शुक्रवार, 9 अक्तूबर 2015

सुर-२८२ : "रचा संगीत का अनोखा संसार... 'रविंद्र जैन' थे महान कलाकार...!!!"

सोचा
‘संगीत’ ने
लूँ मानव अवतार
बना ‘रविंद्र जैन’ सम
बहुमुखी प्रतिभाशाली कलाकार
जिसने अंतर्दृष्टि से रचा
मधुरतम गीतों का
अद्भुत सुरीला संसार
जिसमे बसकर हर कोई
भूल जाता सारे गम अपने
होता दुनियावी झंझटों से पार
कि इसमें समाया हुआ हैं
एक से बढ़कर एक
मनहरण तानों का शाहकार
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मित्रों...,

किसी के घर जब भी कोई औलाद जनम लेती हैं तो वो ख़ुशी से फुला नहीं समाता लेकिन ऐसे में जब उसे पता चले कि बड़ी मन्नतों से मांगी उस रब के नेमत में कोई जन्मजात दोष हैं तो वो दुखी हो जाता लेकिन जब २८ फरवरी १९४४ को अलीगढ़ में पंडित ‘इन्द्रमणि जैन’ तथा ‘किरणदेवी जैन’ के घर ‘रवीन्द्र जैन’ का जन्म हुआ तो उनकी आँखें बंद थीं जिसे पिता के मित्र ने सर्जरी से खोला तथा साथ ही यह भी कहा कि बालक की आँखों में रोशनी है, जो धीरे-धीरे बढ़ सकती है, लेकिन इसे कोई काम ऐसा मत करने देना जिससे आँखों पर जोर पड़े तो पिता ने दुखी होने की जगह अपने पुत्र के लिये ऐसा काम चुना जिसमें आँखों से ज्यादा कान का उपयोग होता साथ ही अंतर्दृष्टि की अत्यधिक आवश्यकता होती और बस, उसी समय तय हो गया कि ये बालक संगीत की साधना करने के लिये ही पैदा हुआ हैं और आगे चलकर उसने अपनी विलक्षण प्रतिभा से सभी को चकित कर दिया क्योंकि वे महज एक संगीतकार ही नहीं बल्कि उतने ही आला दर्जे के गीतकार और गायक भी थे जो किसी भी विषय, किसी भी परिस्थिति और किसी भी कल्पना या दृश्य पर त्वरित सृजन करने की अनूठी क्षमता रखते थे शायद, ये कुदरत का ही करिश्मा था कि उसने भले ही उनको नेत्र सुख से वंचित किया लेकिन उन पर कलाओं की बरसात कर दी जिसने उनको कभी भी अपनी इस कमी का अहसास न होने दिया और ‘तपस्या’ फिल्म में उनके द्वारा संगीतबद्ध तराने से  उनकी संगीत यात्रा का आकलन किया जा सकता हैं जो उस वक्त ही शुरू हो गयी जिस पल उनके लिये मौसिक़ी का लक्ष्य निर्धारित किया गया---

जो राह चुनी तूने, उसी राह पे राही चलते जाना रे
हो कितनी भी लम्बी रात, दिया बन जलते जाना रे

जीवन के सफ़र में ऐसे भी मोड़ हैं आते
जहाँ चल देते हैं अपने भी तोड़ के नाते
कहीं धीरज छूट न जाये, तू देख सम्भलते जाना रे
उसी राह पे राही चलते जाना रे

तेरी अपनी कहानी ये दपर्ण बोल रहा है
भीगी आँख का पानी, हक़ीकत खोल रहा है
जिस रंग में ढाले वक़्त, मुसाफ़िर ढलते जाना रे
उसी राह पे राही चलते जाना रे ।

सच, जो उन्होंने संगीत के क्षेत्र में एक बार सफ़र शुरू किया तो फिर सतत अपना कर्म करते रहे और उनकी कुशाग्र बुद्धि का परिणाम कि वे जो कुछ भी सुनते, समझते उसे सदा के लिये अपने स्मृति के कोष में सहेज कर रख लेते यही वजह हैं कि उन्होंने अंतर के चक्षु से इस बाह्य जगत की  हर एक भावना, हर एक संवेदना और हर एक सुर को महसूस कर अपनी अंतरवीणा के तारों पर साध लिया जिससे मधुर गीत, संगीत का सृजन हुआ जो ये दर्शाता कि ‘हैं सबसे मधुर वो गीत जिसे हम दर्द के सुर में गाते हैं...’ वाकई, ये उनके मन की पीड़ा से ही उपजा गान था जिसने हर एक हृदय को छुआ चाहे फिर वो उनकी शुरूआती दौर के ‘राजश्री बैनर’ की फिल्मों में रचे हुये सीधे दिल में उतरने वाले गाने हो ‘तेरा मेरा साथ रहे... धूप हो साया हो... दिन हो के रात रहे...’, ‘हर हसीन चीज़ का मैं तलबगार हूँ...’, ‘सजना हैं मुझे सजना के लिये’,’अंखियों के झरोखों से मैंने देखा जो सांवरे... तुम दूर नजर आये... बड़ी दूर नजर आये...’, ‘वृष्टि पड़े टापुर टुपुर...’,’गीत गाता चला ओ साथी गुनगुनाता चल...’, ‘श्याम तेरी बंसी पुकारे राधा नाम...’, ‘ले तो आये हो हम सपनों के गम में... प्यार की छाँव में बिठाये रखना... ओ सजना...’, ‘गोरी तेरा गाँव बड़ा प्यारा मैं तो गया मारा आ के यहाँ रे...’, ‘ले तो आए हो हमें सपनों के गाँव में प्यार की छाँव में बिठाये रखना...’, ‘तेरी तस्वीर को सीने से लगा रखा है’, ‘कौन दिशा में लेके चला रे बटोहिया...’, ‘मुझे हक हैं...’, ‘जब दीप जले आना, जब शाम ढले आना..’  और ‘तू जो मेरे सुर में, सुर मिलाले संग गा ले तो जिंदगी हो जाये सफ़ल...’ या फिर ‘राज कपूर’ के बैनर की ‘राम तेरी गंगा मैली’ का सदाबहार कर्णप्रिय गीत-संगीत हो जिसने उनको सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का फिल्मफेयर अवार्ड मिला और फिर ‘रामायण’ धारावाहिक के मनभावन भजनों ने घर-घर अपनी पैठ बना ली उनकी इस अनवरत तपस्या ने उनको ‘पदमश्री’ समान तक दिलाया... ये उनकी जनमानस में पहुँच का ही परिणाम हैं कि जब आज वे इस दुनिया से अलविदा कर गये तो हर आँख नम हो गयी और हर कोई अपनी-अपनी तरह से उनको श्रद्धा सुमन अर्पित कर रहा हैं... वे भले ही हम सबको छोड़कर दूसरे लोक में चले गये पर, अपने पीछे जो अनमोल विरासत छोड़ गये उसके रूप में सदैव हम सबके दिलों में जीवित रहेंगे...

ॐ शांति ॐ
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०९ अक्टूबर २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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