गुरुवार, 22 अक्तूबर 2015

सुर-२९५ : "रावण को जलाना... महज एक बहाना... बुराई को मिटाना...!!!"

स्वर्ण नगरी में रहकर भी
वो स्वर्ण नही बन पाया
अहंकार की आग में जल
सर्वस्व अपना गंवाया
धन वैभव यश बल
कुछ भी काम न आया
ज्ञान बुद्धि विवेक मिटे
जब घमंड मन में समाया
मन था विष भरा तो
‘अमृत’ भी बचा न पाया
वानर संग वनवासी राम ने
लंकापति रावण को हराया
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मित्रों...,

हर बरस नवरात्र के परम पावन नौ दिनों का अंत ‘विजयादशमी’ के विशाल आयोजन के रूप में होता जिसे कि समस्त संसार में लंकापति ‘रावण’ के पुतले का दहन कर मनाया जाता जिसके साथ ही तरह-तरह के तर्कों-कुतर्कों का दौर भी शुरू हो जाता कि ‘रावण’ को इतने सालों से अनवरत जलाने के बाद भी वो तो अब भी जिंदा हैं क्योंकि हम उसको बुराइयों का प्रतीक मानते और उसके दस सर भी असलियत में दस अवगुणों का परिचायक हैं जो किसी भी युग या किसी भी अवतार के आने के बाद भी समूल नष्ट नहीं हो सकते क्योंकि बिना बुराई के अच्छाई की परख भी तो नहीं होती तभी तो सभी तरह की पौराणिक कहानियों में यदि कोई ‘नायक’ हैं तो साथ उसके किसी न किसी ‘खलनायक’ का पात्र भी जरुर होता जो ये दर्शाता कि सत्य-असत्य से मिलकर ही दुनिया के मायाजाल को बुना गया हैं अतः जब तक कि अंधकार से परिचय न हो तो भला उजाले की परख किस तरह से होगी तो ये तो संभव नहीं कि दुनिया से पूरी तरह से काम, क्रोध, झूठ, फरेब, धोखा, मोह, लालच जैसे दुर्गुणों का खात्मा हो जाये पर, इसका मतलब ये कतई नहीं कि इन्हें मिटाने का प्रयास ही न किया जाये और इसी उद्देश्य से हम साल दर साल इस परंपरा का सतत निर्वहन करते आ रहे हैं जो कि जनमानस के समक्ष ये गाथा दोहराता कि ये बुराइयाँ कितनी भी सक्षम या शक्तिशाली क्यों न हो लेकिन अंततः इन्हें पराजित होना ही हैं तो क्यों न हम किसी ‘राम’ का इंतजार करने की बजाय अपने भीतर बसी इन दुर्भावनाओं का स्वतः ही दमन करें लेकिन फिर भी विविध मानसिकता से भरे मानवों की इस दुनिया में भांति-भांति के लोग हैं तो कोई इसे अपनाता तो कोई नकारता यही कारण हैं कि हर पीढ़ी तक ये अमूल्य संदेश वहन करने के लिये ही हम इस पर्व को हर साल मनाते और रावण को जलाते जो महज एक बहाना हैं असल बात तो बुराइयों को ही जड़ से मिटाना हैं दरअसल ‘दशहरा’ शब्द का शाब्दिक अर्थ भी यही कहता कि हम सब अपने अंतर में रहने वाली दस बुराईयों को हरने की कोशिश करें तभी तो विजयी बन कर इस त्यौहार में शामिल होकर इसे सार्थकता प्रदान कर पायेंगे वरना तब तक कहने वाले भी इन्ही जुमलों को दोहरायेंगे कि साल दर साल ‘रावण’ तो जलकर भी नहीं मरता जबकि वो तो उसी समय मर गया लेकिन अपनी बुराइयाँ तो यहीं छोड़ गया जिसे हमें ही समाप्त करना हैं

‘रावण’ कहने को तो स्वर्ण से निर्मित लंका नगरी का शक्तिशाली महाराजा था लेकिन उसके शरीर में ब्राम्हण पिता और राक्षसी माता दोनों का रक्त होने के कारण दोनों ही तरह की प्रवृतियों का द्वन्द सदैव चलता रहता था तभी तो वो एक तरफ महाज्ञानी प्रकांड पंडित महाबलशाली परम शिव भक्त कुशल राजनीतिज्ञ था तो दूसरी तरफ उसके भीतर अनेक तरह के दुर्गुणों का भी वास था जिसकी वजह से वो अपने आप पर नियंत्रण नहीं रख पाता था तभी तो इतनी सारी अच्छाइयों के बाद भी वो अपनी बुराइयों से हार गया और अपने साथ-साथ अपने कुल का भी विनाश कर बैठा जबकि उसे तो विजयी होने का वरदान प्राप्त था और साथ ही उसकी नाभि में अमृत तक समाया था जिसकी वजह से वो अमर रह सकता था लेकिन ऐसा हुआ नहीं क्योंकि उसकी ये सब शक्तियाँ भी उसके किसी भी काम नहीं आ पाई जो हमें ये बताती कि यदि किसी तरह अपनी काबिलियत से हमने कोई वरदानी शक्ति हासिल भी कर ली तो अगर उसे साधना नहीं आया तो वो हमको फल देने की जगह हमारा सर्वनाश कर सकती हैं यही तो उस अहंकारी दंभी सभी देवताओं तक को पराजित कर उन पर हुकुम चलाने वाले लंकापति ‘रावण’ के साथ भी हुआ जिसने अपनी भक्ति से भगवान् शंकर तक को प्रसन्न कर लिया था और अपने तपोबल से सृष्टि रचयिता ब्रम्हा तक से वरदान प्राप्त किया था पर, इन सारी खूबियों को उसे संभालना नहीं आया जिसकी वजह से उसके कुल का नाश हुआ फिर भी घर-घर प्रतिदिन ‘श्रीरामचरितमानस’ का पाठ कर हमने इस कथा से उस सार को ग्रहण नहीं किया इसलिये हमें प्रतिवर्ष ‘रावण दहन’ कर इसे याद करना पड़ता और फिर अगले दिन भूल जाने की अपनी आदत के तहत अपने काम में लग जाना तो फिर अगले साल तो फिर से यही क्रम पुनः दोहराना ही पड़ेगा न तो अगले साल हम क्या करना चाहते ये हमें स्वयं ही तय करना हैं ।

तब तक ‘रावण’ को जलाना सिर्फ़ औपचारिकता हैं जब तक कि उसका सही मतलब हम नहीं समझते इसलिये उस पर प्रश्नचिन्ह लगाने की जगह हमें चाहिये कि हम उसकी जड़ में जाने का प्रयास करें और अपनी दस बुराइयों को जीत कर ‘विजयादशमी’ को अर्थ प्रदान करें... वरना, तब तक यही कहे... बुराई पर अच्छाई, असत्य पर सत्य, अधर्म पर धर्म की विजय के पर्व ‘दशहरा’ की सबको अनंत शुभकामनायें... जय श्रीराम... :) :) :) !!!         
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२२ अक्टूबर २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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