शुक्रवार, 6 जुलाई 2018

सुर-२०१८-१७६ : #फिल्मों_को_दिलाई_जिसने_अंतर्राष्ट्रीय_पहचान #ऐसे_थे_बहुमुखी_प्रतिभाशाली_निर्देशक_चेतन_आनंद



अक्सर लोगों को पनी पसंद की फिल्मों और उनमें काम करने वाले कलाकारों के नाम तो याद रहते लेकिन, जिसने उसका निर्माण और निर्देशन किया उसको भूल जाते परंतु, जब उसको बनाने वाला उसमें अपना फन इस तरह से इस्तेमाल करता कि उसकी अलहदा छाप हर एक फ्रेम में दिखाई देती तो फिर देखने वाला उसको अपने जेहन में इस तरह से बिठा लेता कि उसके काम को देखकर फौरन ही उसका नाम उसकी जुबान पर आ जाता और इस तरह की काबिलियत हिंदी फ़िल्मी दुनिया के कम ही गीतकार, संगीतकार, गायक-गायिका और निर्देशकों में हैं जिनमें एक नाम अद्भुत प्रतिभा के धनी व कहानियो को देखने व प्रस्तुत करने का अपना ही नजरिया रखने वाले निर्माता, पटकथा लेखक और डायरेक्टर ‘चेतन आनंद’ का भी हैं जिन्होंने अपने कलात्मक दृष्टिकोण का भरपूर उपयोग करते हुये इस तरह की मूवीज का निर्माण व निर्देशन किया जिन्होंने देश ही नहीं सात समंदर पार भी अपनी काबिलियत से अनगिनत प्रशंसक पैदा किये ।

उन्होंने महान कथाकार ‘मैक्सिम गोर्की’ की ‘लोअर डेप्थ’ से प्रेरित होकर फिल्म 'नीचा नगर' बनाई जिसे भारत की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कार हासिल करने वाली प्रथम फिल्म का ख़िताब हासिल हैं । इस फिल्म का निर्माण काल 1946 में हुआ था जिस समय सारा देश सांप्रदायिक मसलों से घिरा हुआ था तो अपने ही देश में इस फिल्म का प्रदर्शन नहीं हो सका और इस वजह से परेशान होकर निवेशक ने फिल्म के निगेटिव्स के सारे डिब्बे गोदाम में फेंक दिए परंतु, निर्देशक ने अपना संपूर्ण इसमें झोंक दिया था तो उसका परिश्रम व्यर्थ किस तरह से जाता इसलिये देश में न सही विदेश में इसने अपनी सफ़लता के झंडा गाड़ दिये यहाँ तक कि ‘कॉन फिल्म फेस्टिवल’ में इसने ‘ग्रैंड प्राइज़ ऑफ द फेस्टिवल’ जीतकर सबका ध्यान अपनी तरह आकर्षित किया । जब देश के प्रथम प्रधानमंत्री ‘पंडित जवाहर लाल नेहरू’ को यह बात पता चली तो उन्होंने तुरंत दिल्ली में फिल्म दिखाने की व्यवस्था की और खुद अंतिम वायसराय ‘लॉर्ड माउंटबेटन’ के साथ बैठकर उसे देखा और कमाल की बात तो देखें कि ‘माउंटबेटन’ को तो ये फिल्म इतनी अधिक पसंद आई कि उन्होंने शो खत्म होते ही ‘चेतन आनंद’ को ब्रिटिश फिल्म प्रोड्यूसर ‘एलेक्ज़ेंडर कोर्डा’ जो कि ब्रिटिश के ऐसे पहले फिल्म मेकर थे जिन्हें 'नाइट' का खिताब दिया गया था के नाम एक सिफारिशी खत लिखकर दिया कि फिल्म लंदन में ज़रूर दिखाई जाये ।

इस तरह उन्होंने देश के बाहर अपनी अभूतपूर्व लेखन व निर्देशन की क्षमता से लोगों को प्रभावित किया और ये साबित किया कि वे निर्देशन में महारत रखते हैं केवल उन्हें अवसर मिलना चाहिये तब आम जनता ही नहीं देश का प्राइम मिनिस्टर भी उसके काम को सराहता हैं अन्यथा, देश का दुर्भाग्य रहा कि अपने यहाँ की विलक्षण प्रतिभाओं को अक्सर ही जब तक विदेशी ठप्पा न लगे ग्रेट नहीं समझा जाता पर, उन्होंने तो हर तरफ अपनी ईश्वर प्रदत्त काबिलियत का परचम लहराया और लगातार प्रयोग करते रहे जिसकी वजह से उनके निर्देशन में बनी फिल्मों बाजी, हक़ीकत, हीर-राँझा, कुदरत, हंसते जख्म, हिंदुस्तान की कसम, आखिरी खत, साहेब बहादुर टैक्सी ड्राईवर, आंधियां आदि ने दर्शकों के बीच में अपनी एक अलग पहचान बनाई और लोगों ने उनको उनके नाम से जाना जिसमें उनकी कला परखी नजरों का भी कमाल था जिसने अनेक प्रतिभाओं को निखारा और उन्हें पर्दे पर काम करने का अवसर दिया ऐसे प्रतिभावान फनकार ने आज के दिन ही अपनी अनमोल फिल्मों का नजराना हमें सौंपकर हम सबका साथ छोड़ दिया उनकी पुण्यतिथि पर उन्हें दिल से सलाम... जिन्होंने हिंदी फिल्मों को दिलाई अंतर्राष्ट्रीय पहचान... !!!
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© ® सुश्री इंदु सिंह “इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
०६ जुलाई २०१८k

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