जगत के नाथ...
‘जगन्नाथ’
‘राधा’ और ‘कृष्ण’
समाये
जिसमें एक साथ
पुरी में रहते
भाई-बहन
‘बलभद्र’
और ‘सुभद्रा’
सहित
लेकर हाथों में
हाथ
आषाढ़ शुक्ल
द्वितीया को
बैठकर रथ में
मंदिर से आते बाहर
देने भक्तजनों
को आशीर्वाद
आगे-आगे चले
बड़े भाई की सवारी
‘तालध्वज’ रथ
में लगती प्यारी
चलती बीच में लाड़ली-दुलारी
बहना
‘देवलन’ रथ पर
ठाठ से बैठकर
पीछे-पीछे गरुड़
ध्वज वाला ‘नंदीघोष’ रथ
डोर जिसकी थाम
लगाते हुये नारे
भीड़ भक्तों की ‘जगन्नाथ’
को लेकर आती
दूर-दूर से आते
श्रद्धालु करने दर्शन
देखकर उनकी मनमोहक
छवि
तर जाते
दर्शनार्थियों के प्यासे नयन ॥
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‘भारत’ पर्वों
और विविधताओं का देश हैं जहाँ कि संस्कृति और परम्परायें आज भी सबके लिये कोतुहल
का विषय हैं और यही विशेषता हैं जो इसे कभी मिटने नहीं देती सनातन धर्म की नित
होने वाली रवायतें यहाँ रहने वालों को नूतन ऊर्जा व जोश से भरती तभी तो जिंदगी
गमों में भी मुस्कुराते हुये कटती... ऐसी ही एक गौरवशाली परंपरा का निर्वहन आज पुरी
की पावन भूमि में रथ यात्रा के रूप में किया जा रहा जिसे देखने देश ही नहीं
विदेशों से भी लोग आते और जब इससे जुडी आश्चर्यजनक बातों को जानते तो श्रद्धा से
नतमस्तक हो जाते... सबको अपने देश की इस अद्भुत और गर्व से भरने वाली ‘जगन्नाथ
पुरी रथ यात्रा’ की हार्दिक बधाई... ☺ ☺ ☺ !!!
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© ® सुश्री इंदु
सिंह “इन्दुश्री’
नरसिंहपुर
(म.प्र.)
१४ जुलाई २०१८
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