गुरुवार, 19 जुलाई 2018

सुर-२०१८-१९९ : #पीड़ा_के_राजकुंवर #गीतकार_गोपाल_दास_नीरज





जीवन कटना था, कट गया
अच्छा कटा, बुरा कटा
यह तुम जानो
मैं तो यह समझता हूँ
कपड़ा पुराना एक फटना था, फट गया
जीवन कटना था कट गया

‘जीवन’ के लिये पहले ही उन्होंने ये अभिव्यक्त कर जता दिया कि उनके लिये वो महज़ एक पुराने कपड़े के फटने की तरह हैं और बिल्कुल, उसी तरह आज उन्होंने उसे त्याग दिया हम लोग बस, खड़े-खड़े उसका गुजरना देखते रह गये वो जो इस सदी का अंतिम कलमकार था जिसने अपने गीतों से न जाने कितनी पीढ़ियों को दीवाना बनाया जीवन के ९४ साल गुजारकर जब आज उनके जाने की खबर मिली तो उनके गीत कानों में गूंजने लगे जिनके जरिये उन्होंने देश ही नहीं विदेश में भी अपने प्रशंसकों की एक बड़ी तादाद पैदा की जिसके साथ एक जमाना बीत गया पर, उनका जमाना कभी नहीं बीतेगा जब-जब भी उनका जिक्र होगा उनके अलफ़ाज़ जुबान पर स्वतः ही आ जायेंगे कि बड़ी सहजता से उन्होंने हर एक अहसास को जुबान दी तो जब भी ऐसा कोई मौका आया हमने उनका सहारा लिया चाहे वो ‘शोखियों में घोला जाये फूलों का शबाब...’ हो या ‘फूलों के रंग से दिल की कलम से तुझको लिखी रोज पाती...’ या फिर ‘मेघा छाये आधी रात बैरन बन गयी निंदिया...’ या ‘दिल आज शायर हैं गम आज नगमा हैं शब ये गजल हैं सनम...’ या ‘ऐ भाई जरा देखकर चलो’ या ‘रंगीला रे तेरे रंग में यूँ रंगा हैं मेरा मन...’ या ‘खिलते हैं गुल यहाँ खिल के बिखरने को, मिलते हैं दिल यहाँ मिल के बिछड़ने को...’ हर एक जज्बे को अपने शब्दों में इस तरह पिरोया कि हर किसी को वो अपना-सा महसूस हुआ और आज उन सबको पीछे छोड़कर वो आगे चले गये उनके लिये जीवन ही मौत की इबारत जो था...  

हर सुबह शाम की शरारत है
हर ख़ुशी अश्क़ की तिज़ारत है
मुझसे न पूछो अर्थ तुम यूँ जीवन का
ज़िन्दग़ी मौत की इबारत है

जो जीवन को मौत के समकक्ष रख सकता वही जीवन को सही मायनों में जीता हैं और उन्होंने जिस तरह जिंदादिली से अपने हर रक पल को जिया वो हम सबने देखा कि जब वे कवि के तौर पर उभरे उस दौर में मंच में उनके सिवाय किसी का नाम ही नहीं होता था वे जब माइक पकड़ते तो दिलों की धडकनें रुक जाया करती थी उनके नाम से शामें गुलज़ार हुआ करती थी उनकी किताबें प्रकाशित होते ही बिक जाया करती थी और जहाँ कहीं उनका कोई कार्यक्रम हो वहां तो चाहने वालों की भीड़ लग जाया करती थी क्योंकि, उनकी गायन शैली व प्रस्तुति का ढंग भी इतना प्रभावी था कि उनको सुनने के बाद भी उन्हें सुनने की ख्वाहिश बाकी रहती थी जिसने भी उनके जमाने में ऑंखें खोली इस नाम को सुना होगा और उनके गीतों की पंक्तियों को अपने खतों में भी जरुर लिखा होगा वो जो प्राध्यापक के पेशे को अपनाने के बाद किस तरह से कवि बने खुद ही लिखकर गये...
  
