जिंदगी की किताब
जिसके पन्नों
के बीच कहीं दबी
भूली-बिसरी हुई
इक याद
पलटे जब-भी
पन्ना
तो गुज़रे पलों
में पहुँच जाये
छोड़ आये जहाँ
पर
अपनी उम्र का
सुनहरा दौर
देखकर जब-जब
उसको
चलचित्र की तरह
घुम जाती
आँखों के सामने
से
करने लगती अठखेलियाँ
वो मीठी
स्मृतियाँ
भूल भी जाऊं
वो पन्ना अगर
कभी
पढ़ते-पढ़ते जिसे
जीवन के सफ़र के दरम्यान
कभी झपक गयी
आँख
या कभी आ गया
कोई काम
तो याद दिलाते
उसे
ये मेरा प्यारा
'बुक मार्क' ।।
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© ® सुश्री इंदु
सिंह “इन्दुश्री’
नरसिंहपुर
(म.प्र.)
०७ जुलाई २०१८
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