बुधवार, 21 अक्तूबर 2015

सुर-२९४ : "आई नवम रात्रि... जय माँ सिद्धिदात्री...!!!"


जगतमाता की 
नौ शक्तियाँ...

शैलपुत्री
ब्रम्हचारिणी
चंद्रघंटा
कुष्मांडा
स्कंदमाता 
कात्यायनी
कालरात्रि
महागौरी
सिद्धिदात्री
करती उजियारी
पाप भरी सर्वरात्री
आई उनके विदा की घड़ी
लाई आँखों में आंसुओं की लड़ी
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मित्रों...,
 
शारदीय नवरात्र में माँ का आगमन यूँ होता कि जगह-जगह विविध रूपों में विराजमान उनकी अप्रतिम प्रतिमाओं और सुंदरतम झांकियों को देख लगता जैसे वे साक्षात् अपने परिवार सहित धरा में स्थित अपने मायके में रहने चली आई हो और इन नव दिनों में संपूर्ण नगर की सजावट व भक्तों के हर्षोल्लास से सारी रात भक्ति भावना से भर भजन गाकर जागरण करने से अहसास ही नहीं होता कि उनकी उपासना करते-करते नौ दिन बीत गये वो तो जब अंतिम दिवस आता और पूर्णाहुति कर विसर्जन करते तो आँखों में अपने आप ही आंसू आ जाते जो अंतर्मन के मलिनता को बहाकर अपने साथ ले जाते तो शेष रह जाती केवल देवी के प्रति मन की सच्ची अनुभूति जिसमें उनको विदा करने का दुःख रहता जो ये बताता कि हम उनके अंश उनके बिना अपने आपको अकेला महसूस करते और जब वो हमारे साथ होती तो हम खुद को ताकतवर समझते शायद, इसकी वजह ये हैं कि दुर्गा तो शक्ति का देवीय अवतार मानी जाती जिनसे सभी देवतागण तक बलवान बनते और जब-जब धरती पर कोई भी राक्षस या आसुरी शक्ति अपनी सत्ता जमाने का प्रयास करती तो सभी देवता लोग भी जगतमाता की ही शरण जाते जो अपने अस्त्र-शस्त्र और सेना के साथ मिलकर उनका संहार करती इस तरह हम हर बार संकट आने पर उनकी ही शरण में जाते और वे भी हमारी पुकार सुनकर दौड़ी चली आती और हमारे सभी कष्टों को दूर कर हमें सुखी बनाती

सच, जगत्जननी का साथ होना ही अपने आप में हमें ऊर्जा देने के लिये पर्याप्त हैं जिस तरह माँ के होने पर शिशु अपने आपको सुरक्षित महसूस करता कुछ यूँ हम सबको लगता इसलिये तो हम उनके हर रूप की उपासना कर उनकी भक्ति करते जो हमारे आत्मबल को मजबूत करती तभी तो हम हर तरह की मुश्किलों से लड़ने के लिये खुद को तैयार कर पाते जो जीवन के रास्तों पर हमको आजमाने आती ही रहती और इन कठिन परिस्थितियों से निकलकर ही तो हम स्वर्ण की भांति निखरते जाते और फिर जब दुनियावी मायाजाल में फंसकर हमारी शक्ति क्षीण होने लगती तो हम पुनः उनसे प्रार्थना करते कि माँ हमको सत्य मार्ग पर चलने की हिम्मत देना जिससे कि हम बुराइयों से लड़ सके असत्य को मिटा सके, दुश्मनों को हरा सके यही तो इन सभी धार्मिक पर्वों का औचित्य होता जिनसे हम अपनी परम्पराओं व संस्कृति के साथ-साथ अपनी जडो से भी जुड़े रहते हैं

आज नवमी की रात माँ सिद्धिदात्री से यही विनती हैं कि वो इस दुनिया से सभी राक्षसों का खात्मा कर अपनी संतान की रक्षा करें... कभी किसी निर्दोष को किसी जुल्मी का शिकार न बनने दे उसकी सहायता करें... यदि ये भी संभव नहीं हैं तो केवल इतना करें कि उसके अंदर इतना सामर्थ्य पैदा करे कि वो निर्भय होकर इन सबका मुकाबला कर सके... जय माता दी... चिंता दूर करो सबकी... :) :) :) !!!   
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२१ अक्टूबर २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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