तब मानव कवि बन जाता है
जब उसको संसार रुलाता,
वह अपनों के समीप जाता,
पर जब वे भी ठुकरा देते
वह निज मन के सम्मुख आता,
पर उसकी दुर्बलता पर जब मन भी उसका मुस्काता है
तब मानव कवि बन जाता है

कितना सटीक लिखा हैं न कि कवि बनना कोई सहज कार्य नहीं जैसा कि आजकल सोशल मीडिया के जमाने में नजर आता जहाँ हर कोई खुद को कवि लिख स्वघोषित कवि बना बैठा उसे ये खबर नहीं कि इस तरह से कवि का केवल टैग लगाया जा सकता लेकिन, उस तरह की ख्याति या कद नहीं पाया जा सकता जो उन जैसे कवियों ने पाया जिन्होंने इसे चुना नहीं बल्कि, कुदरत ने खुद उनको इस काज हेतु चुना इसलिये तो अपने जीवन में सब कुछ व्यवस्थित होने के बाद भी मन में कोई कसक बाकी थी तो चले गये मुंबई जहाँ अपनी कलम से ऐसे गीतों की रचना की जो उनकी पहचान बन गये और उनके लिखे गीतों में जो काव्य सौंदर्य व भाषा हैं ऐसा अन्यत्र देखने नहीं मिलता क्योंकि, वे एक सच्चे साहित्यकार थे जिन्होंने इसे आराधना की तरह लिया और उतनी ही शिद्दत से इसे निभाया तो फिर भला कविता उनसे किस तरह बेवफाई करती उसने भी उनका भरपूर साथ निभाया और उन्हें एक ऐसे मुकाम तक पहुँचाया जहाँ वो अकेले नजर आते हैं और अपने शब्दों में अपना परिचय कविता में ढालकर कुछ इस तरह से देते हैं...

मैं ज्वाला का ज्योति-काव्य
चिनगारी जिसकी भाषा,
किसी निठुर की एक फूँक का
हूँ बस खेल-तमाशा

खेल-तमाशा कितना भी लंबा क्यों न हो आखिर एक दिन खत्म हो ही जाता उसके बाद सन्नाटा शेष रह जाता और यादें जिसमें शामिल होती उस शख्स की बीती बातें उसके साथ गुजरे हुये हसीन पल और उसका छोड़ा हुआ सामान जो उसकी स्मृति के रूप में सहेजकर रखा जाता उन्होंने तो इतना लिखा कि उसे पढ़ते-पढ़ते साहित्य प्रेमियों की जिंदगी प्रेम रस से सराबोर होकर मजे से बीत जायेगी और जितना हम उनको पढ़ेंगे कुछ नया ही सीखने को मिलेगा कि ये वो लोग जिन्होंने कलम कभी व्यर्थ नहीं चलाई और जो भी लिखा वो कोरा ज्ञान नहीं अनुभव से निकला हुआ अनमोल खजाना हैं जिसे यदि गहराई से समझने का प्रयास करेंगे तो अर्थ की अनेक परतों के साथ आश्चर्य से भरते जायेंगे जितनी ही व्याख्या करेंगे उतना ही खुद को परिपक्व पायेंगे कि ये कलमकार तो जीवन के शिक्षक जो अपने शब्दों में छिपाकर हमें गुरु मंत्र दिया करते जो कठिन पलों में हमें जीने का हौंसला और हमारी टूटती हुई उम्मीदों को आशा की किरण देते फिर भला उनको कोई किस तरह से कभी भूल सकता हैं उनको भी शायद, ये अहसास था कि ये मुमकिन नहीं तभी तो लिखा...

आँसू जब सम्मानित होंगे मुझको याद किया जाएगा
जहाँ प्रेम का चर्चा होगा मेरा नाम लिया जाएगा।

सच, उनका नाम हमेशा लिया जायेगा जब-जब भी प्रेम की बात होगी कि उन्होंने प्रेम को न केवल भरपूर जिया बल्कि, उकेरा भी और प्रेम तो अमर हैं फिर भला वे किस तरह से मर सकते हैं... कभी नहीं... प्रेम बनकर फिजाओं में घुले रहेंगे... शब्द बनकर हवाओं में बहेंगे और सूक्ष्म कणों में बदलकर कुदरत में समा जायेंगे... ‘नीरज’ विदा होकर भी कभी नहीं जायेंगे... वो अभी भी कहीं ये कह रहे होंगे... अब जमाने को खबर कर दो कि 'नीरज' गा रहा है

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
१९ जुलाई २०१८

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