शनिवार, 3 अक्तूबर 2015

सुर-२७६ : 'काव्यकथा --- पलटवार...!!!"


___//\\___ 

मित्रों...,

काव्या’ बदहवास दौड़ती हुई ‘ऋषिता’ के घर आई और तुरंत उसके कमरे में पहुंची तो उसे इत्मीनान से टी.वी. देखते हुये पाकर उसे बड़ा आश्चर्य हुआ क्योंकि जब वो कॉलेज पहुंची तो उसकी सहेलियों ने उसे बताया कि अभी-अभी उसकी क्लोज फ्रेंड ‘ऋषिता’ की कॉलेज के तथाकथित असामाजिक तत्व कहलाये जाने वाले बदमिजाज अमीरजादे ‘कुनाल’ से किसी बात पर बहस हुई जिसके बाद वो अचानक घर चली गयी यार, हम  समझ ही नहीं पाये कि आखिर क्या हुआ ???

ये सुनना था कि ‘काव्या’ उलटे पांव उसके घर आई और जब उसे बेफ़िक्र बैठे देखा तो वो सारा वाकया पूछा तब उसने यूँ बताया---
  
●●●--------
कहने लगे
वो आज हमसे
शादी-ब्याह विदाई के
चलन बड़े पुराने हैं
अब तो मेरी जान
'लिव इन' के जमाने हैं...
जब तक मन हैं
खुलेआम साथ-साथ रहो
जो मर्जी आये करो
जो कभी अगर न जमे तो
टाटा... बाय... बाय कहकर
अपनी-अपनी राह चलो

जी में तो आया कि
इक करारा अभी जमाये
पर, तभी हमें घुट्टी में पिलाये
अपने संस्कार याद आये
फिर हमने भी प्यार से
मखमल में लपेटकर जुमले लगाये
कि पहले आप अपने ही घर से
इसका शुभारंभ कराये
अपनी बहन-बेटी को इसमें
पारंगत कराये
बहू को वापस घर भिजवाये
अपने खानदान को ठेंगा दिखाये
फिर हमारे पास आये
कहने को भले लगे सबको
कि अपने संस्कार बड़े पुराने हैं
पर, सुन लो रस्मों रिवाज़ भी...
इस दुनिया के निभाने हैं
अपने पहचान चिन्ह बचाने हैं... !!!
---------------------------------------●●●

सुनकर ‘काव्या’ ने उसकी झप्पी और पप्पी लेकर कहा, ये तूने बड़ा अच्छा जवाब दिया जब तक इनको इस तरह से अपनी कही बातों को अपने ही घरवालों पर अमल करने का ताना न देंगे इनकी आत्मा को चोट न लगेगी काश, अब भी वो समझ जाये तो ठीक वरना, एक दिन तो वही होगा जो ऐसे लोगों का अंजाम होता हैं और दोनों साथ मिलकर टी.वी. देखने लगी
___________________________________________________
०३ अक्टूबर २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
--------------●------------●

कोई टिप्पणी नहीं: