बुधवार, 11 जुलाई 2018

सुर-२०१८-१८१ : #विश्व_जनसंख्या_दिवस_मनाते #आबादी_पर_न_मगर_काबू_पाते



११ जुलाई १९८९, जब सयुंक्त राष्ट्र ने ‘विश्व जनसंख्या दिवस’ मनाने का निर्णय लिया उस वक़्त विश्व की जनसंख्या ५ अरब के करीब थी और तब से आज तक देखे तो हम लगभग २९ वर्ष से इसका आयोजन कर रहे तो उस तरह से आबादी पर कुछ तो नियंत्रण होना था लेकिन, आज दुनिया की जनसंख्या बढ़कर ७६० करोड़ हो चुकी हैं जिसमें से १३५ करोड़ तो ‘भारत’ में ही निवास करते हैं याने कि विश्व का १७.५ प्रतिशत तो इस हिस्से में निवास करता हैं जो वाकई बेहद चिंतनीय हैं क्योंकि, ये अनुमान लगाये जा रहे हैं कि बहुत जल्द-ही हम जनसंख्या के मामले में ‘चीन’ को पीछे छोड़कर नंबर वन की पोजीशन पर पहुँच जायेंगे जो कि गर्व की बात नहीं होगी ऐसे में ये प्रश्न उठता कि फिर इस दिवस को मनाने का औचित्य क्या यदि हम इसकी महत्ता पर ही फोकस नहीं कर रहे और किसी आम दिन की तरह इसे यूँ ही व्यतीत होने देते हैं

जबकि, इसे मनाये जाने का उद्देश्य तो संपूर्ण जगत में जनसंख्या पर काबू पाना हैं ताकि, हम प्राकृतिक संपदा और मानव निर्मित संसाधनों का सही तरीके से उपयोग करते हुये बिना किसी परेशानी या कमी के जी सके परंतु, लगातार बढ़ती संख्या हमें लगातार सचेत कर रही कि यदि हमने अभी खुद को संभाला या अन्य लोगों को जागरूक नहीं किया तो वो दिन दूर नहीं जब जीवन के लिये संघर्ष शुरू होगा जिसमें विजय उसे ही हासिल होगी जो शक्तिशाली होगा यदि इसके बाद भी हमने इसे गंभीरता से नहीं लिया तो फिर प्रकृति स्वयं ही अपने तरीके से इसे संतुलित करेंगी और यदि उसने ये निर्धारित किया तो वो किसी भी तरह हमारे हित में नहीं होगा क्योंकि, उसके चयन में कोई भी शामिल हो सकता और समूल नष्ट हो सकता परंतु, यदि हम सबने सोच-समझकर इस पर लगाम लगाने का प्रयास किया तो फिर इस तरह की खतरनाक स्थिति से खुद को बचा सकते हैं

जो इतना भी मुश्किल नहीं केवल, हमें ये सोचना कि इसके लिये विकल्प क्या होंगे जिससे कि जनसंख्या विस्फोट को रोका जा सके साक्षरता दर से ये उम्मीद बंधी थी कि लोग स्वयं ही समझदारी से ये काम कर लेंगे पर, अब हम खतरे के निशान तर्क आ गये तो जरूरी हैं कि उन उपायों को अमल में लाये जो इसे सीमित बनाने में मदद कर सकते जिसमें प्रथम तो जन्म दर को घटना हैं दूसरा, जो इससे अनभिज्ञ या सोये हुये उनको जगाना हैं और तीसरा कि देर होने से पहले ही सबको ये बताना हैं कि पृथ्वी, धरती, आसमान एक हैं और हम अनेक ऐसे में सबको समान रूप से उनका हिस्सा तभी मिल सकता जब वे अपने बढ़ते विस्तार को रोक ले अन्यथा, विश्व जनसंख्या दिवस आते रहे हमें आंकड़ें बताते रहेंगे और हम एक दिन उन पर विचार कर के पुराने ढर्रे पर ही चलते रहेंगे तो फिर किस तरह से इसके निर्धारित लक्ष्य को पा सकेंगे सोचो... सोचो... इससे पहले कि धरती चीत्कार कर उठे और आसमान सर पर गिर पड़े... क्योंकि, हम नहीं लेंगे फैसला तो फिर प्रकृति को ही लेना पड़ेगा क्या हम इसके लिये तैयार हैं ???            

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
११ जुलाई २०१८

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