बुधवार, 7 अक्तूबर 2015

सुर-२८० : "हर इंतजार की किस्मत में परिणाम नहीं होता...!!!"

हर ‘अहिल्या’ को
‘श्रीराम’ नहीं मिलते
हर ‘रुक्मणी’ को
‘श्याम’ नहीं मिलते
बैठी रह जाती
समय की शिला पर
न जाने कितनी
‘नायिकायें’ 
राह तकती पर...
हर ‘इंतजार’ को
‘परिणाम’ नहीं मिलते
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मित्रों...,

कहने को तो कहते हैं कि ‘सब्र’ और ‘इंतजार’ का फल सदैव मीठा होता लेकिन ये जरूरी तो नहीं कि वो हर किसी को ही मिले किसी-किसी के उपर ये सारी की सारी उक्तियाँ और उपदेश सटीक नहीं बैठते पर, फिर भी वो उम्मीद का दामन थामे उस पल तक पलकें बिछाये बैठे रहते हैं जब तक कि वो नाउम्मीद में न बदल जाये आखिर कोई कब तलक और किसी सीमा तक उन्हीं हालातों में स्थिर रह सकता जो कभी भी किसी भी मौसम में परिवर्तित नहीं होते मान लो किसी तरह उसने अपने आपको साध भी लिया तो अंतिम क्षणों में आकर तो उसे ये मानना ही पड़ता कि ये सभी बातें और कहानियां जिनसे उसने अपने आस के दीपक को जलाकर रखा सभी मिथ्या हैं क्योंकि अगर ये सत्य होती तो उसके साथ भी तो जीवन के किसी मोड़ पर कुछ अंशों में ही सही साकर तो होती पर, साँसों का इधन खत्म होने को आ गया और मन की साध तो पूरी न हुई जिसके न जाने कितने ही जतन किये अपना आप तक गंवा दिया क्योंकि सब से सुना कि क़िस्मत या तकदीर तो उनके लिये हथियार हैं जो कुछ भी करना नहीं चाहते लेकिन जो अपने हाथों से अपन भाग्य स्वयं लिखते वे कब इन खोखली बातों का सहारा लेते पर, कुछ जिंदगियों को देखो तो लगता कि न तो हाथ की लकीरें, न ही जनमपत्रिका की लेखनी, न ही सितारों का फेर बदल या फिर न ही मेहनत की कुंजी ही उनके सौभाग्य का ताला खोल पाती तो ऐसे में मन को दिलासा देने या उनको समझाने ये कह दिया जाता कि ये सब प्रारब्ध या पिछले जनम का कर्म फल हैं लेकिन क्या ये भी शतप्रतिशत सत्य हैं ???

कोई उसे चाहे कुछ भी कहे कि तुम्हारी साधना में ही कोई कमी हैं या फिर तुमने पूर्ण समर्पण से काम नहीं किया या ये कहे कि किस्मत ही खराब हैं पर, जिस के उपर गुजरती हैं केवल वही जनता हैं कि उसने किस तरह से अपनी जिंदगी को बदलने हर तरह का परिश्रम किया और साथ ही जो कुछ भी करने को कहा गया सब कुछ एक सकारात्मक सोच के साथ किया फिर भी न कुछ मिला तो यही समझ में आता कि हर इंतजार की किस्मत में परिणाम नहीं होता... सबको अपनी मेहनत का फल नहीं मिलता... :( :( :( !!!      
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०७ अक्टूबर २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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