मंगलवार, 17 जुलाई 2018

सुर-२०१८-१९७ : #तूफ़ान_मेल_सी_की_फिल्मों_में_एंट्री #कानन_बाला_से_बन_गई_वो_कानन_देवी




तूफ़ान मेल...
दुनिया ये दुनिया
तूफ़ान मेल

१९४२ में एक फिल्म आई ‘जवाब’ जिसमें ये गीत था जिसने उस वक़्त बड़ा धमाल मचाया और जिसने ये गीत गाया उसने भी इसकी वजह से बड़ा नाम कमाया और इस तरह फ़िल्मी दुनिया के ट्रैक पर उसके कैरियर की रेल जो चली तो चलती ही गयी ‘तूफ़ान मेल’ की तरह क्योंकि, ‘कानन देवी’ इस फिल्म के साथ हिंदी सिनेमा में पूरी तरह से स्थापित हो गयी जबकि, उनके अभिनय व गायन की शुरुआत इसके काफी पहले हो गयी वो भी उस उम्र में जब लोग सही तरीके बोल भी नहीं पाते महज़ दस वर्ष की उम्र में डांवाडोल पारिवारिक परिस्थिति की वजह से उन्हें मजबूरीवश घर चलाने की खातिर फ़िल्मी दुनिया का रुख करना पड़ा पर उन्हें ये इल्म नहीं था कि उनका तो जन्म ही इसके लिये हुआ तो फिर भला वे किस तरह से इस जगह पर नहीं आती मगर, उस वक़्त तो उन्होंने खुद को हालात की मारी समझकर उस समझौता किया

जब उनको ये अहसास हुआ कि यही नियति हैं तो फिर उसे गंभीरता से लेते हुये मेहनत कर अपने आपको इस तरह से निखारा कि उनकी अप्रतिम खुबसूरती, ईश्वर प्रदत्त सुमधुर कंठ और लाज़वाब अभिनय क्षमता ने उनको सिने जगत में एक अलग पंक्ति में खड़ा कर दिया जहाँ से एक अलग लाइन की शुरुआत हुई क्योंकि, उन्होंने नायिका के लिये नये मापदंड स्थापित किये उसके पहले वैसे भी महिलायें इस कार्यक्षेत्र को सही नहीं समझती तो फिल्मों में काम नहीं करती थी पर, जब इस जगह कदम रखे तो मिसाल कायम की वजह चाहे जो भी हो तो इसी तरह ‘कानन बाला’ भी आई तो घर की खराब आर्थिक स्थिति के कारण मगर, जब इसे ही पेशे के तौर पर अपनाने का सोचा तो अपने अभिनय, गायन को बेहतरीन बनाने के लिये गुरुओं से बाकायदा तालीम ली जिससे कि दर्शकों को सर्वश्रेष्ठ दे सके

उन्होंने १९२६ में ‘जयदेव’ फिल्म के जरिये उन्होंने १० साल की उम्र में आगाज़ किया जिस समय मूक फिल्मों का दौर था तो गाने की कोई जरूरत नहीं थी पर, इसके पांच साल बाद ही १९३१ में किशोरावस्था में उन्होंने ‘ऋषिर प्रेम’ जैसी बोलती फिल्म में काम कर ऐसा रंग जमाया कि ये जता दिया कि वो यहाँ लंबी पारी खेलेंगी और यही हुआ उन्होंने उन्होंने उस्ताद अल्लारखा से संगीत की विधिवत शिक्षा ली और तबला बजाना भी सीखा जिससे उनके गीतों में परफेक्शन आ गया और उनके खनकते स्वर ने सब पर अपना जादू चला दिया इस तरह हिंदी फिल्मों को अपनी पहली सुपरस्टार मिली जो बहुमुखी प्रतिभा की धनी थी जिसकी मीठी आवाज़ और उस पर उसके दिलकश अंदाज़ ने उनको इतना मशहूर कर दिया कि हर कोई उनकी तरह बनाने के सपने देखने लगा और उस जमाने में उन्होंने बंगला व हिंदी दोनों ही फिल्मों में अपने गीतों व अभिनय से अपना मजबूत स्थान बनाया

उनकी सभी फिल्मों ने कामयाबी के झंडे गाड़े चाहे वो 'हॉस्पिटल' हो 'वनफूल' या 'राजलक्ष्मी' या फिर ‘साथी’ उस समय में के.एल. सहगल के साथ भी उनकी जोड़ी को दर्शकों ने बेहद पसंद किया और उनके गाये गीतों ने सुनने वालों को दीवाना कर दिया क्योंकि, दोनों ही सुरों के सरताज थे तो उनका गायन भी उसी स्तर का था जिससे उनके गाये गाने आज भी यु-ट्यूब पर सुने जाते हैं अपने अभिनय व गायन के अलावा उन्होंने फिल्मों का निर्माण भी किया जिसके लिये उन्होंने खुद का बैनर ‘श्रीमती पिक्चर्स’ बनाया और बंगला साहित्यकार ‘शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय’ की कहानियों पर ‘अन्नया’ (1949), ‘मेजो दीदी’ (1950), ‘दर्पचूर्ण’ (1952), ‘नव विद्यान’ (1954), ‘आशा’ (1956), ‘आधारे आलो’ (1957), ‘राजलक्ष्मी ओ श्रीकांता’ (1958), ‘इंद्रनाथ’, ‘श्रीकांता औ अनदादीदी’ (1959) और ‘अभया ओ श्रीकांता’ (1965) जैसी कई फिल्‍मों का र्निमाण किया

इस तरह उन्होंने अपनी बहुमुखी प्रतिभा से अभिनय, गायन, फिल्म निर्माण सभी में अपना परचम लहरा दिया और उनकी इस अभूतपूर्व काबिलियत के लिये उन्हें १९७६ में ‘दादा साहब फाल्के’ अवार्ड से सम्मानित किया जिसे पाने वाली वे प्रथम बांग्ला कलाकार थी इस तरह तूफ़ान मेल से शुरू उनकी यात्रा शानदार रही और १९९२ में आज ही के दिन याने १७ जुलाई को वे सबको अलविदा कहकर इस दुनिया से चली जरुर गयी लेकिन, अपने नायब गीतों व फिल्मों के रूप में अपनी अनेक निशानियाँ अपने चाहने वालों के लिये छोड़ गयी... आज उनकी पुण्यतिथि पर शब्दों के पुष्पों से उनको ये आदरांजलि... ☺ ☺ ☺ !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
१७ जुलाई २०१८

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