‘द अनफॉरगेटेबल्स’ से ही पूरा देश उनकी मखमली आवाज़ का मुरीद बन गया उस जमाने में इतनी सुविधाओं के न होने के बाद भी ये इतना अधिक हिट हुआ कि उन्होंने मुंबई में अपना पहला फ्लैट खरीद लिया और उन्होंने गज़ल गायिकी में नये-नये प्रयोग भी किये जिस पर शास्त्रीयता के अनेक पक्षधरों ने आपत्ति भी जताई क्योंकि ये उनको नाकाबिले बर्दाश्त था कि हर आम आदमी भी इस कठिन विधा को समझने का दावा करें क्योंकि कठिन उर्दू के अल्फाज़ और अपने कद की वजनदारी से रुसूख वालों ने इसे कोठियों और महलों में कैद कर रखा था लेकिन ‘जगजीत’ ने तो बड़ी ही सहजता से उसे सबके सामने यूँ प्रस्तुत किया कि कानों के जरिये वो लज्जत दिल में उतर गयी और लोगों को अंदाजा भी नहीं हुआ कब ‘गज़ल’ उसकी पसंदीदा गायिकी में शुमार हो गयी जिससे अब तक वो दूर भागता था । जब उनकी आवाज़ में लोगों ने लंबी-लंबी नज्मों को सुन आसानी से याद कर गुनगुनाना सुनना शुरू कर दिया तो परिवर्तन की इस सुखद बयार से संगीत की दुनिया में ‘जगजीत युग’ की शुरुआत हुई जिसने एक के बाद एक बेहतरीन शायरों के चुनिंदा सृजन को अपने अंदाज़ में गाकर उसे किताबों के सफे से उठाकर लोगों के जेहन में दर्ज कर दिया जो अब तलक भी उसी तरह शब्द दर शब्द अंकित हैं चाहे वो उनकी गाई हुई पहली प्रस्तुति हो या फिर अंतिम सब लोगों को मुंहजुबानी याद हैं हर एक नगमानिगार अपनी कलम से निकली शायरी को उनके मधुर स्वर से गंवा उसको सदा के लिये अमर कर देना चाहता था इसलिये उस समय के लगभग सभी कलमकारों की शायरी को उन्होंने अपनी ही तरह से पेश किया और सुनने वाले वाह... वाह कर उठा और हर घर से उनका स्वर सुने देने लगा जो इस बात का गवाह हैं कि जब कोई भी काम पूरे दिल और सच्ची लगन से किया जाता तो वो सीमा-सरहद पार कर विदेशों तक में धूम मचाता और हर कोई ये जानने को उत्सुक रहता कि आखिर ये शख्स कौन हैं जिसने यूँ हंगामा बरपा किया हैं ।

आज ही के दिन १० अक्टूबर २०११ को वो एकाएक हम सबको बीच राह में छोड़ चले गये पर हम उनको कभी न भूल पायेंगे.... वो हमेशा याद आयेंगे... :) :) :) !!!     
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१० अक्टूबर २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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