गुरुवार, 5 जुलाई 2018

सुर-२०१८-१९१ : #लघुकथा_रूपये_का_अवमूल्यन




राजीव और सुलेखा ने शापिंग मॉल जाकर एक से बढ़कर एक महंगे से महंगे विदेशी ब्रांडेड प्रोडक्ट्स खरीदे । उसके बाद जी भरकर मैक्डोनाल्ड्स में पिज़्ज़ा-बर्गर खाया एवं कोल्ड ड्रिंक पिया । उनके लिये ये आम-सी बात थी क्योंकि, जिस तरह की उनकी लाइफ स्टाइल थी उसमें वही नहीं उनके जैसे सभी इसी तरह की दिनचर्या के अभ्यस्त थे । अक्सर, मेट्रो सिटीज में सभी अपना वीकेंड इसी तरह मनाते और फिर बाकी दिन अपनी मल्टी नेशनल कंपनी की जॉब में व्यस्त हो जाते थे । आज जब उन्होंने अपने विदेशी कंपनी के महंगे एल.ई. डी. टी. वी. पर देखा कि डॉलर के मुकाबले रुपये का मूल्य बहुत नीचे गिर गया तो अपने विदेशी मोबाइल पर अपने दोस्त से इस विषय पर चर्चा करने लगा कि किस तरह से रुपया लगातार गिर रहा हैं आखिर, इसकी वजह क्या हैं ?

उसके फ्रेंड ने हंसती इमोजी के साथ लिखा बस, तू इतना बता तेरे घर मे कितने स्वदेशी उत्पाद हैं और तू एक बहु राष्ट्रीय कंपनी की नौकरी करते हुए देश की करेंसी को ऊपर लाने में क्या योगदान दे रहा हैं ? राजीव ने तुरंत अपने घर में चारो तरफ नजर दौड़ाई तो उसे अधिकांश विदेशी प्रोडक्टस ही दिखाई दिये और उसे अचानक यूं लगा जैसे उसके प्रश्न का जवाब मिल गया वाकई, हम सब इसके लिये क्या प्रयास कर रहे उल्टे हम तो इनके फैलाये मकड़ जाल में फंसकर विदेशी करेंसी को बढ़ाने में लगे उफ़, हम खुद ही तो सुबह उठने से लेकर रात सोने तक सभी विदेशी प्रोडक्ट्स इस्तेमाल करते उसके बाद रुपये को दोष देकर खुद को पाक-दामन बताते जबकि, रुपये को मजबूत करने की कोई कोशिश ही न करते ऐसे में हमें सवाल करने का हक है क्या? उसने दृढ़ संकल्प लिया कि वो अब से स्वदेशी को ही समर्थन देगा और जितना संभव अपने ही देश में बने प्रोडक्ट खरीदेगा और एक दिन रुपये को उसका वास्तविक हक दिलायेगा जो इतना मुश्किल भी नहीं हैं ।

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
०५ जुलाई २०१८

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