बुधवार, 14 अक्तूबर 2015

सुर-२८७ : "काव्यकथा --- मंजिल के रास्तों पर... मील के पत्थर नहीं होते...!!!"


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मित्रों...,

‘रूहीना’ बड़ी उदास होकर अपनी माँ से बोली, कि आखिर किस दिन मैं अपने सपनों को पूरा कर पाऊँगी इतने दिन हो गये लेकिन आज तक वो दिन नहीं आया जो उसे साकार कर मुझे मेरे मुकाम से मिला दे... मम्मी, अब मुझसे और इंतजार नहीं होता... तो माँ ने बड़े स्नेह से उसे यूँ समझाया---
   
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मंजिल के रास्तों पर
मील के पत्थर नहीं होते
कदम चलते ही रहते
कहीं पड़ाव न होते
जब ठान लिया कि
पाना ही हैं वो मुकाम
जिसके सपने देखें
आँखों ने सुबह-शाम
तो फिर मुसाफ़िर
सफर में आराम न करते
किसी भी बाधा
या मुश्किल से नहीं डरते
हर कठिनाई को पार करते
अपने आप पर भरोसा रखते
तभी तो काम्याब होते
एक बार जो सोच लिया
फिर उसे हर हाल पूरा करते
खुद से एक ही बात कहते
वादा न भुलाना कभी अपना
जो खुद से किया निभाना
इसलिये हर दर्द भी हंसकर सहते ।।
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इसे सुनकर ‘रुहिना’ ने अपनी माँ से वादा किया कि अब वो तब तक नहीं रुकेगी जब तक अपनी मंजिल तक नहीं पहुँचती... क्योंकि किसी को नहीं पता कि कब, कहाँ और किस दिन वो अपने लक्ष्य को हासिल करेगा इसका कोई नियत समय या दुरी थोड़े न हैं... और फिर मन में संकल्प को दृढ़ कर निश्चिंत होकर सो गयी... :) :) :) !!!  
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१४ अक्टूबर २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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