सोमवार, 2 जुलाई 2018

सुर-२०१८-१८२ : #कठपुतली_कौन_???




कठपुतली
अब नहीं नाचती
न ही मुस्कुराती या गाती
तरह-तरह के खेल भी
अब नहीं दिखाती
वो किस्से, वो कहानियां
जो करती थी कभी बयां
अब नहीं करती
इशारों पर उचकना-फुदकना हो
या हो रूठना-मनाना
हो गयी अब तो बात पुरानी
लटके-लटके डोरियों पर प्रतीक्षारत
कोई तो आये देखने उन्हें
थिरका दे उनके थमे हुये कदम
जिसकी एक-एक थाप पर
सुलग उठे बुझा चूल्हा फिर एक बार
चल पड़े रोजगार दुबारा
खिल उठे उनके मालिक का लटका चेहरा
जिसकी उंगलियों पर चलती
बन जाती सजीव बेजान पुतलिया
होकर भी महज़ खिलौना
नहीं देख पाती उसका मूक रोना
नहीं सुन पाती उसका आंतरिक सिसकना
जबकि, दूसरी तरफ खोकर तकनीकी यंत्रों में मानव
बन चुका खुद इंटरनेट की कठपुतली
नाच रहा सिग्नल्स के इशारों पर रात-दिन
देख ही नहीं पा रहा खुद का मिटना
 
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
०२ जुलाई २०१८

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