शनिवार, 17 अक्तूबर 2015

सुर-२९० : "स्मिता पाटिल फिर याद आई... फिर दुबारा न आई...!!!"


जन्मी लिखने
अभिनय की नई इबारत
समझा न कभी
उसको महज़ तिजारत
हिंदी सिनेमा के इतिहास में
रचा नया कीर्तिमान
बनी गंभीर सिनेमा की पहचान
लिखा एक अलग अध्याय
जिसमें दर्ज हैं
कला की अद्भुत व्याख्या
कि हर किरदार, हर भूमिका
जो भी उसने निभाई
वो सब बन गयी मिसाल
जिसने बनाया ‘स्मिता’ को
अभिनेत्री बेमिसाल
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मित्रों...,
 
“स्मिता पाटिल तो किसी शापित देवता के कांपते हाथ में पकड़ी पूजा की थाली से धरती पर गिरा एक फूल था और मात्र इकतीस की वय में उस देवता का श्राप पूरा हुआ और वह लौट गई”।
--------------‘जयप्रकाश चौकसे’

कितना सच लिखा गया हैं सिने जगत की उस अद्भुत अभिनय प्रतिभा की धनी महान अभिनेत्री के बारे में जिसका आज जन्मदिन हैं जिन्होंने भारतीय सिनेमा को अपने सजीव अभिनय से एक से बढ़कर एक किरदारों के नगीने दिये जिससे कि फ़िल्मी खज़ाना विस्तृत हुआ और उसने एक नये तरह के सिनेमा का आगाज़ भी किया जिसे ‘कला सिनेमा’ के नाम से जाना गया और इसमें अभिनय करने वाले कलाकारों को हीरो-हीरोइन नहीं बल्कि अभिनेता-अभिनेत्री का दर्जा हासिल हुआ जो अपनी चमक-दमक से केवल रजत परदे की खूबसूरती को बढ़ाने का काम नहीं करते बल्कि अपने चेहरे की भाव-भंगिमा से हर बार अभिनय का एक नया अध्याय लिखते और इस तरह हिंदी सिनेमा ने भी अपने आपको उनके अनुरूप ढाल लिया जिससे कि उस तरह का अभिनय करने वाले कलाकारों की एक अलग जमात तैयार हुई जिसमें ‘स्मिता पाटिल’ का नाम शीर्ष पंक्ति में ही लिखा मिलेगा क्योंकि उन्होंने फिल्मों में काम करने की शुरुआत ही इस तरह की सहज-सरल और साधारण लगने वाली लेकिन अभिव्यक्ति के दृष्टिकोण से उतनी ही असाधारण फिल्मों में काम किया जिसे देखकर सिनेमा के चाहने वालों को न सिर्फ एक नये तरह के सिनेमा का अहसास हुआ साथ ही साथ उनको अपनी ही तरह के फ़िल्मी कलाकारों को अपनी ही तरह की जिंदगी जीते देखने का एक अलग अनुभव भी हुआ क्योंकि स्मिता पाटिल, शबाना आज़मी, अमोल पालेकर, नसीरुद्दीन शाह, ओम पुरी, फारुख शेख़ आदि उसी तरह के कलाकार थे जो दिखने में जितने ही सादा थे अभिनय में उतने ही पेचीदा जिनका हर अंदाज़, हर एक अदा अपनी ही तरह की अलहदा थी जिसे देखकर किसी को भी कभी उसमें अभिनय नजर ही नहीं आता बल्कि यूँ लगता कि जैसे वो पर्दे पर दिखाये जाने पात्रों को जानते-पहचानते हैं ये तो उनके घर के आस-पास ही रहने वाले लोगों जैसे दिखते हैं और बस, सभी ने उन्हें इस तरह से अपनाया कि उन्होंने फिर जिस किसी फिल्म में काम किया उसे हिट बनाया और प्रशंसकों के साथ-साथ पुरस्कारों का भी ताँता लगा दिया और इस तरह हम सबको अभिनय का वास्तविक अर्थ भी समझा दिया

यथार्थवादी सिनेमा की पुरोधा ‘स्मिता’ सचमुच एक यथार्थवादी अभिनेत्री थी जिन्होंने यूँ तो अपने कॅरियर का आगाज़ ‘दूरदर्शन’ में न्यूज रीडर की तरह किया था पर, अचानक कला सिनेमा के जनक कहलाये जाने वाले ‘श्याम बेनेगल’ की नजर उन पर पड़ी जो उस वक्त ‘चोर चरणदास’ नामक एक अनूठी फिल्म बनाने की तैयारी में लगे हुये थे तो उनको लगा जैसे कि उनकी तलाश पूरी हो गयी क्योंकि उन्हें जिस तरह के चेहरे के जरूरत थी वो उन्हें ‘स्मिता’ में नजर आया तो इस तरह हिंदी सिनेमा में दो बेमिसाल प्रतिभाशाली फ़नकारों का पदार्पण हुआ जिन्होंने साथ मिलकर इस अभिनय की दुनिया को नायाब शाहकार दिये जो आज तलक भी पारखियों की पहली पसंद बने हुए हैं इसके बाद १९७५ में ही ‘निशांत’ आई जो वाकई ‘स्मिता’ के जीवन की निशा का अंत कर एक नया प्रभात लाई और उसके बाद ‘भूमिका’ एवं ‘मंथन’ ने उन्हें पूरी तरह से स्थापित कर दिया क्योंकि ‘भूमिका’ फिल्म में अपनी दमदार भूमिका के लिये उन्हें उस साल का ‘राष्ट्रीय पुरस्कार’ भी प्राप्त हुआ  फिर तो जो सिलसिला शुरू हुआ तो वो 'चक्र', 'आक्रोश', 'गिद्ध', ‘रावण’, 'सदगति' , 'अल्बर्ट पिंटो को गुस्सा क्यों आता है' और 'मिर्च-मसाला' जैसी फ़िल्मों तक जारी रहा ।

कला फिल्मों में अपने बेमिसाल अभिनय से सबको अपना मुरीद बना लेने वाली ‘स्मिता’ ने व्यवसायिक फिल्मों में भी अपना कदम रखा और वहां भी अपने अभिनय से सफलता के झंडे गाड़ दिये जिसकी वजह से हम सबको उनके अभिनय के हर रंग देखने को मिले जब 'सुबह' , 'बाज़ार', 'भींगी पलकें', 'अर्थ',देवशिशु’, 'अर्धसत्य' और 'मंडी'  जैसी कलात्मक और 'दर्द का रिश्ता' , 'कसम पैदा करने वाले की', 'आखिर क्यों', 'ग़ुलामी', 'अमृत' , मेरा घर मेरे बच्चे , 'नजराना', ‘शक्ति’, ‘नमक हलाल’, ‘घुंघरू’, 'डांस-डांस' और ‘वारिस’ जैसी व्यवसायिक फ़िल्में हमारे सामने आई जिनमें से ‘वारिस’ तो उनकी अंतिम फिल्म साबित हुई क्योंकि इसकी डबिंग और रिलीज़ के पूर्व ही वे अचानक केवल ३१ साल की अल्पायु में ही हम सबको छोड़कर चली गयी जिसकी पूर्ति आज तक कोई भी नहीं कर सका तभी तो उनके जाने के इतने साल बाद भी हम उनको याद करते और आज उनके जन्मदिवस पर यही कहते कि न हुआ, न होगा कोई तुमसा... ओ ‘स्मिता’... जन्मदिन मुबारक... :) :) :) !!!            
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१७ अक्टूबर २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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