शनिवार, 24 अक्तूबर 2015

सुर-२९७ : "कुर्बानी का पर्व... 'मोहर्रम' !!!"

देकर कुर्बानी
भले ही चले गये
पर, जाने वाले
दिलों में बस गये
हर बरस ‘मोहर्रम’ पर 
वो शहीद याद आते
उनके लिये सब आसूं बहाते
कि दूसरों के लिये
अपना आप ही भुला दिया
सच...
दीन की राह में
जिसने भी खुद को
अल्लाह को भेंट किया
उसे रब ने अपना मान लिया
बना ‘पैगंबर’ खुदा का दर्जा दिया
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मित्रों...,

सत्य, धर्म और ईमान की राह को सबसे कठिन इसलिये कहा गया हैं कि इस पर चलने वाले को न सिर्फ रास्ते में मिलने वाली तमाम मुश्किलों का सामना करना पड़ता हैं बल्कि वक़्त आने पर अपने आपको भी फ़ना कर देने के लिये हरदम तैयार रहना पड़ता हैं और जो ये कर पाते वे उस ख़ुदा के प्यारे कहलाते, इस दुनिया में सदा के लिये अमर हो जाते लोग और जब-जब उनकी शहादत का दिन आता लोग उनको याद कर आंसू बहाते कुछ ऐसा ही हुआ था ‘मोहर्रम’ में जब मज़हब के लिये, उसके उसूलों को बरक़रार रखने के लिये ‘हजरत मोहम्मद’ के नवासे ‘इमाम हुसैन’ ने आज से हजारों साल पहले ‘करबला’ में अपने परिवार सहित ज़ुल्मों के आगे हार न मानते हुये अपनी जान दे दी और आज भी उनके अनुयायी उनकी इस कुर्बानी को भुला नहीं पाये इसलिये तो वे उनके कष्टों को महसूस करने अपने आपको हर तरह की पीड़ा देते और इस बात का गम मनाते कि काश, वे भी उस समय मौजूद होते तो अपने आपको मिटा कुछ अंशों में ही सही उनकी सहायता तो कर पाते बलिदान की ये कहानी हम सबको ये भी बताती कि धर्म चाहे कोई भी या युग चाहे कितने भी बदल जाये लेकिन हमेशा ही ‘अधर्म’ ने किसी अत्याचारी का रूप लेकर ज़ुल्मों-सितम, बेईमानी, झूठ, फरेब जैसे सभी हथियारों को अपनाकर ‘धर्म’ को हानि पहुँचाने की कोशिश की हैं ऐसे में उससे लड़ अपने वज़ूद को कायम रखने की ये जद्दो जहद सदियों से जारी हैं जिसमें भले ही कभी ये नजर आये कि ‘शैतान’ ने ‘फ़रिश्ते’ को मात देकर जीर हासिल कर ली हैं लेकिन अंततः विजेता का ताज तो ‘सत्य’ के सर पर ही पहनाया जाता

जीवन ईश्वर की सबसे बड़ी नेमत मानी गयी हैं जिसे किसी दूसरे की खातिर लुटा देना सबके बस की बात नहीं केवल वही ये काम कर सकते जिनका आत्मबल मजबूत होता, जिनको सच्चाई से प्यार होता और जिनकी रगों में हिम्मत का लावा बहता तभी तो सब ऐसा कर पाने की हिम्मत नहीं दिखा पाते केवल चंद में ये जज्बा होता जिसकी वजह से वे भले ही असमय हम सबको छोड़कर चले भी जाये लेकिन हम सबके दिलों में सदा के लिये जीवंत हो जाते उनकी गाथा पढ़कर हम भी न सिर्फ प्रेरणा बल्कि कुछ कर गुजरने का नया जोश भी पाते तो दैनिक कामों में लग कम होने लगता तो आज हम भी गम के इस पर्व का हिस्सा बन गिले शिकवे मिटा दुखों में सहभागी बने... मोहर्रम के ताजिये साथ मिलकर उठाये बहते अश्कों को पोंछ सिर्फ़ इंसान बन जाये... :) :) :) !!!  
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२४ अक्टूबर २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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