रविवार, 25 अक्तूबर 2015

सुर-२९८ : "काव्यकथा --- प्रेम क्या होता हैं???"


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मित्रों...,

‘कुनिका’ सुबह का अख़बार पढ़ रही थी कि अचानक उसकी नजर एक खबर पर गयी जिसमें लिखा था ‘अपने प्यार को पाने के लिए एक लड़के ने शादी के मंडप पर जाकर दुल्हन की हत्या की’ तो उसे बहुत बुरा लगा और उसके जेहन में ख्याल आया कि क्या ये सचमुच प्रेम हैं???

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बैठ अँधेरे में
तन्हां शमां जलाकर
सोच रही थी कि
आखिर, 'प्रेम' होता क्या हैं ???

जिसके लिये
हर कोई दीवाना होता हैं
जिसे पाने की
हसरत हर कोई रखता हैं
जिसके ख्वाब
हर एक दिल देखता हैं

सदियां बीत गई
न जाने कितने लोग बावले हुये
राज़ ये पाने के लिये
मुहब्बत मिटने के लिये हैं
या मिटाने के लिये

अभी ख्यालों की
दुनिया में खोई ही थी कि
तभी इक परवाना उड़ता हुआ आया
शमां के उपर लगा मंडराने
ये जानकर भी कि उसकी आग में
जलकर ख़ाक हो जायेगा
उसका वजूद राख हो जायेगा

मगर, वो खुद को मिटाकर भी
इश्क़ की आग में जलता हैं
बड़ी ख़ामोशी से मुहब्बत की मिसाल देता हैं
ये वो शय हैं जिसमें अपना आप
जलाना पड़ता हैं
ख़ुद को भस्मीभूत कर के
‘प्रेम’ में समाना होता हैं
अपना अस्तित्व भूला
किसी का हो जाना पड़ता हैं

इतनी शिद्दत हो पाने कि
तब प्यार अमर होता हैं
आत्मा का आत्मा से मिलन होता हैं
प्यार का ये आत्मिक स्वरूप ही तो
सच्चा वाला प्यार होता हैं ।।
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‘प्रेम’ के असली मायने जान वो समझ गयी कि जो भी इस तरह की हरकत करते हैं दरअसल वे इसे समझते ही नहीं केवल देह के रासायनिक परिवर्तन को ही ‘प्यार’ का नाम दे देते हैं इन्हें पता नहीं कि प्रेम में समर्पण ही काम करता हैं... उसे हर हाल में पाने की इच्छा तो महज मनोविकार हैं जिससे किसी का भी हित नहीं हो सकता उसने तुरंत इस घटना से उपजे अपने विचारों का आलेख लिख कर अख़बार को पोस्ट कर दिया   
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२५ अक्टूबर २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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